भारत का स्वर्णिम इतिहास :
एक् ग़लतफ़हमी का पूरा विश्व शिकार था कि पश्चमी देश शुरू से ही धनाढ्य रहा है। और हमको ये बताया गया है कि भारत एक आध्यात्मिक और धर्म प्रधान देश था लेकिन अर्थ प्रधान देश कभी भी नहीं था । जबकि 2000 सालो से ज्यादा वर्षों तक भारत विश्व कि एक सबसे बड़ी अर्थशक्ति थी , ये नई रेसेयरचेस से पता चल रहा है । भारत सोने की चिड़िया नहीं , मैनुफेक्चुरिंग की बहुत बड़ी अर्थ शक्ति थी ।
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इस ग़लतफ़हमी को एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट ने तोडा । उसका नाम था पाल बैरोच । 80 के दशक में ,जिसके रिसर्च को पॉल कैनेडी ने अपनी ने अपनी पुस्तक "The Rise and fall of great Powers" उद्धृत किया। बरोच ने कहा कि झूठ है।पूर्व में पश्चिमी देश धनी नहीं गरीब थे। बल्कि सत्य इसके विपरीत है धनी देश पूर्व में थे औपनिवेश के पूर्व।
एक इतिहासकार हैं Jack Goldstone George Mason University के जिन्होंने 2009 में हायर एजुकेशन में चलने वाली एक बुक लिखी The Rise of the West in World History . 1500-1850.
एक चैप्टर है उसमे "The World Circa 1500 : When Riches Were in the East". उसके introduction में वो लिखते हैं कि 1500 के आसपास यूरोप धनी देशों में से नहीं था।यद्यपि उन्होंने कुछ तकनीकों में मास्टरी प्राप्त कर ली है और कुछ को उधार लिया है जैसे घडी ,बारूदी हथियार और सामुद्रिक यात्रा । लेकिन जब उन्होंने दूसरे देशों जैसे मिडिल ईस्ट दक्षिण पूरव एशिया और यहाँ तक कि नया संसार (अमेरिका) की यात्रा की तो वे वहां के Wealth Commerce aur productive skill को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए।
उस समय एशिया का कृषि उत्पाद यूरोप की तुलना में बहुत ज्यादा था इसलिए #महीन_कारीगरी यूरोप के मुकाबले काफी बेहतर था ।इसलिए वे विविध प्रकार के उत्पाद पैदा करते थे जैसे कि सिल्क कॉटन फैब्रिक पोर्सलीन कॉफी चाय और मसाले , जोकि यूरोपेन्स की आवश्यकता थी।कोलुम्बुस और अन्य लोगों की सामुद्रिक अभियान जिज्ञासु और मिशनरी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही उन्होंने भारत और चीन की धन संपत्ति तक अपनी पहुँच बनाने की कोशिश की।
कोलुम्बुस के समय काल तक भारत और चाइना ने पश्चिम के देशों में अनुपलब्ध लक्ज़री फैब्रिक का उत्पादन शुरू कर दिया था : फाइन कॉटन।
इस बात पर आज विश्वास भले न हो परंतु 18वीं शताब्दी तक यूरोपिअन आज जिस कॉटन की शर्ट अंडरर्गारमेंट और जीन्स पहनते हैं वो सिर्फ #एशिया में मिलता था।
#ब्रिटिश कॉटन के कपडे यूरोप के लिए बहुत भारी मात्रा में #इम्पोर्ट करता था।यहाँ तक कि लेट 1700 में जब ब्रिटिश मशीनों के द्वारा कॉटन स्पिनिंग इंडस्ट्री तैयार कर रहा था तो वो इस बात से भयभीत थे कि क्या वो एशिया के महीन कॉटन फैब्रिक की गुणवत्ता वाला इन मशीनों से बना भी पाएंगे कि नहीं।
Finally, Asian lands were also the source of precious spices, ointments, and perfumes—mainly pepper, but also cinnamon, cloves, cardamom myrrh, and frankincense. Somewhat later, Arabia, India, and China became the source of Europeans’ daily tea and coffee, but that trade only
developed over 100 years after Columbus’s voyage.Page 13
ज्यादातर #एशियाकासमाज 1500 से शताब्दियों पूर्व के कृषि उत्पाद और विकसित टेक्नोलॉजी के कारण #एऔरोपीय से बहुत #धनी थी।
1750 तक यूरोपियन लोग पूर्व के धन वैभव technological स्किल और सुन्दर तरीके से बनाये गए उत्पादों की ओर आस्चर्य जनक तरीके से देखता था।
यहाँ के ब्यापरिक ज्ञान हेतु अंग्रेजो ने 1857 के पूर्व अधिकारिओ को निर्देशन में भारतीय परिवेश का सूक्ष्म अधययन करवाया।यह सर्वे 1857 के पूर्वे से लेकर 1857 तक है। इसमें टेक्स, परिवहन, निर्माण, से लेकर आयात तक के सारे बिन्दुओ का सिल सिले वॉर ब्यौरा है।इसमें साMअजिक और आर्थिक अध्ययन एक महत्त्व पूर्ण आयाम हो सकता है। जितना भी मैं देख सका ,वह एक आश्चर्य जनक है।उस समय का किसान आज की अपेक्षा बहुत संपन्न था।
यहाँ की रिफाइंड शुगर पुरे दुनिया में जाती थी।
पूर्वी यूपी का किसान ,अपने मॉल को नदियो के किनारे स्थित ब्यापारी को मॉल दे देता था वह नाव के द्वारा उसको calcutta पोर्ट से दुनिया के देशो को पंहुचा देते।इस प्रकार से यही प्रक्रिया नील, सोरा, cotton, आदि प्रोडक्ट्स पर भी अपनायी जाती। कुछ commission काट कर ,किसान को international मार्किट का प्रॉफिट प्राप्त होता था।एक बड़ी बात ऐ भी थी कि इस sugar ब्यसाय में ,प्रक्रिया में,सब से ज्यादा ज्ञान दलित के पास था।वही backbone था।इसलिए गिरमिटिया प्रथा जो गन्ने की खेती हेतु भेजा गया था ,सर्वाधिक ,करीब95℅ चमार और दूसरी अन्य जातिया थी। शुगर की monopoly को मिटाने के लिए अंग्रेजो ने पुरी ताकत लगा दिए,,, और मिटा के दम लिए।)
tevernier के Pauzacour अर्टिसन्स और Bernier के शूद्रों का काम artisan और laborers के रहस्य को इस इतिहासकार की कलमों से आँके तो आपको पता चलेगा कि न जाने कितने वर्षो से ( यहाँ तक कि 0 AD के पूर्व से ) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे एक वर्ग की कमर मात्र 150 सालो में ब्रिटिश हुकूमत ने इस कदर तोड़ दिया कि भारत की जीडीपी 25 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत बचती है और 700 प्रतिशत लोग बेघर बेरोजगार होतें है ।
इन्ही को #एनी_बेसेंट ने ने ब्रिटेन के #One_tenth_submerged की तुलना भारत के #One_sixth_generic_depressed class से करती हैं।
80 के दशक में जब पॉल बैरोच ने ये घोषणा की कि पाश्चात्य देश नहीं बल्कि पूर्वी देश धनी थे तो उन देशों के लोगों के नेतृत्व के अभिमान को चोट पहुंची / OECD नामक देशों के एक समूह ने ANGUS MADISON नामक एक प्रसिद्द इकोनॉमिस्ट को उन्होंने इस विषय पर अनुसन्धान करने को कहा , और उसके लिए रेसेर्चेर कि एक बड़ी टीम तैयार की / ANGUS मैडिसन ने २००१ और २००३ में अपना अनुसन्धान खत्म किया और 2001 में The World Economy : A Mellinial Perspective 2003 में The World Economy :Historical Statistics ...प्रकाशित हुयी । गूगल पर फ्री डाउनलोड उपलब्ध होनी चाहिए ।
(उसी केवPage 23 .-26) भारत में सत्ता हस्तारन्तरित करने के इंडिया कंपनी के नौकरों ने देशी शासको के धन संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया । उनके शासन काल में 1757 से 1857 तक भारत प्रतिव्यक्ति औसत आय घट गयी जबकि ब्रिटेन को बहुत ज्यादा लाभ मिला ।
1820 से 1913 के बीच ब्रिटिश percapita इनकम बहुत अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी , लगभग 1700 से 1820 के बीच जो इनकम हुयी उसका तीन गुना ।
ब्रिटिश ने भारत साहित्य सभी कोलोनोयों पर फ्री ट्रेड कि नीति लगाई
East India कंपनी के अफसरों के अंदर , जोकि भारत के 1757 से 1857 के बीच में भारतीय समाज के अंदर " Benthamite Radicalism " का प्रचार प्रसार करते थे परन्तु 1857 के विद्रोह के बाद इस प्रवित्ति पर रोक लग गयी ।
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अब यूरोपियन सभ्यता के कुछ मुख्य और खास राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक इतिहास के बारे में अँगुस Maddison के मुहं से -पहली शताब्दी से दसवी शताब्दी तक --
(१) पहली और दूसरी शताब्दी में रोमन अंपायर अपने चरम पर था ,स्कॉटिश बॉर्डर से Egypt तक , लगभग मिलियन पापुलेशन यूरोप में ,२० मिलियन वेस्ट एशिया , और 8 मिलियन नार्थ अफ्रीका , का एक विशाल राजनैतिक सत्ता । इस साम्राज्य में लगभग ४० ००० mile की पक्की सड़क और ५ प्रतिशत शहरी जनता जिसका कि सेक्युलर कल्चर हुवा करती था / सिल्क और मसाले एशिया से रेड सी से Egypt के जरिये लाया जाता था ।
(२) रोमन साम्राज्य मुख्यः डकैती (Plunder ) गुलामी (Enslavement ) और सैनिक ताकत के दम पर चलाया जाता था । 285 में DIOCLETION पूर्वी और पश्चिमी रोमन साम्राज्य में बंटवारा कर दिया । पशिमी रोमन साम्राज्य मुख्यतः ताकत के दम पर लोगों के ऊपर बर्बरता पूर्वक राज्य करता था ।लेकिन जब लोगों ने विद्रोह कर दिया तो सारा सिस्टम कोलॅप्स कर गया ।
(३) ५वॆ शताब्दी तक रोमन साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया / गॉल कार्थेज और इटली का ज्यादातर भाग पर अशिक्षित और बर्बर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया । लोग ब्रिटेन को छोकर भाग खड़े हुए । अंतिम झटका तब लगा जब अरब लोगों ने Egupt नार्थ अफ्रीका स्पेन cicily ज़रिए औ पलेस्टाइन पर ६४०- ८०० AD के बीच में कब्ज़ा कर लिया ।
(4)१० वीं शताब्दी आते आते सारी राजनैतिक सत्ता छीन भिन्न हो गयी शहरी सभ्यता ख़त्म होकर ग्रामीण सभ्यता में बदल गयी । पशिमी यूरोप नोटः अफ्रीका और एशिया के बीच के सारे व्यापार िक सम्बन्ध खत्म हो गए । बेल्जियन हिस्टोरियन PIRENNE ने लिखा कि " सोने का बनना बंद हो गया ,व्यापार और व्यापारी ख़त्म हो गए , आम आदमी न लिख सकता था न पढ़ सकता था ।
1000 - 1500 अड़ के पशिमी यूरोप बीच इस स्थिति से उभरता है । इस दौरान पशिमी यूरोप में भयानक जनसँख्या विस्फोट होती है , शहरी जनसँख्या में शून्य से बढ़कर ६ प्रतिशत की ग्रोथ होती है । खेती और कॉमर्स में सुधार होता है । कृषि उत्पाद का मुख्या अंश कपड़ा (ऊनी ) बनाने में , वाइन और बियर बनाने में उपयोग होता था । इसके साथ साथ पशुपालन में भी सुधार होता है । उन के व्यवसाय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करता है और चीनी उत्पादन कागज बनाना और प्रिंटिंग व्यवसाय में उन्नति होती है ।
राष्ट्र स्टेट सिस्टम का जन्म होता है फ्रांस और इंग्लैंड के बीच १०० साल का युद्ध (१३३७-१४५३ अंतिम युद्ध नहीं होता लेकिन इसके बाद दोनों राष्ट्रों कि एक अलग पहचान बनना शुरू हो जाती है ।
माधबेंद्र कुमार Tribhuwan Singh जी, मैं पूरी तरह शॉक्ड हूं। ऊपर आपने जो आर्थिक तथ्य दिया है, उसके बारे में मुझे पहले से पता था। आधुनिक इतिहासकार से इतर अर्थशास्त्रियों ने इस पर ज्यादा छानबीन की है। बाद में आर्थिक इतिहास लेख न की एक शाखा भी फूटी। पर, यकीन नहीं होता कि इतना बड़ा खेल आखिर हुआ कैसे। ऐसा नहीं है कि इतिहासकार इन तथ्यों से अंजान होंगे। तो, क्या सच्चाई इस लिए छुपाई गई, ताकि प्राचीन भारत पर दी गई उनकी स्थापनाएं रद न हो जाए। या और भी गहरी कोई चीज है।
ब्रिटेन के बारे में Angus Maddison ..पेज ९१ - ९८
(१) 1000 से 1500 के बीच ब्रिटेन की जनसँख्या वृद्धि और आय पशिमी यूरोप की तुलना में बहुत धीमी थी / ११वॆ शताब्दी से १५ शताब्दी के मध्य ब्रिटेन की कोई खास राष्ट्रीय पहचान नहीं थी (AMBIGUOUS ) ।
शाशन करने वाले लोग राजा और उसके Elete अन्ग्लोफ्रेन्च वॉर लार्ड हुवा करते थे जिनकी आय का श्रोत लड़ाई करके इलाकों पे कब्ज़ा करके होती थी । राज्य की आमदनी मुख्यतः इन सामंती वॉर लॉर्ड्स के द्वारा शासन को भेजा गया धन होता था ,साथ में गुलाम किसान ... भी उनकी आय के श्रोत थे।
इस दौरान कुछ व्यापारिक और राजनैतिक सत्ता में वृद्धि भी हुय। उनके व्यापर में अच्छी वृद्धि हुयी । १४वॆ शताब्दी में इंग्लिश को मुख्या भाषा घोषित किया गया , उसके पहले राजा के न्यायलय में फ्रेंच ही मुख्य भाषा थी ।
(२) 15 वीं शताब्दी से १७वॆ शताब्दी के अंत में ब्रिटेन की जनसँख्या ४ गुना बढ़ी । एवरेज लाइफ टाइम की आयु सुधरी और कोस्टल शिपिंग के कारण अनाज के इन्तिजाम में सुधार होने के कारन सूखे से होने वाली मौतों में कमी आयी
(२) 1500 से 1700 के बीच ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति आय दर में दुगुना वृद्धि हुयी
(३) 1760 में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री में बहुत अच्छी ग्रोथ हुयी / उसके पहले 150 वर्षों में कॉटन के कपडे और घरों के फर्नीचर का सामन भारत से इम्पोर्ट होता था ।
(४) 1774 और 1820 के बीच कच्चे कॉटन का इम्पोर्ट २० गुना बढ़ गया और इन इन टेक्सटाइल मिलों में जहाँ 1770 में लगभग न के बराबर लोग काम करते थे , वहीँ 1820 तक सम्पूर्ण लेबर फ़ोर्स का छ प्रतिशत से ज्यादा लोग रोजगार प्राप्त करते हैं । कॉटन के कपड़ों का एक्सपोर्ट जो 1774 में मात्र दो प्रतिशत रहता है वो 1820 में बढ़कर 62 % हो जाता है ।
अब इस बात को समझिए क़ि जब अँगुस मैडिसन ये डेटा पेश करते हैं क़ि १७५० तक भारत की जीडीपी विश्व क़ि जीडीपी का 0 AD से 1750 AD तक लाघग 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ,जबकि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोंनों मिलकर मात्र 2 प्रतिशत जीडीपी के हिस्सेदार रहते हैं । जीडीपी का मतलब सकल घरेलु उत्पाद , तो उस उत्पाद का उत्पादक भी होगा । मशीनीकरण का युग नहीं था इस लिए हाँथ से हर घर और गावं में ये उत्पाद बनाये जाते थे । तो उनके उत्पादक वही हुए न जिनको टैवर्नियर PAUZACOUR के नाम से बुलाता है और वेर्निएर अर्टिसन के नाम से ।
1900 आते आते ब्रिटिश लूट और उसकी शाजिशन भारतीय उद्योग को नष्ट करने की नीतियों के कारण भारत क़ि हिस्सेदारी मात्र 2 प्रतिशत बचती है , और ब्रिटेन और अमेरिका मिलकर 42 प्रतिशत क़ि जीडीपी के हिस्सेदार बनते हैं , तो स्थिति पूरी तरह upside down हो जाती है ।
1760 में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री में बहुत अच्छी ग्रोथ हुयी । उसके पहले 150 वर्षों में कॉटन के कपडे और घरों के फर्नीचर का सामन भारत से इम्पोर्ट
होता था ।
(४)
1774 और 1820 के बीच कच्चे कॉटन का इम्पोर्ट २० गुना बढ़ गया । और इन इन टेक्सटाइल मिलों में जहाँ 1770 में लगभग न के बराबर लोग काम करते थे , वहीँ
1820 तक सम्पूर्ण लेबर फ़ोर्स का छ प्रतिशत से ज्यादा लोग रोजगार प्राप्त करते हैं । कॉटन के कपड़ों का एक्सपोर्ट जो 1774 में मात्र दो प्रतिशत रहता है वो 1820 में बढ़कर 62 % हो जाता है।
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इस कथन को ध्यान से पढ़ें और समझने क़ि कोशिश करें क़ि इसका अर्थ क्या है ?
अब जब इसी बात को पॉल बरोच कहता है क़ि भारत में 1750 से 1900 के बीच 700 प्रतिशत पैर कैपिटा deindustrialisation होता है , यानि जो लोग हजारों सैलून से अपनी तकनिकी ज्ञान के कारन इस देश की जीडीपी का आधार रहें हो , वो बेघर और बेरोजगार हो जाते हैं ।
इस तथ्य की पुस्टि कार्ल मार्क्स भी करता है ।
कार्ल मार्क्स के 1853 के न्यूयॉर्क ट्रिब्यून में छापे लेख से उद्धृत एक लेखांश -
अब जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने भूतपूर्व शाशकों से फाइनेंस और वॉर का विभाग तो अपने जिम्मे ले लेती है ,लेकिन जनता के देखरेख का दायित्व लेने से इंकार कर देती है । ईसलिए कृषि क़ि दुर्दशा होने लगती है । लेकिन एशिया के साम्राज्यों में आम बात है क़ि एक शासक के समय यह स्थिति बिगड़ती है , परन्तु दूसरे शासक के आने पर सुधार जाती है । जैसे यूरोप में कृषि मौैसम के हिसाब से बिगड़ती सुधरती रहती है , वैसे ही वहां (भारत में ) सरकारों के बदलने पर कृषि का यही हां;ल होता है । इसलिय्रे कृषि क़ि दुर्दशा से भारतीय समाज को उतने खस्ता हाल नहीं हुयी जितनी क़ि एशियाटिक एनल्स में दर्ज अन्य महत्वपूर्ण बात से हुयी । प्राचीन काल से ही भारत में चाहे जो भी राजनैतिक परिवर्तन हो ,उसका असर वाहन के समाज पर कभी नहीं पड़ा है , सिवा 19वॆ शताब्दी के प्रथम दशक को छोड़कर (1810 ) । अनंतकाल से हैंड लूम और स्पिनिंग व्हील और स्पिनर्स और वीवर्स क़ि फ़ौज इस समाज क़ि धुरी हुवा करता है , और यूरोप उस भारतीय श्रम से उत्पन्न शानदार टेक्सटाइल के बदले उनको महंगे सोना चंडी देता आया है , जिनके अंदर इन अभूषणों के के प्रति इतनी लगाव है क़ि गरीब से गरीब तबका जो लगभग नंगा रहता है वो भी कान में सोने क़ि बलि या गले में एक आभूषण जरूर पहनता है । औरतें और बच्चे अक्सर सोने या चांदी के भारी भारी ब्रेसलेट (बाजूबंद ) या अंकलेट अ(गोड़हरा ) अवश्य पहनते हैं । ये ब्रिटिश आक्रांतकर्ता थे जिन्होंने भारतीय हैंडलूम को बंद करवाया और स्पिनिनिंग व्हील को नष्ट किया ।इंग्लैंड ने पहले यूरोपियन मार्किट से भारतीय कॉटन को बाहर किया फिर , फिर इसने उल्टा भारत को कॉटन सप्लाई करना शुरू किया , यानि कॉटन की मदर कंट्री को ही कॉटन देने का काम । 1818 से 1836 ग्रेट ब्रिटेन से उल्टा को भारत ही कॉटन निर्यात 1 से बढ़कर ५२०० गुना हो गया । जहाँ १८२४ में भारत को ब्रिटिश कपड़ों क़ि मात्र १'०००'००० गज था , वो १८३७ में बढ़कर ६४'०००'०००' गज हो जाता है , लेकिन उसी समयकाल में ढाका की जनसँख्या १५०,०००, से घटकर मात्र २०.००० बचती है । किसी समय फैब्रिक के लिए मशहूर कसबे की गिरावट अंतिम कील नहीं थी , अंतिम कील ब्रिटेन की स्टीम और साइंस ने ठोंका , जिससे हिन्दोस्तान का , कृषि और मैन्युफैक्चरिंग का सम्बन्ध ही ख़त्म हो गया ।...............................................................Written: June 10, 1853;
First published: in the New-York Daily Tribune, June 25, 1853;
Proofread: by Andy Blunden in February 2005.
In writing this article, Marx made use of some of Engels’ ideas as in his letter to Marx of June 6, 1853.
This is the link of writings of Karl Marxhttps://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s...
अब ब्रिटेन एक ऐसा देश जहाँ इंडस्ट्री और उसके जरिये लोगों को रोजगार मिलना शुरू हो गया है । तब भी 1917 तक उस 10 प्रतिशत आबादी विकास और इंडस्ट्री का हिस्सा नही बन पाया है , unskilled है ,गंदे तरीके से रहता है लोफर है गन्धाता रहता है गन्दगी से रहने खाने और शराब पीने के कारण , और समाज के सारे मेहनत का काम menial जॉब वही 10 % तबका करता है , इसलिए एनी बेसेंट के शब्दों में - " One tenth submerged class ".
वहीँ भारत में एक तबका ऐसा पैदा हो गया था उसी समयकाल तक जो स्किल्ड था लेकिन उसके पास काम नहीं था ।हजारों साल से जिसके दम पर पैदा किये गए उत्पादों की लालच में न जाने कितने बर्बर और अत्याचारी तुर्क मुग़ल और यूरोपीय ईसाई खिंचे चले आते थे ।वो बेरोजगार बेघर हो चूका है। भारत की अर्तव्यवस्था 1200 % मात्र डेढ़ सौ सालो में गिरकर धराशायी हो चुकी है।मैकाले की शिक्षा से दीक्षित न जाने कितने शासक और जनता के बीच के बिचौलिए पैदा हो चुके थे - देखने में और खून से भारतीय लेकिन सोच समझ और अंग्रेज माइंडसेट के लोग।
ऐसे में ब्रिटिश शासक इस बेघर बेटोजगार तबके को , जो ऊपर एनी बेसेंट के शब्दों में वर्णित गन्दगी में जीने को मजबूर भुखमरी के कगार पर कुछ भी काम करके जीवनयापन करने को विवश, उसको "Depreesed Class" में categorize करते है जो 1917 में आबादी का एक छठा हिस्सा है ।
एनी बेसेंट के शब्दों में -One Sixth Generic Depreesed class ".
यही जेनेरिक डिप्रेस्ड क्लास 1935 आते आते डॉ आंबेडकर की आँखों के आगे दलित चिंतको के अनुमान से तीन चौथाई से ज्यादा - ब्रांडेड opressed Claas" में तब्दील हो जायेगा ।
फिर इसी की scheduling हो जायेगी।
लेकिन उनका क्या हुवा जो artisan गायब हो गए handcraft और artisan के व्यवसाय से गायब होने के बाद ।
मर तो नही गएँ होंगे ।
जिन्दा रहने के लिए किसी नयी जगह पर गए होंगे।
जीने के लिए कोई नया साधन इख़्तियार किया होगा
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