जाति , जातिवाद, राष्ट्र , राष्ट्रवाद , देह ,देहवाद
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व्यक्तियों ,समूहों ,समाजों के जीवन में विवेक और भ्रांतियों आते जाते रहते हैं . विवेक के लिए तो सजग प्रयास करना होता है .
बात उठी थी किसी समय २० वीं शताब्दी में ब्रिटिश क्षेत्र में कि जातिवाद समाप्त करें और राष्ट्र की भक्ति करें , यह तो सार्वभौमिक आवश्यकता है .
ये बात किसने उठाई थी ? उन राष्ट्र भक्तों ने जिन्हें भारत माता साक्षात् जगदम्बा का रूप विशेष दिखती थीं और इनकी महानता ,भव्यता . दिव्यता प्रत्यक्ष सत्य दिखती थीं , अपने से भी बड़ा सत्य .
आधे भारत में शासन अंग्रेजों का था और उन्होंने यानी उनके समाजके बड़े लोगों ने बहुत परिश्रम किया कि उनकी ज्ञान परंपरा में यहाँ के मेधावी युवक युवतियां दीक्षित हो जाएँ जिसके लिए उनकी प्रशंसा करनी चाहिए और सच्ची प्रशंसा तब है जब आप उसका अनुसरण करें तो हमें उनसे सीखना चाहिए .जो आज तक नहीं सीखा है क्योंकि अपनी सनातन धर्म की ज्ञान परंपरा में उन्हें दीक्षित करने का प्रयास तो छोडिये ,स्वयम की संततियों को ही दीक्षित करने का कोई प्रयास हमारा अभी का बड़ा आदमी नहीं कर रहा है
तो उनके द्वारा दीक्षित युवकों में एक छोटा समूह उनका ही हो गया और उसके लाभ समझ गया . ..
तो सत्ता हस्तान्तरण के बाद उसने उनकी कूट नीति अपना ली.इसकी शुरुआत तो अंग्रेजों ने ही शासन शक्ति के दुरूपयोग द्वारा कर दी थी और गाँधी जी , डॉ आंबेडकर जी ,नेहरु जी आदि उसमे उत्साह से आगे थे . बाद मे नेहरू जी ने इसमें कम्युनिज्म की विधि से भयंकर विस्तार किया .वह यह कि जाति और जातिवाद को एक प्रचारित करने लगे .
ऐसे भटकाव आते रहते हैं , शरीर और शरीरवाद का भेद भूलते तो हम अनेक अच्छे लोगों को देखते ही हैं ,तीव्र संवेग से यह हो जाता है .कई तपस्वी सज्जन हैं जो शरीर वाद से जुगुप्सा पालते पालते शरीर से ही पाल लेते हैं .
यूरोप में किसी समय अनेक निष्ठावान ईसाई स्त्रियाँ अपने लार्ड ( यीशु ) की पीड़ा भरी याद में स्वयं काँटों का मुकुट पहन लेती थीं और अपने हाथ पैर में ( क्रॉस में टंगे यीशु की तरह फैला कर )कीलें ठुन्कवाती थीं.. जिसे डायटिंग कहते हैं ,वह शुरू यीशु की याद में ही हुयी कि लार्ड को बड़ा कष्ट हुआ तो हम भी देह को कष्ट देंगी . बाद में उसकी महिमा गा दी गयी और भारत में अच्छी हृष्ट पुष्ट बहनें स्वयं को अति निर्बल ,दुबली ,पतली दिखने की होड़ में लग गयीं
तो ऐसे भटकाव आते रहते हैं (जारी २ पर )
जाति का विरोध अ ज्ञान और असामाजिकता पर टिका है
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वर्तमान राजनीति में सारा ही व्यवहार इन आधारों पर होता है :
१. आपकी आर्थिक स्थिति , आपका पद या व्यवसाय का स्तर ,हैसियत ,
२ आपकी सामाजिक स्थिति : जाति, क्षेत्र , कुल ,पार्टी और उसमे पोजीशन , पद प्रतिष्ठा ( नौकरी की भी ,कमाई की भी ), प्रसिद्धि , अगर सन्यास आश्रम में है तो भी आपकी सामाजिक हैसियत ही व्यव्हार का आधार बनती है इन दिनों ,
अगर हिदू नहीं हैं तो मज़हब (आप हिन्दू नहीं हैं तो इस से वर्तमान राजनीती में आप तत्काल VIP हो जाते है , प्रशासन में भी ), NGO है या आप NGO में हैं तो उसकी हैसियत , लोगों से आपका सम्बन्ध ,विशेष कर VIP जन से .
३ इन दिनों वैचारिक या आतंरिक या आध्यात्मिक स्तर की समाँज के आपसे व्यव्हार में कोई भूमिका नहीं है ,केवल अपने दल के भीतर दल की सुविदित बातें दुहराना ही विचार कहलाता है जिसका वास्तविक विचार से कोई संबंध होता नहीं
ऐसी स्थिति में जाति के विरुद्ध बातें या भाषण या लेख न हिन्दुओं में इन कारणों से की जाती हैं :
१, फैशन है सो बोल रहे हैं , कोई अर्थ नहीं है उसका .
२ समाज से प्रेम है और अपने किसी बड़े ने समझा दिया है या हमने पढ़ लिया है कि जाति के रहते एकता असंभव है तो तोता रटंत
.
३ राजनैतिक प्रयोजन से
४ अपनी जाति और s.c. ,s.t., obc. वर्ग के पक्ष में हिन्दू समाज की निंदा करनी है इसलिए
अगर हिन्दू नहीं हैं तो अपना मज़हब या रिलिजन बढ़ाना हिन्दू निंदा का प्रयोजन है और जाति को उसका स्वतः सिद्ध प्रमाण बना डाला गया है .
कोई यह न सोचता, न बताता कि करोड़ों या लाखों या हजारों वर्षों से हिन्दू समाज विश्व का सबसे संगठित और एकीकृत समाज रहा है तो जाति तो उसमे कभी बाधक नहीं हुयी .
कोई यह भी नहीं जानता कि संसार में कोई समाज ऐसा नहीं है जिसकी अधिकतम १०,००० की आबादी से बड़ी कोई इकाई हो . केवल हिन्दू समाज में इस से बड़ी इकाइयाँ हैं .
कोई यह भी नहीं बताता या जानता कि आज भी स्वयं यूरोप में Houses or Families स्वयं में प्रभावी इकाइयाँ हैं और ख्रीस्त पंथ में सैकड़ों उपपंथ हैं जो अलग अलग इकाइयाँ हैं तथा मुसलमानों में कबीले ,फिरके , आदि के अनगिनत भेद हैं दुनिया में और शिया सुन्नी अह्मदिये आदि दर्जनों पंथ है जो भयंकर खून खराबा करते रहते हैं और आज तक अपना एक राष्ट्र नहीं बना सके हैं तो यह भयंकर फूट और युद्ध (लडाइयां ) ही तो कारण है .
कोई यह भी नहीं बताता कि यूरोप के नेशन स्टेट केवल १२०-१५० वर्ष पुराने हैं और आज भी टूट फूट रहे हैं और पिघल रहे हैं , वे किसी एकता का परिणाम नहीं ,शक्ति समीकरण का परिणाम हैंतो आपकी एकता की बात का सन्दर्भ क्या है ?
जाति ने एकता का आधार दिया है
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एकता का सबसे प्रामाणिक सन्दर्भ हिन्दुओं की जाति व्यवस्था ही है जिसमे आई विकृति केवल अछूत प्रथा थी जो बमुश्किल १०० वर्ष चली और जिसमे सबसे ज्यादा अन्याय तथाकथित पिछड़े वर्ग ने अछूतों से किया ,ब्राह्मणों ने नहीं .
उस विकृति को विधिवत दूर किया जा चूका है
अब यह कानून बनाना आवश्यक है कि कोई किसी जाति की निन्दा नही कर सकता .
इसके साथ ब्राह्मणों क्षत्रियों और वैश्यों में वीर वृत्ति का उत्कर्ष आवश्यक है , अपने ऊपर लगाये जा रहे आक्षेपों को सुनना और सहना बंद कर दें . बल और विधि का आश्रय लें , समाज की चिंता के नाम पर बेवकूफियों का ठेका न बांधें .
आज स्वयं को दलित कहकर अन्याय का अधिकार मांगने वाले समूह उभरे हैं अतः पुराने परिवेश में न रहें , आज की समस्या को जाने ,समझें, जियें
मूर्खों को तो यह भी नहीं पता कि जाति का वर्ण से कोई सम्बन्ध है ही नहीं . उन्हें भारत का इतिहास ही नहीं पता .
जाति शब्द का वर्ण से क्या लेना देना ?कैसा गहरा अज्ञान है ?
जाति शब्द ज्ञाति का देशज रूप है जिसका अर्थ है नाते रिश्तेदार , परिजन , गोतिया , आज भी कई जगह ज्ञाति से मिलते जुलते शब्द प्रचलन में हैं भारत में .
इस प्रकार जाति वस्तुतः कुल समूह है . जाति का विरोध कुल का और कुलों का विरोध है .
जाति, जातिवाद----------------४
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७. अब नवयुवकों नवयुवतियों से कुछ बातें क्योंकि जो करना है , उन्हें ही .
८सर्व प्रथम अपनी शक्ति और कमियां दोनों अच्छे से समझ लें यानी स्थिति का निदान पहले ,उपचार बाद में .
९ इन बातों पर मनन करें :
क . उच्च कही जा रही जातियों के युवा यह तथ्य जान लें कि वे छले गए हैं . छला परायी बुद्धि वालों ने है पर अपने भले लोगों की पूर्ण सह्मतिसे यानी उन्हें उल्लू बनाकर . अतः यह स्पष्ट देख लें कि स्वयं की बुद्धि का दर्प पाल कर वस्तुतः आप राजनीति में कम बुद्धिमान सिद्ध हुए और जिन्हें आप कम बुद्धि का मान रहे थे, वे चाहे अपनी बुद्धि से या बाहरी मदद से अपने राजनैतिक स्वार्थ और हित चिंतन में आपसे बहुत सफल , बुद्धिमान और रण नीति वेत्ता सिद्ध हुए.
ख मेडिकल, इंजीनियरिंग , कंप्यूटर आदि में आपके बच्चे ( साथी)बहुत आगे हैं यानी शिल्प कर्म में न ? ब्राह्मण कर्म यानी दीर्घ हित चिंतन और राजनीति में तो आप उनसे हार गए जी ?
ग उन्होंने तो आपके सभी आधारों और वृत्तियों पर चोट की : संस्कृत , पौरोहित्य , वेद , धर्म शास्त्र, सनातन परंपरा , सब को उपहास का विषय बनवाया आपकी जाति के युरंड नेताओं से जिन्हें आप अपना ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य मान रहे थे पर वे तो आपके नहीं थे ,वे तो एक नए राज्यकर्ता वर्ग (युरंड पंथ ) को रच रहे थे , आपका भविष्य रचने का उन्हें समय नहीं है .मंदिरों का ऐसे प्रचार किया मानो अकूत धन है और मस्जिदों चर्चो का साम्राज्य बढाया .
घ ब्राह्मणों को धूर्त , क्षत्रियों को कमज़ोर या अंग्रेजों के गुलाम , वैश्यों को शोषक और जिन्हें अनुचित लाभ देना था ,उन्हें शोषित पीड़ित , दलित प्रचारित कर अन्य्याय को न्य्याय का रूप दिया .
च . जो आपके साथी IAS IPS बने , उन्होंने स्मरण शक्ति अच्छी होने और अच्छे तोते होने का परिचय तो दिया पर न्याय बुद्धि का परिचय न देकर अन्यायी व्यवस्थाएं रचने में अभिकरण बन गए अतः दर्प के योग्य तो वे भी नहीं सिद्ध हुए जी .
अतः अपनी कमियां भी जान लें . निदान के बाद उपचार अगली पोस्ट में
जाति ,जातिवाद -------------------३
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४. इस प्रक्रिया में वस्तुतः तथाकथित उच्च जाति वालों के वे मुख्य लोग जो दलाल नहीं है ,भले हैं.सब प्रकार से सम्मान योग्य हैं , वे राज नीति की दृष्टि से विचित्र भोंदू दिख रहे हैं , उन्होंने अंग्रेजो और कुटिल कमीनो के प्रचार को सत्य मान लिया है ,न देश का इतिहास पता ,न विश्व का और जबरन टाग अडा रहे हैं राजनैतिक प्रक्रिया में .वे आडवाणी जी जैसे हैं , पुरानी बासी मानसिक दुनिया में जी रहे हैं . उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए ,अध्ययन और आत्मज्ञान की साधना करनी चाहिए , वे राष्ट्र का अहित कर रहे हैं
वे पता नहीं किस हिन्दू समाज को एक बनाये रखने की पागल धुन में हैं और वास्तविक हिन्दू समाज को देखते ही नहीं .
अरे भाई ,हिन्दू समाज आज भी विश्व का सबसे संगठित और सबसे कम कलह रत समाज है क्योंकि यहा वैसा कोई अन्याय हुआ ही नहीं जो सारी दुनिया में हुआ है .थोडा दुनिया का इतिहास पढ़िए या घर बैठ कर गीता जी पढ़िए .
टांग अडायेंगे राजनीति में जो आज अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के बिना असंभव है और तोता बनेंगे देश के दुश्मनों के .
गाँधी जी ने जो किया खेल किया ,कांग्रेस ने जो किया खेल किया , भाजपा के भी धूर्त नेता तो खेल ही कर रहे हैं पर संघ भाजपा के भले लोग जो निरर्थक करुणा से लोटपोट हो रहे हैं और शत्रु सर पर चोट पर चोट कर रहा है , वे सबसे बड़ी समस्या हैं ,मेरी हाथ जोड़कर विनती है ऐसे लोगोंसे , रास्ते से हट जाएँ ,घर बैठें .स्वधर्म का पालन करें ,आजकी राजनीति उनका स्वधर्म नहीं है ,विधर्म है ,परधर्म है . हट जाएँ .
५ कोई वाचाल लफंगा खड़ा हो जाये किसी जाति का नेता बनकर और किसी की शह और समर्थन से थोड़ी भीड़ जुटा ले तो आप उसे उस जाति का नेता मान लेते हैं . तब आप भयंकर और महामूरख जातिवादी हैं श्रीमान .
जाति कोई देहिक ईकाई नहीं है .. उसकी एक कुल परंपरा है ,शील प्रवाह है . लफंगे जाति के प्रतिनिधि नहीं होते , सयाने उसके प्रतिनिधि होते हैं
६ पहली बात है जो व्यक्ति हिन्दू समाज का स्वयं को अंग मानता है ,केवल वही किसी जाति का अंग है ,.क्योंकि जाति हिदू समाज में है , बाहर नहीं .अतः जो भी हिन्दू समाज को disown करे उसे आप disown करिए . भीड़ कुछ दिन जुटे उसके साथ ,जुटने दीजिये . आपको मानकर नहीं देना है कि वह अमुक जाति का है , घोषणा कीजिये कि वह किसी जाति का प्रतिनिधि नहीं है क्योंकी वह हिन्दू समाज का प्रतिनिधि नहीं है . भले लोग यह नहीं कर सकते तो हट जाएँ .यह राजनैतिक युद्ध है ,यह समाज की कोई समस्या है ही नहीं ,इसे आप समाज वाली दृष्टि से सुलझा ही नहीं सकते . जो इसे राजनैतिक दृष्टि से देखें और लडे , उन्हें आगे आने दीजिये . आप किसी काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं वहीँ मस्त रहिये .,
(जारी --४ पर).. .
जाति और जातिवाद :७
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२२. सदा ध्यान रहे , आपके साथ छल किया गया है ,धोखा हुआ है , झूठ बोलकर आपको लगातार मूर्ख बनाया गया है . यह काम थोड़े से लोगों ने जो आपकी ही जाति के थे , पर विचारों से युरंडी हो गए थे , उन्होंने सजग भाव से किया , शेष लोग तात्कालिक लाभ में फंसे रहे और नेताओं पर भरोसा करते रहे और उन्होंने भी इस अर्थ में धोखा खाया क्योंकि सब अपनी जाति का अहित ही चाहते थे ,ऐसा नहीं है . न्याय का शोर मचाकर बड़े वर्ग के साथ अन्याय हो रहा है ,यह वे जानते थे ,ऐसा भी नहीं है .
कांग्रेस में ऊँची जाति के लोग भाजपा से कम नहीं थे और सब जाति द्रोही थे ,अपनी जाति का नाश चाहते थे ,ऐसा भी बिलकुल नहीं है , उन्होंने अपने शीर्ष नेताओं से धोखा खाया क्योंकि वे शीर्ष नेता भारतीय शील से रहित और तथाकथित विचारधारा की आड़ में क्रूरता करने में विदेश से ट्रेंड थे और शेष कांग्रेसी नेता ठेठ देशी थे जहाँ बड़े आदमी पर भरोसा किया जाता है और उन्हें बड़ा अर्थात न्यायकारी माना जाता है . अतः जिसे हाई कमान कहा जाता है , वह परायी बुद्धि और पराये शील की थी , भाजपा में भी यह कल को हो सकता है ,अभी तो नहीं है .अगर अन्ग्रेजीदान भाजपा में मुख्य होते दिखें तो सुनिश्चित मानिये ,वह समाज विमुख हो रही है .
२३ जाति की भावना को राष्ट्र के लिए आवश्यक और कल्याणकारी समझिये और उसे प्रदीप्त कीजिये . परन्तु यदि इसकी आड़ में आपने किसी भी जाति की निंदा की तो वह आत्मघात होगा . हमारी सभी जातियों का गौरवशाली इतिहास है . ये तथ्य सामने लाइए .जो भी कहीं चूक होगी वह सुधार लेंगे ,ऐसा वातावरण बने पर हजारों साल से अमुक ने अन्याय किया और अमुक ने सहा ,यह झूठ कदापि तनिक भी सहन न कीजिये ,इसे बकवास कहिये .
२४ हिन्दू समाज की या उसकी किसी भी जाति की निंदा करने वाला किसी जाति का प्रतिनिधि नहीं है ,वह एक गड़बड़ व्यक्ति है. उसके द्वारा की गयी निंदा एक या दो व्यक्ति ब्या व्यक्तियों द्वारा की गयी निदा है ,उसे किसी जाति से जोड़कर मत देखिये ,लुच्चों की कोई जाति नहीं होती, ,निज होता है भाई .
२४ जो भी जाति की निन्दा करे ,उस से कहिये: तुम तुरंत आत्मघात करो क्योंकि शरीर भी कई बुराइयों की खान है तो इस शरीर को तत्काल ख़त्म करो (जाहिर है ,वातावरण देखकर ).
२५ विधि का आधार भारत की , हिन्दुओं की अपनी परम्पराएं हो ,इसका आग्रह कीजिये .क्योंकि विश्व में सब जगह विधि का आधार बहुसंख्यकों की प्रथाएं और परम्पराएँ हैं , घबराइए मत ,मांग उठाइए ,शांति से और धैर्य रखिये ,ऐसा भी भयानक संकट नहीं है , विदेशी सेनाएं सर पर नहीं हैं ,मांग उठाते जाइए .
जब इतनी विचित्र बाहरी चीजें कुछ लोग लगातार् लगे रहे तो हो गयीं तो अपनी परंपरा की प्रतिष्ठा होनी ही है , विरोधियों से सीखिए .
२६ जाति पंचायतें ,खाप पंचायतें पुनः जीवंत हों और उन्हें विधिक मान्यता मिले ,यह मांग उठाइए ,जिससे न्याय तंत्र पर भार कम हो
२७ राज्य सञ्चालन के लिए जो जो आवश्यक है ,उस सब में देश में एक कानून हो . लोक जीवन की सामान्य प्रक्रिया क्षेत्रानुसार विविध हो ,यही राष्ट्र की एकता का आधार है .इस दिशा में वातावरण बनाइये .
२८ संपत्ति का स्वामित्व सम्बंधित कुल का होगा ,जैसी परंपरा है ,. राज्य के पास राज्य को टैक्स से मिले कोष ही होंगे . उसका काम भी कम हो .सब काम सरकार क्यों करे ,यह तो सोवियत संघ का पापी मॉडल है जो नष्ट हो गया. हम उस लाश से क्यों चिपके हैं .?
२९ प्रमाणिक इतिहास की मांग हो ,हर जति के पास अपना इतिहास है ,उसे संकलित कर सयानों के बीच चर्चा कराना राज्य का काम है , युरंडी शिक्षा का history विभाग भंग हो . यह निठल्लों की जमात है और हमारी जातियों के इतिहास को कलंकित करता है अतः यह विभाग ही बंद हो .
३० मुसलमानों और अंग्रेजों के नौकरों द्वारा लिखी गयी चापलूसियाँ भारत के इतिहास का मूल आधार नहीं हो सकतीं क्योंकि विश्व में कहीं भी बाहरी अजनबी घुमक्कड़ों या हमलावरों की गप्पें इतिहास का आधार मान्य नहीं हैं
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३१ अनेक शोध संस्थाएं अपने स्तर पर बनायें और अपने क्षेत्र का सर्वेक्षण कर उच्च जातियों और निचली कही जा रही जातियों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत हो . इसमें कटुता न रहे ,परस्पर सम्वाद हो .
३२ आपके क्षेत्र में ब्राह्मणों पर या अन्य उच्च जाति के जन पर हरिजन एक्ट आदि के आड़ में अत्याचार जरूर हुए होंगे ,उनका शांति से संकलन कर प्रकाशित प्रसारित हो .
३३ संविधान की निंदा बिलकुल न करें . गड़बड़ी संविधान में नहीं है ,उसके नाम पर की जा रही है ,इस विषय पर किसी भी मुद्दे पर शंका हो तो मुझसे संपर्क करें ,एक ही संविधान से १६ प्रकार की कार्यवाहियां निकल सकती हैं, यह जान लिजिये . अभी तक सैकड़ों बार संविधान की मूल स्थापना के विरुद्ध कार्य किये गए हैं ,इन पर विस्तार से फिर कभी.
संविधान शासन की नियमावली है ,जवाहरलाल नेहरु ने स्वयं संविधानसभामें कहा था कि संविधान Rules of Governance है . सेकुलरवादी लफंगों ने उसका शोर आपको बेवकूफ समझकर या बेवकूफ बनाने के लिए कर रखा है ,वे जानते कुछ नहीं हैं ,उनकी चर्चाएँ सुन सुन कर हम बहुत हँसते हैं , उन मूढों को आप सुनते ही क्यों हैं ? चैनल्स मनोरंजन के लिय्रे देखिये ,राजनीति अपने विद्वानों से समझिये ,उसके लिए चैनल्स बिलकुल न देखिये ,तो मूढ़ता से मुक्त रहेंगे .संविधान बना तब कौन सा चैनल था ? आप बिना चैनल में गए संविधान से अपना काम कर सकते हैं और नया संविधान भी बना सकते हैं बाद में वे हुआ हुआ करते रहेंगे .
३४ हीन भावना बिलकुल दूर कर दें . हिन्दू समाज की खिल्ली कभी भी न उड़ायें , न सुनें ,वहां से हट जाएँ .
३५ हर विषय पर राष्ट्रिय आंकड़े रखें .इलाके तक सीमित न रहें यथा ,इधर महाराष्ट्र में सेना में कम ब्राह्मण गए तो ब्राह्मण द्वेषी उपहास उड़ाते हैं पर रॉयल बंगाल आर्मी में ९० प्रतिशत ब्राह्मण थे . ब्राह्मण सदा से शस्त्र निपुण सेना पति और सेनानी रहे हैं ,महान सैनिक और सेनापति हुए हैं ब्राह्मण
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देश के आंकडे रखेंगे तो महारष्ट्र के ब्राह्मण विद्वेषी हंसी के पात्र बनेंगे .
३६ विश्व के विषय में जाने ,और सत्य फैलाएं तो हिन्दू समाज और इसकी सब जातियां जिनमे उच्च जातियां भी हैं , अत्यंत गौरव के योग्य हैं .पुरुषार्थ करे ,विशेषतः राजनैतिक पुरुषार्थ जिसमे आप पिछड़ गए हैं और पिट गए हैं . कोई कारण नहीं है कि आपको न्याय न मिले .
हर हर हर महादेव