कुछ ही दिनों बाद प्रभात और अरुणिमा के परिवारों की पहली औपचारिक मुलाकात का दिन तय हो गया था। यह मुलाकात प्रभात के घर पर रखी गई थी। अरुणिमा की माँ पहले ही अपनी बेटी को आश्वस्त कर चुकी थीं कि उनके लिए उसकी खुशी सबसे ऊपर है। लेकिन वे यह भी देखना चाहती थीं कि जिस परिवार में उनकी बेटी जा रही है, वहाँ उसे अपनापन मिलेगा या नहीं।
प्रभात के घर का माहौल भी खासा उत्साहपूर्ण था। उसकी बहन रिया ने सजावट की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले रखी थी। उसने लिविंग रूम को हल्के फूलों और रंगीन बल्बों से सजा दिया था।
"भैया, सब कुछ परफेक्ट लगना चाहिए। आखिर भाभी की माँ के लिए पहली छाप बहुत मायने रखती है," रिया ने चहकते हुए कहा।
प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम इतना क्यों परेशान हो रही हो?"
रिया ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, "क्योंकि अगर भाभी को मैं पसंद आई, तो उनकी माँ भी मुझे पसंद करेंगी। देखो, इसे कहते हैं सही रणनीति!"
इस बीच, प्रभात की माँ रसोई में व्यस्त थीं। उन्होंने प्रभात से पहले ही अरुणिमा की माँ की पसंद-नापसंद पूछ रखी थी।
"तुम्हारी अरुणिमा बहुत समझदार लड़की लगती है," उन्होंने प्रभात से कहा।
"है भी। लेकिन क्या वह आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी?" प्रभात ने हल्की झिझक के साथ पूछा।
"मुझे तो वह पहले ही दिन पसंद आ गई थी। लेकिन यह रिश्ता केवल लड़के और लड़की का नहीं होता। यह दो परिवारों का मेल होता है। आज सबको समझने का मौका मिलेगा," माँ ने आश्वस्त किया।
दोपहर 1 बजे अरुणिमा और उसकी माँ "शर्मा निवास" पहुँचीं। अरुणिमा हल्की नीली साड़ी में थी, और उसकी माँ ने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था। दरवाजे पर रिया ने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया।
"नमस्ते, आंटी! और भाभी, आप तो बेहद सुंदर लग रही हैं," रिया ने चहकते हुए कहा।
"धन्यवाद, रिया," अरुणिमा ने हल्के शर्माते हुए उत्तर दिया।
अरुणिमा की माँ ने प्रभात की माँ को हाथ जोड़कर नमस्ते की।
"नमस्ते, दीदी। आपसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है," प्रभात की माँ ने गर्मजोशी से कहा।
"मुझे भी आपसे मिलकर खुशी हुई। और आपका घर बहुत सुंदर है," अरुणिमा की माँ ने विनम्रता से जवाब दिया।
लिविंग रूम में सभी एकत्रित हुए। प्रभात की माँ ने बातचीत शुरू की।
"आपकी अरुणिमा बचपन से ही बहुत जिम्मेदार रही होगी। इतनी सादगी और आत्मविश्वास तो घर से ही आता है।"
"जी," अरुणिमा की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। "सिया के जाने के बाद उसने मुझसे ज्यादा खुद को संभाला। वह घर और अस्पताल दोनों जगह अपनी जिम्मेदारियों को इतने अच्छे से निभाती है कि मुझे उस पर गर्व होता है।"
बातचीत के दौरान प्रभात की माँ किचन में चाय इत्यादि की व्यवस्था के लिए चली जाती है तभी रिया ने अपनी शरारतों का रंग जमाना शुरू कर दिया।
"आंटी, भाभी ने भैया को पूरी तरह बदल दिया है। अब वह सुबह जल्दी उठते हैं और हर काम समय पर करते हैं।"
अरुणिमा की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह तो अच्छी बात है। पति को सुधारने का काम पत्नी ही करती है।"
"रिया, तुम्हें कुछ ज्यादा ही मज़ा आ रहा है," प्रभात ने उसे घूरते हुए कहा।
"भैया, मैं तो बस सच्चाई बयां कर रही हूँ," रिया ने शरारती अंदाज में जवाब दिया।
यह सुनकर अरुणिमा मुस्कुरा दी और माहौल और भी सहज हो गया।
थोड़ी देर बाद प्रभात की माँ ने अरुणिमा को किचन में बुलाया।
"बेटा, मैंने सुना है कि तुम्हें खाना बनाना बहुत पसंद है। यह बहुत अच्छी बात है।"
"जी, आंटी। खाना बनाना मेरे लिए सुकून भरा काम है।"
"तो फिर एक वादा करो कि अगली बार जब हम तुम्हारे घर रिश्ता पक्का करने आयेंगे तब हमारे लिए कुछ बनाना। मुझे यकीन है कि तुम्हारे हाथों में स्वाद होगा।"
"ज़रूर ये वादा मैं जरूर पूरा करूंगी, आंटी," अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि तुम सिर्फ सादगी में ही नहीं, जिम्मेदारी में भी आगे हो," प्रभात की माँ ने कहा, चाय की ट्रे तैयार करते हुए।
अरुणिमा ने विनम्रता से जवाब दिया, "आंटी, मुझे घर का काम करना हमेशा अच्छा लगता है। मेरी माँ ने सिखाया है कि काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता।"
यह सुनकर प्रभात की माँ का चेहरा खिल उठा। उन्होंने प्यार से कहा, "यह बात तुमने सही कही। अब देखो, इस घर में मैं अब तक अकेले सब संभालती आई हूँ। लेकिन अब लगता है कि मुझे एक साथी मिल गया है।"
अरुणिमा थोड़ा हैरानी और थोड़ा शर्म से मुस्कुरा दी।
"बेटा," माँ ने हल्के से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "अब तुम इस ट्रे में चाय और नाश्ता लेकर चलो। सबके सामने ले जाना। अब यह तुम्हारी भी ज़िम्मेदारी है। और याद रखना, यह घर अब हमारा घर है—तुम्हारा और मेरा। इसे हमें मिलकर संभालना है।"
अरुणिमा का दिल यह सुनकर भर आया। यह पहली बार था जब उसे इस घर की बहू नहीं, बल्कि एक साझेदार की तरह अपनाने की भावना महसूस हुई।
"जी, आंटी। मैं पूरी कोशिश करूँगी कि आपकी उम्मीदों पर खरा उतर सकूँ।"
माँ ने प्यार से कहा, "मुझे यकीन है, तुम मेरी उम्मीदों से भी ज्यादा करोगी। चलो, अब यह ट्रे लेकर चलो। सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।"
अरुणिमा ने ट्रे संभाली और धीरे-धीरे लिविंग रूम की ओर बढ़ी। उसकी चाल में अब आत्मविश्वास था। प्रभात और उसकी बहन रिया ने उसे चाय लेकर आते देखा, और रिया ने तुरंत मजाक किया,
"ओहो, भाभी, अब से तो यही रिवाज होने वाला है, है न?"
अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "रिया, तुम्हारे लिए हमेशा खास सर्विस होगी। लेकिन यह भी ध्यान रखना कि कभी-कभी तुम्हें भी मेरी मदद करनी होगी।"
रिया ने ठहाका लगाया, "डील पक्की है, भाभी!"
प्रभात ने यह सब देखा और उसकी आँखों में अरुणिमा के लिए सम्मान और भी बढ़ गया।
उसकी माँ ने भी अरुणिमा की सहजता और अपनेपन को महसूस किया। यह छोटा सा पल उनकी अपनी एक नई शुरुआत का संकेत था।
इस दौरान, प्रभात के पिता और अरुणिमा की माँ गहरी बातचीत में लगे हुए थे।
"रिश्ते केवल लड़के और लड़की का मामला नहीं होते। यह दो परिवारों का बंधन भी है," प्रभात के पिता ने कहा।
अरुणिमा की माँ ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, "सही कहा। मेरी यही इच्छा है कि अरुणिमा को ऐसा घर और परिवार मिले, जहाँ वह सुकून और अपनापन महसूस कर सके।"
"हम भी यही चाहते हैं। आपकी बेटी का स्वभाव देखकर लगता है कि वह हमारे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन जाएगी।"
धीरे-धीरे माहौल सहज हो गया। प्रभात की माँ ने अरुणिमा की माँ को आश्वस्त किया कि उनका परिवार हमेशा रिश्तों को प्राथमिकता देता है।
"दीदी, आपकी बेटी हमारी बेटी जैसी होगी। प्रभात ने वाकई एक अच्छा चुनाव किया है।"
अरुणिमा की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपके अपनापन से मेरा दिल भर आया है। मुझे यकीन है कि अरुणिमा यहाँ खुश रहेगी।"
जब अरुणिमा और उसकी माँ लौट रही थीं, तो अरुणिमा की माँ ने उसे गले लगाते हुए कहा, "बेटा, यह परिवार बहुत अच्छा है। मुझे तुम्हारे फैसले पर गर्व है।"
दूसरी ओर, रिया ने प्रभात से कहा, "भैया, अब तो शादी की तैयारी शुरू कर दो। भाभी ने सबका दिल जीत लिया है।"
प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा, "सब सही समय पर होगा। बस थोड़ा धैर्य रखो।"
अब दोनों परिवार शादी की तारीख तय करने की दिशा में आगे बढ़ने वाले थे। यह मुलाकात रिश्ते को और भी मजबूत कर गई, और सभी ने महसूस किया कि यह सिर्फ दो दिलों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन था।
आगे की कहानी अगले भाग में.......