अरुणिमा ने जल्द ही खुद को संभालते हुए पूरे परिवार का ध्यान रखना शुरू किया। उसने प्रभात की मां के लिए डॉक्टर से परामर्श लिया, ताकि उनका स्वास्थ्य ठीक रहे। वह रोज सुबह उनके पास बैठकर उनसे बातें करती, उन्हें मंदिर लेकर जाती और उनकी पसंद का खाना बनाती।
एक दिन प्रभात की मां ने अरुणिमा से कहा, "बेटा, प्रभात नहीं रहा, लेकिन तुमने हमें संभाल लिया। तुम मेरे बेटे की सबसे बड़ी ताकत थी, और अब तुम मेरी ताकत हो।"
यह सुनकर अरुणिमा की आंखों में आंसू आ गए। उसने मन ही मन प्रभात से कहा, "मैं तुम्हारे परिवार को कभी टूटने नहीं दूंगी।"
अरुणिमा ने अपने पेशेवर जीवन को संभालते हुए घर की सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले लीं। वह सुबह जल्दी उठकर प्रभात की मां के लिए चाय बनाती, घर के हर छोटे-बड़े काम का ख्याल रखती। रिया के लिए भी यह समय कठिन था। लेकिन अरुणिमा ने उसके जीवन को सामान्य बनाने की कोशिश की। उसने रिया को उसके दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित किया।
अरुणिमा ने घर में सकारात्मक माहौल बनाने के लिए छोटे-छोटे बदलाव किए। उसने प्रभात की मां के लिए गार्डनिंग शुरू करवाई, जिसमें वे हर सुबह फूलों को पानी देतीं। रिया को नई हॉबीज सिखाने लगी, जैसे कि पेंटिंग और कुकिंग।
धीरे-धीरे, परिवार सामान्य होने लगा। वे एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे।
देखते ही देखते दो साल बीत चुके थे, लेकिन अरुणिमा की ज़िंदगी में वह याद अब भी उतनी ही ताज़ा थी, जैसे कल की ही बात हो। वह याद, जब उसने अपने हाथों से प्रभात को खो दिया था। प्रभात से बिछड़ने के बाद अरुणिमा ने अपने जीवन को केवल एक उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया—उस वादे को निभाने का, जो उसने प्रभात के अंतिम संस्कार पर किया था। उसने अपने ससुराल को अपना घर माना, प्रभात की मां और रिया को अपना परिवार। रिया अब अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, और अरुणिमा ने उसकी शादी की तैयारी शुरू कर दी थी। यह खुशी का मौका था, लेकिन प्रभात की गैरमौजूदगी हर किसी को खल रही थी। अरुणिमा ने परिवार की सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले लीं। वह रिया की शादी के हर छोटे-बड़े इंतजाम में जुटी रही। रिया की शादी के दिन अरुणिमा ने वही लहंगा पहना, जिसे उसने अपनी शादी में पहना था। जब विदाई का समय आया, रिया ने अरुणिमा को गले लगाकर कहा, "भाभी, आपने मेरे लिए एक मां, बहन और दोस्त बनकर जो किया, उसके लिए मैं ज़िंदगी भर आपकी आभारी रहूंगी। भैया आज जहां भी होंगे, बहुत खुश होंगे कि आपने हमारे परिवार को संभाल लिया।"
अरुणिमा ने रिया के आंसू पोंछे और मुस्कुराकर कहा, "तुम्हारा भाई मुझसे जो वादा करवाकर गया था, वह मैंने पूरा किया। अब तुम्हें अपनी ज़िंदगी को खुशियों से भरना है।"
शादी के बाद जब घर फिर से शांत हो गया, तो अरुणिमा को अकेलापन महसूस हुआ। वह जानती थी कि वह अपने वादे पर अडिग रही, लेकिन उसकी खुद की जिंदगी अब भी प्रभात के साथ ही जुड़ी थी।
रिया की शादी के बाद अरुणिमा पहली बार अकेले छुट्टी पर गई। उसने मनाली जाने का फैसला किया, वही जगह, जहां वह और प्रभात पहली बार मिले थे।
मनाली की यात्रा पर जाते वक्त अरुणिमा ने अपने सामान के साथ प्रभात की एक फोटो भी रखी थी। यह वही फोटो थी जो उनकी सगाई के दिन खींची गई थी—प्रभात हल्की मुस्कान के साथ कुर्ता-पायजामा पहने खड़ा था। उस तस्वीर को अरुणिमा ने हमेशा अपने दिल के करीब रखा।
मनाली पहुंचकर जब वह होटल के कमरे में दाखिल हुई, तो उसने सबसे पहले बैग से वह फोटो निकाली और मेज पर रख दी। उस तस्वीर को देखते हुए उसकी आंखें भर आईं। वह धीरे से फोटो के पास बैठ गई और अपने हाथ से तस्वीर को छूते हुए बोली, "तुम्हारे बिना यहां आना आसान नहीं था, प्रभात। लेकिन मैंने सोचा, जहां हमारी शुरुआत हुई थी, वहां तुम्हारी यादों के साथ कुछ पल बिताऊं।"
उसने तस्वीर को अपने साथ लिया और मनाली की उन सभी जगहों पर गई जहां वह और प्रभात पहली बार मिले थे। बर्फीले पहाड़, गीली सड़कें, और चाय की दुकान की वह टेबल जहां उन्होंने एक-दूसरे के साथ अपनी कहानियां साझा की थीं। हर जगह अरुणिमा ने प्रभात की तस्वीर को अपने करीब रखा।
उसने पहाड़ों की तरफ देखते हुए प्रभात की बातें याद कीं। "याद है, प्रभात? तुमने कहा था, इन पहाड़ों में हर दर्द को भूलने की ताकत है। लेकिन मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं?"
शाम को अरुणिमा मनाली के एक छोटे से मंदिर में गई। वहां जलते दीपक की लौ को देखकर उसकी आंखें भर आईं। उसने अपने दिल से प्रभात को याद करते हुए कहा, "तुम्हारे बिना ज़िंदगी अधूरी है, लेकिन मैंने तुम्हारी हर इच्छा को पूरा करने की कोशिश की। रिया अब अपने घर में खुश है, मां और पिताजी मुझे अपनी बेटी मानते हैं। लेकिन मेरा दिल आज भी तुम्हारे लिए धड़कता है।"
वह रात अरुणिमा ने एक होटल के कमरे में बिताई, जहां उसने पूरी रात प्रभात और सिया की बातें याद कीं । अगले दिन उसने सुबह सूरज उगते हुए देखा। ठंडी हवा के बीच, उसने महसूस किया कि प्रभात कहीं न कहीं उसके साथ है, उसकी हर सांस में।
जब वह मनाली से लौट रही थी, तो उसने खुद से कहा:
"ज़िंदगी ने मुझे दर्द दिया, लेकिन साथ ही जीने की वजह भी। प्रभात, तुमने मुझे जिस जिम्मेदारी के साथ छोड़ा था, मैंने उसे निभा दिया। अब मैं अपनी ज़िंदगी के हर दिन को तुम्हारी याद में जीऊंगी और हर साल यहां आऊंगी इसी आस के साथ की शायद फिर से तुमसे वादों की मुलाक़ात हो सके ।तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूं, लेकिन तुम्हारी यादों के सहारे जीना भी मेरे लिए सबसे बड़ा वादा है।"
अरुणिमा की आंखों में आंसू थे, लेकिन उसके चेहरे पर संतोष था। उसने प्रभात के लिए अपने प्यार को यादों में बदलकर अपनी जिंदगी को एक नई शुरुआत दी। और इस तरह, मनाली के पहाड़ों ने उसकी कहानी को हमेशा के लिए अपनी गोद में समेट लिया।
कहानी समाप्त.......