कुछ दिनों के बाद, अरुणिमा के घर पर प्रभात और उसके परिवार वाले रिश्ता पक्का करने के लिए पहुंचे। यह दिन एक नई शुरुआत का प्रतीक था, लेकिन दोनों परिवारों के बीच एक हल्की सी नर्वसनेस भी थी। अरुणिमा के घर में सजा हुआ माहौल था—रंग-बिरंगे फूलों से घर को सजाया गया था, और हर कोने में उत्साह था।
रिया ने आते ही माहौल को हल्का किया। "देखो भाभी, अब तो हम दोनों परिवार एक साथ हैं। यह रिश्ता पक्का होने के बाद कोई भी परेशानी नहीं आएगी," रिया ने हल्की शरारत करते हुए कहा। वह फिर अरुणिमा से मजाक करने लगी, "अब भाभी, तुम मुझे कभी नहीं भूल सकती। मेरे कारण ही तो यह रिश्ता यहां तक पहुंचा है।"
अरुणिमा हंसते हुए कहने लगी, "रिया, तुम तो हर बार कुछ न कुछ नया खोज ही लेती हो।"
प्रभात की माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "रिया, तुम तो सच्ची बहन हो। हमारे परिवार की जान हो।"
थोड़ी देर बाद, पंडित जी का आना हुआ। सब कुछ पारंपरिक रीति-रिवाज से तय किया जा रहा था, और पंडित जी ने दोनों के कुंडली मिलाने के लिए यह काम शुरू किया। सभी का ध्यान कुंडली मिलान पर था, लेकिन पंडित जी के चेहरे पर हल्की चिंता थी। वह कुंडली देखते हुए कुछ देर चुप रहे और फिर बोले,
"देखिए, दोनो की कुंडली के हिसाब से यह शादी ठीक नहीं लग रही। कुछ ग्रहों का मिलान नहीं है, और ऐसा लगता है कि यह विवाह दुर्भाग्य लाएगा।"
यह सुनकर कमरे में एक चुप्प सी छा गई। अरुणिमा की माँ का चेहरा थोड़ी चिंता से झुक गया, और प्रभात के माता-पिता भी असहज दिखने लगे। रिया ने हड़बड़ी में पंडित जी से पूछा, "क्या आप सच कह रहे हैं, पंडित जी? भाभी और भैया की कुंडली तो बहुत मिलती हैं, फिर यह क्या?"
प्रभात की माँ ने धीरे से पंडित जी से कहा, "हमने बहुत सोचा है, और यह रिश्ता हमें सही लगता है। कृपया एक बार और सोचिए।"
पंडित जी ने सिर झुकाया, "मैं जानता हूँ कि यह आपके लिए कठिन है, लेकिन कुंडली का मिलान बहुत अहम होता है।"
अरुणिमा ने यह सब देखा और फिर प्रभात का हाथ थामते हुए खड़ी हो गई। उसने कहा, "पंडित जी, अगर आप हमें देखेंगे, तो समझेंगे कि हमारा प्यार हमें एक-दूसरे से जोड़ता है। यह केवल कुंडली नहीं, बल्कि हमारी मेहनत, समझ और दिल का सवाल है।"
प्रभात ने भी सामने आते हुए कहा, "हमें लगता है कि यह रिश्ता हमारी मेहनत से बनेगा। अगर प्रेम और विश्वास से रिश्ते बनते हैं, तो हम दोनों का रिश्ता कुंडली से कहीं ज्यादा मजबूत है।"
अरुणिमा की माँ ने यह सब सुनकर एक गहरी सांस ली और फिर पंडित जी से कहा, "मुझे पूरा यकीन है कि अरुणिमा और प्रभात का रिश्ता सच्चा है। और मैं जानती हूँ कि हमारी बेटी अपने फैसले में सही है।"
पंडित जी कुछ देर चुप रहे, फिर उन्होंने सिर झुकाया और कहा, "आपका विश्वास और प्यार देख कर मैं बस यही कामना कर सकता हूं कि ईश्वर आपके वैवाहिक जीवन के सारे संकटों का नाश कर दे। ईश्वर से बड़ी कोई शक्ति नहीं वो चाहे तो असंभव को भी संभव कर दे, बस आप सब ईश्वर पर भरोसा रखना और सब मंगल होने की प्रार्थना करना।" थोड़ी देर पंडित जी ने शादी के लिए दो महीने बाद की तारीख तय कर दी।
इस पर सबके चेहरे खिल गए। रिया ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा, "देखा, अब तो सब ठीक है!" और अरुणिमा और प्रभात एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराए।
इस छोटे से पल ने यह साबित कर दिया कि प्यार किसी भी परिस्थिति से कहीं अधिक मजबूत होते हैं। प्रभात और अरुणिमा के रिश्ते में यही प्यार और भरोसा था, और अब दोनों परिवारों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर इस रिश्ते को एक नई दिशा दी थी।
रिया ने फिर मजाक करते हुए कहा, "अब भाभी, हम दोनों के परिवार तो एक ही हैं, तो शादी के बाद क्या मजे होंगे!"
अरुणिमा ने हंसते हुए कहा, "तुम्हारे मजे तो अब शुरू होंगे, रिया!"
समारोह के बाद का समय कुछ खास था। सभी लोग लिविंग रूम में बैठे थे, और वातावरण में खुशी और अपनापन था। प्रभात की माँ ने जब देखा कि सबका दिल मिल चुका है और रिश्ता पक्का हो चुका है, तो उसने मुस्कुराते हुए अरुणिमा से कहा, "तुमसे एक वादा किया था, याद है?"
अरुणिमा ने हलके से सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए कहा, "जी, आंटी, वह वादा मैंने याद रखा है।"
"तो फिर," प्रभात की माँ ने कहा, "क्या तुमने हमारे लिए कुछ खास बनाया है?"
अरुणिमा ने अपना सिर उठाया और मुस्कुराते हुए कहा, "जी, आंटी। मैंने आज आपके लिए घर का खास खाना तैयार किया है, जैसा कि मैंने वादा किया था।"
अब सभी लोग उत्सुक थे। रिया ने झूटी मुंह बनाई और कहा, "वाह, भाभी! अब तो हमें देखना पड़ेगा कि कितना अच्छा खाना बना लिया है, है ना?"
अरुणिमा ने हंसी में जवाब दिया, "रिया, तुम भी हमेशा मुझे ही चैलेंज देती रहती हो।"
इसके बाद, अरुणिमा ने रसोई से प्लेटें लाकर सबके सामने रखी। उसने अपने हाथों से सादगी और स्नेह के साथ खाना तैयार किया था—खास तौर पर प्रभात की माँ के पसंदीदा व्यंजन, जो उसने उनकी पसंद के मुताबिक बनाए थे। जैसे ही सभी ने पहला निवाला लिया, एक अजीब सी चुप्पी छा गई। फिर, प्रभात के पिता ने सबसे पहले अपना मुंह खोला, "यह क्या स्वाद है! मैंने तो सोचा था कि घर का खाना सिर्फ अच्छे से सजा होता है, लेकिन ये स्वाद... यह तो कुछ अलग ही बात है।"
प्रभात की माँ ने भी चखते हुए कहा, "सच में, यह बहुत अच्छा है। मैंने तो कभी सोचा नहीं था कि किसी के हाथों से ऐसा खाना मिलेगा।"
रिया ने अपनी शरारत छोड़ते हुए कहा, "भाभी, तुमने तो सबका दिल ही जीत लिया! अब तो आप हमारे घर की रसोई की स्टार बन चुकी हो।"
अरुणिमा मुस्कुराते हुए बोली, "यह सब आपके प्यार और समर्थन का परिणाम है। मुझे यकीन था कि सबका दिल जीतने के लिए बस सच्चाई और स्नेह चाहिए।"
सभी ने अरुणिमा की तारीफ की और एक दूसरे के साथ मिलकर खाना खाया। सारा वातावरण खुशियों और मिठास से भर गया था। प्रभात ने भी अरुणिमा को देखा और उसके चेहरे पर गर्व और प्यार का भाव था। उसे यह एहसास हुआ कि अरुणिमा ने सिर्फ उनके रिश्ते को नहीं, बल्कि दोनों परिवारों को भी एक दूसरे के करीब ला दिया था।
प्रभात की माँ ने अंत में कहा, "अरुणिमा, तुमने अपना वादा निभाया और दिल से यह खाना बनाया। मुझे पूरा यकीन है कि तुम हमारे परिवार की एक अहम हिस्सा बनोगी।"
अरुणिमा का दिल खुशी से भर आया। यह पहला मौका था जब उसे इस घर में सिर्फ एक बहू नहीं, बल्कि एक साझेदार की तरह स्वीकार किया गया था। उसने ख्यालों के पंखों से उड़ते हुए अपनी नज़रें प्रभात पर डाली, और उसकी आँखों में वही प्यार और विश्वास था, जो अब उनके रिश्ते का सबसे मजबूत आधार बन चुका था।
"यह घर अब मेरा घर है," अरुणिमा ने दिल से कहा। "मैं हर पल इसमें अपना योगदान दूंगी, और हम सब मिलकर इसे और भी प्यारा बनाएंगे।"
यह दिन उन दोनों के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गया, जिसमें न सिर्फ उनका प्यार बल्कि उनके परिवारों का भी जुड़ाव था। अब वे एक साथ अपने भविष्य की ओर बढ़ने को तैयार थे।
इस मुलाकात के बाद, दोनों परिवारों के बीच का संबंध और भी मजबूत हो गया था। प्रभात और अरुणिमा ने महसूस किया कि यह केवल एक शुरुआत थी—उनकी अपनी यात्रा का पहला कदम। अब, दोनों परिवार एक दूसरे के अधिक करीब आ गए थे, और उनकी मुलाकातों में और भी गर्मजोशी आ गई थी।
अगले कुछ हफ्तों में, प्रभात और अरुणिमा ने एक-दूसरे के परिवारों से मिलकर उन्हें और जानने की कोशिश की। अरुणिमा की माँ ने प्रभात की माँ से कई बार फोन पर लंबी बातचीत की, जहाँ वे एक-दूसरे के अनुभवों और परिवारों के बारे में बात करतीं। प्रभात के पिता और अरुणिमा की माँ की बातचीत भी गहरी हो गई थी, क्योंकि दोनों ने अपने बच्चों के भविष्य के बारे में विचार साझा किए थे।
प्रभात और अरुणिमा के बीच अब एक स्थिर और गहरा संबंध बन चुका था। वे एक-दूसरे के साथ समय बिताने के लिए अक्सर मिलते थे। कई बार तो वे एक-दूसरे के परिवारों के साथ शॉपिंग, डिनर, या छोटी-मोटी यात्राओं पर भी जाते थे। अब, दोनों परिवार एक साथ मिलकर शादी की तैयारियाँ करने में लगे थे। लेकिन इन तैयारियों के बीच, अरुणिमा और प्रभात दोनों का रिश्ता बिना किसी दबाव के, सहज और प्यार से आगे बढ़ रहा था।
आगे की कहानी अगले भाग में.....