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बाल दिवस

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जीवन के रास्ते से गुजरते हुए मैं कईयों को देख द्रवीभूत हो जाता हूँ जिसके सपने सजते-सजते नील गगन के तारों की तरह बिखर गए जिसे संजोया जाना या पुनः एकत्रित करना असंभव सा महसूस होने लगा। जिसने जीवन के तमा

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प्रातः स्मरणेय शिक्षक वृंद के चरणों में कोटिशः नमन। गुरु का स्थान तो कबीरदास जी के इन दोहों से ही स्पष्ट हो जाती है:- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय? बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय। वै

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स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये॥ हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर

राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे॥ "  हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के नि

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अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥  ( ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र २ ) प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति क्यों करनी चाहिए, यह बताया गया था। द्वितीय मंत्र में उक्

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ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है।  ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आध

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माँ जो संजोती थी लोरी सुलाकर दामन में अपने आँचल से मुँह मेरा छिपाती सुनाकर कहानी वो दीवाल पे सो लेती सपने बुन लेती तेल की मालिश से उभरते अंगो को सहलाती व्यायाम कराती पैरो तले

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी बस की रफ़्तार के मुताबिक हिलती रहती हैं… झुककर मैंने प

🎎🎎🎎💥बाल दिवस 💥🎎🎎🎎 🌹🌹🚩 🙏✍️✍️✍️🙏 🚩🌹🌹 धाराएं चंचल बन्दर भी चंचल , चंचल है बालक का मन , चंचल विद्युत दृष्टि पवन , चंचल द्रव्य सबका मन । भविष्य राष्ट्र का बालक है , स्लोगन लेखन है पुरानी ,

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हर वर्ष 14 नवम्बर को वर्तमान भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 'बाल दिवस' बाल कल्याण संस्थाओं, सामाजिक संगठनों, केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारोँ क

डायरी दिनांक १४/११/२०२२   शाम के छह बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।   यदि यादों की बातों को लिपिबद्ध करना हो तब क्या सभी बातों को सही सही लिखा जा सकता है। समय के साथ बहुत सी बातें दिमाग से

नेहरू जी के जन्मदिन की याद में ये बाल दिवस मनाते हैंसबको था उनसे बहुत स्नेहइसलिए सब उनको चाचा बुलाते थेअक्सर वो फूल लगाते थेहमेशा ही मुस्काते थेआज उनकी याद में हम सब उनकोश्रद्धा सुमन चढ़ाते

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अबोध मन सा बचपन, निश्छल चंचल चितवन। पुष्प अंकुरित सा कोमल, ओस की बूंदों सा मनभावन।। घर आंगन महकाता बचपन, नादान परिंदे जैसा बचपन। गुलशन गुंजाएमान बालमन, बिन बात मुस्काए बालमन।। सूरज सा दमके बालमन, निश्

प्रिय सखी।कैसी हो ।बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। हमारे छोटे लाडले का आज मन नही था स्कूल जाने का ।फिर हम ने कहा कि आज बाल दिवस है बेटा । बच्चों का दिन । स्कूल मे मौज करना ।और वो झट से मान गया ।जब स्क

शायद भागदौड़ भरी जिंदगी में भूल बैठे हम बचपन वो कहानी किस्सों में जिंदा रहने वाला आज बंद किताबों में कैद हो गया वो चेहरे पर खुशी लाने वाली मुस्कुराहट कहीं जिम्मेदारी के बोझ में बंद हो गई..,    सच

एक छोटी-सी, प्यारी-सी यह कहानी है,राज कुंवर और उनकी माँ महारानी है,इन माँ-बेटे की दोस्ती इतनी गहरी है,कि हर एक बात एक दूजे को बतानी है, हर रोज सुबह-सवेरे महारानी मां,लाडले राज कुंवर के कमरे में आ

साज श्रृंगार नहीं बल्कि सादगी से भरा होता बचपन का बाल दिन,जब हमारे तकदीर में आती थे खुशियों के कितने सुनहरे सारे दिन।।

शीर्षक ---बच्चे उड़ने दो हवाओं में हमें भी,जीने दो कुछ पल हमें भी,मत लगाओ बंदिशे मुझ पर,मेरी मासूमियत पर,लौट के वो पल नही आयेंगे।करने दो कुछ शेतानियाँ हमें भी,चाह कर भी नही आएंगे वो पल,बचपन के

हम हर साल चौदह नवंबर को पंडित जवाहर लाल नेहरु की जयंती के उपलक्ष्य में बाल दिवस मनाया जाता है बालक पण्डित जवाहर लाल नेहरु को चाचा नेहरु कहकर भी बुलाते थे व पंडित जवाहर लाल नेहरु जी भी बच्चों से बहुत अ

मेरी आँखों से गुजरी जो बीते लम्हों की परछाईं न फिर रोके रुकी ये आँखें झट से भर आयीं वो बचपन गुजरा था जो घर के आंगन में लुढ़कता सा मैं भीगा करती थी जिसमें वो सावन बरसता सा याद आई मुझे माँ ने थी जों

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