होली के सुरूर से जब पूरा देश बाहर आ चुका होता है, उसके बाद भी कनपुरियों को जमकर होली खेल ते हुए देखा जा सकता है. ये मौका होता है गंगा मेला का, होली के पांचवें दिन कानपुर में इस दिन जिस तरह से रंग खेला जाता है उस तरह से तो होली पर भी रंग नहीं खेला जाता. कानपुर में गंगा मेला पर रंग खेलने की भी एक खास वजह है.
कानपुर में होली के पांचवें दिन सरसैया घाट पर गंगामेला लगता है. इस दिन कानपुर के लोग जमकर होली खेलते हैं. इस दिन हटिया के रज्जनबाबू पार्क से निकलने वाला ठेला पूरे शहर को रंग से सराबोर कर देता है. जानें गंगा मेले का इतिहास…
जानकारों के मुताबिक 1942 कानपुर के हटिया बाजार के रज्जन बाबू पार्क में युवाओं ने रंग-अबीर उड़ाकर होली खेली थी. इसके साथ ही युवाओं की इस टोली ने वहां तिरंगा फहरा दिया था. अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो वो वहां पहुंचकर तिरंगा उतरवाने लगे. युवाओं की टोली ने इस बात का विरोध किया तो गुस्साए अंग्रेजी सैनिकों ने युवाओं को पीटा और 40 से ज्यादा लोगों को जेल भेज दिया.
अंग्रेजी सैनिकों के इस कदम से कानपुर के लोगों का गुस्सा भड़क गया. कानपुर के बाजार बंद कर दिए गए. इसके बाद तो यहां के हर व्यक्ति ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. इस आंदोलन में महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे लोगों ने भी सहयोग किया.
होली के पांचवें दिन (अनुराधा नक्षत्र) गिरफ्तार किये गए लोगों को जब छोड़ा गया तब सभी ने जमकर होली खेली. इसके बाद से ही कानपुर में गंगा मेला मनाने की परंपरा है. यहां अनुराधा नक्षत्र के दिन जबरदस्त होली खेली जाती है. गंगा मेले पर यहां प्रतीकात्मक रूप में ठेले पर भी जुलूस निकलता है फिर पूरा कानपुर जोश के साथ रंगों का त्योहार मनाता है.