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दैनिक_प्रतियोगिता

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नमस्कार 🙏 

आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं | <

🌹छोड़ के अपना सब कुछ
आऊंगी,मैं साथ तेरे ।
तू है मेरा ! मैं हूँ तेरी !
ये यकीन, तो मु

रोज ही सलीके से बने बिस्तर पर

नहीं की जी हजूरी तो
हम किसी के भी नहीं रहे
करते रहे जो गुलामी तो 

"बच्चों की किलकारी"विषय पर एक कविता   लिखी थी सुबह सुबह

हकीकत तो कुछ और ही रहीं तेरी
कहानी ही बन गयी जिंदगानी 
अपनों की इस भीड

मालूम ना था
इक दिन ऐसा भी आएगा ll
अपनों का मेला होगा 

यू तो कोई नहीं तेरा
फिर भी तू तमाम रिश्तों से घिरा है 
हकीकत तब ब्यान

व्यंग्य विनोद की चाशनी में डुबा कर परोसी गई पुरानी क

हजारो महेफिल में उसका होना 

मुजे अच्छा लगता है 

प्रेम❤ क्या लिखूं

इसके बारे लेखक छोटा हो या बड़ा या कोई कवि हो ऐसा&nbs

दुनिया में माँ- बाप से बढ़कर कुछ नहीं हैं

माता-पिता ईश्वर का दिया एक ऐस

गौरी की तबियत ठीक होने मे 1-2 दिन लग गए|

सब उसकी तबियत पर पूरा ध्यान द

कहते हैं बचपन से बढ़कर कुछ भी नहीं.... ये ही वो उम्र होतीं हैं जिसमें हम कोई बात दिल से नहीं लग

आज मैं आप सभी को जिंदगी के कुछ छोटे हिस्से की हकीकत बताना चाहती हूं । मुझे पता है लोग हकीकत और


खोल अपने चक्षुओं को,
आत्मिक अन्तःकरण को


खोल अपने चक्षुओं को,
आत्मिक अन्तःकरण को

उम्र तो नहीं
तजुर्बा कहता है 
कोइ नहीं क

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