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ध्वज गीत: विजयनी तेरी पताका!

23 फरवरी 2022

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विजयनी तेरी पताका!

तू नहीं है वस्त्र तू तो
मातृ भू का ह्रदय ही है,
प्रेममय है नित्य तू
हमको सदा देती अभय है,
कर्म का दिन भी सदा
विश्राम की भी शान्त राका।
विजयनी तेरी पताका!

तू उडे तो रुक नहीं
सकता हमारा विजय रथ है
मुक्ति ही तेरी हमारे
लक्ष्य का आलोक पथ है
आँधियों से मिटा कब
तूने अमिट जो चित्र आँका!
विजयनी तेरी पताका!

छाँह में तेरी मिले शिव
और वह कन्याकुमारी,
निकट आ जाती पुरी के
द्वारिका नगरी हमारी,
पंचनद से मिल रहा है
आज तो बंगाल बाँका!
विजयनी तेरी पताका! 

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रचनाएँ
प्रथम आयाम
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1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। प्रथम आयाम एक कविता-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं। इसमें उनकी बाल्यावस्था से शोरावस्था तक की कविताओं का संग्रह है। उनकी कविता में रहस्यवाद का एक तत्व है। उसकी कविताएँ उसके दूर के प्रेमी को संबोधित हैं, जबकि उसका प्रेमी काफी रहता है और कभी नहीं बोलता। अपने काम पशिखा के साथ, जिसमें 51 कविताएँ हैं, उन्होंने हिंदी साहित्य के नए क्षेत्र- रहस्यवाद में कदम रखा। उन्होंने प्रसिद्ध हिंदी मासिक चांद के संपादक के रूप में भी काम किया |
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ठाकुर जी

23 फरवरी 2022
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ठंडे पानी से नहलातीं, ठंडा चंदन इन्हें लगातीं, इनका भोग हमें दे जातीं, फिर भी कभी नहीं बोले हैं। माँ के ठाकुर जी भोले हैं। (यह तुकबंदी उस समय की है जब महादेवी जी की अवस्था छः वर्ष की थी) 

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बया

23 फरवरी 2022
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बया हमारी चिड़िया रानी। तिनके लाकर महल बनाती, ऊँची डालों पर लटकाती, खेतों से फिर दाना लाती नदियों से भर लाती पानी। तुझको दूर न जाने देंगे, दानों से आँगन भर देंगे, और हौज में भर देंगे हम मी

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दीन भारतवर्ष

23 फरवरी 2022
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सिरमौर सा तुझको रचा था विश्व में करतार ने, आकृष्ट था सब को किया तेरे, मधुर व्यवहार ने। नव शिष्य तेरे मध्य भारत नित्य आते थे चले, जैसे सुमन की गंध से अलिवृन्द आ-आकर मिले। वह युग कहाँ अब खो गया

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देशगीत : मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला

23 फरवरी 2022
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मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला! जो ज्वाला नभ में बिजली है, जिससे रवि-शशि ज्योति जली है, तारों में बन जाती है, शीतलतादायक उजियाला! मस्तक ... फूलों में जिसकी लाली है, धरती में जो हरियाली है

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ध्वज गीत: विजयनी तेरी पताका!

23 फरवरी 2022
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विजयनी तेरी पताका! तू नहीं है वस्त्र तू तो मातृ भू का ह्रदय ही है, प्रेममय है नित्य तू हमको सदा देती अभय है, कर्म का दिन भी सदा विश्राम की भी शान्त राका। विजयनी तेरी पताका! तू उडे तो रुक न

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इन सपनों के पंख न काटो

23 फरवरी 2022
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इन सपनों के पंख न काटो इन सपनों की गति मत बाँधो? सौरभ उड जाता है नभ में फिर वह लौ कहाँ आता है? धूलि में गिर जाता जो वह नभ में कब उड पाता है? अग्नि सदा धरती पर जलती धूम गगन में मँडराता है। सप

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देशगीत : अनुरागमयी वरदानमयी

23 फरवरी 2022
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अनुरागमयी वरदानमयी भारत जननी भारत माता! मस्तक पर शोभित शतदल सा यह हिमगिरि है, शोभा पाता, नीलम-मोती की माला सा गंगा-यमुना जल लहराता, वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी भारत जननी भारत माता। धानी दुकूल

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कहाँ गया वह श्यामल बादल!

23 फरवरी 2022
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कहाँ गया वह श्यामल बादल। जनक मिला था जिसको सागर, सुधा सुधाकर मिले सहोदर, चढा सोम के उच्चशिखर तक वात सङ्ग चञ्चल। ! कहाँ गया वह श्यामल बादल। इन्द्रधनुष परिधान श्याम तन, किरणों के पहने आभूषण,

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खारे क्यों रहे सिंधु

23 फरवरी 2022
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होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है। वृन्त से झड़कर जो फूल सूख जाता है, उसको कब माली माला में गूँथ पाता है? लेकर बुझा दीप कौन भक्त ऐसा है कौन उससे पूजा

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बारहमासा

23 फरवरी 2022
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(१) मां कहती अषाढ़ आया है काले काले मेघ घिर रहे, रिमझिम बून्दें बरस रही हैं मोर नाचते हुए फिर रहे। (२) फिर यह तो सावन के दिन हैं राखी भी आई चमकीली, नन्हे को राखी बाँधी है मां ने दी है चुन्नी

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फूलिहौ

23 फरवरी 2022
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बाँधे मयूख की डोरिन से किशलय के हिंडोरन में नित झूलिहौ, शीतल मंद समीर तुम्हें दुलरायहै अंक लगाय कबूलिहौ, रीझिहौं भौंर के गायन पै, तितलीन के नर्तन पै पुनि भूलिहौ; फूल तुम्हें कहिहैँ हम तो जब कांटन म

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बोलिहै नाहीं

23 फरवरी 2022
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मंदिर के पट खोलत का यह देवता तो दृग खोलिहै नाहीं, अक्षत फूल चढ़ाउ भले हर्षाय कबौं अनुकूलिहै नाहीं, बेर हजारन शंखहिं फूंक पै जागिहै ना अरु डोलिहै नाहीं, प्राणन में नित बोलत है पुनि मंदिर में यह बोलिह

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रचि के सहस्र रश्मि

23 फरवरी 2022
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रचि के सहस्र रश्मि लोकन प्रकाशित करि तमहू को बन्दी करि किरनन के घेरे में, चन्द्रमा रच्यो है अरु तोरे हू असंख्य रचे राति उजियारी भई दिसन के फेरे में, व्योम पंथहू में रंग-सरिता बहाय डारी अनगिन आलोक

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जाल परे अरुझे सुरझै नहिं

23 फरवरी 2022
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जाल परे अरुझे सुरझै नहिं ये मृग आज, बेहाल परे हैं, मातु के अंक में छौना परे हैं मृगी मुख पै मृग कण्ठ धरे हैं, तान पै ध्यान अबहुं इनको नहिं मरतेहु बार विसास मरे हैं, चितवन में बिसमय इनके बड़री अँखिया

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क्रांति गीत

23 फरवरी 2022
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(1) कंठ में जहाँ था मणि-मुक्ता-रुद्राक्ष हार शोभित उसी में नर मुंडों की माला है! वरदानी कर में जो मंगल घट पूर्ण रहा उसमें अब रक्त भरा खप्पर का प्याला है ! चितवन में जहाँ कभी गंगा की धारा थी आज उ

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खुदी न गई

23 फरवरी 2022
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बिन बोये हुए बिन सींचे हुए; न उगा अंकुर नहिं फूल खिला, नहिं बाती संजई न तेल भरा, न उजाला हुआ नहिं दीप जला, तुमने न वियोग की पीर सही नहिं खोजने आकुल प्राण चला ! तुम आपको भूल सके न कभी जो खुदी न गई त

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