कुछ दिन बाद, प्रभात ने अरुणिमा को फोन करके वादे के अनुसार मुलाकात करने के लिए शनिवार की शाम को पार्क में मिलने के लिए बुलाया । हर बार की तरह, प्रभात एक-दूसरे से बिछड़ने के बाद भी एक खास एहसास के साथ आगे बढ़ता रहा, और इसलिए वह चाहता था कि अब बिछड़ना आसान नहीं होगा। प्रभात के दिल में अब भी अरुणिमा के लिए अपनी भावनाओं को कबूल करने का डर था, लेकिन वह जानता था कि अब वह और ज्यादा समय नहीं ले सकता।
इंतजार में पूरा हफ्ता बीता और शनिवार को जैसे जैसे दिन ढल रहा था वैसे वैसे प्रभात को लगा उसका दिल फिर से वही पुरानी उथल-पुथल में डूब रहा था। उसने खुद से सवाल किया, "क्या मैं अब भी वही डर महसूस कर रहा हूं?" उसकी सोच में वही पुरानी लड़ाई थी, जैसे वह मनाली की चाय की दुकान में बैठा था, और अरुणिमा ने उसे अपने दिल की बात कहने का मौका दिया था—वह मौका जिसे उसने छोड़ दिया था। "अभी नहीं, अगली बार कहूंगा," यही शब्द उस दिन उसके होंठों पर थे, और आज भी वही खामोशी उसकी जिंदगी में बसी हुई थी।
लेकिन उस पल, जब वह अपनी जगह से उठकर बाहर गया, तो उसे एहसास हुआ कि अब वह खुद को और अपने डर को और देर नहीं दे सकता। वह जानता था कि अगर उसने आज भी इसे न कहा, तो शायद वह फिर कभी न कह पाए। "अगर मुझे अब भी यही डर है, तो फिर क्या मैं सच में अरुणिमा से प्यार करता हूं?" उसने खुद से पूछा।
उसने फिर वही पुराने सवालों से पीछा छुड़ा लिया—क्या होगा अगर अरुणिमा ने इनकार कर दिया? क्या होगा अगर उसकी दोस्ती टूट जाए? लेकिन एक गहरी आवाज ने कहा, "अगर तुम इसे अब नहीं कहोगे, तो तुम्हारे पास वो मौका कभी नहीं आएगा।"
उसने ठान लिया कि इस बार वह अपना दिल खुलेआम अरुणिमा के सामने रखेगा।
उधर अरुणिमा भी आज अपने दिल की बात करने के लिए तैयार थी। कई बार उसने सोचा था, "क्या प्रभात भी वही महसूस करता है जो मैं?" उसे याद आया वह पुराना दिन, जब चाय की दुकान में प्रभात ने अपनी मंगेतर नेहा के बारे में बताया था, और कैसे उसने अपनी बहन सिया के बारे में अपनी कहानी साझा की थी। "हम दोनों के दर्द एक जैसे थे," उसने महसूस किया। और इसी दर्द ने उन्हें एक-दूसरे के करीब लाया था।
अरुणिमा ने खुद से सवाल किया कि अब वह प्रभात के साथ अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए तैयार है? "क्या होगा अगर वह मुझसे अपने दिल की बात कह दे?" उसने खुद से पूछा, "क्या मैं उसके साथ अपने भावनाओं को साझा कर पाऊंगी?" लेकिन फिर उसने अपने दिल की बात को महसूस किया, और एक मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। वह जानती थी कि वह और प्रभात एक-दूसरे को पूरी तरह समझते हैं। इन्हीं सवालों के गलियारों में प्रभात और अरुणिमा टहल रहे थे।
प्रभात और अरुणिमा के लिए यह दिन कुछ खास था, क्योंकि आज वे फिर मिल रहे थे। अरुणिमा ने पहले ही तय कर लिया था कि वह इस बार वह प्रभात से उसके दिल की बात निकलवा लेगी और वह प्रभात से उसके दिल की बात सुनकर ही अपनी खामोशी को तोड़ेगी।
आज का दिन कुछ अलग था। वे पार्क में मिलने वाले थे। अरुणिमा ने खुद से कहा, "क्या आज प्रभात अपनी खामोशी तोड़ पाएगा?" यह सवाल उसे भीतर तक खाता था। वह चाहती थी कि प्रभात अपने दिल की बात कहे, लेकिन वह जानती थी कि यह केवल उसकी कोशिशों पर निर्भर नहीं था—यह समय और परिस्थिति पर भी था।
शाम के छः बज चुके थे प्रभात जल्दी से पार्क में आकर ऐसे पार्क के एक कोने में खड़ा था, जैसे वह अरुणिमा का इंतजार कर रहा हो। अरुणिमा ने दूर से उसे देखा और मुस्कुराते हुए उसकी ओर बढ़ी। प्रभात ने उसे देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "तुमने आज बहुत जल्दी आकर मुझे हैरान कर दिया।"
"क्या करूँ, तुमसे मिलना था," अरुणिमा ने चुटकी लेते हुए कहा, और फिर दोनों धीरे-धीरे पार्क के बीचों-बीच बने रास्ते पर चलने लगे। प्रभात ने सोचा, आज, आज मुझे अपनी बात कह देनी चाहिए। लेकिन जैसे ही वह कुछ कहने वाला था, अरुणिमा ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा, और उसका चेहरा एक बार फिर से वही पुराना मिश्रण हो गया—झिझक और उत्सुकता का।
"प्रभात, तुम आज कुछ अलग लग रहे हो," अरुणिमा ने कहा, उसकी आवाज में हल्की चिंता थी।
प्रभात ने सिर झुकाकर कहा, "कुछ नहीं। बस... थोड़ा सोच रहा था।"
अरुणिमा ने उसकी आंखों में देखा, जैसे वह जानती थी कि कुछ सही नहीं है। लेकिन उसने उसे चुप रहने दिया, मानो वह इंतजार कर रही थी कि वह खुद अपनी बात कहे।
प्रभात," अरुणिमा ने सबसे पहले कहा, "तुम बदल गए हो।"
प्रभात ने उसकी ओर देखा और हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "शायद समय ने मुझे बदल दिया।"
"क्या तुम अब भी वही सोच रहे हो?" अरुणिमा ने थोड़ी देर बाद पूछा, उसकी आवाज में एक हलकी सी चिंता थी।
प्रभात ने कुछ पल के लिए उसकी ओर देखा, फिर अपनी नजरें चुराई। "क्या... क्या मैं अभी भी वही सोच रहा हूँ?" उसने खुद से पूछा, जैसे वह खुद से ही जवाब चाहता हो। "नहीं, अब मैं नहीं सोच रहा।"
प्रभात ने गहरी सांस ली, और फिर अचानक उसके अंदर से एक आवाज आई, अब या कभी नहीं।
"अरुणिमा," प्रभात ने धीरे से कहा, "तुमसे बात करनी है।"
अरुणिमा ने सिर झुका लिया, जैसे यह वही पल हो, जिसका वह महीनों से इंतजार कर रही थी।
"तुमसे बहुत सी बातें हैं, अरुणिमा," प्रभात ने कहना शुरू किया, "लेकिन मैं नहीं जानता... कहां से शुरू करूं।"
अरुणिमा ने उसकी तरफ देखा, "तुम बस वो कहो, जो तुम दिल से महसूस करते हो।"
प्रभात," अरुणिमा ने हल्के से कहा, "मुझे भी कुछ कहना है तुमसे।"
प्रभात ने उसकी ओर देखा, और उसका दिल तेज़-तेज़ धड़कने लगा। वह जानता था कि यह वही मौका है। वह भी एक पल चुप रहा, फिर कहा, "मैं भी कुछ कहना चाहता हूं, अरुणिमा।"
अरुणिमा की आँखों में चमक आ गई। वह चुप रही, जैसे वह भी यही सुनना चाहती थी, लेकिन उसने एक पल के लिए उसे पूरी तरह से घेरने का मौका नहीं दिया। वह जानती थी कि अब वह पल आ चुका था, जब सब कुछ बदलने वाला था।
अरुणिमा ने उसे देखा और धीरे से मुस्कुराई। "प्रभात, क्या तुम तैयार हो?"
"क्या?" प्रभात ने कुछ हड़बड़ाहट में पूछा, लेकिन उसकी आवाज में अब वही डर था जो पहले था।
"क्या तुम तैयार हो अपनी भावनाओं को शब्दों में बदलने के लिए? क्या तुम तैयार हो अपने दिल की बात मुझे कहने के लिए?" अरुणिमा ने पूछा, उसके चेहरे पर उम्मीद थी।
प्रभात चुप रहा। उसकी आंखों में अब भी वही डर था, वही झिझक। लेकिन अरुणिमा ने उसकी ओर देखा और एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोला, "मैं इंतजार कर रही हूं, प्रभात। तुम्हारे शब्दों का।"
कुछ देर की खामोशी के बाद, प्रभात ने अपने दिल से एक गहरी सांस ली। "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, अरुणिमा। मुझे यह अहसास पहले कभी नहीं हुआ था। हम दोनों दर्द से गुजर चुके हैं, लेकिन अब मैं चाहता हूं कि हम दोनों अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा दें।"
"अरुणिमा," उसने कहा, उसकी आवाज में एक अजीब सी ताकत थी, "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। मैंने खुद को बहुत समय तक समझाया कि यह सिर्फ एक दोस्ती है, लेकिन जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, तब से हर पल तुम्हारी यादों में खो जाता हूं। मैं... मैं तुमसे अपना दिल जोड़ना चाहता हूं, अरुणिमा।"
अरुणिमा ने एक पल के लिए चुप्पी साध ली, जैसे वह इस पल को अपने भीतर समेटने की कोशिश कर रही हो। फिर उसने एक गहरी सांस ली और कहा, "मुझे पता था।"
"क्या?" प्रभात चौंका।
"मुझे पता था कि तुमने अपने दिल की बात अब तक नहीं कही थी, लेकिन मैं समझ रही थी। तुम्हारा डर, तुम्हारी घबराहट... लेकिन अब जब तुमने कह दिया है, तो मैं जानती हूं कि हम दोनों एक दूसरे के साथ हमेशा रहेंगे," अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
प्रभात की आँखों में एक चमक आ गई। "तुम सच में समझ रही हो?"
"हाँ," अरुणिमा ने धीमे से कहा, "तुमसे हमेशा कहने का मन करता था, प्रभात। लेकिन तुमने कभी उस पहले कदम को नहीं उठाया।"
प्रभात के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान फैल गई। "मैं डरता था, शायद मैं हार जाऊं।"
"क्या हार?" अरुणिमा ने आँखों में चमक के साथ कहा, "तुमने कभी कोशिश ही नहीं की।"
प्रभात ने अपनी आँखें नीचे झुका लीं। "तुम्हारे सामने शब्दों का क्या मतलब?" उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा। "शायद मैं उसे कभी कह नहीं पाता।"
अरुणिमा ने नज़रें उठाईं और फिर उसकी आँखों में देखा। "तुम्हें कभी मुझे गुलाब नहीं दिया, प्रभात। इतना डर क्यों रखते हो मुझसे? क्यों नहीं मुझे ये एहसास दिलाते कि मैं तुम्हारे लिए खास हूं?"
प्रभात थोड़ी देर चुप रहा, फिर एक गहरी सांस ली। "शायद मुझे डर था कि तुम मुझे प्यार नहीं करोगी।"
अरुणिमा ने उसकी ओर देखा और धीरे से मुस्कुराई। "तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं थी। हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, प्रभात। अब कुछ भी छुपाने की ज़रूरत नहीं।"
अचानक, प्रभात ने अपना हाथ उठाया और जेब से एक गुलाब निकाला। "अरुणिमा, तुम्हें नहीं लगता कि अब इसे कहना चाहिए था?" उसने हल्की मुस्कान के साथ गुलाब उसकी ओर बढ़ाया।
अरुणिमा ने गुलाब लिया, और उसकी आँखों में चमक आ गई। "अब सब कुछ साफ हो गया है," उसने कहा। "हमारी कहानी अब और सच्ची होगी।"
प्रभात का दिल धड़कने लगा, जैसे उसने सबसे बड़ी जीत हासिल की हो। अरुणिमा ने उसे हल्की सी मुस्कान के साथ देखा, और दोनों का दिल एक साथ धड़कने लगा।
"क्या यह शुरुआत है?" प्रभात ने पूछा, उसकी आँखों में उम्मीद और सवाल दोनों थे।
अरुणिमा ने जवाब दिया, "यह एक नई शुरुआत है, प्रभात। जहां दोनों के दिलों की आवाजें एक साथ गूंजेंगी।"
वह गुलाब, जो प्रभात ने कभी न देने का सोच रखा था, अब उसकी बातों का प्रमाण बन चुका था। दोनों के दिलों में अब कोई खामोशी नहीं थी—सिर्फ एक सच्चा और प्यार भरा एहसास था, जो शब्दों से कहीं ज्यादा गहरा था।
अरुणिमा ने गुलाब को अपनी आँखों से लगाया और कहा, "अब हमें डरने की जरूरत नहीं। सब कुछ अपनी जगह पर है।"
प्रभात ने सिर झुकाया और धीरे से कहा, "मैंने एक गलती की थी, अरुणिमा... अब मैं तुम्हें अपनी दुनिया का हिस्सा बना रहा हूं।"
अब उनकी कहानी पूरी हो चुकी थी—जैसे एक गुलाब ने सब कुछ कह दिया, वैसे ही दोनों के दिलों ने बिना शब्दों के एक-दूसरे से अपना प्यार इज़हार कर दिया।गुलाब को हाथ में पकड़े हुए अरुणिमा ने प्रभात की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराई। दोनों के बीच जो खामोशी थी, वह अब शब्दों से ज्यादा गहरी हो गई थी। जैसे हर बात बिना कहे समझी जा रही हो। लेकिन फिर, अरुणिमा ने धीरे से प्रभात से पूछा, "तुम अपनी दुनिया से... मतलब, अपने परिवार से कब मिलवा रहे हो मुझे?"
प्रभात ने एक पल के लिए चौंककर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हल्की सी उलझन थी, जैसे वह यह सवाल पहले से ही जानता था, लेकिन अब उसे जवाब देने का समय आ चुका था। वह चुप था, लेकिन अरुणिमा के सवाल ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया।
"तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें अपने परिवार से मिलवाऊं?" उसने धीरे से पूछा, आवाज में एक हल्की सी दुविधा थी।
अरुणिमा ने अपनी आँखें नरम करते हुए कहा, "हमारी कहानी अब सिर्फ हमारी नहीं है, प्रभात। जब तक हम अपने परिवार को एक-दूसरे के बारे में नहीं बताते, तब तक हमारी दुनिया अधूरी है।"
प्रभात ने गहरी सांस ली और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "तुम सही कह रही हो। अगली बार जब हम मिलें, तो मैं तुम्हें अपनी दुनिया से मिलवाऊंगा।"
अरुणिमा ने गुलाब को अपनी नज़रों से और भी गहरे पकड़ा, फिर धीरे से कहा, "मैं इंतजार करूंगी। अब हमारे दिलों की यह कहानी हमारे परिवारों तक भी पहुंचनी चाहिए।"
प्रभात ने सिर हिलाया और एक नई उम्मीद के साथ कहा, "तुमसे मिलने का हर पल अब खास है, अरुणिमा। और अब मैं चाहता हूं कि हमारी ये दुनिया, ये रिश्ते, सब कुछ और भी गहरा हो।"
दोनों एक-दूसरे को एक अंतिम बार मुस्कुराते हुए देखे, और फिर धीरे-धीरे उस पार्क से बाहर की ओर कदम बढ़ाए। अब उनके दिलों में न सिर्फ प्यार था, बल्कि एक नए रास्ते पर चलने का भी इरादा था।
आगे की कहानी अगले भाग में......