सुनामी ~
निर्माता ने क्या खूबसूरत दुनिया बनायी। झर झर बहती नदियों की रवानी हो, आसमान से गिरता रिमझिम पानी हो । ऊंचे पहाड़, मैदान, मरुथल और महासागर भी। मन को भाती प्रकृति की इन बहुरंगी छटाओं से इतर भी प्रकृति का एक रूप है , जो अपनी व्यापकता में संतुलनकारी है । जिसका संतुलन मानवता के लिए विस्मयकारी हो उठता है , इन्ही में से एक हैं सुनामी की विभीषिका। जापानी भाषा का ये शब्द सुनामी स्वयं में ही एक पर्याय है । आइए इन समुंद्री तरंगों को समझने का प्रयास करते हैं ।
ब्रह्मांड में विचरती इस पृथ्वी की कोख में जोड़ तोड़ , बनाव और बिगाड़ की प्रक्रिया चलती रहती है । इसका प्रस्फुटीकरण भूपर्पटी यानी जहां हम रहते हैं, उस धरा पर भूकंप, ज्वालामुखी के रूप में उत्पन्न होता है । महासागरों के तल पर उत्पन्न यही भूकंप और ज्वालामुखी जलधि में कुछ अप्रत्याशित तरंगों को जन्म दे देते हैं, और जब ये तरंगे तटों पर पहुंचती हैं तो कम गहराई पाकर स्वाभाविक रूप से भयानक हो उठती है । सुनामी का ये दंश मानवीय सभ्यताओं के लिए काल सदृश ही भान हो उठता है ।
अधिकांशतः सुनामी कुछ समय के लिए आकर विश्रांत हो जाती है , फिर भी कुछ सुनामी ऐसी अवश्य रही हैं जिनके द्वारा मचाई गई विनाशलीला इतिहास में दर्ज हो चुकी है और जिनके प्रभाव से उबरने में दशकों तक का समय लगा। ऐसी एक तबाही 1883 में क्राकातोआ ज्वालामुखी विस्फोट के समय उत्पन्न हुई थी। इसके प्रभाव से जावा और सुमात्रा क्षेत्रों के लगभग 170 गाँव पूरी तरह समाप्त हो गए थे। तटीय क्षेत्रों में सुनामी तरंगों की ऊँचाई लगभग 100 फीट तक थी। जावा का मेराक शहर भी पूरा विध्वंस हो गया था। इस सुनामी का प्रभाव न्यूज़ीलैंड तक भी देखा गया था और इस सुनामी से लगभग 21000 से अधिक लोगों की जानें गई थीं।
फिर तकरीबन दो दशक पूर्व 2004 की हिंद महासागर सुनामी भी सर्वाधिक विनाशकारी सुनामी थी। इसका उद्गम बिंदु इंडोनेशिया के समीप था और इसका प्रभाव हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अतिरिक्त श्रीलंका, भारत के पूर्वी तट, मॉरीशस, अरब प्रायद्वीप, यहाँ तक कि मेडागास्कर व सुदूर दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तक महसूस किया गया था। हिंद-प्रशांत क्षेत्रों और भारत, श्रीलंका के तटीय भागों से ये तरंगें लगभग 300 Kmph की चाल से व करीब 80-100 फीट की ऊँचाई के साथ टकराई थीं और इन क्षेत्रों में जो महाविनाश हुआ उसमें लगभग 2.50 लाख से अधिक लोग मारे गए।
सवाल ये उठता है कि विज्ञान की तलवार से मनुष्य इन क्षतियों पर काबू क्यों नहीं कर सका । ज्यादातर प्रयास तबाही के बाद ही लाए जाते हैं। दो विश्वयुद्धों के बाद भी दुनिया चेतने का नाम नही ले रही थी, तब जब तक कि हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम ने मानवीय उन्माद की सुनामी को शांत नही कर दिया, बहरहाल,,
वर्तमान में सुनामी की भविष्यवाणी के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए गए हैं । DART अर्थात 'डीप ओसियन असेसमेंट एंड रिपोर्टिंग ऑफ सूनामी' एक उपयोगी सिस्टम है । इसके मार्फत सेंसर के द्वारा उपग्रहों से सुनामी की पूर्व सूचना काफी सटीक मिलती है । और समय पूर्व ही तटो से जान माल को दूर हटा लिया जाता है । हालांकि इस तकनीक की सटीकता पर और भी कार्य जारी है, ,,जिससे मानवता सूनामी रूपी साक्षात काल से स्वयं को महफूज़ कर सके ~ऋतेश ओझा