संगीत और मेहंदी का दिन अरुणिमा के घर पर बेहद खास और रंगीन अंदाज में मनाया गया। घर के हर कोने को झिलमिलाती लाइटों, चमकदार रंगों और खुशबूदार फूलों से सजाया गया था। माहौल में खुशी की गूंज और हल्की-हल्की ढोलक की थाप सुनाई दे रही थी। रिश्तेदार और दोस्त अपने-अपने पारंपरिक परिधानों में चमक रहे थे। अरुणिमा एक खूबसूरत हरे और सुनहरे लहंगे में सजी हुई थी। उसकी हाथों में मेहंदी लगने का इंतजार, उसकी आँखों में हल्की नमी और चेहरे पर मुस्कान की चमक, सब कुछ उसके भीतर की भावनाओं को साफ बयां कर रहे थे।
कार्यक्रम की शुरुआत संगीत से हुई। रिया, जो हर रस्म में जान डालने के लिए मशहूर थी, ने सबसे पहले मंच संभाला। उसने मस्ती भरे अंदाज में गाना गाया और झूमकर नाचा। पूरा घर उसके जोश और ठहाकों से गूंज उठा। एक के बाद एक लोग मंच पर आते गए, गाने गाए, और नाच-गाना चलता रहा। अरुणिमा की सहेलियों ने एक छोटा सा मजाकिया एक्ट तैयार किया था, जिसमें उन्होंने उसके और प्रभात की लव स्टोरी को बड़े ही मजेदार ढंग से पेश किया। अरुणिमा यह देखकर अपनी हँसी रोक नहीं पाई, और उसकी मुस्कान ने पूरे माहौल को और खुशनुमा बना दिया।
संगीत के बाद मेहंदी की रस्म शुरू हुई। अरुणिमा को खास मेहंदी आर्टिस्ट के पास बैठाया गया, जो उसके हाथों में इंट्रीकेट डिज़ाइन्स बना रहा था। अरुणिमा के हाथों में प्रभात का नाम छिपाने के लिए खास डिज़ाइन तैयार किया गया था।
रिया ने मौके का फायदा उठाते हुए शरारत भरे अंदाज में कहा, "भाभी, भैया को तुम्हारे हाथ में उनका नाम ढूंढने में पूरी रात लग जाएगी। और अगर नहीं ढूंढ पाए, तो समझ लेना, शादी रद्द!"
अरुणिमा ने उसकी इस बात पर हल्का मुस्कुरा दिया और बोली, "रिया, अगर ऐसा हुआ, तो मुझे भी सोचना पड़ेगा कि क्या यह रिश्ता सही है!"
यह सुनकर रिया ने खिलखिलाते हुए कहा, "भैया को यह बात पता चली, तो वह यहाँ दौड़े चले आएंगे।"
मेहंदी की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था। अरुणिमा की माँ ने उसके पास बैठकर उसकी हथेलियों को ध्यान से देखा और कहा, "बेटा, मेहंदी का रंग जितना गहरा चढ़ेगा, तुम्हारे और प्रभात के रिश्ते में उतनी ही गहराई होगी।"
यह सुनकर अरुणिमा ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "माँ, आप जानती हैं कि यह रिश्ता मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा है।"
माँ ने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा, "और प्रभात भी तुम्हारे लिए उतना ही सही है। भगवान ने तुम्हें हर खुशी के लिए चुना है। सिया भी यही चाहती थी।"
संगीत और मेहंदी के इस उत्सव में समय का पता ही नहीं चला। रात का भोजन भी खास तैयार किया गया था, जिसमें हर किसी की पसंद का ध्यान रखा गया था।
प्रभात की माँ ने अरुणिमा की माँ से कहा, "दीदी, खाना वाकई लाजवाब है। अरुणिमा के हाथों में तो हर चीज का स्वाद होगा।"
अरुणिमा की माँ ने हँसते हुए जवाब दिया, "सिर्फ स्वाद ही नहीं, वह घर संभालने में भी माहिर है। मुझे यकीन है कि वह हर जिम्मेदारी बखूबी निभाएगी।"
रात के आखिर में, जब सब रिश्तेदार अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए तब अरुणिमा मेहंदी लगवाने के बाद अपने कमरे में आराम कर रही थी। हल्की सी थकान के बावजूद उसके चेहरे पर मुस्कान थी। तभी उसके फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर "प्रभात" का नाम चमक रहा था। अरुणिमा ने हल्की मुस्कान के साथ फोन उठाया।
"क्या कर रही हो?" दूसरी तरफ से प्रभात की आवाज आई, जिसमें एक अलग सी बेचैनी महसूस हो रही थी।
"कुछ नहीं, बस आराम कर रही हूँ। और तुम?" अरुणिमा ने पूछा।
"तुम्हें मिस कर रहा हूँ," प्रभात ने सीधे-सीधे कह दिया। उसकी आवाज में गहराई थी, जो अरुणिमा के दिल को छू गई।
अरुणिमा ने हल्का सा हँसते हुए कहा, "अभी तो शादी में बस कुछ ही दिन बचे हैं। इतनी जल्दी मिस करने लगे?"
"क्या करूँ? तुम्हें देखे बिना चैन नहीं आता। लगता है जैसे ये शादी की रस्में भी साजिश कर रही हैं, हमें अलग रखने के लिए," प्रभात ने शरारती अंदाज में कहा।
"अच्छा? तो फिर तुम ही बताओ, ये रस्में क्यों होती हैं?" अरुणिमा ने उसे छेड़ते हुए पूछा।
"शायद इसलिए कि हमें एहसास हो सके कि एक-दूसरे के बिना रहना कितना मुश्किल है। लेकिन यकीन मानो, ये फासला मेरे लिए सहना बहुत मुश्किल हो रहा है," प्रभात ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
अरुणिमा ने उसकी बात सुनकर प्यार भरी आवाज में कहा, "बस थोड़ा और इंतजार करो। शादी के बाद तो हर पल एक साथ ही रहेंगे।"
"अरे यार, इतनी बातों से मेरा दिल नहीं भरता। चलो न, वीडियो कॉल कर लो। तुम्हें देखना है," प्रभात ने मानो गुहार लगाई।
"नहीं, अब शादी तक का इंतजार करो। अभी मिलना या देखना मना है। यही तो रस्मों की खूबसूरती है," अरुणिमा ने थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा।
"तुम्हारी रस्मों का तो पता नहीं, पर ये इंतजार मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं है," प्रभात ने नाटकीय अंदाज में कहा।
अरुणिमा खिलखिलाकर हँस पड़ी, "प्रभात, तुम ड्रामा करने में रिया को भी पीछे छोड़ सकते हो।"
"ड्रामा नहीं, सच्ची बात कर रहा हूँ। तुम्हें देखकर ही सुकून मिलता है। खैर, अब जब तुमने कह दिया है कि इंतजार करना होगा, तो मान लेता हूँ। लेकिन याद रखना, मैं शादी वाले दिन तुम्हें इतना घूर-घूर कर देखूँगा कि सारा इंतजार वसूल हो जाएगा," प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम्हारी बातें सुनकर सच में हँसी भी आती है और अच्छा भी लगता है। लेकिन अब मैं तुम्हें और बिगाड़ नहीं सकती। शादी तक अच्छे बच्चे की तरह सब्र करो," अरुणिमा ने प्यार भरे लहजे में कहा।
"ठीक है, लेकिन एक बात बताओ। तुम मुझे मिस करती हो या नहीं?" प्रभात ने थोड़ा शरारती अंदाज में पूछा।
"तुम्हें जवाब चाहिए या झूठा दिलासा?" अरुणिमा ने चिढ़ाते हुए कहा।
"जवाब ही चाहिए।"
"तो सुनो, हाँ, मैं भी तुम्हें मिस कर रही हूँ। लेकिन ये शादी के पहले का इंतजार भी खास होता है। इसे यादगार बनाओ, शिकायतों से नहीं," अरुणिमा ने शांत और स्नेह भरी आवाज में कहा।
"ठीक है, डॉक्टर साहिबा। आपकी हर बात माननी ही पड़ती है," प्रभात ने झूठी हार मानने का नाटक किया।
"अच्छे लड़के बनो और सो जाओ। अब मैं फोन रख रही हूँ।"
"ठीक है। लेकिन याद रखना, मैं हर पल तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ। गुड नाइट," प्रभात ने कहा।
"गुड नाइट, प्रभात। और हाँ, ज्यादा मत सोचो, शादी वाले दिन थक जाओगे," अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा और फोन काट दिया।
फोन रखने के बाद अरुणिमा मुस्कुराई और उसकी आँखों में हल्की चमक आ गई। उसे एहसास हो रहा था कि यह दूरी और यह इंतजार, उनके प्यार को और गहरा बना रहा था। दूसरी ओर, प्रभात अपने कमरे में बैठा, उनके मिलन के हर पल को लेकर सपने बुन रहा था।
आगे की कहानी अगले भाग में......