shabd-logo

विश्व पर्यावरण दिवस~

5 जून 2023

19 बार देखा गया 19
विश्व पर्यावरण दिवस~

इन दिनों गांव में हूं। सुबह शवासन के दौरान जब आसमान की ओर देखा , नीला, स्वच्छ और निर्मल आसमान आंखों की खिड़की के सामने बदस्तूर पसरा पड़ा था । ऐसा जैसे कि वायुमंडल में किसी ने अभी अभी झाड़ू लगा दिया हो । अगर आप भी किसी दूर गांव में निवसित हैं तो आपको मेरी ये बातें सिरफिरी लग रही होगी, लेकिन मेट्रो शहरों में रहने वाले दोस्तों से पुछिए तो वो आपको बताएंगे कि कितना दुर्लभ दृश्य है ये उनके लिए। माचिसनुमा भवनों वाली कॉलोनियों में रहते महानगर वासी इन दृश्यों को भूल चुके हैं , जब वो रात में ननिहाल में छत पर लेटे हुए हर तारों को ढूंढ ही लेते थे । जब नदी या पास के पोखरों के पानी का स्वाद उनको जुबानी मालूम था , जब नलों से निकलते पानी से  बुझती प्यास की संतुष्टि ही कुछ और थी, अमुक चाचा के नल का पानी इतना मीठा था कि उतनी तलब तो किसी मादकता में नहीं थी । और तो और हर गली मोहल्ले और टोलों की खुशबुओं से जैसे रोज का राब्ता था । ये आसमां, ये पानी और इन हवाओं को आज ऐसा क्या हो गया जिसको सीधे लेने में हम आज गुरेज करने लगे हैं । पानी पीते वक्त कहां से आया है और सांस लेने में भी फिल्टरेशन की जरूरत आज क्योंकर पड़ने लगी है । प्रदूषण से पैदा हुई न जाने कितनी अनगिनत बीमारियों से आज सभी सशंकित से क्यों पड़े हैं । इन सभी को जांच बरत कर ही आज यानी ५ जून को सारा विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मना रहा है । जो पर्यावरण को फिर से हरा भरा और निर्मल करने की ही एक कवायद है ।

आधुनिक युग की दूसरी क्रांति यानी उद्योग की क्रांति ने मनुष्य को एक नई राह दिखला दी, मानवता इस राह पर सरपट दौड़ पड़ी । लोहा हो कोयला हो या इन पर आश्रित अन्य सारे उद्योग जो मनुष्य को आधुनिक बना रहे थे , उनको अधिकाधिक बनाने की एक होड़ सी मच पड़ी, और इस घुड़दौड़ में मानवता कब रास्ता भटक कर गुमराह हुई उसे भान ही नहीं हुआ। नतीजतन चिमनियों की भट्टियों में जंगलों को काटकर झोंकने का ऐसा उपक्रम होने लगा जिसपर कोई अंकुश नहीं था , इन बेजुबान पेड़ों के लिए कोई कानून नहीं था, किसी संविधान में इनके लिए कोई मौलिक अधिकार नही गढ़ा गया था । 

इस अंधाधुंध दोहन ने पृथ्वी की हरियाली को धूमिल कर दिया । मानवता के मन का रेगिस्तान धरती पर पनपने लगा । धरती के फेफड़े ये जंगल और पेड़ जब कमजोर हुए तो धरती का भी दम फूलने लगा , हवा दूषित हुई तो पानी भी और फिर मिट्टी भी । महायुद्धों से निकले विश्व में जब मानवीयता के लिए आस्था जगी तब विश्व समुदाय ने इसके लिए सामूहिक जिम्मेदारी निर्वहन की अंगड़ाई ली ।


 1972 में पर्यावरण को बचाने की पहली कोशिश वार्ता से शुरू हुई , और इस शुरुआत की तिथि 5 जून को ही विश्व पर्यावरण दिवस की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाने लगा । इसके बाद से रियो डी जेनेरियो सम्मेलन हो या क्योटो सम्मेलन या कोप सम्मेलनों के दौर , इनके द्वारा अनैतिक हुआ विश्व नैतिकता का दंभ भरता है , "मैं नहीं तू" की तर्ज़ पर कार्बन कटौती के लिए एक दूसरे का मुंह देखा जाता है । सभ्य और विकसित देश/समाज ये भूल जाता है कि विकसित होने की प्रक्रिया में जितना दोहन उन्होंने कर डाला उतने की भरपाई की जिम्मेवारी उनकी ही बनती है ना कि ये भरपाई उन मुल्कों पर थोपी जाए जो अभी विकास की प्रक्रिया में हैं । खैर रेगिस्तान हुए मन में जंगल का भाईचारा तलाशना ही बेमानी बात है ।

भारत की पहचान ही पर्यावरण से जुड़ी है । वेदों की हर ऋचा प्रकृति की उपासना से अनुप्राणित है । पृथ्वी,वायु,जल,अग्नि, आकाश से ही हमारी कोशिकाएं पोषण लेती हैं , और हम जीवित हैं । फिर भला हम पर्यावरण से कितने और कब तक विमुख हो सकते हैं भला । हालांकि पश्चिम की चकाचौंध से कुछ वक्त के लिए हमारा अंतर्ज्ञान धूमिल हुआ, जंगल काफी उजाड़ दिए गए , पानी, मिट्टी, हवाओं में विष काफी हद तक घुलता भी रहा है । बजाय इसके भारतवर्ष की मूल प्रकृति ही पर्यावरणीय रही है । तुलसी जैसी औषधीय पौधे को हम आंगन में सजाकर रखते हैं, तो दरवाजे के पीपल को हम देवता बनाकर पूजते हैं जो अकेला ही 200 लोगों को ऑक्सीजन देता है । पेड़ों को काटना हमारे यहां पाप माना जाता रहा है , याद कीजिए मजबूरीवश काटे गए दरवाजे के उस पेड़ के कट कर गिर जाने के बाद की मनहूसियत। आपको भी अपने अंदर बैठा  आदृत पर्यावरणीय बोध महसूस होगा ।

हिमालय से निकली एक पानी की धारा जो सदियों से बहती हुई हमारा आदर पाती है और हम उसे गंगा मां कह उठते हैं  । जानवरों से लेकर हर उस चीज के प्रति श्रद्धा हमसे कोई राज्य कोई सरकार या  कोई संविधान और कानून नहीं मनवाता बल्कि हमारे अंदर के संस्कार ही ऐसे हैं कि हम ज्ञानवश या श्रद्धावश सिर नवाते हैं । कुल मिलाकर भारत के लिए हर दिन  पर्यावरण दिवस के रूप में है । बस उसे स्वयं के भीतर के बोध को समझने की आवश्यकता है , साथ ही समस्त विश्व को भी पर्यावरण के लिए कोई जिम्मेदारी समझकर नही बल्कि इसे अपना एक हिस्सा समझकर ही कोई भी प्रयास करने जी जरूरत है , न्यूजीलैंड में वांगनुई नदी को दिया गया मानव का दर्जा इसी दिशा की ओर एक उपक्रम हैं । अंततः मानवता को स्वार्थी होकर अपनी तोंद ना बढ़ाकर प्रकृति की गोंद में ही फलने फूलने और विकसित होने की जरूरत है ~ऋतेश आर्यन




article-image
 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

बहुत सुंदर लिखा आपने,🙏🙏

5 जून 2023

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

5 जून 2023

बहुत शुक्रिया 🙏🙏💐

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत सारगर्भित वर्णन किया आपने सर एक टिप्पणी मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' पर भी कर दें 5 स्टार सहित 🙏🙏😊

5 जून 2023

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

5 जून 2023

जी अवश्य 🙏

8
रचनाएँ
पुनर्नवा
0.0
स्वयं के विचार
1

सूनामी की भविष्यवाणी ~

19 मई 2023
4
3
2

सुनामी ~निर्माता ने क्या खूबसूरत दुनिया बनायी। झर झर बहती नदियों की रवानी हो, आसमान से गिरता रिमझिम पानी हो । ऊंचे पहाड़, मैदान, मरुथल और महासागर भी। मन को भाती प्रकृति की इन बहुरंगी छटाओं से इत

2

दहाड़:वेब सीरीज

20 मई 2023
1
1
0

काफी दिनों की मशरूफियत ने डिजिटल दुनिया से दूर रखा था , फिर अचानक से एक वेब सीरीज के टाइटल ने मन को खींच लिया, वेब सीरीज का नाम था दहाड़ ! आकर्षण की वजह सोनाक्षी सिन्हा की पहली वेब सीरीज के साथ साथ मे

3

नोटबंदी 2.0 का असर

22 मई 2023
4
3
2

नोटबंदी 2.0 और प्रभाव~मुद्रा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी के ईंधन के रूप में होती है । इतिहास में इन मुद्राओं का रूप रंग और गुणवत्ता काफी कुछ उस वक्त के समाज की दशा और दिशा निर्धारित करन

4

जी ट्वेन्टी आपदा प्रबंधन

23 मई 2023
4
3
1

जी 20 आपदा प्रबंधन ~वसुधैव कुटुंबकम अर्थात सारी पृथ्वी एक परिवार है । यह भारतीय विदेश नीति का आधार वाक्य रहा है । और इसी दर्शन को माननीय प्रधानमन्त्री के द्वारा जी ट्वेंटी के शीर्षक के रूप में भी रखा

5

अमेरिकी बैंक की विफलता ~

1 जून 2023
3
1
0

बैंक यानी विश्वास ~अर्थव्यवस्था किसी भी देश का ईंधन होती हैं । ईंधन इस रूप में कि वो ये तय करती हैं कि अमुक राष्ट्र अपने उन पहियों पर कितना सरपट दौड़ेगा जो , वो पहिए जो राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय कद,समाज

6

विश्व पर्यावरण दिवस~

5 जून 2023
4
2
4

विश्व पर्यावरण दिवस~इन दिनों गांव में हूं। सुबह शवासन के दौरान जब आसमान की ओर देखा , नीला, स्वच्छ और निर्मल आसमान आंखों की खिड़की के सामने बदस्तूर पसरा पड़ा था । ऐसा जैसे कि वायुमंडल में किसी ने अभी अ

7

भूखे भजन न होय गोपाला ~

7 जून 2023
4
3
1

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस~" और बच्चो की भूख चॉकलेट की नहीं बिस्किटों के लिए थी "वह सुबह थी मेरे जन्मदिन की , जब मैं थोड़े बहुत टॉफियां, चॉकलेट और बिस्किट्स लेकर पास के ही उस झोपड़पट्टी वाली बस्ती में घ

8

टेस्ट का विश्वकप ~

11 जून 2023
3
1
0

डब्ल्यू टी सी फाइनल 2023_1983 का वर्ष भारतीय खेल के लिहाज से एक ऐतिहासिक साल रहा है , जब कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट विश्वकप को भारत ने अपने नाम कर लिया था । खेल की दुनिया में ये वो वर्ष रहा है जह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए