आपको क्या लगता है ये संघ लोक सेवा आयोग में 51 मुसलमानों का चयन अचानक से हो गया. नहीं, ये उनकी अपने कौम के प्रति वफादारी की खुशबू है जो अब जाकर चमन में बिखरी है. आप जरा एकबार इन्टरनेट पर "जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया" सर्च करके देखिये. इस संस्था ने बड़ी-बड़ी बातें नहीं की, बल्कि खामोशी के साथ अपने मिशन को अंजाम दिया. इस बार संघ लोक सेवा आयोग में चयनित 51 मुसलमानों में से 26 को तैयार इस संस्था ने किया है. ये संस्था सिर्फ प्रशासनिक सेवा ही नहीं बल्कि न्यायिक सेवा से लेकर छोटे स्तर के हर सरकारी नौकरी में अपने बच्चों को चयनित करवाने के लिए प्रतिबद्ध है. देशभर के गरीब मुसलमान बच्चों को ये मुफ्त में हर प्रकार का सहयोग करती है, जिससे वे अधिक से अधिक संख्या में इस सिस्टम पर कब्जा जमा सकें.
इन बच्चों की सफलता का एक कारण, इनका ऑप्शनल विषय के रूप में "उर्दू" को चुनना भी है. पेपर सेट करनेवाले शिक्षक से लेकर पेपर चेक करनेवाले शिक्षक तक मुस्लिमपरस्त मुसलमान होते हैं जो इस "विषय में दबाकर" नम्बर देते हैं. ये भी उनकी सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण है.
अब हम अपनी ओर की तैयारी पर भी थोड़ा विचार कर लें. "संकल्प" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की माने जाने वाली संस्था है, जिसके बारे में माना जाता है कि ये दक्षिणपंथी उम्मीदवारों को संघ लोक सेवा आयोग में चयनित करवाने के लिए प्रतिबद्ध है. ये सच भी है कि इसने पूर्व में बहुत ही अच्छे रिजल्ट दिये थे. आज की इसकी स्थिति ये है कि एक दिन मैं आईएएस का गढ़ कहे जानेवाले जगह मुखर्जी नगर के पास स्थित संकल्प में गया था कि गुरु जी गोलवलकर पर कुछ पुस्तक मिल जाये, पर मुझे वहाँ एक भी संघ की विचारधारा की पुस्तक नहीं मिली.
मैंने वहाँ रह रहे बच्चों को अत्यंत भक्तिभाव से अभिवादन किया. मेरा ये भक्तिभाव उनके संघ की संस्था से जुड़े हुए होने के कारण था. लेकिन जब मैंने उनसे बात की तो पता चला कि ऑफिस का देखरेख करनेवाले को छोड़कर वहाँ कोई भी संघी नहीं है. वहाँ सस्ता खाने और रहने की व्यवस्था होने के कारण बच्चे किसी तरह जुगाड़ भीरा कर जमे पड़े हैं. उन्हें हिन्दुत्व के विचार से कोई मतलब नहीं है. वे सभी सेक्युलर थें और संकल्प को कोई दिव्य संस्था न समझकर एक सस्ते में दिल्ली में गुजारा करवाने वाला संस्था के रूप में ही देख रहे थें. हमारी जंग की ऐसी तैयारी देखकर मेरी आत्मा ही रोने लगी.
नेतृत्व पर हमलोग अपना सबकुछ छोड़ देते हैं या ये कहिये कि हमारे आदर्श गुरुजन इतने दंभी हैं कि वे हमलोगों को इस लायक ही नहीं समझते कि हम विनम्रतापूर्वक भी उनसे कुछ कह सकें. ऐसे ही एक तीसमारखाँ, जो प्रधानमंत्री तक को परामर्श देते हैं. भाजपा में उनकी दखल है. मेरे बिना नाम लिए भी आप समझ गये होंगे मैं किस विभूति की बात कर रहा हूँ. वे साहब संतों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए जोश में बोले कि देखिये जबसे हमलोगों की सरकार आयी है अब हमलोगों के बच्चे आईएएस में सेलेक्ट हो रहे हैं. पहले सवाल पूछा जाता था वामपंथी अखबार "द हिन्दु" से, अब वेदों पर सवाल पूछा जा रहा है. उनके बच्चे वेदों के बारे में जवाब ही नहीं दे पा रहे हैं. बेचारे सभी भोले-भाले साधु-महात्मा भावुक होकर खुशी से झूम उठें.
ये कितना बड़ा धोखा है, आज ये हर वो बच्चा समझ सकता है जो थोड़ा भी सरकारी नौकरी के परीक्षाओं के प्रति जागरूक है. सवाल आज भी द हिन्दु टाइप के अखबार से ही पूछे जा रहे हैं. वेदों पर सवाल पूछने जैसी बात एक बहुत ही बेशर्म लफ्फाजी है. सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए प्रत्येक उम्मीदवार की तैयारी ऐसी होती है कि वह किसी भी विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों पर बोलने में दक्षता हासिल कर लेता है. वह किसी भी विषय पर संतुलित जवाब देने में सक्षम होता है.
इन्हीं साहब की एक और मक्कारी पर ध्यान ले जाना भी जरूरी है. संकल्प कोचिन हर साल दावा करती है कि उसने 200-300 उम्मीदवारों को चयनित करवाया है. ये साहब संकल्प द्वारा चयनित उम्मीदवारों को संघ का उम्मीदवार बताते हुए न्यूज पेपर में पब्लिश करवा दियें. इनके इस हरकत से संघ में भी इनकी प्रतिष्ठा खूब बढ़ी. अब इस दावे का भी पोस्टमार्टम करते हैं. आप सभी जानते हैं कि अगर आपने एकबार संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा पास कर ली और इन्टरव्यू की तैयारी के लिए जिस भी संस्थान में जाते हैं तो वे लोग आपका रोल नम्बर पहले ही नोट कर लेते हैं और अगर आप अपनी मेहनत से भी सफल होते हैं तो वो संस्थान पोस्टर लगाकर दावा करने लगती है कि आप भी उसके स्टूडेंट रहे हैं.
इसी तरह संकल्प भी मात्र पाँच सौ रुपये में इन्टरव्यू का मॉक टेस्ट करवाती है. इतना सस्ता होने के कारण, कोई कहीं से पढ़ाई और तैयारी किया हो, एकबार संकल्प में भी टेस्ट दे देता है. इन्हीं सबमें से जो उम्मीदवार सफल हो जाते हैं, संकल्प उन सभी को अपना विद्यार्थी घोषित कर देता है. अब आप ही बताइये कि इन्टरव्यू का मॉक टेस्ट देनेवाला उम्मीदवार का संघ के विचार से क्या प्रयोजन है? इन उम्मीदवारों में से कई घोर वामपंथियों को तो मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ.
अगर ये साहब ये सारी बातें जानते हुए भी दावा करते हैं कि ये सब हमारे विद्यार्थी हैं तो व्यक्तिगत रूप से स्वयं को झूठा क्रेडिट दिलवाने के चक्कर में हिन्दुत्व के पीठ में भाला घुसेड़ रहे हैं और अगर ये इन विषयों से अनभिज्ञ हैं तो ये जिस हिन्दुओं के सेनापति के पद पर बैठे हैं वहाँ बैठना डिजर्व ही नहीं करते हैं. ऐसे लापरवाह सेनापतियों का नेतृत्व हमें तेजी से काल के मुख में ले जा रहा है.
दोनों तरफ की जंग की तैयारी देखकर अगर अभी भी आपको नहीं लगता कि हम ये जंग लगभग हार चुके हैं तो आपको इस मोह-निद्रा से मौत ही जगायेगी.
वो लोग जमीन पर गृहयुद्ध के लिए पूरी तैयारी कर चुके हैं. अब वो चुपके से सरकारी नौकरी, पुलिस, प्रशासन और न्यायालय में अपने लोग भरने में लगे हुए हैं,
Rahul Singh Rathore💐👌
यही हे समर्पण व् धर्म सेवा या धर्म साधना इस्लाम से ही सही सीखा जा सकता है | किस प्रकार व्यवस्था में उपलब छिद्रों का समाज योजनाबद्ध उपयोग करके देश को समाज को धर्म प्रधान व् धर्मराष्ट्र बना सकता हे बह भी बिना सरकार व् नेताओं की सहायता के |
यही हिन्दुराष्ट्र बनाने का भी मार्ग बन सकता था अगर हिन्दू समाज ने दोषारोपण या छिद्रान्वेषण के स्थान पर संस्कृत भाषा के महत्व व् उपयोग में भी यही दृष्टि रखी होती और योजना बनाकर कभी का इस राष्ट्र को हिन्दुराष्ट्र बना लिया होता |
अभी भी कोई देर नहीं हे है मित्रों सुन्दर मोडल है तुरंत कॉपी किया जाना चाहिए पूर्ण समर्पण व् भावना के साथ बिना किसी लाभ व् प्रसिद्दि की भावना के हिन्दुराष्ट्र की नीवं निर्माण की |