माया देवी-शुद्धोधन के घर,
जन्मा गौतम एक बालक,
सम्यक सत्य की खोज की खातिर,
सिद्धार्थ बन गए बौद्ध धर्म के चालक।
लुम्बनी में आकार था पाया,
बोधगया में हो गए तप में तल्लीन,
सारनाथ में उपदेश दिए तब,
कुशीनगर में हो गए निर्वाण में लीन।
दुःख जीवन का अभिन्न अंग है
चलता है ताउम्र संग में,
सम्यक संकल्प और सम्यक कर्म से,
हम पा सकते निर्वाण अंत में।
ऊँच-नीच और छुआछूत का,
इनका था खण्डन कर डाला,
अष्टांगिक मार्ग पर चलकर,
परिनिर्वाण था प्राप्त कर डाला।
महात्मा बुद्ध तो शान्ति दूत थे,
सत्य अहिंसा थे हथियार,
गर विश्व में शान्ति चाहते तो,
"बुद्धम् शरणं गच्छामि" पर करो विचार।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)