बंधुराम किसी सरकारी कार्यालय में लिपिक थे. स्वभाव से बेहद नर्म और शर्मीले से. इसके विपरीत उनकी पत्नी लाजवंती स्वभाव से बेहद गर्म और दबंग. सीधे मुँह बात करना तो जैसे कभी सीखा ही नहीं . साधारण बातचीत में भी व्यंग्य और तानों के तीर चलाने में माहिर ,लेकिन घर -गृहस्थी के काम - काज में पारंगत .पडौ़सियों से निर्वाह तो कठिन था किन्तु बंधुराम की गृहस्थी उनके नर्म स्वभाव की वजह से बखूबी चल रही थी.
लाजवंती अपने स्वभाव से भलीभाँति वाकिफ थी और इसकी वजह से पड़ौसियों से बिगड़े संबंधों के बारे में चिंतित भी रहा करती थी .बंधुराम भी यदा-कदा दबे स्वरों में नर्मी से उसके स्वभाव की इन त्रुटियों की ओर इशारे करते रहते थे. लाख चाह कर भी लाजवंती अपने को बदल नहीं पा रही थी.
एक दिन जब बंधुराम घर पर नहीं थे ,किसी ने उनके द्वार पर दस्तक दी . लाजवंती रसोई में व्यस्त थी ,उसने अपने पुत्र गणेश को द्वार पर भेज दिया . कोई सज्जन बंधु राम को पुकार रहे थे . लाजवंती ने रसोई घर से गणेश को पुकारा ,
--" कौन है ? क्या काम है ?" गणेश ने भी वहीं द्वार से उत्तर दिया , " कोई मरदुआ तुम्हारे खसम को पूछ रहा है ." पुत्र की बोली सुन लाजवंती के पाँव तले भूमि खिसक गयी .वह सारा काम-काज छोड़ द्वार की तरफ दौड़ी . तब तक आगंतुक उनके द्वार से वापस जा रहा था. लाजवंती उस वयोवृद्ध आगंतुक से नजरें मिलाने का साहस न जुटा सकी .गणेश से भी उसने कुछ नहीं कहा. किन्तु उस एक पल ने लाजवंती को बदल कर रख दिया .वह समझ गई कि उसका व्यवहार उसके पुत्र को कितना बिगाड़ रहा है. वह उसे अपनी तरह बनते नहीं देख सकती थी ,इसलिए उसने स्वयँ को बदल लिया.
संदेश :
1 . बच्चों की प्रथम गुरु उसकी माँ होती है.
2 . हो सकता है उन बदनाम गलियों से माता -पिता भी गुजरे हों लेकिन अपनी संतान को वहाँ भटकते देख कर सही राह दिखाना ही उनका कर्तव्य है.