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दैनिक_प्रतियोगिता

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बंधुराम किसी सरकारी कार्यालय में लिपिक थे. स्वभाव से बेहद नर्म और

हैरत है अचंभा है,

दिल जल रहा है,

मंज़र ही कुछ ऐसा,

मुझे  दीख  रहा

सागर किनारे पे

चांद की अठखेली
आओ बैठे हम तुम भी
साथ
कुछ मीठे मीठे

ए अजनबी क्यों तुम नहीं

लगते अनजान
जब से तुम्हे देखा आंखो में
सजा ख्वाबों का

पुष्प की अभिलाषा होती,खिल कर महकुं बगिया में।हवाएं चले ऐसे पवन की,खुशबू बिखराए बगिया में।।पुष्प की अभिलाषा होती,तोड़ न ले कोई माली ऐसे।खिल कर खुशबू बिखरे ऐसे,मुरझा कर न मर जाऊं ऐसे।।पुष्प की अभिलाषा ह

उम्मीद एक भंवर है,डूबता और उतराता है।आशा और निराशा बीच,बनता और संवरता है।।उम्मीद पे दुनिया कायम,जीवन मंत्र का जाप करें।कहते हैं उम्मीद पे कायम,इस सार का उपकार हरे।।जीवन की डगमगाती राहों पे,आगे मंजिल ह

करुणा मां में बरपती,अपने आंचल में समेटती।उसकी करुणा का सागर,कान्हा पे वह छलकाती।।करुणा और मुस्कान लिए,घर को  अपने समेटती।दर्द को अंतर्मन में रखकर,मुस्कान चेहरे पे बिखेरती।।कान्हा की इच्छाओं को,पं

सब लोग हँसते हैं  मुझ पर
ऐ सफलता!!

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