ओ केशव रे तू वापस आ ।
तू देख जरा ये क्या हो गया।।
बनाया था जिसको तूने अरमान से।
दिल औऱ जान से, बचाने थे हिंदू के प्राण से।।
लगता है ऐसा, जैसे केशव तुम जो गये तो निकलें संघ से हिंदू के प्राण थे।
केशव तुझे ही विनायक ने सौंपे अपने भी प्राण, तन समान हिंन्दू सम्मान जीवन औऱ अपना सिंघासन और स्थान सिंह समान।।
आ तू देख जरा ये कैसा संघ हुआ।।
मांगा इसने था 60 मास औऱ साथ 272 का।
इसको हिन्दू ने दे डाला 10 ज्यादा 282।।
समझा जिसको काशी का वासी।
समझा जिसको था सिंघपुत्र ।।
आवाज भी उसकी ना आती।
गुजरात ही जिसका परिचय था।
विश्वास उसी का तो सब था।।
अनुभव तो यही अब कहता है।
कोई और ही वो गुजराती।।
ये कैसी छाई नपुंसकता।
शब्दों में भी कोई अपना सा भाव नही।।
गैरों ने दिया वो दर्द नहीं।
अपनों ने दीये जो घाव हम हिंदुओ को।।
उस पीड़ा का कैसे करें क्रन्दन।
अब होता न हमसे वंदन।।
सिंह विराजै थे जिस पर।
दिया वही था सिंघासन।।
गया कँहा वो सिंह समान ।
कहते हैं जिसको सिंहनाद।।
अपनों को ही जो देते घाव।
कैसे कह दें उसको बंधु।।
चौराहे पर जब कटी मां मेरी ।
अपराध हुआ गौ जीवन था।
पर गौ रक्षक तो गुंडे है।।
अब तो अपराध दीवाली है।।
है ध्यान कँहा और ज्ञान कँहा।
अधिकारों का उपयोग नही।।
कैसी हैं हाँ ये मूर्खता।
कोई ज्ञान नही संविधान का।
हिन्दू हित के विधान का।।
अधिकार नहीं है जिनको।
इन मूर्खों को आंख दिखाते है।।
कर्तव्यों का जिन्हें भानं नही ।
वो तानाशाही कर जाते है।
अधिकार नही जिस क्षेत्र का।।
उसका संविधान भी वो अतिक्रमण कर जाते है।
संसद औऱ लोकतंत्र को भी विधर्मी पुनः पुनः आंख दिखाते है।
संसद और लोकतंत्र का भी दोषी भी ये 56" का सीना है।
आओ हे केशव तुम पुनः पुनः।।
साथ विनायक के आना।
तुझको लड़ना होगा अपनों से।।
जो नाम तेरा ही लिये हुए।
अब हिंदू भी जो रहे नही।।
सब साधन सब संसाधन है।
फिर भी दोषी हम हिन्दू ही।
दोषारोपण भी हिन्दू का ही।।
छिद्रान्वेषण भी हिन्दू का।
आओ केशव प्यारे आओ।।
धर्म पुकारे तुझे अभी।
भारत माँ भी पुकार यहीं।।
चीत्कार यही अब तू ही आ।
तू देख जरा निर्माण तेरा।।
आत्मघाती है राह तेरी।
अपने पुत्रों को खा जाती ।।
कुछ ऐसी है पहचान तेरी।
चले आ तू केशव विनायक को ले आ।।
तेरी राह तकता ये हिन्दू बेचारा।।
मूल भाव:
1,प्रश्न,क्या केशव बलिराम हेडगेवार जी औऱ विनायक दामोदर सावरकर जी का पुनर्जन्म सम्भव है।
2,क्या केशव औऱ विनायक को मुक्ति मिली होगी।
3,कंही केशव औऱ विनायक की आत्मा वर्तमान संघ परिवार में बची भी है।
4,यदि केशव और विनायक पुनः जन्म ले तो 92 बर्ष की आयु के संघ को हिन्दू समाज को दिये परिणाम से प्रसन्न होंगे।
5,केशव को क्या विनायक का साथ लेकर पुनः 0 शुन्य से आरम्भ तो नही करना होगा।।
6,92 बर्ष की आयु में क्या संघ परिवार को अपनी रीति नीति की समीक्षा नहीं करनी चाहिए।
7,92 बर्ष में मात्र एक मोदी निर्माण क्या उचित है, कँही ये लीपापोती तो नहीं अन्यथा संघम शरणं गच्छामि होता। किन्तु, संघ स्वयं मोदी शरणं गच्छामि प्रतीत होता है।
क्यों मोदीपुज में ही संघ शक्ति के होते हुये योगी आदित्यनाथ जी का प्रादुर्भाव हुआ।
क्यों केरल औऱ गुजरात मे योगी आदित्यनाथ को ही दायित्व सौंपा गया।
संघ परिवार को पूर्ण कार्यकाल 92 बर्ष का ईमानदार पूर्वलोकन आ आत्मसमीक्षा की आवश्यकता नही है।
क्यों संघ व बीजेपी की असक्षमता को समाज मे निशुल्क सायबर सोशल मीडिया योद्धा ने मोर्चा संभाला हुआ है। ये मोदी का विश्वास है ना कि संघ परिवार का।
पूर्णतः असफल प्रमाण सहित ।
1947 में नगण्य वामी मुस्लिम 70 बर्षों से अप्रत्यक्ष रूप से औऱ परोक्ष रूप से इन्ही परिस्थितियों व संसाधनों का ही उपयोग कर पुर देश पर शासन कर रहे है।
परिणाम में केरल,बंगाल, कश्मीर औऱ कितने ही छोटे छोटे पाकिस्तान प्रोत्साहित करते हैं। कोई संविधान कोई व्यवस्था बाधा नही। जबकि 1947 में पूर्ण हिन्दू पूर्ण स्पष्ट संसाधन।
दोष द्रष्टि का नीति का मूल विचार का अन्यथा शिवाजी ने मात्र 14 बर्ष की आयु में अपने 20 से 25 के बाल मित्रों को ही साथ लेकर मात्रा 500 समर्पित सेना के उपयोग से पहला किला जीता था।
संसाधन के रूप में कोई विरासत राज्य नही था। मात्र सनातन विचार का बीज जो माता जीजाबाई ने पालन में संस्कार रूप में बोया वहीं परिणाम में हिन्दू स्वराज्य बना प्रथम नोसेना का निर्माण भ सनातन विचार था। तभी परिणाम मिला।
स्मरण रहे पिता भोंसले महाराज का सानिध्य शिवाजी को नहीं मिला भोसले महाराज जीवन भर एक मुस्लिम सुल्तान की ही सेवा में थे। तथा सैनिक अभियान में व्यस्त रहे। सब शिवाजी महाराज ने 500 की संख्या व स्वयं की वैचारिक सामर्थ्य से किया उन्होंने कभी समाज हिंदू समाज को दोषारोपण नही किया न ही छिद्रान्वेषण किया। जो भी संसाधन व सहयोग मिला उसी को समाज हिन्दू समाज मे विश्वास का वातावरण बनाने में उपयोगी साबित किया।
स्मरण रहे मानसिंह जैसे कितने ही हिंदू राजाओं ने मुस्लिम सुल्तानों व मुगलों का साथ दिया शिवाजी महाराज का नही।
तुलनात्मक स्थिति वर्तमान स्थिति से भयंकर रूप से हिन्दू समाज तथा शिवाजी महाराज के प्रतिकूल ही थी।
आज अनुकूल वातावरण है हिन्दू समाज ने पूर्ण शक्ति व सहयोग दिल्ली, विहार, पंजाब और बंगाल मात्र अपवाद है। हिन्दू समाज अपना दायित्व निभा चुका। अब बारी बिश्वास निर्माण की संघ परिवार व बीजेपी की है।
ईश्वर में अमित शाह के रूप में योग्य नीतिज्ञ भी दिया है। और क्या चाहिए।
इतना कभी किसी राजनीति क दल को नहीं दिया और फिर भी उन्होंने उनके लोंगो को जो वादे किए उससे ज्यादा परिणाम दिये यही कारण है उन्हें समर्पण व विश्वास भी अधिक मिला।
किसने रोका है परिणाम देने से समाधान देने से। समझ नही तो कांग्रेस औऱ वामपंथी पार्टियों के कुकर्मों का इतिहास ही धर्म की स्थापना की नीति के रूप में अपना लो। मूर्खतापूर्ण आचरण से जो अवसर मिला है इसे नष्ट तो न करो।
पुनः विचार व आत्मसमीक्षा अन्यथा जो भी जीवन नष्ट हुए जितने माँ बहनों के शील भृष्ट हुये उनका दोष और पाप अपराधी इतिहास की होंगा संघ परिवार।
बेगराज
जयपुर वासी
छोटी काशी।