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शुभ विवाह भाग 2

27 नवम्बर 2024

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तभी घर के बड़े-बुजुर्गों ने आवाज लगाई, "बारात चलने का समय हो गया है। सब तैयार हो जाओ।" घर के आंगन में प्रभात के लिए घोड़ी तैयार खड़ी थी। सफेद और चमचमाती घोड़ी को रंग-बिरंगे कपड़ों और गहनों से सजाया गया था। ढोल की थाप और बैंड-बाजे की आवाज के बीच, प्रभात को घोड़ी पर चढ़ाने की रस्म शुरू हुई। लड़के वाले और रिश्तेदार खुशी से झूम रहे थे।

प्रभात के चाचा ने मजाक में कहा, "देखो भई, हमारे राजा साहब को घोड़ी पर चढ़ाने का वक्त आ गया है। अब यह सवारी सीधे राजकुमारी के महल तक जाएगी!" प्रभात मुस्कुराते हुए घोड़ी पर चढ़ा। रिया ने उसकी पगड़ी को थोड़ा तिरछा करते हुए मजाक में कहा, "भैया, एकदम राजा-महाराजा लग रहे हो। लेकिन ध्यान रखना, बारात में लड़कियां तुम्हारी तरफ ज्यादा ना देख लें, वरना भाभी गुस्सा कर जाएंगी!"

प्रभात हंसते हुए बोला, "अरे, अब मैं किसी की तरफ देखने वाला नहीं। मेरी नजरें तो अब बस अरुणिमा पर ही होंगी।"
घोड़ी पर बैठते ही ढोल की आवाज तेज हो गई। महिलाएं और लड़कियां खुशी से नाचने लगीं। रिया और उसकी सहेलियों ने मिलकर गुलाब की पंखुड़ियां प्रभात पर बरसाईं।
जैसे ही बारात घर से निकली, चारों ओर शोर और उत्सव का माहौल छा गया। बैंड वाले लोकप्रिय बॉलीवुड गाने बजा रहे थे। "दिल्ली वाली गर्लफ्रेंड" से लेकर "लड़की सुंदर है लगती कमाल" तक, हर गाने पर बाराती जमकर नाच रहे थे।
प्रभात के दोस्तों ने उसे घोड़ी पर बैठा देखकर चुटकी ली, "भाई, बस अब दो घंटे और! फिर तो तुम्हें राजकुमारी मिल ही जाएगी। लेकिन अभी हमें थोड़ा और डांस करने दो।"
तभी किसी ने बैराट से फूलों की माला निकाली और उसे प्रभात पर डालते हुए कहा, "लो, बारात का राजा तो और भी शाही लग रहा है!"
अरुणिमा के घर पर बारात के स्वागत की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। गेट को फूलों और झालरों से सजाया गया था। अरुणिमा की मां, चचेरा भाई और बाकी के रिश्तेदार बारात के स्वागत के लिए तैयार खड़े थे। जैसे ही बारात गेट के करीब पहुंची, ढोल और शहनाई का संगीत और तेज हो गया। अरुणिमा की सहेलियां हंसते हुए प्रभात की घोड़ी के पास आईं और छेड़ते हुए बोलीं, "दूल्हे राजा, अंदर जाना है तो नेग देना पड़ेगा!"

प्रभात के दोस्तों ने मजाक में कहा, "नेग में ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि दूल्हा तो पहले ही सब कुछ दुल्हन के नाम कर चुका है।"

अरुणिमा की सेहेलियो ने घोड़ी की लगाम पकड़ी और कहा, "पहले थोड़ा मोलभाव होगा। हमारी बहन के लिए नेग अच्छा होना चाहिए!"

प्रभात ने हंसते हुए कहा," नेग का तो पूरा ख्याल रखा गया है। लेकिन पहले दुल्हन तक पहुंचा दो।"

आखिरकार नेग के बाद बारात को अंदर आने दिया गया। प्रभात को घोड़ी से उतारकर गेट पर रखा मटका तोड़ने की रस्म हुई। इसके बाद उसे अंदर ले जाया गया।
जैसे ही प्रभात मंडप की ओर बढ़ा, उसकी नजरें अरुणिमा को ढूंढने लगीं। सहेलियों ने उसे छुपा दिया था, लेकिन वह एक पल के लिए झरोखे से झांकते हुए मुस्कुराई। प्रभात ने उसे देख लिया और धीमे से मुस्कुराते हुए खुद से कहा, "बस अब इंतजार खत्म। आज से हर पल तुम्हारा साथ होगा।"
मंडप को फूलों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था। बीच में बने ऊंचे मंच पर दोनों परिवारों के बड़े-बुजुर्ग बैठे थे, और आसपास रिश्तेदारों की भीड़ उत्साहित थी। बैंड-बाजे वालों ने जैसे ही जयमाला की धुन बजानी शुरू की, चारों ओर माहौल और भी जीवंत हो गया।
प्रभात मंच की ओर बढ़ रहा था। सिर पर लाल साफा और गले में ताजे फूलों की माला के साथ वह किसी राजकुमार जैसा लग रहा था। उसकी चाल में आत्मविश्वास और चेहरे पर मुस्कान थी। रिया और उसकी सहेलियां प्रभात को मंच तक छोड़ने आईं, लेकिन मजाक करते हुए बोलीं, "भैया, इतनी जल्दी मंच पर मत चढ़ो, भाभी को थोड़ा इंतजार करने दो।"

प्रभात ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "इंतजार तो मैं ही सबसे ज्यादा कर रहा हूं। अब और देर बर्दाश्त नहीं होती।"
कुछ ही देर में अरुणिमा को मंडप में लाया गया। लाल रंग का भारी लहंगा, गोल्डन कढ़ाई, और सिर पर लंबी दुपट्टे की झालर के साथ वह किसी परी से कम नहीं लग रही थी। उसकी सहेलियां उसे चारों ओर से घेरे हुए थीं, मानो उसे प्रभात की नजर से बचाना चाह रही हों।

रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, "भाभी, भाईसाहब की नजरें तो आपसे हट ही नहीं रही। लगता है, जयमाला से पहले ही हार मान गए।"

अरुणिमा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "अब हार या जीत की बात नहीं है, आज तो सिर्फ वादे निभाने की शुरुआत है।"
अरुणिमा और प्रभात दोनों मंच पर पहुंचे। पूरे मंडप में खुशी और उल्लास का माहौल था। जैसे ही दोनों आमने-सामने आए, रिश्तेदारों ने शोर मचाना शुरू कर दिया, "दूल्हे को झुकना पड़ेगा! झुकना पड़ेगा!"

अरुणिमा के भाई और सहेलियों ने प्रभात को झुकने नहीं दिया। जब प्रभात ने माला पहनाने की कोशिश की, तो लड़कों की टीम ने उसका कद बढ़ाने के लिए उसे उठा लिया। इस पर सब ठहाका लगाकर हंसने लगे।

प्रभात ने आखिरकार हाथ जोड़ते हुए कहा, "ठीक है, भई। मैं झुकता हूं। आखिर, राजा भी अपनी रानी के लिए झुक सकता है।"

यह सुनकर अरुणिमा मुस्कुराई और प्रभात के झुकने पर माला उसके गले में डाल दी। पूरा मंडप तालियों और सीटियों से गूंज उठा।

अब बारी थी अरुणिमा को माला पहनाने की। उसकी सहेलियां उसे पीछे खींचने लगीं, ताकि प्रभात को थोड़ा मेहनत करनी पड़े। लेकिन प्रभात ने चालाकी से मौका पाकर अरुणिमा को माला पहना दी। सब हंसते हुए बोले, "वाह, राजा साहब जीत गए!"
माला पहनाने के बाद दोनों ने एक-दूसरे को देखा। अरुणिमा ने हल्के से कहा, "याद है, मनाली में हम दोनों ने वादा किया था कि जब दोबारा मिलेंगे, तो सिर्फ खुशी के लिए मिलेंगे। आज वही वादा पूरा हो रहा है।"

प्रभात ने उसकी ओर देखते हुए जवाब दिया, "आज से हमारा हर दिन एक वादा होगा, जिसे हम साथ निभाएंगे।"
जयमाला के बाद, दूल्हा-दुल्हन के लिए बैठने की व्यवस्था की गई, और रस्में आगे बढ़ने लगीं।
फेरे शुरू होने से पहले मंडप पर अरुणिमा और प्रभात को बैठाया गया। पंडित जी ने मंत्रोच्चारण शुरू किया, और परिवार के सदस्य अग्नि को साक्षी मानकर दूल्हा-दुल्हन का साथ निभाने की कसमें सुनने लगे।
अरुणिमा की माँ ने कन्यादान करते समय उसकी हथेलियों को प्रभात के हाथों में रखते हुए कहा, "अब ये जिम्मेदारी तुम्हारी है। इसे हमेशा खुश रखना।"
प्रभात ने गंभीरता से कहा, "आप निश्चिंत रहें, आंटी। मैं इसे हमेशा खुश रखूँगा।" पंडित जी ने मंत्रोच्चारण के साथ प्रत्येक फेरे का महत्व समझाया। हर वचन के साथ उनके रिश्ते की गहराई और जिम्मेदारियाँ तय होती गईं। दोनों ने हर वचन के साथ एक-दूसरे को अपने जीवन के हर पड़ाव में साथ निभाने की कसमें खाईं।
पहला वचन: जिम्मेदारी और समर्पण
पंडित जी ने कहा, "पहले फेरे में पति और पत्नी एक-दूसरे से वादा करते हैं कि वे अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी और पूरी निष्ठा से निभाएंगे।"
प्रभात ने कहा, "मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे हर सुख-दुख में तुम्हारा साथ दूँगा और तुम्हारी सभी जरूरतों का ध्यान रखूँगा।"
अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "और मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारे परिवार को अपना परिवार मानकर हमेशा सबका आदर और देखभाल करूँगी।"

दूसरा वचन: शारीरिक और मानसिक सुरक्षा
पंडित जी बोले, "दूसरे फेरे में पति-पत्नी एक-दूसरे को हर तरह से सुरक्षित रखने का वचन देते हैं।"
प्रभात ने अरुणिमा की ओर देखते हुए कहा, "मैं तुम्हें हर बुराई से बचाऊँगा और तुम्हारे सम्मान की रक्षा करूंगा।"
अरुणिमा ने दृढ़ता से कहा, "और मैं वादा करती हूँ कि जब भी तुम्हें मेरी जरूरत होगी, मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी।"

तीसरा वचन: धन और समृद्धि
पंडित जी ने कहा, "तीसरा वचन पति-पत्नी की आर्थिक जिम्मेदारियों और घर की समृद्धि को लेकर होता है।"
प्रभात ने वचन दिया, "मैं वादा करता हूँ कि मेहनत करके तुम्हारे और हमारे परिवार के लिए सुखद भविष्य सुनिश्चित करूँगा।"
अरुणिमा ने कहा, "और मैं यह वादा करती हूँ कि मैं घर को एक खुशहाल और प्रेमपूर्ण माहौल बनाऊँगी।"

चौथा वचन: प्रेम और आदर
पंडित जी बोले, "चौथे फेरे में पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम और आदर देने का वादा करते हैं।"
प्रभात ने अरुणिमा का हाथ थामते हुए कहा, "मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें हमेशा सम्मान दूँगा और तुम्हारी भावनाओं को समझने की कोशिश करूंगा।"
अरुणिमा ने कहा, "और मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारा साथ दूँगी और तुम्हारे सपनों को पूरा करने में मदद करूँगी।"

पांचवां वचन: परिवार की देखभाल
पंडित जी ने कहा, "पांचवां पति-पत्नी के परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों को लेकर है।"
प्रभात ने कहा, "मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे परिवार को हमेशा अपना समझूँगा और उनका आदर करूंगा।"
अरुणिमा ने कहा, "और मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारे माता-पिता को अपने माता-पिता की तरह मानूँगी और उनकी सेवा करूंगी।"

छठा वचन: एक-दूसरे के साथ का वादा
पंडित जी ने कहा, "छठा वचन हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ देने का होता है।"
प्रभात ने गंभीरता से कहा, "मैं वादा करता हूँ कि चाहे समय जैसा भी हो, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा।"
अरुणिमा ने गहरी नजरों से प्रभात को देखा और कहा, "और मैं वादा करती हूँ कि मैं हमेशा तुम्हारा सहारा बनूँगी, चाहे हालात जैसे भी हों।"

सातवां वचन: दोस्ती और विश्वास
पंडित जी ने कहा, "सातवां और अंतिम वचन पति-पत्नी के रिश्ते को दोस्ती और विश्वास से निभाने का होता है।"
प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दूँगा और हर परिस्थिति में तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त बनकर रहूँगा।"
अरुणिमा ने उत्तर दिया, "और मैं वादा करती हूँ कि हमारे रिश्ते में भरोसे को कभी कमजोर नहीं पड़ने दूँगी। हम हमेशा एक-दूसरे के साथी रहेंगे।"

फेरे पूरे होने के बाद मंडप में एक गहरी शांति और गंभीरता छा गई। चारों ओर बैठे रिश्तेदारों की निगाहें दूल्हा-दुल्हन पर टिक गई थीं। यह वह क्षण था, जब अरुणिमा और प्रभात के रिश्ते को भगवान और समाज के सामने औपचारिक रूप से स्वीकारा जाना था।
पंडित जी ने थाली में रखे सिंदूर को उठाया और प्रभात की ओर इशारा करते हुए कहा,
"अब दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरकर इसे हमेशा के लिए अपनी अर्धांगिनी स्वीकार करे।"

प्रभात ने धीरे-धीरे थाली से सिंदूर उठाया। उसके हाथ में थोड़ी सी कंपकंपी थी, लेकिन चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। अरुणिमा ने अपना सिर हल्का झुकाया। उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन गालों पर एक हल्की मुस्कान थी, जो उसके दिल की खुशी बयां कर रही थी।
जैसे ही प्रभात ने अरुणिमा की मांग में सिंदूर भरा, मंडप "शुभ हो! शुभ हो!" की आवाजों से गूंज उठा। अरुणिमा ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और प्रभात की ओर देखा। उस नजर में प्यार, समर्पण और एक नई शुरुआत का वादा था।

प्रभात ने हल्के से फुसफुसाया, "आज से तुम्हारी हर खुशी मेरी जिम्मेदारी है।"
अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "और तुम्हारे हर सपने को पूरा करना मेरा फर्ज़।"

इसके बाद पंडित जी ने थाली से मंगलसूत्र उठाकर प्रभात को दिया।
"यह मंगलसूत्र सिर्फ गहना नहीं, यह आपके बीच के प्यार, विश्वास और जीवनभर के साथ का प्रतीक है। इसे दुल्हन के गले में पहनाएं।"

प्रभात ने धीरे-धीरे अरुणिमा की ओर झुकते हुए मंगलसूत्र उसके गले में पहनाया। उसके पहनाते ही अरुणिमा ने हल्के से मंगलसूत्र को छुआ, जैसे यह उसके लिए एक नई जिम्मेदारी और गर्व का प्रतीक हो।

चारों ओर रिश्तेदारों ने तालियां बजाईं। रिया ने हंसते हुए कहा,
"भैया, अब भाभी ने तुम्हें आधिकारिक रूप से अपने बंधन में बांध लिया है। भागने का कोई रास्ता नहीं है।"
सब ठहाका लगाकर हंसने लगे, और अरुणिमा शरमाते हुए मुस्कुरा दी।
सिंदूर और मंगलसूत्र की रस्म के बाद, पंडित जी ने घोषणा की,
"अब यह विवाह पूर्ण हुआ। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं। जोड़ा भगवान के आशीर्वाद से बना है।"

प्रभात ने अरुणिमा का हाथ थामा और हल्के से कहा, "अब तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा नहीं, मेरी पूरी जिंदगी हो।"
अरुणिमा ने उसकी ओर देखते हुए उत्तर दिया, "और तुम मेरे हर ख्वाब की शुरुआत हो।"

सभी ने इस पवित्र क्षण को अपनी शुभकामनाओं और तालियों के साथ यादगार बना दिया। दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने के लिए रिश्तेदार और दोस्त मंडप में उमड़ पड़े। यह पल दोनों परिवारों के लिए आनंद और गर्व का प्रतीक बन गया।


आगे की कहानी अगले भाग में.......
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रचनाएँ
वादों की मुलाकात
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यह कहानी एक अजनबी मुलाकात, दर्द और वादों की खूबसूरत यात्रा है। इसमें वक्त, यादें, और साझा किए गए अनुभवों का महत्व है।
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