आखिरकार वो दिन आ ही गया जिस दिन शादी होनी थी ,सुबह का समय था। प्रभात अपने कमरे में बिस्तर पर बैठा बार-बार घड़ी की ओर देख रहा था। शादी के उत्साह और अरुणिमा से मिलने की बेसब्री ने उसे बेचैन कर दिया था। उसने फोन उठाया और अरुणिमा का नंबर डायल किया।
"हेलो," अरुणिमा की नींद भरी आवाज सुनकर प्रभात मुस्कुरा पड़ा।
"सोई हुई थी?" उसने प्यार से पूछा।
"हाँ, लेकिन अब जाग गई हूँ। वैसे भी आज तो दिन इतना खास है कि नींद ज्यादा देर टिकती नहीं," अरुणिमा ने धीमे से जवाब दिया।
"खास तो है, लेकिन मैं बस यही सोच रहा हूँ कि सगाई के बाद से तुम्हें देखा तक नहीं है। हर रस्म अलग-अलग हो रही थी। अब बस आज के दिन का इंतजार है, जब सबके सामने तुम्हें दुल्हन के जोड़े में देखूँगा," प्रभात ने उत्साह और प्यार भरे स्वर में कहा।
अरुणिमा उसकी बात पर हंस दी। "तुम्हारी ये बेसब्री देखकर अच्छा लग रहा है, लेकिन तुमसे बात करते हुए मुझे हमारी पहली मुलाक़ात याद आ गई।"
"मनाली वाली?" प्रभात ने पूछा।
"हाँ, वही। याद है? पहली बार जब हम मिले थे, तब हमारे पास सिर्फ हमारे यादें और अकेलापन था , उसके बाद हम दोनों ने वादा किया अगली मुलाक़ात का जो हमें हर साल मिलाते रहे। उस बर्फ से ढकी घाटी में जब हमारी बातें शुरू हुई थीं, तब क्या हमें पता था कि ये सफर यहां तक आएगा?" अरुणिमा की आवाज में एक हल्की सी उदासी और खुशी का मिश्रण था।
"तुम सही कह रही हो," प्रभात ने कहा। "वो वादों की मुलाकातें, हमें एक दूसरे के करीब लाया। और आज, बस आखिरी बार वादा करना है—जीवन भर साथ निभाने का।"
"बस यही तो खूबसूरती है," अरुणिमा ने कहा। "तुम्हें पता है, आज मेरे पास कितनी यादें हैं—तुम्हारे हर वो शब्द, हर वो पल जब तुमने अपने दिल की बात कही थी। आज से हमारी हर मुलाकात, हर याद, हर पल का नया अध्याय शुरू होगा।"
प्रभात ने हल्के से कहा, "मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि ये सब सच हो रहा है। तुम्हें मेरी दुल्हन बनते देखना अब सिर्फ कुछ ही घंटों की बात है।"
अरुणिमा मुस्कुराई। "तो अब जब इतना कम समय बचा है, तो क्यों न थोड़ा इंतजार और कर लो? वैसे भी, आज हमारी सबसे खूबसूरत मुलाकात होगी।"
"ठीक है," प्रभात ने गहरी सांस लेते हुए कहा। "बस तुम्हारा इंतजार है। दुल्हन बनकर तैयार रहना, मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ।"
"मैं तैयार रहूँगी," अरुणिमा ने प्यार से कहा और कॉल खत्म कर दी।
फोन रखते ही दोनों के चेहरे पर एक ही भाव था—प्यार, उत्साह, और अपने जीवन के नए सफर की शुरुआत का अनमोल एहसास।
दोनों परिवारों के घरों में चहल-पहल अपने चरम पर थी। अरुणिमा के घर में हल्की गुलाबी और सुनहरी थीम की सजावट की गई थी। रंग-बिरंगी झालरें और ताजे फूलों की महक पूरे माहौल को और भी खुशनुमा बना रहे थे। वहीं, प्रभात के घर पर गहरे लाल और सोने की थीम में सजावट की गई थी, जो शाही अंदाज का एहसास दे रही थी।
अरुणिमा के कमरे में उसकी सहेलियाँ और परिवार की महिलाएँ उसे तैयार करने में जुटी हुई थीं। अरुणिमा ने गहरे लाल रंग का लहंगा पहना था, जिस पर सुनहरे और चांदी के धागों से बारीक कढ़ाई की गई थी। उसके माथे पर झिलमिलाता मांग-टीका और गले में भारी हार उसकी खूबसूरती को और निखार रहे थे।
"दीदी, आप तो आज किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही," उसकी छोटी बहन जैसी दोस्त माया ने कहा।
अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "आज का दिन तो हर लड़की की जिंदगी का सबसे खास दिन होता है।"
अरुणिमा की माँ ने पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा, "बेटा, आज सिया होती तो सबसे ज्यादा खुश वही होती। लेकिन मुझे पता है, वह जहाँ भी है, तुम्हें आशीर्वाद दे रही होगी।"
अरुणिमा की आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।
दूसरी ओर, प्रभात अपने कमरे में तैयार हो रहा था। उसने हल्के क्रीम और सुनहरे रंग की शेरवानी पहनी थी, जिस पर जटिल कढ़ाई की गई थी। उसकी पगड़ी पर एक चमचमाता कलगी लगा हुआ था। रिया, हमेशा की तरह, उसे छेड़ने का मौका नहीं चूकी।
"भैया, आज के बाद आप बस जीजू कहलाएंगे, तैयार हो जाइए इस नई पहचान के लिए," रिया ने हँसते हुए कहा।
"रिया, अगर तुम्हारी शरारतें खत्म हो गई हों, तो मुझे बताना," प्रभात ने जवाब दिया।
बारात निकलने से पहले, प्रभात शेरवानी पहने हुए अपने कमरे से बाहर निकला तो उसकी बहन रिया ने मजाक में कहा, "भैया, आज तो एकदम बॉलीवुड के हीरो लग रहे हो। बस ध्यान रखना, फोटोशूट में पोज अच्छे देना!"
प्रभात मुस्कुराया, लेकिन उसकी नजरें अपनी माँ को खोज रही थीं। तभी उनकी माँ, सुमित्रा, पूजा की थाली लेकर आईं। थाली में रोली, अक्षत, दीया, और मिठाई के साथ एक नारियल रखा हुआ था। उन्होंने प्रभात को अपने पास बुलाया।
"आओ, बेटा। आज इस घर से तुम्हारी नई यात्रा की शुरुआत है। मैं तुम्हें तिलक कर रही हूँ। भगवान तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दें।" उनकी आँखों में भावुकता और खुशी का मिश्रण था।
प्रभात झुककर अपनी माँ के सामने खड़ा हो गया। उसकी मां ने उसके माथे पर तिलक लगाया, अक्षत छिड़के, और दीया घुमाया। "तुम्हारी जिंदगी में कोई अंधकार न आए," उन्होंने कहा। फिर उन्होंने मिठाई उसके मुँह में डालते हुए प्यार से थपकी दी।
इसी बीच, प्रभात के पिता, महेश, जो हमेशा अपने गम्भीर अंदाज के लिए जाने जाते थे, पास खड़े मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने कहा, "सुन बेटा, आज तिलक हो गया है। अब यह मत सोचना कि जिंदगी यूं ही आसान चलती रहेगी। अब शादी के बाद तुझे भी पता चलेगा कि पति होना क्या होता है।"
सभी लोग यह सुनकर हंस पड़े। रिया ने भी चुटकी ली, "भैया, पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं। अब तो भाभी तुम्हारी हर छोटी-बड़ी बात पर क्लास लेंगी।"
प्रभात ने मजाक में जवाब दिया, "अच्छा! तो फिर तुम्हारी क्लास लेने का काम भी मैं भाभी को ही दे दूँगा। फिर देखना, किसकी क्लास लगती है।"
सबके ठहाकों के बीच माहौल और भी हल्का हो गया।
महेश ने फिर कहा, "बेटा, मजाक अपनी जगह है, लेकिन एक बात हमेशा याद रखना। शादी जिम्मेदारी भी है और एक खूबसूरत रिश्ता भी। अपनी पत्नी का सम्मान करना और हर परिस्थिति में उसका साथ देना। यही हमारी परंपरा है।"
प्रभात ने सिर झुकाकर कहा, "जी पापा, मैं हमेशा ऐसा ही करूँगा।"
सुमित्रा ने यह सुनकर भावुक होते हुए कहा, "आज तुम इतने बड़े हो गए हो कि तुम्हारी शादी का तिलक कर रही हूँ। भगवान तुम्हारी जोड़ी को हमेशा खुश रखे।"
तभी एक चाची ने आकर कहा, "सुमित्रा, अब मिठाई हमें भी खिलाओ। सिर्फ बेटे को खिला रही हो?" यह सुनकर सुमित्रा हँस पड़ीं और सभी को मिठाई बांटने लगीं।
इस हल्के-फुल्के माहौल में तिलक की रस्म पूरी हुई। प्रभात के मन में हल्की-सी खुशी और जिम्मेदारी का एहसास था। उसने अपनी माँ और पिताजी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया।
आगे की कहानी अगले भाग में......