अमिताभ लिखते हैं कि उनकी पर्सनिलिटी में सहज आकर्षण था, वे लोगों को मोह लेते थे, उनकी हंसी, उनकी मुस्कान, उनकी बेफिक्री...मत पूछिए, उन्हें कुछ भी डिस्टर्ब नहीं कर सकता था।
अमिताभ बच्चन ने विनोद खन्ना के साथ अपने 48 साल के संबंधों को याद किया
अमिताभ बच्चन ने अभिनेता विनोद खन्ना के साथ 48 साल के अपने सफर को ताजा किया है। अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में विनोद खन्ना के साथ गुजारे अनगिनत पलों को याद किया है। अमिताभ बच्चन ने इस ब्लॉग में विनोद खन्ना के साथ अपनी दोस्ती को अल्फाजों के जरिये इस कदर उतारा है, सारे दृश्य आपके आंखों के सामने तैर जाएंगे। अमिताभ विनोद खन्ना की शख्सियत के बारे में लिखते हैं, ‘ एक हैंडसम, जवान शख्स, कसा हुआ शरीर, चाल में अकड़, लेकिन प्यारी सी मुस्कान वाला शख्स मेरी ओर देखकर मुस्कुराया, मैं अजन्ता आर्ट्स के दफ़्तर में नौकरी मांगने गया था, मैं एक रोल के लिए संघर्ष कर रहा था, कहीं भी, किसी तरह का, वो फिल्म मन का मीत में काम कर रहा था, ये साल 1969 था।’
अमिताभ कहते हैं कि विनोद के साथ उनकी गजब की केमिस्ट्री थी, एक दूसरे का लंच शेयर करते, मेकअप रुम हंसी मजाक करते, और एक दूसरे के साथ गुजारते थे। इस दौरान अमिताभ एक वाकये का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि, एक सीन में मुझे विनोद की ओर शीशे का टुकड़ा फेंकना था, मैंने शीशा फेंका और बदकिस्मती से वो विनोद के चेहरे पर लगा, ठुड्डी पर उन्हें गंभीर चोट आई, उनके मुंह से खून निकलने लगा, मैं उन्हें लेकर डॉक्टर के पास भागा, उनके चेहरे पर टांके लगवाए, उन्हें घर ले गया, बार बार सॉरी कहता रहा, मैं इस अपराध बोध को आज तक नहीं भूल पाया हूं। फिल्म जमीर की शूटिंग को याद करते हुए अमिताभ बच्चन लिखते हैं कि उस समय के मशहूर एक्शन कॉर्डिनेटर खन्ना साहब कहते थे कि इन दोनों कलाकारों को मुझे एक एक्शन ड्रामा में काम करने दे दो मैं अबतक का सबसे बेहतरीन सीन निकाल कर दूंगा।
अमिताभ लिखते हैं कि उनकी पर्सनिलिटी में सहज आकर्षण था, वे लोगों को मोह लेते थे, उनकी हंसी, उनकी मुस्कान, उनकी बेफिक्री…मत पूछिए, उन्हें कुछ भी डिस्टर्ब नहीं कर सकता था। अमिताभ इस ब्लॉग में उन दिनों का भी जिक्र करते हैं जब विनोद खन्ना अभिनय छोड़कर ओशो के शिष्य हो गये थे। अमिताभ लिखते हैं कि ओशो के इस मूवमेंट में उन्हें जबर्दस्त यकीन था, एक बार अमेरिका में मुलाकात के दौरान उन्होंने बिग बी को बताया इस मूवमेंट का दुनिया और उनके लिए क्या मतलब है। अमिताभ लिखते हैं 48 सालों का ये दोस्ताना इस दोपहर को अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया। ये शख्स, ऊर्जा से भरा हुआ ये शरीर, ये दोस्त, ये साथी, अपनी ही अंदाज में मस्त रहने वाला ये इंसान आज गतिहीन पड़ा हुआ है। उसकी चाल बेमिशाल थी, भीड़ में उसकी मौजूदगी का कोई सानी नहीं था, जिस माहौल में वो मौजूद रहता था उसे उससे ज्यादा रौशन और कोई नहीं कर सकता था।