काफी दिनों की मशरूफियत ने डिजिटल दुनिया से दूर रखा था , फिर अचानक से एक वेब सीरीज के टाइटल ने मन को खींच लिया, वेब सीरीज का नाम था दहाड़ ! आकर्षण की वजह सोनाक्षी सिन्हा की पहली वेब सीरीज के साथ साथ मेरे चहेते गुलशन देवैया, विजय वर्मा और सोहम शाह जैसे दमदार अभिनेताओं की उपस्थिति थी , और यकीन मानिए इस पूरी वेब सीरीज के यात्रा जो तकरीबन सात से आठ घंटे की रही, अभिनय के हिसाब से बिल्कुल भी निराश नहीं करती ।
क्राइम और सस्पेंस जोनर वाली ये वेब सीरीज कोई अलौकिक रहस्य और अलग अपराधिक कहानी नही कहती , एक ऐसी कहानी जो इस जोनर की एक साधारण सी कहानी ही जान पड़ती है, बावजूद इसके, अदाकारों के दमदार अभिनय, राजस्थान की नैसर्गिक बोली , परिवेश से ये कथा यात्रा अत्यंत रुचिकर होने लगती है । बीच बीच में सामाजिक और राजनीतिक प्रचलनों पर भी लाल स्याही लगाई गई है, जो इस प्रकार के ओटीटी प्लेटफॉर्म का मानो एक मुख्य शगल बन चुका है ।
कर्नाटक के मोहन साइनाइड केस को राजस्थान की पृष्ठभूमि पर उतारने का प्रयास खलता नही है । जोया अख्तर और रीमा कागती के निर्माण ने इस सीरीज को देखने लायक बना दिया है ।
दलित विमर्श, महिलाओ के प्रति सामाजिक रूढ़िवादी नजरियों को रेखांकित किया गया है , और कहानी का मुख्य किरदार जो दलित और महिला समुदाय से ही हैं, इन रूढ़िवादी सोचों पर निर्भीकता से प्रहार भी कर रही होती है । बीच में लव जेहाद के मुद्दे का भी छौंक लगाने की नाकाम कोशिश से की गई है ।
कहानी के केंद्र में सोनाक्षी सिन्हा और विजय वर्मा ही मुख्यतः चोर पुलिस खेल रहे होते हैं, बावजूद इसके ये दोनो अपने किरदार में इतने घने उतरते चले जाते हैं, कि कथानक खत्म होने के साथ साथ आप इन्हे राजस्थान के ही किसी गांव, कस्बे या शहर का किरदार समझने लगते हैं । आनंद स्वर्णकार के किरदार में विजय वर्मा का किरदार इतना दिलचस्प बनता चला जाता है कि आप उसके हर अगले कदम और करतब पर एक इंसान के तौर पर नफ़रत भी करते चले जायेंगे , और एक दर्शक के तौर पर मन ही मन स्वयं को कौतूहल में भी पायेंगे । एक अपराधी एक चोर के तौर पर यह किरदार हमेशा पुलिस से एक कदम आगे रहता दिखाई पड़ता है तब तक,जब तक कि क्लाइमेक्स में इस पर पूरी तरह से काबू नही पा लिया जाता है, जो "असत्य पर सत्य की जीत " के रूप में एक आदर्श कहानी का अपरिहार्य तत्व भी है । 29 महिलाओं को प्रेम के झांसे में फंसाकर और साइनाइड जहर देकर मार डालने वाला ये किरदार अपने सभी प्रयासों में बिल्कुल नैसर्गिक लगता है , उसकी कार्यशैली आपको किसी भी रोजमर्रा मिलने वाले एक भले इंसान सी लगती है । लेकिन उसके अंदर का शैतान अपने शातिरपने से एक सिहरन पैदा करता है ।
हालांकि उसकी इस मनोदशा और आपराधिक प्रवृत्ति के वजहों को दिखाने की जहमत नहीं दिखाई गई है , जोकि कही ना कही एक प्रबुद्ध दर्शक के रूप में आपको खलती है । एक पिता के किए गए गुनाह को नफरत से देखने वाला पुत्र इतनी नृशंस सोच को कैसे पाल बैठता है ये तर्कशील नहीं जान पड़ता । अक्सर ऐसा झोल निर्देशक निर्माता अपनी एकांगी सोच से कर बैठते हैं । बीच बीच में उठाए गए राजनीतिक सामाजिक मुद्दों की छौंक भी ऐसे ही एकांगीपने का परिचायक होती है । क्लाइमैक्स को जल्दी से समेट देने का उपक्रम भी इस वेब सीरीज की कमजोर कड़ियों में से एक है । बहरहाल ~
सोनाक्षी सिन्हा कथानक के चूंकि केंद्र में है अतः ज्यादातर उनके किरदार ने स्क्रीन टाइम कवर किया है , जो इस बात में प्रशंसनीय है कि वे सीरीज जैसे लंबे फॉर्मेट में भी बोझिल नही लगता । एक दबंग गर्ल की छवि को उन्होंने संतुलित तरीके से प्रस्तुत किया है जो इस सीरीज को देखने लायक बनाने वाले बातों में से एक प्रमुख बात भी है । अक्सर आपको आरण्यक के रवीना टंडन का किरदार समवेत होता नजर आएगा , लेकिन दोनों को देखने के अलग अलग मापदण्ड है । सोनाक्षी ने निस्संदेह एक्टिंग के 'वनडे' और 'टी ट्वेंटी ' फॉर्मेट से इतर इस ' टेस्ट' रुपी फॉर्मेट में स्वयं को मजबूती से साबित किया है ।
गुलशन देवैया, सोहम शाह ने अपने किरदारों को कही से कमजोर नही पड़ने दिया है , जहां गुलशन एक कर्मठ पुलिस ऑफिसर के किरदार और अपने घरेलू इंसान की छवि के साथ न्याय करते हैं , एक ईमानदार पुलिस अधिकारी, पुत्री के लिए एक सहयोगी पिता और एक साधारण पति के जद्दोजहद को उन्होंने बखूबी दर्शाया है । इन मायनो में सोहम शाह का किरदार भी स्वयं में परिवर्तन की एक नई इबारत लिखता है , महारानी वेब सीरीज में एक दमदार अभिनय के बाद इस रूप में सोहम को देखना सुखद रूप में विस्मित भी करता है ।
अंततः दहाड़ वेब सीरीज को किसी मजबूत सामाजिक संदेश वाली वेब सीरीज या फिर किसी अत्यंत सस्पेंस पैदा करने वाले अभूतपूर्व कथानक को देखने की मंशा से नहीं देखा जाना चाहिए, देखा जाना चाहिए तो कुछ चंद मजबूत कलाकारों के अभिनय, कसी हुई प्रस्तुति और एक औसत से बेहतर और अच्छी मनोरंजक वेब सीरीज के रूप में देखा जाना चाहिए जो अपनी समाप्ति के साथ एक छाप जरूर छोड़ जाती है ।~ऋतेश आर्यन