तथ्य : गुरु भगवान नहीँ है, समान भी नहीं है जैसा कि कबीर के शब्दों का आधार बनाकर हिंदुओ को मूर्ख बनाने का क्रम जारी है।
शास्त्र या ई स्वंय शास्त्र स्वरुप भगवान श्रीकृष्ण जी ने कुरुक्षेत्र में भागवत गीता के संवाद में इस प्रश्न को गुरु पर व व्यक्ति की योग्यता व स्थिति को स्पष्ट किया है।
ध्यान रखें भगवान श्रीकृष्ण की वाणी भागवत गीता सभी शास्त्रों में श्रेष्ठ है। यथारूप भागवत गीता से।
गुरु भगवान नहीं है। गुरु की प्रथम योग्यता है कि वह भगवान श्रीकृष्ण या श्रीविष्णु अवतारों का शुद्ध भक्त होता है। पदम् पुराण में स्प्ष्ट कहा गया है कि जो व्यक्ति विष्णु भक्त नही है वह गुरु नही है -- " अवैष्णवों गुरूररन स्याद " गुरु वे है जो कि सभी जीवात्माओं को भगवान श्रीकृष्ण या श्रीगोविन्द की प्रेममयी सेवा में लगाने का ज्ञान देते हैं। औऱ क्योंकि गुरु हमारा परिचय परम् भगवान से करवाते है। इसलिए शास्त्र कहते हैं कि गुरु का सम्मान भगवान के ही समान करना चाहिए। जैसे कि कहावत है कि -- "गुरु गोविंद दोनउ खड़े, काके लागूं पायँ, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताये।।" । इसका अर्थ हुआ कि गुरु स्वंय भगवान नहीं है बल्कि वे तो हमें भगवान से मिलाते हैं। वेदों व शास्त्रों का अध्धयन करने पर आप पायेंगे कि समस्त असुर भगवान बननाचाहते थे जैसे हिरण्यकश्यप व रावण इत्यदि। आज इस कलियुग में ऐसे तथाकथित गुरु है जो अपने आपको भगवान कहते है, परन्तु रावण, हिरण्यकश्यप उनसे अत्यंत ज्ञानी व शक्तिशाली थे। पदम पुराण में गुरु के मुख्य लक्षणों के बारे में स्पष्ट कहा गया है "षट्कर्म निपुणों विप्रों मन्त्र तन्त्र विशारद:। अवैष्णवों गुरुरन स्याद वैष्णव श्वपचो गुरु:" । यदि कोई ब्राह्मण के 6 कर्मों (ज्ञान लेना व देना, यज्ञ करना व करवाना, दनः देना व दनः लेना, ) में पुर्ण दक्ष हो और साथ ही वेदों शास्त्रों के समस्त मन्त्रों व तन्त्रों में विशारद PHD हो, इतना होने के बाद भी वह भगवान श्रीविष्णु(श्रीकृष्ण) का शुद्ध भक्त नहीं है तो वह गुरु बनाने के योग्य नहीं है, जबकि इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति ने सुअर या कुत्ते का मांस भी खाया हो, किंतु बाद में वह पूर्णतः भगवान श्रीकृष्ण श्रीविष्णु या विष्णु अवतारों का भक्त बन जाता हैं तो वह गुरु बनाने के योग्य है। अर्थात केवल भगवान श्रीकृष्ण श्रीविष्णु का भक्त ही गुरु बन सकता है। अतः गुरु स्वंय को कभी भगवान नहीं मानता, बल्कि हमेशा यह मानता है कि मैं भगवान श्रीकृष्ण श्रीविष्णु तथा उनके दासों का दास हूँ, औऱ दास रूप में अपने शिष्यों की भी सेवा कर रहा हूँ।
अतः किसी भी व्यवस्था में गुरु क़भी भगवान नहीं होता।
भगवान श्रीकृष्ण जी ने गुरु पद को गीता में भी बताया हैै।
जब भी गुरु हरिभक्ति विष्णु भक्ति कृष्णभक्ति में बाधा बनने का प्रयास भी करें तो उन्हें शुक्राचार्य समान दण्डित होना पड़ता है।
प्रसंग। वामन अवतार में भगवान विष्णु व राजा बलि के 3 पग भूमि राजा बलि द्वारा भगवान वामन अवतार श्रीविष्णु जी को देने के संकल्प में बाधक बनने के कारण ही दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने अपनी एक आंख भी गवाँई।
ॐ हरि ॐ