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द्रौपदी स्वयंवर : एक और दृष्टिकोण

19 दिसम्बर 2019

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द्रौपदी स्वयंवर : एक और दृष्टिकोण

द्रौपदी स्वयंवर का समय, पांचाल की राजधानी काम्पिल्य में सभा भरी हुई थी, विशाल सभागार की एक ओर चबूतरे पर सिंहासन पर द्रुपद विराजमान थे, उनकी दाहिनी ओर क्रम से युवराज धृष्टद्युम्न और उनके बाद अन्य राजकुमार बैठे थे, सत्यजित, उत्तमजस, कुमार, युद्धमन्यु, वृंक, पांचाल्य, सुरथ,शत्रुंजय और जन्मेजय। बाईं ओर महारानी प्रस्हति और उनके बगल में श्यामल वर्णा किंतु अनिद्य सुंदरी द्रौपदी विराजमान थीं।


शिखंडिनी अनुपस्थित थीं, वो कुछ मास पहले ही अपने जीवन के निर्णायक कार्य के लिये तपस्या करने जा चुकी थीं।


सभागार में स्वयंवर के नियमों के अनुरूप बैठक व्यवस्था की गई थी । दीवार से लगे आसन ऋषियो, मुनियों तथा स्वयंवर में भाग न लेने वालो आमंत्रितों के लिये थे। वहीं एक आसन पर कृष्ण बैठे हुए थे, जिनके आसपास के कई आसन रिक्त थे।उसके बाद भाग लेने वालों के लिये अधिकार के अनुसार रथी, महारथी ,अतिरथी और अन्य योद्धाओं के बैठने की व्यवस्था थी । मध्यभाग में एक वस्त्राच्छादित लगभग 25हाथ लंबा और उतना ही चौडा मंडप बना हुआ था। मुख्यद्वार की ओर साधारण जनता के स्वयंवर देखने की व्यवस्था की गई थी ।


द्रुपद की दृष्टि राजगुरू पर लगी हुई थी, जिनका स्वयं का ध्यान अपने सामने रखे एक जलपात्र में पानी में डूबती तांबे की घटिका पर था, मुहूर्त का निश्चय करने के लिये। जैसे ही ताम्रपात्र डूबा, राजगुरू ने सिर उठाकर द्रुपद की ओर देखा और संकेत किया, स्वयंवर का मुहूर्त आ पहुंचा था।


द्रुपद सिंहासन से उठे और उन्होंने हाथ जोड़कर आंखें बंद करके सबसे पहले अपने इष्ट का स्मरण किया, सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया ,कृष्ण की ओर देखकर हाथ जोड़े और कहना आरंभ किया, "आज यहां मेरी पुत्री पांचाल की राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर है। आप सभी उसी के लिए यहां आमंत्रित किए गए हैं। पांचाली के हाथों से वरमाला स्वीकार करने के लिए एक धनुर्विद्या की परीक्षा रखी गई है जो धनुर्धर इस परीक्षा को उत्तीर्ण करेगा वहीं द्रौपदी का पति होगा ।"


उन्होंने अपने मंत्री की ओर देखकर संकेत किया जिनके आदेश पर कुछ सेवक आगे बढ़े और उन्होंने मध्य मंडप पर स्थित वस्त्रों का आच्छादन हटा दिया। उस मंडप में मध्य में दर्पण की तरह स्वच्छ जल से भरा हुआ एक पात्र रखा हुआ था चारों खंभों से जोड़कर मध्य में ऊपर की ओर एक चक्र बना हुआ था उस चक्र में काष्ठ निर्मित एक स्वर्ण मंडित मछली बनी हुई थी। चक्र से ऊपर की ओर वायु की गति से घूमने वाला यंत्र (Anemometer) लगा हुआ था जिसकी चारों पंखुड़ियां मंडप से ऊपर की ओर निकली हुई थीं। वायु की गति से जब वह पंखुड़ियां घूमती तो साथ में चक्र और उसके साथ मछली भी।


एक किनारे पर मेज पर एक विशाल धनुष रखा हुआ था और उन्हीं के साथ कुछ बाण भी थे। सभी की दृष्टि उस मंडप से होते हुए पुनः द्रुपद के चेहरे तक पर जाकर टिक गई। द्रुपद ने आगे कहा "इस पात्र में रखे जल में ऊपर घूमती हुई मछली की प्रतिच्छाया देखकर जो धनुर्धर उसके नेत्र का भेदन करेगा, उसे ही द्रौपदी पति रूप में वरण करेगी।"


सभागार में निस्तब्धता छा गई ! इतनी कठिन परीक्षा! महाराज द्रुपद में एक ही दृष्टि में देख लिया, केवल एक ही चेहरा ऐसा था जिस पर स्मित हास्य कौंध रहा था, वह चेहरा था वासुदेव कृष्ण का। अब आरंभ हुआ स्वयंवर का एक एक कर के राजा, रथी, महारथी आते कुछ धनुष ही नहीं उठा पाते, जो उठा लेते उनसे प्रत्यंचा नहीं चढ़ती, जो प्रत्यंचा चढ़ा लेते वे बाण का संधान नहीं कर पाते ।


आखेट में अथवा शत्रु पर सामने बाण चलाना भिन्न बात होती है और नीचे गर्दन कर एक हाथ से धनुष की दिशा ऊपर आकाश की ओर भेदन करना भिन्न। उसपर लक्ष्य इतना सूक्ष्म और घूमता हुआ, असंभव।


कृष्ण जहां बैठे थे उसके पास में उनका स्वामी भक्त सारथी दारूक उपस्थित था कृष्ण ने उसे संकेत किया और वह सभागार से बाहर निकल कुछ ही देर में दारू प्लॉटर तो उसके पीछे 5 सन्यासी लंबे केश बढ़ी दाढ़ी और वल्कल वस्त्र। उन्होंने केवल नेत्रों के संकेत से कृष्ण को प्रणाम किया और दारूक द्वारा बताए गए स्थान पर जाकर बैठ गए।


स्वयंवर चल रहा था । योद्धा आते प्रयत्न करते और असफल हो कर शीश नीचे किए चल देते। यह सब चलते हुए लगभग 2 घटिका समाप्त होने को आ गई।


राजपरिवार और पांचाल के मंत्रियों,कर्मचारियों और दर्शकों के मुख पर क्रोध, दुख और पीड़ा के मिले जुले भाव सरलता से देखे जा सकते थे। सबसे क्रोधित द्रुपद थे । अंततः द्रुपद में हाथ उठाकर परीक्षा को रोकने का संकेत किया और खड़े हो गए।


" हमने अपने गुरु के मुख से त्रेता में सीता स्वयंवर की कथा सुनी है"द्रुपद ने कहा," माता सीता भूमि से उत्पन्न हुई थी मेरी पुत्री यज्ञ से उत्पन्न हुई उनके लिए तो राम आ ही गए थे" गहरी श्वास ली द्रुपद ने, "किंतु लग रहा है कि यज्ञ सेना के लिए उपयुक्त वर इस भूमि पर अब नहीं बचा, ऐसा लगता है पांचाली कुमारी ही रहेगी"


उन्होंने पूरे सभागार पर दृष्टि घुमाते हुए कृष्ण की ओर भी देखा जिनके मुख पर सदा की तरह से स्मित लास्य कर रहा था, समझ नहीं आया उसका अर्थ किंतु कुछ कह नहीं पाए। द्रुपद के यह कटु वाक्य सुनकर दुर्योधन खड़े हो गए, चढ़ी हुई भौहें, चेहरे पर क्रोध और फडकती हुई भुजाएं।दुर्योधन ने स्वयंवर में स्वयं भाग नहीं लिया था, गदा युद्ध होता तो लेते भी किंतु धनुर्विद्या...


"क्षमा करें महाराज द्रुपद किंतु भूमि धनुर्धरों से शून्य नहीं हुई है अब तक! अधिक नहीं कहना चाहता किंतु मेरे मित्र अंगराज कर्ण इसी समय इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर आप की पुत्री का पानी ग्रहण करेंगे" "उठो मित्र" दुर्योधन ने अपने समीप के आसन पर बैठे अंगराज कर्ण के कंधे पर हाथ रखा। द्रुपद के मुख पर थोड़ी शांति छलकी और वह अपने सिंहासन पर पुनः विराजमान हो गए।


कर्ण अपने स्थान से उठे और द्रुपद को प्रणाम कर वेद मंडप की ओर बढ़े तभी वहां एक मधुर किंतु आत्मविश्वास से भरी वाणी गूज गई,


"रुकिए, अंगराज स्वयंवर में भाग नहीं ले सकते"


पूरे सभागार में उपस्थित सभी की दृष्टि ध्वनि की ओर उठ गई। प्रत्येक चेहरे पर आश्चर्य का भाव किंतु दुर्योधन और उसके आसपास बैठे कई चेहरे को दें क्रोध से रक्तिम हो उठे। दुर्योधन ने क्रोधित स्वर में प्रश्न किया "कुमारी यज्ञ सेना यह परीक्षा है और जो विजयी होगा वही पुरस्कृत होगा, आप कैसे अंगराज को मना कर सकती हैं?"


"युवराज दुर्योधन यह परीक्षा नहीं स्वयंवर है, मेरी वरमाला कोई पुरस्कार नहीं है। स्वयंवर का अर्थ होता है कि कन्या को अधिकार हो कि वह किसे इस परीक्षा में सहभागी होने दे या नहीं। स्त्री कोई निर्जीव वस्तु नहीं होती और मैं नहीं चाहती कि मेरी वरमाला किसी सूत पुत्र के गले में पड़े।"


पूरे सभागार में जैसे सभी को लकवा मार गया हो कर्ण जहां तक पहुंचे थे, वहां ठिठक गए, एक दृष्टि द्रौपदी पर डाली और शीष नीचे किए बिना दोबारा किसी की ओर दृष्टिपात किए बाहर जाने के उद्देश्य से मुख्य द्वार की ओर बढ़ गए। " रुको मित्,र जहां हमारे मित्र का सम्मान नहीं वहां हमारा भी ठहरना उचित नहीं"। दुर्योधन भी उठे और एक तीक्ष्ण दृष्टि द्रुपद और पांचाली पर डालकर अपने साथियों के साथ बाहर की ओर बढ़ गए।

ये और इसके आगे की भी कथा सभी को पता है.....

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कुछ समय काल पश्चात्, इन्द्रप्रस्थ के अपने कक्ष के एकांत में बलिष्ठ शरीर किंतु कोमल हृदय के स्वामी भीमसेन ने पूछ ही लिया,

"विवाह के दिन से ही एक प्रश्न मुझे परेशान करता आया है पांचाली, यदि कष्ट न हो तो पूछ लूं?


कृष्ण से ही मिलती जुलती मुस्कान आ गई द्रौपदी के चेहरे पर, भीम को उस समय ये समझ में आया कि द्रौपदी को कृष्णा क्यों कहा जाता है।


"जानती हूं देव, मैने अंगराज कर्ण को भरी सभा में अपमानित क्यों किया, सही है न! "


" सत्य यही है कि इस परीक्षा में अंगराग उत्तीर्ण हो जाते और मेरा विवाह उनसे हो जाता, एक अर्धपुरुष से"

"अर्धपुरुष "

"एक स्त्री के दृष्टिकोण से देखें देव, अच्छा मेरे कुछ प्रश्नों के उत्तर दें,

पुरुषार्थ और वर्ण कितने हैं ?"

"चार, धर्म अर्थ काम मोक्ष,

विप्र, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र"

"कर्ण ने धनुर्विद्या सीखकर किस वर्ण का आश्रय लिया? "

"क्षत्रिय "

"क्षत्रिय के स्वधर्म के प्रति कर्तव्य और गुण क्या होने चाहिए? "


"रक्षा, राज्यवृद्धि, अनुशासन, अयाचन, बाहुबल, वीरता, साहस, दूरदृष्टि, आत्मसम्मान"

"कर्ण अंगराज कैसे बने? "

"दुर्योधन ने बनाया "

"राजा बनने के पश्चात कितने राज्य जोडे उन्होने अंग में? "

"...................."

"राजकुमारों का अध्ययन पूरे होने की प्रतियोगिता में, जहां केवल राजपरिवार के ही पुत्र अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, कर्ण का जाने का हठ उचित नहीं था। उन्होने धनुर्विद्या सीखी थी, हस्तिनापुर या किसी भी अन्य राज्य की सेना में सम्मिलित हो सकते थे, स्वयं कृष्ण उन्हें श्रेष्ठ धनुर्धर मानते हैं, योग्यता थी किंतु साहस नहीं किया, किसी सेना में सम्मिलित होकर युद्धभूमि में स्वयं को प्रमाणित करने की वीरता नहीं थी उनमें।"

"किंतु द्रौपदी"

"रुकिये देव, प्रश्न पूछा है तो पूरा उत्तर भी सुन लें।


ब्राह्मण ज्ञान से, क्षत्रिय बाहुबल से, वैश्य धन से तथा शूद्र मेहनत से होते हैं,इन के बिना वर्ण महत्वहीन हैं ।

अर्जुन से स्वयं को बराबर प्रमाणित करने की दौड में कर्ण ने दुर्योधन की विषाक्त मित्रता स्वीकार कर ली, ये उनकी दूरदृष्टि है, अंगराज ने दान ले लिया राज्य का,क्षत्रिय ऐसा कुछ भी उपयोग नहीं करता जो बाहुबल से न कमाया हो, याचक नहीं होता।

वे अंग के राजा हैं, रहते हस्तिनापुर में हैं, सुंदर अनुशासन!"

व्यंग्य भरी हंसी तैर गई पांचाली के चेहरे पर।


"राज्यवृद्धि की बात न ही करें, सुना है उनके द्वार से कोई खाली नहीं जाता, बहुत दान करते हैं, किस धन का? जो स्वयं ने दान लिया है?"


"ये हो गए दो पुरुषार्थ, चार से बनता है पुरुष, इसीलिये मैने कर्ण को अर्धपुरुष कहा। मैं नहीं विश्व की कोई स्त्री अर्धपुरुष से विवाह नहीं करना चाहेगी।"


नारी बेहद दयालू होती है देव, किंतु संतान के लिये, अपने पति से उसे प्रेम, अधिकार, सुख, रक्षा, सम्मान और धन सभी इच्छित होता है ।"


"किंतु सूतपुत्र!" भीम ने कहा

"मुझे कृष्ण ने बताया था, कर्ण के मन मेंअपने जन्म से क्षत्रिय न होने का बहुत दुख और स्वजाति से लज्जा का भाव है, उस दिन काम्पिल्य में विभिन्न देशों के राजा महाराजा उपस्थित थे और निकट ही उनकी सेनाएं भी, यदि मैं ये सब वहीं कह देती तो चोट कर्ण से अधिक दुर्योधन के अहंकार को लगती जिसका अर्थ होता भयंकर युद्ध, जिसमें पांचाल और अन्य स्थानों से आए सामान्य नागरिक मारे जाते या मुझे कर्ण से विवाह करना होता, दोनो स्वीकार्य नहीं थे अतः तीसरा मार्ग था मर्म पर चोट तो वही किया।


यही राजनीति है देव, यदि सौ की सुरक्षा के लिये एक को दांव पर लगाना पडे तो संकोच नहीं करना चाहिये। और यही धर्म भी है।"


भीमसेन निरुत्तर हो चुके थे।


https://hindi.pratilipi.com/story/ohofoxpuivdc?utm_source=android&utm_campaign=content_share से साभार

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जय हिंद।राष्ट्रीय स्वतंत्र समाचारों के मंच की आवश्यकता।राष्ट्र की व समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। विश्वसनीय समाचारों की तथा काम से कम एक समाचार एजेंसी, एक नियमित समाचार पत्रिका साप्ताहिक नियमित हो तो अतिउपयोगी कारण पेड मीडिया तथा पक्षकारों का पत्रकार के रूप में दुष्प्रचार व झूठ का नियमित तौर पर प्र

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जनसंख्या नियंत्रण

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नरसिंह वाणीप्रतिदिन कि तरह आज भी रक्त पत्र मोदी जी को परंतु कोई प्रतिक्रिया ,हिन्दुओ अभी समय है जाग जाओ अन्यथा नष्ट हो जाओगे| यह निर्लज्ज व्यवस्था अंधी बाहरी है। नीति में परिवर्तन करें। उचित है की पोस्टकार्ड PMO को अखिल भारतीय स्तर पर भिजवाया जाय जिसका प्रभाव सम्भव है। खुला पुस्तकार्ड मूल्य कम होने

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आओ दिवाली मनाये दिल्ली में।आमन्त्रण सम्पूर्ण दिल्ली वासियों को जो सुप्रीम कोर्ट के पटाखों के दिवाली उपयोग के निर्णय से व्यथित हैं। और क्रोधित हैं।सुप्रीम कोर्ट नहीं बंधुओं। हमें उन दुष्ट तथाकथित न्यायाधीशों के मूल निवास पर पटाखों का उपयोग या दीपावली मनाने में विरोध प्रकट किया जाना चाहिए।ज्ञात रहे लो

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# प्रवीण कुमार तोगड़िया

16 जनवरी 2018
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# प्रवीण कुमार तोगड़िया || जो प्रवीण तोगड़िया कल तक ‘हिंदू आतंकी’ थे, आज उन्हीं की फ़िक्र में हैं गुजरात के कंग्रेस नेता , @HardikPatel_ @AcharyaPramodk जैसे लोग वाकई में देश की राजनीति तो बदल ही रही है।जिस बीजेपी के शासन काल में #साध्वी_प्रज्ञा और #कर्नल_पुरोहित जिनको कई सालों से कांग्रेस ने बिना क

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राजपूतों का सम्मान।। लोकतंत्र व संविधान का अपहरण।

19 फरवरी 2018
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#राजपूताना राजपूत राजाओं का इतिहास क्या कहना।। कहां से शब्दों को लिखा जाय राजपूतों योद्धाओं के राजपुताना का इतिहास ।।युद्ध 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के हो या मुगलो से मुस्लिम सुल्तानों से युद्ध। "राजपुताना, असँख्य राजपूत वो जो मिट्टी/क

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जाति , जातिवाद, राष्ट्र , राष्ट्रवाद , देह ,देहवाद , जाति का विरोध अज्ञान और असामाजिकता पर टिका है

19 अप्रैल 2018
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जाति , जातिवाद, राष्ट्र , राष्ट्रवाद , देह ,देहवाद -----------------------------------------------------व्यक्तियों ,समूहों ,समाजों के जीवन में विवेक और भ्रांतियों आते जाते

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ब्राह्मण विरोध के लिए रचा जा रहा झूठ सहन करना पाप है

19 अप्रैल 2018
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ब्राह्मण विरोध के लिए रचा जा रहा झूठ सहन करना पाप है --------------------------------------------------------------------ब्राह्मणों पर विशेष कर महाराष्ट्र और कुछ दक्षिण भारत मे झूठ से भरे किस्से ,नाटक ,विडियो ,फिल्म रच कर निराधार आक्रमण हो रहे हैं ,काल्पनिक आधार पर प्रतिशोध की आग जलाई जा रही है , इस

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महाकाली-चेतना बकाया नही रखती।

21 अप्रैल 2018
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साभार आलोक भारती जी की वाल से पूर्णतः पढ़ने के लिए. .. अक्षरज्ञान पाने के बाद यदि ये नहीं पड़ा तो शेष सभी पड़ने का क्या लाभ क्या अनुभूति क्या आनंद..सभी मित्रों से निवेदन हे एक बार अवश्य पढ़े... वि

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|| हिन्दुराष्ट्र की नीवं निर्माण ||

4 मई 2018
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आपको क्या लगता है ये संघ लोक सेवा आयोग में 51 मुसलमानों का चयन अचानक से हो गया. नहीं, ये उनकी अपने कौम के प्रति वफादारी की खुशबू है जो अब जाकर चमन में बिखरी है. आप जरा एकबार इन्टरनेट पर "जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया" सर्च करके देखिये. इस संस्था ने बड़ी-बड़ी बातें नहीं की, बल

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# सीताजी का # त्याग # # सिया #के #राम

21 सितम्बर 2018
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राम से इतनी लड़ाई क्यों है ?भारतीय समाज को तोड़ने वाले या धर्म विरोधी हमेशा राम पर ही हमला क्यों करते है ?उसी के साथ यह भी कि राम के प्रति दृढ़ता क्यों है समाज में।राम रूपी हवा चली तो ऐसा लगा क्रांतियां घटित हुई अभी 90वे के दशक में रविवार को कर्फ्यू जैसा वातावरण होता था रामायण देखने के लिये ।राम कुछ अन

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सेक्स एजुकेशन

24 सितम्बर 2018
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यह एक तो विषय ही नहीं है जिस पर चर्चा की जा सकती है, यह केवल एकमात्र पश्चिम समय को नष्ट करना है है और युवाओं और समाज को मुख्य विषय और राष्ट्र आवश्यकताओं के हटान है।यह सिर्फ नींद की शिक्षा और भोजन किस प्रकार किया जय की तरह है। क्या किसी को यह जानने की ज़रूरत है कि कैसे सोना है?नेताओं और

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द्रौपदी स्वयंवर : एक और दृष्टिकोण

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भ्रांति व तथ्य शास्त्र सम्मत स्वंय भगवान श्रीकृष्ण द्वारा, भागवत गीता यथारूप से,,,।

17 फरवरी 2020
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तथ्य : गुरु भगवान नहीँ है, समान भी नहीं है जैसा कि कबीर के शब्दों का आधार बनाकर हिंदुओ को मूर्ख बनाने का क्रम जारी है। शास्त्र या ई स्वंय शास्त्र स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण जी ने कुरुक्षेत्र में भागवत गीता के संवाद में इस प्रश्न को गुरु पर व व्यक्ति की योग्यता व स्थिति को स्प

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पोस्टमार्टम सच्चर कमिटी या मुस्लिम कमेटी # 9 दिसंबर 2006 जन्मदिन Sonia Gandhi. Dec 09, 1946. Lusiana. Indian politicianमनमोहन सिंह तत्कालीन प्र्धानमंती का वक्तव्य की भारत के संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक़ है धयान दीजिये अल्पसंखयक नहीं मात्र मुस्लिम इसकी

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हिन्दू इकोनॉमी, मन्दिर साध्वी ऋतम्भरा आचार्य धर्मेंद्र जी को सन्त व साधुओं को अखाड़ों को साथ लेकर प्रवीण तोगड़िया, विनय कटियार विश्व हिंदू परिषद सनातन व हिन्दुहितैषी संगठनों हिन्दू महासभा व हिन्दू चेतना विद्वानों को प्रेरित होकर सरकारी नियंत्रण से मन्दिरो की मुक्ति व एक स्वायत्त स्वतंत्र देवस्थान बोर

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मन्दिरो का सोना

20 मई 2020
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महाराष्ट्र कॉंग्रेस के वरिष्ठ नेता #पृथ्वीराज चव्हाण ने मन्दिरो का सोना मांग का बयान देश मे गरमा गरम विवाद है।#राष्ट्रवादी #वामपंथी #कांग्रेसियों व #नक्सलियों आधुनिक #समाजवादियों की #नूराकुश्ती अजब गजब तमाशा देशभरबके हिंदुओ कोंबक पक्ष विपक्ष बनाकर #हिन्दू_मुस्लिम की राजनीति का दंगल सजा है।#बॉलीबुड क

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#अयोध्या के बाद #काशी_मथुरा विवाद?

10 अगस्त 2020
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#अयोध्या के बाद #काशी_मथुरा विवाद?सुप्रीम कोर्ट :मस्जिद इस्लाम का हिस्सा नहींहिन्दुओं की धार्मिक आस्था मौलिक संवैधानिक अधिकारसुप्रीम कोर्ट : हिन्दु नागरिको को भी न्याय मांगने का संवैधानिक मौलिक अधिकारPlaces of Worship (Special Provisions) Act, 1991 असंवैधानिक कानून जो लोकतंत्र व् संविधान के द्वारा प

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#आत्मनिर्भर_ब्राह्मण vs #आत्मनिर्भर_भारत।।

10 अगस्त 2020
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#आत्मनिर्भर_भारत vs #आत्मनिर्भर_ब्राह्मण।।#ब्राह्मण समाज के समक्ष उपस्थित भगवान श्रीराम की कृपा से राजनीति पर नियंत्रण करने का अवसर।5 अगस्त 2020 अयोध्या जी मे #राममंदिर_निर्माण कार्यारंभप्रतिक्रिया परिणाम भविष्य की चुनौतियां व अवसर आत्मनिर्भरता व हिंदुओ के शक्तिशाली होने का ।ब्राह्मण समाज संगठनों के

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