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चतुर्थ गर्भांक : ।। प्रथम अंक ।।

26 जनवरी 2022

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स्थान-बुभुक्षित दीक्षित की बैठक
(बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं; 
इतने में महाश कोतवाल अर्थात् निमंत्रण करने वाला आकर चौक 
में से दीक्षित को पुकारता है)
महाश : काहो, बुभुक्षित दीक्षित आहेत?
बुभुक्षित : (इतना सुनते ही हाथ का पान रखकर) कोण आहे? (महाश आगे बढ़ता है) वाह, महाश तु आहेश काय? आय बाबा आज किति ब्राह्मण आमच्या तड़ांत देतो? सरदारनी किती सांगीतलेत! (थोड़ा ठहरकर) कायर ठोक्याच्या कमरान्त सहस्रभोजन कुणाच्या यजमानाचे चाल्ले आहे?
महाश : दीक्षित जी! आज ब्राह्मणाची अशी मारामार झाली कि मी माँहीं सांगूँ शकत नाहीं-कोण तो पचड़ा!!
बु.भु. : खरें, काय मारामार झाली? अच्छा ये तर बैठकेंत पण आखेरीस आमचे तड़ाची काय व्यवस्था? ब्राह्मण आणलेस की नाहीं? काँ हात हलवीतच आलास?
महाश : (बैठक में बैठकर जल माँगता है) दीक्षित जी थोडे़ से पाणी द्या, तहान बहुत लागली आहे।
बुभु. : अच्छा भाई, थोड़ा सा ठहर अत्ता उनातून आजा आहेस, बूटी ही बनतेच आहे। पाहिजे तर बूटीचच पाणी पी। अच्छा साँग तर कसे काय ब्राह्मण किती मिलाले?
महाश : गुरु, ब्राह्मण तो आज 25 निकाले, यार लोग आपके शागिर्द हैं कि और किसके?
चंबूभट्ट : (बडे़ आनंद से) क्या भाई सच कहो-25 ब्राह्मण मिलाले?
महाश : हो गुरु! 25 ब्राह्मण तर नुसते सहस्रभोजनाचे, परंतु आजचे वसंतपूजतेचे तर शिवाय च-आणखी सभेकरतां तर पेष लावलाच आहे पण-
गोपाल, माधव शास्त्री : (घबड़ाकर) काय महाश पण काँ? सभेचें काम कुणाकड़े आहे? अणखी सभा कधीं होणार? आँ?
महाश : पण इतवें$च कीं हा यजमान पाप नगरांत रहतो, आणि याला एक कन्या आहे ती गतभर्तृका असून सकेशा आहे आणि तीर्थ-स्थलीं तर क्षौर करणें अवश्य पण क्षौरेकरून कनयेंची शोभा जाईल या करितां जर कोणी असा शास्त्रीय आधार दाखवील तर एक हजार रुपयांची सभाकरण्याचा त्यांचा विचार आहे व या कामांत धनतुंदिल शास्त्रीनी हात घातला आहे।
गप्प पंडित : अं: , तो ऐसी झुल्लक बात के हेतु शास्त्राधार का क्या काम है? इसमें तो बहुत से आधार मिलेंगे।
माधव शास्त्री : हाँ पंडित जी आप ठीक कहते हैं, क्योंकि हम लोगों का वाक्य और ईश्वर का वाक्य समान ही समझना चाहिए ”विप्रवाक्ये जनार्दनः“ ”ब्राह्मणो मम दैवतं“ इत्यादि।
गोपाल : ठीकच आहे, आणि जरि कदाचित् असल्या दुर्घट कामानी आम्ही लोकदृष्टया निन्द्य झालों तथापि वन्द्यच आहों, कारण श्री मभागवतांत ही लिहलें आहे ”विप्रं कृतागसमपि नैव द्रुह्येत कश्चनेत्यादि।“
गप्प पंडित : हाँ जी, और इसमें निंद्य होने का भी क्या कारण? इसमें शास्त्र के प्रमाण बहुत से हैं और युक्ति तो हई है। पहिले यही देखिए कि इस क्षौर कर्म से दो मनुष्यों को अर्थात् वह कन्या और उसके स्वजन इनको बहुत ही दुःख होगा ओर उसके प्रतिबंध से सबको परम आनंद होगा। तब यहाँ इस वचन को देखिए-
”येन केनाप्युपायेन यस्य कस्यापि देहिनः।
संतोष जनयेत् प्राज्ञस्तदेवेश्वर पूजनं ।।“
बुभु. : और ऐेसे बहुत से उदाहरण भी इसी काशी में होते आए हैं। दूसरा काशीखंड ही में कहा है ‘येषां क्वापि गतिर्नास्ति तेषां वाराणसीगतिः।’
चंबूभट्ट : मूर्खतागार का भी यह वाक्य है ‘अधवा वाललवनं जीव- नाद्र्दनवद्भवेत्’। संतोषसिंधु में भी ‘सकेशैव हि संस्थाप्या यदि स्यात्तोषदा नृणां’।
महाश : दीक्षित जी! बूटी झाली-अब छने जल्दी कारण बहुत प्यासा जीव होऊन गेला अणखी अझून पुष्कल ब्राह्मण सांगायचे आहेत।
बुभु. : (भांग की गोली और जल, बरतन, कटोरा, साफी लेकर) शास्त्री जी! थोड़े से बढ़ा तर।
माधव शास्त्री : दीक्षित जी! हें माँझ काम नह्नं, कारण मी अपला खाली पीण्याचा मालिक आहे, मला छानतां येत नाहीं। (गोपाल शास्त्री की ओर दिखलाकर) ये इसमें परम प्रवीण हैं।
गोपाल शास्त्री : अच्छा दीक्षित जी, मीच आलों सही।
चंबूभट्ट : (इन सबों को अपने काम में निमग्न देखकर) बरें मग महाश अखेरीस तड़ाचे किसी ब्राह्मण सहस्रभोजनावे व बसंत पूजेचे किती?
महाश! : दीक्षिताचे तड़ांत आज एकंदर 25 ब्राह्मण; पैंकीं 15 सहस्र भोजनाकड़े आणि 10 वसंतपूजेकड़े-
माधव शास्त्री : आणि सभेचे?
महाश : सभेचे तर भी सांगीतलेंच कीं धनतुंदिल शास्त्रीचे अधिकारांत आहे, आणि दोन तीन दिवसांत ते बंदोबस्त करणार आहेत।
गप्प पंडित : क्यों महाश! इस सभा में कोई गौड़ पंडित भी हैं वा नहीं?
महाश : हाँ पंडित जी, वह बात छोड़ दीजिए, इसमें तो केवल दाक्षिणात्य, द्राविण और क्वचित् तैलंग भी होंगे, परंतु सुना है कि जो इसमें अनुमति करेंगे वे भी अवश्य सभासद होंगे।
गप्प पंडित : इतना ही न, तब तो मैंने पहिले ही कहा है, माधव शास्त्री! अब भाई यह सभा दिलवाना आपके हाथ में है।
माधव : हाँ पंडित जी, मैं तो अपने शक्त्यनुसार प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि प्रायः काका धनतुंदिल शास्त्री जो कुछ करते हैं उसका सब प्रबंध मुझे ही सौंप देते हैं। (कुछ ठहर कर) हाँ, पर पंडित जी, अच्छा स्मरण हुआ, आपसे और न्यू फांड ;छमू विदकद्ध शास्त्री से बहुत परिचय है, उन्हीं से आप प्रवेश कीजिए, क्योंकि उनसे और काका जी से गहरी मित्रता है।
गप्प पंडित : क्या क्या शास्त्री जी? न्यू-क्या? मैंने यह कहीं सुना नहीं।
गोपाल : कभी सुना नहीं इसी हेतु न्यू फांड।
गप्प पंडित : मित्र! मेरा ठट्टा मत करो। मैं यह तुम्हारी बोली नहीं समझता। क्या यह किसी का नाम है? मुझे मालूम होता है कि कदाचित् यह द्रविड़ त्रिलिंग आदि देश के मनुष्य का नाम होगा। क्योंकि उधर की बोली मैंने सुनी है उसमें मूर्द्धन्य वर्ण प्रायः बहुत रहते हैं।
माधव शास्त्री : ठीक पंडित जी, अब आप का तर्कशास्त्र पढ़ना आधा सफल हुआ। अस्तु ये इधर ही के हैं जो आप के साथ रामनगर गए थे, जिन्होंने घर में तमाशे वाले की बैठक की थी-
गप्प पंडित : हाँ, हाँ, अब स्मरण हुआ, परंतु उनका नाम परोपकारी शास्त्री है और तुम क्या भांड कहते हो?
गोपाल शास्त्री : वह पंडित जी, भांड नहीं कहा फांड कहा-न्यू फांड अर्थात् नये शौखीन। सारांश प्राचीन शौखीन लोगों ने जो जो कुछ पदार्थ उत्पन्न किए, उपभुक्त किए उन ही उनके उच्छिष्ट पदार्थ का अवलंबन करके वा प्राचीन रसिकों की चाल चलन को अच्छी समझ हमको भी लोक वैसा ही कहे आदि से खींच खींच के रसिकता लाना, क्या शास्त्री जी ऐसा न इसका अर्थ?
माधव शास्त्री : भाई, मुझे क्यों नाहक इसमें डालते हो-
गप्प पंडित : अच्छा, जो होय मुझे उसके नाम से क्या काम। व्यक्ति मैंने जानी परंतु माधव जी आप कहते हैं और मुझसे उनसे भी पूर्ण परिचय है और उनको उनका नाम सच शोभता है, परंतु भाई वे तो बड़े आढ्य मान्य हैं और कंजूस भी हैं-और क्या तुमसे उनसे मित्रता मुझसे अधिक नहीं है। यहाँ तक शयनासन तक वे तुमको परकीय नहीं समझते।
माधव शास्त्री : पंडित जी! वह सर्व ठीक है, परंतु अब वह भूतकालीन हुई। कारण ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’-
बुभु. : हाँ पंडित जी! अब क्षण भर इधर बूटी को देखिए, लीजिए। (एक कटोरा देकर पुनः दूसरा देते हैं)
गप्प पंडित : वाह दीक्षित जी, बहुत ही बढ़िया हुई।
चंबूभट्ट : (सब को बूटी देकर अपनी पारी आई देखकर) हाँ-हाँ दीक्षित जी, तिकड़ेच खतम करा भी आज कल पीत नाहीं।
गोपाल माधव : काँ भट जो! पुरे आतां, हे नखरे कुठे शिकलात, या-प्या-हवेने व्यर्थ थंडी होते।
चंबूभट्ट : नाहीं भाई भी सत्य साँगतों, भला सोसत नाहीं। तुम्हाला माझे नखरे वाटतात पण हे प्रायः इथले काशीतलेच आहेत, व अपल्या सारख्यांच्या परम प्रियतम सफेत खड़खड़ीत उपर्णा पाँघरणार अनाथा बालानींच शिकविलेंन बरें।
(सब आग्रह करके उसको पिलाते हैं)
महाश : कां गुरु दीक्षित जी अब पलेती जमविली पाहिजे।
बुभु. : हाँ भाई, घे तो बंटा आणि लाव तर एक दोन चार।
महाश : (इतने में अपना पान लगाकर खाता है और दीक्षित जी से)
दीक्षित जी, 15 ब्राह्मण ठोक्याच्या कमर्यांत पाटावा, दाहा बाजतां पानें माँडलो जातील, आणि आज रात्री बसंतपूजेस 10 ब्राह्मण लवकर पाठवा कारण मग दूसरे तड़ाचे ब्राह्मण येतील (ऐसा कहता हुआ चला जाता है)
बुभु. : (उसको पुकारते हुए जाते हैं) महाश! दक्षिणा कितनी?
(महाश वहीं से चार अंगुली दिखाकर गडा कहकर गया)
माधव : दीक्षित जी! क्या कहीं बहरी ओर चलिएगा?
गोपाल : (दीक्षित से) हाँ गुरु, चलिए आज बड़ी वहाँ लहरा है।
बुभु. : भाई बहरीवर मी जाऊन इकडचा बन्दोबस्त कोण करील?
गोपाल : अं: गुरू इतके 15 ब्राह्मण्यांत घबड़ावता। सर्वभक्षास साँगीतले ब्राह्मण जे झाले। न्यू फांड की पत्ती है।6
गप्प पंडित : क्या परोपकारी की पत्ती है? खाली पत्ती दी है कि और भी कुछ है? नाहीं तो मैं भी चलूँ।
माधव शास्त्री : पत्ती क्या बड़ी-बड़ी लहरा है, एक तो बड़ा भारी प्रदर्शन होगा और नाना रीति के नाच, नए नए रंग देख पड़ेंगे।
गप्प पंडित : क्यों शास्त्री जी, मुझे यह बड़ा आश्चर्य ज्ञात होता है और इससे परिहासोक्ति सी देख पड़ती है। क्योंकि उसके यहाँ नाच रंग होना सूर्य का पश्चिमाभिमुख उगना है।
गोपाल : पंडित जी! इसी कारण इनका नाम न्यू फांड है। और तिस पर यह एक गुह्य कारण से होता है। वह मैं और कभी आप से निवेदन करूँगा, वा मार्ग में-
बु.भु. : (सर्वभक्ष नाम अपने लड़के को सब व्यवस्था कहकर आप पान पलेती और रस्सी लोटा और एक पंखी लेकर) हाँ भाई, मेरी सब तैयारी है।
माधव गोपाल : चलिए पंडित जी वैसे ही धनतुंदिल शास्त्री जी के यहाँ पहुँचेंगे। (सब उठर बाहर आते हैं।)
चंबूभट्ट : मैं तो भाई जाता हूँ क्योंकि संध्या समय हुआ।
(चला जाता है)
गप्प पंडित : किधर जाना पड़ेगा?
माधव शास्त्री : शंखोध्यारा क्योंकि आजकल श्रावण मास में और कहाँ लहरा? धराऊ कजरी, श्लोक, लावनी, ठुमरी, कटौवल, बोली ठोली सब उधर ही।
गप्प पंडित : ठीक है शास्त्री जी, अब मेरे ध्यान में पहुँचा, आजकाल शंखोध्यारा का बड़ा माहात्म्य है। भला घर पर यह अब कहाँ सुनने में आवेगा? क्योंकि इसमें धराऊ विशेषण दिया है।
गोपाल : आः हमारा माधव शास्त्री जहाँ है वहाँ सब कुछ ठीक ही होगा, इसका परम आश्रय प्राणप्रिय रामचंद्र बाबू आपको विदित है कि नहीं? उसे यहाँ ये सब नित्य कृत्य हैं।
गप्प पंडित : रामचंद्र हम ही को क्या परंतु मेरे जान प्रायः यह जिसको विदित नहीं ऐसा स्वल्प ही निकलेगा। विशेष करके रसिकों को; उसको तो मैं खूब जानता हूँ।
गोपाल : कुछ रोज हमारे शास्त्री जी भी थे, परंतु हमारा क्या उनका कहिए ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि अब वर्ष वर्ष दर्शन नहीं होने पाता। रामचंद्र जी तो इनको अपने भ्राते के समान पालन करते थे और इनसे बड़ा प्रेम रखते थे। अस्तु सारांश पंडित वहाँ रामचंद्र जी के बगीचे में जाएँगे। वहाँ सब लहरा देख पड़ेगी और इस मिस से तौ भी उनका दर्शन होगा।
बुभु. : अरे पहिले नवे शौखिनाचे इथे जाउँ तिथे काय आहे हें पाहूँ आणि नंतर रामचंदाकड़े झुकूं।
माधव शास्त्री : अच्छा तसेच होय आजकल न्यू फांड शास्त्री यानी ही बहुत उदारता धरली आहे बहुत सी पाखरें ही चारती आहेत तो सर्वदृष्ट्रीस पड़तील पण भाई भी आँत यायचा नाहीं। कारण मला पाहून त्यांना त्रास होतो।
गोपाल. : अच्छा तिथ वर तर चलशील आगे देखा जायगा।
(सब जाते हैं और जवनिका गिरती है)
(इति) घिस्सधिसद्विज कृत्य विकर्तनी नाम चतुर्थ गर्भाकं
।। प्रथम अंक समाप्त हुआ ।। 

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रचनाएँ
प्रेमजोगिनी
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यह संसार तो दुःख रूप आप ही है इसमें सुख का तो केवल आभास मात्र है। ... कुछ चिन्ता नहीं तेरा तो बाना है कि कितना ही भी 'दुख हो उसे सुख ही मानना' लोभ के परित्याग के समय नाम और कीत्र्ति तक का परित्याग कर दिया है और जगत से विपरीत गति चलके तूने प्रेम की टकसाल खड़ी की है।
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प्रेमजोगिनी

26 जनवरी 2022
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प्रेमजोगिनीं ।। नाटिका ।। श्रीहरिश्चन्द्रलिखिता नान्दी मंगलपाठ करता है- भरित नेह नवनीर नित बरसत सुरस अथोर। जयति अपूरब धन कोऊ लखि नाचत मन मोर ।। और भी- जिन तृन सम किय जानि जिय कठिन जगत जंजाल। जय

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प्रथम अंक

26 जनवरी 2022
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पहिले गर्भांक के पात्र टेकचंद : एक महाजन बनिये छक्कूजी : ऐ माखनदास : वैष्णव बनियाँ धनदास  बनितादास  मिश्र : कीर्तन करने वाला झापटिया : कोड़ा मारकर मंदिर की भीड़ हटाने वाला जलघरिया : पानी भरने

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दूसरा गर्भांक

26 जनवरी 2022
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दूसरे गर्भांक के पात्र दलाल गंगापुत्र तीर्थस्थ ब्राह्मण भंडेरिया लिंगिया दुकानदार सुधाकर रामचंद (नाटक के नायक) का मुसाहब झूरी सिंह बदमाश परदेसी स्थान-गैबी, पेड़, कुआं, पास बावली (दलाल, गंगापु

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तीसरा गर्भांक

26 जनवरी 2022
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स्थान-मुगलसराय का स्टेशन (मिठाई वाले, खिलौने वाले, कुली और चपरासी इधर उधर फिरते हैं।  सुधाकर एक विदेशी पंडित और दलाल बैठे हैं) द : (बैठ के पान लगाता है) या दाता राम! कोई भगवान से भेंट कराना। वि. प

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चतुर्थ गर्भांक : ।। प्रथम अंक ।।

26 जनवरी 2022
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स्थान-बुभुक्षित दीक्षित की बैठक (बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं;  इतने में महाश कोतवाल अर्थ

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