रविवार को कॉफी शॉप के अंदर हलचल थी, लेकिन माहौल फिर भी एक तरह का सुकून दे रहा था। प्रभात पहले से वहां मौजूद था, एक कोने की मेज पर बैठा। उसने अपनी घड़ी की ओर देखा। शाम के 07:00 बज चुके थे, और अरुणिमा अभी तक नहीं पहुंची थी। उसके हाथ में कॉफी का कप था, लेकिन उसकी निगाहें दरवाजे की ओर बार-बार जातीं।
तभी दरवाजा खुला, और अंदर से एक हल्की गुलाबी शॉल में अरुणिमा मुस्कुराते हुए अंदर आई। उसकी मुस्कान ने जैसे प्रभात की बेचैनी को एक पल में दूर कर दिया।
“तुम्हारा इंतजार करवाने के लिए माफ करना,” अरुणिमा ने कहा।
“तुम्हारे आने के बाद इंतजार का कोई मतलब नहीं रह जाता,” प्रभात ने मुस्कुराकर जवाब दिया।
दोनों ने एक-दूसरे को देख कर हल्की हंसी में स्वागत किया और कॉफी का ऑर्डर दिया। माहौल हल्का और खुशनुमा था, और दोनों अपने-अपने जीवन की छोटी-छोटी बातें शेयर कर रहे थे। तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने इस हलचल को तोड़ दिया।
“प्रभात?”
प्रभात ने पलटकर देखा। वह एक पल के लिए जैसे जम गया। उसके सामने नेहा खड़ी थी। वही नेहा, जो कभी उसकी दुनिया हुआ करती थी। उसकी आवाज में कोई शिकायत नहीं थी, सिर्फ एक परिचित गर्मजोशी थी।
“नेहा...” प्रभात के शब्द हल्के और रुके हुए थे।
अरुणिमा यह सब देख रही थी, लेकिन उसने चुप रहना बेहतर समझा। नेहा की उपस्थिति ने प्रभात की भावनाओं को एक बार फिर से झकझोर दिया था।
नेहा ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हें यहां देखना, सच में अजीब है। इतने साल हो गए, और जिंदगी ने हमें इस तरह से मिलवाया। यह नसीब का खेल नहीं तो और क्या है?”
प्रभात ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन नेहा ने उसे रोक दिया।
“नहीं, प्रभात। मैं कुछ कहने नहीं आई हूं। मैंने वो सब पीछे छोड़ दिया है। जो हुआ, वो शायद होना ही था। मैंने तुम्हें माफ कर दिया है। और खुद को भी। मुझे खुशी है कि तुम ठीक हो।”
उसने एक पल को अरुणिमा की तरफ देखा। उसकी मुस्कान में एक तरह की समझदारी और शांति थी। “मैं चलती हूं। तुम्हारे पास जो है, उसे संभालना। हर कोई उतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसे दूसरी बार मौका मिले।”
नेहा के शब्द उसके दिल में गूंज रहे थे। वो बिना रुके कैफे से बाहर चली गई।
नेहा के जाने के बाद, दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी छाई रही। प्रभात की आंखें अभी भी दरवाजे पर टिकी थीं, जहां से नेहा गई थी। उसके चेहरे पर कई भाव एक साथ आ-जा रहे थे—पछतावा, राहत, और थोड़ा सा खालीपन।
अरुणिमा ने आखिरकार खामोशी तोड़ी। “प्रभात, कभी-कभी लोग हमारे जीवन में आते हैं, हमें कुछ सिखाने के लिए। और जब उनकी भूमिका खत्म हो जाती है, तो वे चले जाते हैं। नेहा तुम्हारे जीवन का एक हिस्सा थी, लेकिन शायद अब वह तुम्हारे वर्तमान का हिस्सा नहीं है।”
प्रभात ने उसकी ओर देखा। अरुणिमा की आवाज में एक शांति थी, जो उसके भीतर की हलचल को थोड़ा कम कर रही थी।
“तुम्हें कैसे पता कि मैंने जो खोया, उसे कभी वापस नहीं पा सकूंगा?” प्रभात ने दर्द भरे स्वर में कहा।
अरुणिमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “क्योंकि अब तुम्हारे पास खुद को दोबारा पाने का मौका है। जो दर्द तुम्हारे अंदर था, उसे नेहा ने आज अपने शब्दों से हल्का कर दिया है। अब तुम्हें आगे बढ़ने की जरूरत है।”
प्रभात की आंखों में हल्का सा पानी था, लेकिन उसने सिर हिलाया।
“तुमने सही कहा, अरुणिमा। मैं शायद इस बात को समझ नहीं पाता, अगर तुम मेरे साथ न होतीं। मुझे लगता है, नेहा ने जो कहा, वो सही था। हर किसी को दूसरा मौका नहीं मिलता। और मुझे लगता है, मैं उस मौके को पहचानने लगा हूं।”
अरुणिमा ने हल्के अंदाज में कहा, “चलो, अब यह गंभीर बातें छोड़ो। यह कॉफी का समय है, और हम इसे अच्छे पलों से भरते हैं।”
प्रभात मुस्कुरा दिया। उसने पहली बार महसूस किया कि अरुणिमा की उपस्थिति उसके लिए कितनी खास है। उसकी बातें, उसकी मुस्कान, और उसकी समझदारी ने जैसे उसके भीतर की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ दिया था।
वह सोचने लगा, “क्या यह वही है, जिसकी मुझे जरूरत थी? क्या अरुणिमा ही मेरे दिल के उस खालीपन को भर सकती है?”
उसकी नजरें अरुणिमा पर टिक गईं। वह अब भी अपनी कॉफी के ऊपर उंगलियां घुमाते हुए कुछ कह रही थी, लेकिन प्रभात उसे सुन नहीं रहा था। वह बस उसकी सादगी और खूबसूरती में खो गया था।
उसके दिल में पहली बार प्यार की हल्की आहट हुई। यह नेहा से अलग था। यह किसी मजबूरी या पछतावे से नहीं, बल्कि सच्चे जुड़ाव और समझ से उपजा था।
जब दोनों कैफे से बाहर निकले, तो एक मंद हवा के झोंके ने उनके चेहरों को छू लिया। अरुणिमा ने शॉल को थोड़ा और कसकर लपेट लिया। प्रभात ने धीरे से कहा, “अरुणिमा, आज अगर तुम नहीं होती, तो शायद मैं अब भी वहीं अटका होता। तुमने मुझे फिर से जीने का कारण दिया है।”
अरुणिमा मुस्कुरा दी। “मैंने कुछ नहीं किया, प्रभात। यह सब तुमने खुद किया है। मैंने बस तुम्हें तुम्हारे ही अक्स से मिलवाया है।”
चलते-चलते प्रभात रुका। उसने अरुणिमा की तरफ देखा और कहा,
“अरुणिमा, क्या हम अब बार बार मिल सकते हैं? लेकिन ये सिलसिला अब , शायद एक नई शुरुआत के साथ?”
अरुणिमा ने कुछ पल उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। “शायद कुछ चीजें अपनी रफ्तार से बढ़नी चाहिए। लेकिन हां, अगली बार जरूर मिलते हैं।”
उनके बीच यह छोटा सा वादा, चांदनी रात की गवाह बन गया। उनके कदम धीरे-धीरे अलग राहों की ओर बढ़ गए, लेकिन उनके दिल एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहे थे।
कभी-कभी, जीवन हमें पुराने घावों को भरने और नए सपनों को साकार करने का मौका देता है। प्रभात और अरुणिमा, दो अधूरे इंसान, अब शायद एक-दूसरे के साथ अपनी अधूरी कहानियों को पूरा करने के लिए तैयार थे।
उनकी कहानी खत्म नहीं हुई थी। यह सिर्फ एक नई शुरुआत थी।
आगे की कहानी अगले भाग में.....