साभार आलोक भारती जी की वाल से पूर्णतः पढ़ने के लिए. .. अक्षरज्ञान पाने के बाद यदि ये नहीं पड़ा तो शेष सभी पड़ने का क्या लाभ क्या अनुभूति क्या आनंद..सभी मित्रों से निवेदन हे एक बार अवश्य पढ़े... विशेष अनुरोध समस्त क्षत्रिय समाज के मढ़ने योग्य व अपने पूवजों के क्ष्त्रकर्म पर आत्मगौरव की अनुभूति का आनंद मिलेगा राजपूत बंधुओं. ..
एक एक शब्द महत्वपूर्ण है कोई भी शब्द छूटे नहीं मित्रो..
यह आलेख धरोहर है।
महाकाली-चेतना बकाया नही रखती।
चं-चं-चं चन्द्र-हासा चचम चम-चमा चातुरी चित्त-केशी।
यं-यं-यं योग-माया जननि जग-हिता योगिनी योग-रुपा।।
डं-डं-डं डाकिनीनां डमरुक-सहिता डोल हिण्डोल-डिम्भा।
रं-रं-रं रक्त-वस्त्रा सरसिज-नयना पातु मां देवि-दुर्गा।।
''मैं अपनी आंखो से देख रहा हूँ सम्पूर्ण भारत भूमि एक हो चुका है,कटे हुये हिस्से भारत-माँ की संतानों के साथ एक हो चुके है।वर्मा से कंधार तक,श्रीलंका से लेकर तिब्बत तक एक भारत भूमि विश्वगुरु के रूप मे दुनियाँ को मानवता-योग-अमरत्व का संदेश दे रही है।दैवीय शक्तियों ने हिन्दू चेतना को जागृत करके सम्पूर्ण विश्व को सुख,शांति,समृद्धि से भर दिया।समस्त जगत एक:सदविप्रा बहुधा वदंति का अर्थ समझ चुका है,।
''महर्षि अरविंद,
यह सनातन राष्ट्र की डेस्टिनी है जो एक-एक चीज पर नजर रखती है।उसके अपने सुनिश्चित तत्त्व है।इस जन,भूमि,संस्कृति में एक्सेस के लिए कुछ नीयत पासवर्ड-कोड निर्धारित है।पुनर्जन्म,कर्मफल सिद्धान्त,ऋण-यज्ञ व्यवस्था,देव स्थान,सुख-दुख लेखा प्रणाली,योग-चैतन्य,कण-कण ईश्वरीय,सेकंड इक्झिस्टेंट को मान्यता,सम्पूर्ण स्वतन्त्रता वाद,प्रकृति और नारी पूजा,व मातृ भूमि पुण्य-भूमि भारत मानने के साथ त्यागवाद का सिद्धान्त आदि इसके एक्सेस है।जिसने व्यक्तिगत गुण,धर्म,प्रकृति के संस्कारो से अपनाया वही इसके साथ परम् तक पहुंचा अन्यथा यह स्वयं रिजेक्ट कर देती है।जिसने इसके प्रकृति पदत्त नियमो ठुकराया वह सजा पाया।अगर शासन करने वाले की चेतना उससे भिन्न है तो फिर वह उसे झटक देगी।वह स्वत:निर्धारित-संचालित है।अगर किसी ने पुण्य-भूमि मे जरा भी दुःख उपजाया तो राष्ट्रात्मा जाग जाती है।फिर तो काल मे है ही है।उसके दंड-प्रहार से बच ही नही सकते।काल मे उपस्थित होने के बाद भला काली की शक्ति से कोई बच नही सकता है?उत्पन्न कर्ता पर भी पैदा हुए दुःख और सुख पर भी।राष्ट्रात्मा दण्डित अवश्य करती है भले ही उसमे कितना समय लगे।असल में काल की महाचेतना उन्हें खा गई जिन्होंने इसके सनातन प्रवाह पर जरा भी प्रहार किया और अभी भी खा रही है।उनके ही वंशज भाईचारे वाले सहधर्मी उन को सपरिवार-रिश्तेदारों के साथ दूरदराज के संबंधियों के साथ भी समाप्त कर गये।उसके बाद जीनोसाइट करने पर उतारु हो गए।मार कर खोज-खाज कर के खत्म कर दिए।इतनी क्रूर और जघन्य मौत कभी भारत के जनसामान्य की नहीं होती थी।कारण सहजता, सरलता और नश्वरता का भाव।काल की प्रबल चेतना जो मंदिर तोड़ते थे,जो निष्पाप पर, निरपराधों पर अत्याचार करते थे, वह पाप बन कर उन्हें खा जाती थी। मां काली की शक्ति,महामाया की शक्ति, परम चेतना की शक्ति उस पूरे परिवार के, कुल के, वंश की तरफ दृष्टि लगा कर खड़ी हो जाती थी। जब तक उनका नाश नहीं हो जाता था तब तक चैन की सांस नहीं लेती थी। लोग समझते थे हिंदू सनातन चेतना के स्वर शांत बैठते थे। बिल्कुल शांत नहीं बैठते थे। आज भी दुनियाभर में वह मर रहे हैं।एक दूसरे को बमों से मार रहे हैं।उनके परिवार नष्ट कर हो रहे हैं।गला रेत रहे हैं,पत्थरों से मार रहे हैं।अपने आप नहीं हो रहा है कालदंड लौट-लौट कर दंड दे रहा है।वह दिमाग में व्याप्त हो जाता है, वह विचारों में व्याप्त हो जाता है और जब तक सजा नहीं दे देता तब तक वहीं मंडराता रहता है।यही वह शक्ति है,यही परम चेतना की शक्ति है जो निष्पाप के योगियों के,संतों के, ब्राह्मणों के,और हजारों हिंदुओं के चित्कार से जन्मा है।हर बार वह जन्मता है जब मंदिर तोड़ा जाता है,जब उपासना स्थल तोड़े जाते हैं, जब शांति के स्थल तोड़े जाते हैं तो वहीं से एक भैरव शक्ति खड़ी हो जाती है।वह तब तक पीछा करती है जब तक उस कुल, वंश, समस्त भौतिकवादी लोगों का नाश नहीं कर देती।इसलिए आपको सारी दुनिया में कहीं भी एक भी सल्तनत काल के नाम वाला नही मिलता है।सल्तनत, का महान शक्ति का कब्जेदार रहा है,सत्ता का इतना बड़ा केंद्र रहा है,,उस टाइटिल वाला व्यक्ति भी नहीं मिलता।सारी इस्लामिक दुनियां में इसी लिए प्रलय काल लगातार चल रहा है।कोई नही बचेगा।
‘गजनवी चेतना,,कभी नाबिमुल्लाह अहमद्जाई बन बिजली के खमभे से लटकाई जाई जाती है तो कभी हजार घेरे में लादेन बन हजारों-हजार किमी दूर-देश के सैनिकों द्वारा कुत्ते की तरह मार समंदर में फेंक दी जाती है,कभी अपने गढ़ में ही सद्दाम बना कर फांसी लटकाई जाती है,बगदादी बन दर-दर भटकने को मजबूर होती है।अफगान की जनसंख्या आधी हो जाती है।कभी-कभी क्लस्टर बम बन कर गिरता है ,कभी जीबीयू-43 मदर आफ आल बम गिराकर राख़ मे बदल देता है।कभी पूरा का पूरा देश दुनिया के नक्शे से गायब हो जाता है,।1 हजार साल तक उन सिद्ध-दिव्य-प्राचीन मन्दिरो की तोड़ने की आवाज,निरीह-निरपराध सन्तों के कटते सिर,और सनातन जनता के कराहते स्वर आज भी इस ब्रम्हांड में गूँज रहे है।उसे विश्वात्मा अब लौटा रही है।व्यक्ति कृत्यों का व्यक्ति और वंश,समूह का समूह और चेतन(सोच) कृत्यों को पूरी सामुदायिक चेतना भुगतती है।समय लग सकता है..पर काल-चेतना का न्याय से तिल भर भी नही हटती।जरा सोचिये जिस शुरुआती पुरुष ने ईश्वर के नाम पर मजहब में’सारी धरा,, को कब्जाने की योजना बनाई थी,इतने खून-खच्चर करवाये,उसके रक्त-वंश का कोई अंश आज क्यों नही बचा।वह जींस तक सफाया कर दी गई।प्रकृति चेतना हर दुःख-सुख़ को संजो कर रख लेती है।समय प्रवाह में सूद-व्याज सहित लौटा देती है।महाकाल की उस बेआवाज प्रचंड वार से कोई आतताई बच नहीं सकता।उसके बाल-बच्चो और आने वाली पीढियों को भी वह कोप भुगतना पड़ता है।’गजनवी चेतना,, का का पूर्ण-विनाश होता ही है।इस दोजख की आग को देखता गजनवी का रूह…शायद तब और अब के गजनवी यह नही समझ सके की कर्मदण्ड से बचने के लिए कोई ”किताब,, नही लिखी गयी है,न ही ईश्वर से किसी मजहब का कोई समझौता होता है।उनके दर्द का पारावार नही है।काल-दंड से कोई नही बचा पायेगा।परमात्मा भी भी।अगर उसने दुःख उत्पन्न किया है तो क्योकि कर्मो का फल भुगतना ही पड़ता है।
गजनवी से लेकर अब्दाली तक की टाइटल वाले एक व्यक्ति का भी उदाहरण आप दुनिया भर से दे दीजिए तो मैं आपको बड़ा विद्वान् मान लूंगा।अगर होंगे भी तो उस वंश से दूर-दूर तक लेना देना न होगा। गुप्ता,मौर्या, कलचुरी, करचुरी, सोलंकी, चौहान,परमार, परिहार ,प्रतिहार, गुर्जर,तोमर आदि हजारों तरह के टाइटल वाले लोग आपको मिल जाएंगे।वे कभी इस देश के राजा थे और अब जनसामान्य की तरह टाइटल करते हुए रह रहे हैं।मुस्लिमो ने उनके खानदान को कत्ल करके सत्ता छीनी थी पर वे दूर दराज के जंगलों में मौजूद थे।अब् भी बड़े गर्व से इसी भूमि पर रह रहे हैं।उस देश के प्रति उसके पूर्वजों के प्रति इस भूमि के प्रति संस्कृति के प्रति गहरा लगाव है।किंतु एक भी व्यक्ति गजनवी,खिलजी,तुगलक गुलाम,मुगल,लोधी इत्यादि टाइटिल वाला आपको मिल जाए तो बताइएगा।बहुत से इतिहासकारो ने सर्च किया कभी न मिले। क्या हो गया, कहां समा गए,? यह सुल्तान देशभर के सुल्तान थे। किंतु उनका नाम लेवा भी कोई नहीं रहा? उनके नाम का चिराग जलाने वाला भी देश में कहीं कोई नहीं मिलेगा।क्या कारण है?जानिये!
⏰⏰ गजनी वंश-लुटेरा-997-1048
सन १००१ से लेकर १०२७ तक के सत्रह आक्रमणो में उसने कुल २६९ भव्य और विशाल मंदिर तोड़े,78 लाख हिन्दू केटीएल हुये,एक करोड से अधिक बच्चों-स्त्रियो को गुलाम बनाकर बेचा।फ़रिश्ता उसके सतब आने वाला शाही इतिहास-कार है उसने लिखा है .”इस्लामिक धर्म-व्यवस्था के अनुसार पैसे लेकर वह धर्मांतरण से तो छूट दे देता था किंतु उसकी सभी जीत के बाद हिन्दू पुजारियों का समूह,स्थानिक जनता और राजा उससे निवेदन करते थे की वह अगर मन्दिर तथा मूर्तिया न तोड़े तो उससे दूना और चौगुना धन दे सकते है।लेकिन वह साफ़ इनकार करता था।,,सोमनाथ की मूर्ति तोड़े जाने के समय उसने जबाब दिया की “आगामी पीढियों में मूर्तिभंजक की अपेक्ष मूर्ति विक्रेता के रूप में मैं नहीं जाना चाहूँगा,।कांगड़ा(वज्रेश्वरी)मन्दिर से लूट की इतनी प्राप्ति है की महीनो तक धन-सोने-मूर्तियो से भरे ”बैलगाड़ी और रथ,,जाते ही रहे थे।टूटे हुए मन्दिर के चिन्ह आज भी आँखे चुधिया जाए।भीरा,थानेश्वर की चक्र्स्वामी,कन्नौज,शारवा,नगरकोट,नंदानाह की डकैती और कत्ल-ए-आम।,विग्रह-मूर्तियों का तोडा जाना उन्हें ले जाकर गजनी की पैर धोने वाले स्थानों पर रखवाना।
वि ज्ञान वादी लोग जो भी तर्क देते हों इस “गजनी वंश जैसी दुर्गति,चामुंडा-वज्रेश्वरी के कोप के बगैर संभव नही।हालांकि लगभग सभी कट्टर इस्लामी शासकों के कुल वंशो की अंतिम दशा यही हुई थी किन्तु गजनी वंश जैसा किसी ने नही भुगता।पांचवी पीढ़ी बीतते-बीतते गजनी सिमटते-सिमटते अफगान के कुछ जिलो में समा गया।गोर,गजनी के बगल के में ही एक पहाड़ी गाँव था।कभी पांचवी शताब्दी से ही वहां “सूरी,, क्षत्रिय रहते थे…जो सीमावर्ती प्रदेश के लडकू जाति थे।तुर्क आक्रमण के बाद वे भी मुस्लिम हो गए थे।ये लोग गजनी वंश के ही सामंत थे।इसे मैंने नहीं उतबी ने तारीख-ए-यमीनी और वैहाकी ने भी लिखा है|’खुलासत उत तवारीख, में भी सिलसिलेवार दिया है|मैं थोडा शार्ट किये देता हूँ|एल्फिन्स्टन ने इस पर बहुत काम किया था(हालांकि फैब्रिबिकेटेड है किंतु समय मिले तो ‘मध्यकाल, जरूर पढ़ें)।यह ईस्वी सन ११४८ था।बहराम शाह गजनी बहुत् ही कमजोर हो चुका था।आदत गजनवी वाली ही रह गयी थी न।उसने गोरो के एक राजकुमार को मार दिया।सैफुद्दीन सूरी ने गजनी पर हमला बोल दिया।बहराम हार गया लेकिन उसने धोखे से उसने सैफुद्धीन को मार दिया।गोरो में भगदड़ मची तो बहराम और उसके बेवकूफो ने सभी को मार डाला।अब तो सफ्फुद्दीन का भाई जहान सोज आग-बबूला हो गया।उसने विशाल सेना लेकर गजनी को नष्ट कर डाला।गजनवी के सम्पूर्ण-नाश के साथ के दूर-दूर तक के नाते-रिश्तेदार मार दिए गए।औरतों-बच्चो तक को नहीं बख्शा।उसने महमूद की इस्लामिक महानता की सारी इमारते गिरा दी।उसकी मूर्तिया और क्लाक्रितुयो को ध्वस्त कर दिया|कहते हैं ”सात दिनों तक धुएं और कालिख की बदली गजनी पर छाई रही।केवल यही नहीं उसने “गजनी वंश के सभी शासको की कब्रे खोद कर निकाल कर तुकडे-तुकडे कर जला डालीं।निश्चित ही “सोमनाथ, मुस्कुरा रहे होंगे।अंत केवल वहीं नहीं हो गया।गोर वंश सौ साल भी नहीं टिक सका।उसी तरह उसका भी सफाया हुआ।
⏰गुलाम वंश-ई -1193 से 1290
केवल गुलाम वंश काल में ही 950 से अधिक मंदिर टूटे।80 लाख से अधिक हिन्दुओ को कत्ल किया गया।एक करोड़ से अधिक बच्चों को गुलाम बनाया गया। लगभग इतनी बालिकाओं और स्त्रियों को बसरा या अरब भेज दिया गया बेचने के लिए।पूरा भारतीय समाज त्राहिमाम-त्राहिमाम करता रहा।कुल 245 स्वतंत्रता युद्द हुए।जिसे वामी विद्रोह लिखते है।अब जरा परम चेतना का न्याय देखिए।
ई -1193 से महमद गोरी-25 फरवरी 1206 को शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी तुर्कों से बहुत बुरी तरह हार गया।उसके अधिकांश सेनाओं की हत्या कर दी गई। किसी तरह वह रास्ते में लौट रहा था तो उसके सारे साथियों के साथ शाम को किसी ने बहुत बुरी मारकर तरह हत्या कर दी-गोरी के सारे निकट संबंधी 4 माह मे मार दिये गए। फिर हिंदुस्तान का साम्राज्य उसके हाथ से कुतुबुद्दीन एबक के लोगों ने ले लिया।
ई 1206 कुतबूदीन ऐबक-1210-घोड़े से संदिग्ध अवस्था में मौत।आराम शाह जो कि कुतुबुद्दीन ऐबक का बेटा था उसको इल्तुतमिश के लोगों ने घेरकर के सारे रिश्तेदारों के साथ मार डाला। उसके बाद गद्दी पर बैठे।ध्यान रहे इल्तुतमिश ऐबक का दामाद था।
ई 1211-1236 इल्तुतमिश-बीमार होकर भयानक मौत मरा।
ई 1236 रुकनुदिन फिरोज शाह-कत्ल
ईस्वी 1236 रज़िया सुल्तान-कत्ल
ई-1240 मुइज़ुदिन बहेराम-कत्ल
ई-1242 अल्लाउदीन मसूद शाह-कत्ल
ई1246 नसरुदीन महमूद शाह-गद्दी से उतार कर भगा दिया।कोई सन्तान नही बची थी।
ई-1266 गयासुदीन बल्बन-साधारण मौत
ई1286 कैखुशरो-क़त्ल
ई 1287 मुइज़ुदिन कैकुबाद-अंधा करके कत्ल
ई-1290 कयुमार्श- 1290- जलालुद्दीन खिलजी ने इनके दूरदराज के रिश्तेदारों,आस-पास के संबंधियों, समस्त दोस्तों,उस वंश के सारे लोगों को मरवा डाला और मरवा कर के उनके सिरों को शहर के बाहर लटकवा दिया। केवल यही नहीं जिस-जिस ने कैकुबाद या गुलाम सुल्तानों का साथ दिया था या कभी उससे मिला भी था उसको उसने खोज-खोज कर मरवा दिया।इस तरह गुलाम वंश् समाप्त् हो गया।
⏰⏰खिलजी वंश- ई-1290-1320
खिलजीओने 595 भावी-विशाल मंदिर तोड़े।यह सारे पूजास्थल बहुत प्रसिद्ध थे अपनी शासनकाल में एक करोड़ से अधिक लोगों के सिर काटे 25 लाख से अधिक औरतों-बच्चों को गुलाम बनाया,बाहर बेचने के लिए भेजा।अत्याचार और धर्मांधता की सारी हदे पार कर गए।स्थानीय कुल 132 स्वतंत्रता संघर्ष अपने रिकॉर्ड पर है।
ई-1290-जलालुदीन फ़िरोज़ शाह
ई-1296 रुक्नुदिन इब्राहिम शाह- कला के पास सिर काटकर के अलाउद्दीन फिरोजशाह खिलजी ने अपने चाचा का क़त्ल कर दिया कत्ल करने के बाद उसने फिरोजशाह खिलजी के जितने भी संबंधित हितकारी लोग थे सब को मरवा दिया उनके सारे बेटो दामादों को भी मरवा दिया केवल यही नहीं उसकी पूरी गारत जो सुरक्षा करती थी समेत पूरी फौज को भी खिलजी ने मरवा दिया।
ई-1296 में अल्लाउदीन फिरोज़ महमद शाह के नाम से गद्दी पर बैठा। 1 जनवरी 1316 शंकरदेव के बेटे हरपालदेव ने देवगिरी से खिलजीयों को बाहर कर दिया। ऐसे समय में अचानक दुखी होकर वह मर गया।
ई 1316 सहिबुदिन उमर शाह-कत्ल
ई-1316 कुतुबुदिन मुबारक शाह- समस्त रिश्तेदारों के साथ कत्ल कर दिया गया। खिलजियो के साथ उनके सारे रक्त संबंधियों, दूरदराज के रिश्तेदारों, दोस्तों, वफादारों,तमाम अधिकारियों के साथ सबको खोज करके एक एक करके खुशरो शाह ने मरवा दिये।
ई-1320 नासिरुदीन खुशरू शाह- 5 सितंबर 1320 में उस युद्ध में खुसरो शाह पूरे परिवार सहित मारा गया।1320 खिलजी वंश समाप्त हो गया। 8 सितंबर 1320 में जब गयासुद्दीन तुगलक शाह ने दिल्ली में प्रवेश किया तो सबसे पहले उसने कंफर्म किया की अलाउद्दीन के वंश का कोई व्यक्ति जीवित तो नहीं है।वह तभी गद्दी पर बैठा जब खिलजियो में से उसे कोई नहीं जीवित मिला।
⏰तुगलक वंश-ई-1320 से ई 1414 तक
307 मंदिर तोड़े। बीस लाख से से अधिक औरतों बच्चों को गुलाम बनाया। टैक्स, जजिया में वृद्धि की,तीर्थ यात्रा कर लगाए 435 स्वतंत्रता संघर्ष हिंदू राजाओं ने किए जिसमें से 26 लाख से अधिक लोग मारे गए।
ई-1320 गयासुद्दीन तुगलक बेटे ने महल गिरवाकर कत्ल किया।
ई 1325 महमद बिन तुगलक-20 मार्च 1351 को देहांत से मरा।
ई 1351 फ़िरोज़ शाह गद्दी पर बैठा।
ई 1388 गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय
ई 1389 अबुबकर शाह
ई 1389 महमद तुगलक द्वितीय
ई 1394 सिकंदर शाह प्रथम,कत्ल
ई 1394 नासिरुदीन शाह दुसरा
ई 1395 नसरत शाह
ई 1399 नासिरुदीन महमद शाह दूसरा दुबारा सता पर
ई 1413- दोलतशाह- मार्च 1414 में खिज्र खां ने सारे तुगलकों उनके रक्त सम्बंधियों और सम्पर्कियो को मार कर अपने पूर्ववर्ती शासकों के तर्ज पर सैयद वंश की नीव डाली।कहते हैं कोई नामलेवा भी नहीं बचा।ई 1414 तुगलक वंश समाप्त कर दिया गया।
⏰सय्यद वंश-ई 1414-1451
इस वंश ने भी अपने अल्प कल मे भी 75 मंदिर तोड़े,12 लाख निरपराध हिन्दुओ का वध किया था।80 स्वतंत्रता संघर्ष हुए।16 लाख औरतो,बच्चों को गुलाम बनाकर अरब भेजा।
क्रम (ई.स) शासक नोंध
ई 1414 खिजर खान
ई 1421 मुइज़ुदिन मुबारक शाह द्वीतीय
ई 1434 मुहमद शाह चतुर्थ
ई 1445-अल्लाउदीन आलम शाह- यह प्रकरण सबसे रोचक है।उसने बहलोल लोदी को दिल्ली बुलाया।जल्दी ही बहलोल ने दिल्ली की सल्तनत पर अधिकार करना शुरू कर दिया।जब अहमद शाह ने देखा कि यह हम को मारकर खत्म कर देगा तो अलाउद्दीन अहमद शाह ने संपूर्ण राज्य लोधी को सौंप दिया और स्वयं बदायूं जाकर रहने लगा। बहलोल ने खुतबा और सिक्कों से आलम शाह का नाम हटवा दिया। 19 अप्रैल 1451 को अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। अलाउद्दीन एक साधारण अमीर के भांति बदायूं में जीवन बिताता रहा। कुछ वर्षों बाद वही उसकी मौत हो गई। कहते हैं बहलोल लोदी ने बाद में बदायूं के पूरे एक समुदाय को ही नष्ट करा दिया।लेकिन मुझे लगता है कि सैयदों के कुछ वंशज अभी वहां आसपास होंगे।1451 सैय्यद वंश समाप्त गया।
⏰लोदी वंश-1451-से 1526 ई
लोदी वंश के दौरान 445 मंदिर तोड़े गए, 8 लाख से अधिक हिन्दुओ का सिर काटा गया।औरतों-बच्चों का रिकॉर्ड अपने पास उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान है कि वह बहुत बड़ा था।इस दौरान पूरे देश में लगभग सभी छोटे बड़े राज्यों ने विद्रोह किया जिसे हम स्वतंत्रता संघर्ष कह सकते हैं, 65 से अधिक विद्रोहों(स्वतन्त्रता-संघर्षो) का रिकॉर्ड हमारे पास दर्ज है।
ई 1451 बहलोल खान लोदी,
ई 1489 सिकंदर लोदी दूसरा
ई 1517 इब्राहिम लोदी- पानीपत के इस पराजय के बाद बाबर ने पहला काम किया कि दूरदराज तक के लोधियों को खोजा। जहां-जहां विरोधी रह रहे थे सबको उसने मरवा दिया। यही नहीं जिन अमीरों ने कभी लोधियों के साथ समय बिताया था उन्हें भी उसने खोज खोज करके मरवा दिया।लोधी वंश के दूरदराज के छोटे-छोटे बच्चे भी खोज खोज कर मार दिए गए।जहां-जहां इनके सल्तनत के सूबेदार थे उनके भी रिश्तेदारों को बाबर ने मरवा दिया। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि अब्राहिम लोदी की माता को बाबर ने एक छोटा परगना दे दिया और उसकी मालगुजारी उसके नाम कर दी थी।उसी कमाई पर उसने अपना जीवन बिताया।लेकिन बहुत सारे इतिहासकार बताते हैं कि काबुल तक ढूंढ-ढूंढ कर के उनके वफादारों को बाबर के लोगों ने मरवा दिया।इस तरह एक वंश के आने के बाद दूसरा वंश कैसे मुसलमान होते हुए भी मुसलमानों को भी मारता था, यह प्रमाण सामने है।1526 में लोदी वंश रक्त के साथ ही समाप्त हो गया।
⏰मुगल वंश-1526-1539
ई1526 ज़ाहिरुदीन बाबर
ई1530 हुमायु
ई 1539 मुगल वंश मध्यांतर-
⏰⏰सूरी वंश-ई 1539 से ई 1555 तक।
अन्य सभी मुस्लिम शासको से थोड़ा भिन्न था।किन्तु कु्छ मंदिर इसने भी तोड़े।हाँ व्यवस्था पक्ष पर इस वन्श ने काम किया।
ई 1539 शेरशाह सूरी-जलकर मरा
ई 1545 इस्लाम शाह सूरी
ई 1552 महमद आदिल शाह सूरी
ई 1553 इब्राहिम सूरी
ई 1554 फिरहुज़् शाह सूरी
ई 1554 मुबारक खान सूरी
ई 1555 सिकंदर सूरी- हेमचंद्र विक्रमादित्य से पानीपत का द्वितीय युद्ध जीतने के बाद सूरी वंश के अधिकांश रिश्तेदारों को मार दिया गया।हेमू के भी सभी रिश्तेदारों,दोस्तों परिवारजनों को खोज-खोज कर कत्ल कर दिया गया.कुत्ते बिल्लियों को नहीं छोड़ा।सूरी वंश का कोई नाम लेवा भी नहीं बचा।उन अफगानों को जिन्होंने सूरियो का साथ दिया था उनको कत्ल कर दिया गया,उनके रिश्तेदारों की संपत्तियां छीन ली गई।यही मुगलों का कलचर था।आगे भी सभी मुगलो ने अपने भाइयो और उनके सम्बंधियों के साथ यही करना जारी रखा।फ़िलहाल सूरी वंश समाप्त के बाद देखिये।
⏰⏰मुगल वंश-ई 1555 से 1757-प्लासी युद्द तक
1530 से 1757 तक मुगल शासन के दौरान 1712 मंदिर तोड़े गए।यह अपने में सबसे बड़ा रिकार्ड है।मुगल कभी सेकुलरिज्म की नीति नहीं अपनाते थे वे अल तकैया नीति पर छुपकर के चलते थे।सबसे ज्यादा हिंदूओ के कत्ल का रिकार्ड भी इसी काल का है।200 साल में 30 करोड़ लोगो का कत्ल इस शासन ने किया।हरम कल्चर सर्वाधिक इसी शासन व्यवस्था ने अपनाया।सभी मुगल बादशाह होने अपना हरम रखते थे।देखा-देखी सभी सूबेदार और उनके नीचे के सभी जागीरदार भी अपना बना हरम रखने लगे थे। समझिए इसे।औरते कहां से आती थी।कितना अत्याचार हुआ होगा।समकालीन इतिहासकार ने लिखा है 'बड़ी संख्या में औरतो और बच्चों को गुलाम बना कर के बाहर भेजा जाता था।इस काल में चार हजार से अधिक स्वतंत्रता संघर्ष हुए। लगभग सभी स्थानीय हिंदू राजाओं ने भी संघर्ष जारी रखा।सब ने आजादी के लिए युद्ध किया,बहुत लोग मारे गए लेकिन आजादी का जंग बंद नहीं हुआ।यह ईश्वरीय कृपा थी कि पहले मराठे खड़े हुए फिर अंग्रेज आ गए नहीं तो मुग़ल सल्तनत ने भारत को धर्मांतरित कर डालने में कोई कसर नही छोड़ी थी।
ई 1555 हुमायू दुबारा गद्दी पर
ई 1556-1605 जलालुदीन अकबर-हुमायु के सारे भाइयो और उनके बेटे-दामादो को मरवा दिया।मुगल बेटियो के लिए विवाह न करने का नियम बनवा दिया।
ई-1605-28जहांगीर सलीम-गद्दी पर बैठने से पहले कोई सगा भाई और उनके बेटे नही बचे।
ई 1628-1659 शाहजहाँ नाम से खुर्रम बैठा,अपने खुसरो को जहांगीर ने पहले ही मरवा दिया था,शहरयार को उसने मरवा दिया।
ई 1659-1707 औरंगज़ेब ने सारे भाइयो और उनके रिश्तेदारों को खत्म करके गद्दी संभाली,बाप को जेल भेज दिया।
ई 1707-12 शाह आलम बहादुरशाह पहला गद्दी पर बैठा अपने भाइयों आजम और कामबख्श को मार कर गद्दी पर बैठा।नजदीकी रिश्तेदारों को भी मरवा दिया।
ई 1712 जहादर शाह-गला घोंट कर
ई 1713 फारूखशियर-गला घोंट कर
ई 1719 रईफुदु राजत-कारागार में
ई 1719 रईफुद दौला-पागल होकर मर गया
ई 1719 नेकुशीयार-कारागर में मौत
ई 1719 महमद शाह-अफीम से मौत
ई 1748 अहमद शाह-कारागार में मर गया।
ई 1754 आलमगीर-हत्या
ई 1759 शाह-आलम-कुत्ते की तरह भगा दिया।परिवार सहित मर गया।
ई 1806 अकबर शाह-जहर से मरा।
ई 1857-बहादुर शाह जफर ने रंगून जेल में आख़िरी सांस ली थी। सारे बेटे पहले ही मार दिए गए थे।दूर-दराज के रिश्तेदारों को भी खत्म कर दिया गया।इस तरह पूरा कुनबा तड़प-तड़प कर मरा।उन्होंने आपस में ही एक-दूसरे को मार दिया।बाकी बचे हुओं को दरबारी षड्यंत्रों व् अफगानों ने मार दिया।रिश्तेदारों बच्चो तक को।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की मुगलो की लड़कियों को एक-एक कर हिंदू भगा ले गए थे।मुगलो को अनुभव में आया की दामाद बड़ी समस्या हो जाते है।सत्ता में हिस्सेदारी न हो जाए इसलिए अकबर ने नियम बना दिया कि कोई भी 'मुगल राजकुमारी, शादी करेगी ही नहीं।आगे के सारे मुगल-बादशाहों ने इस नियम का कडाई से पालन किया।परिणाम यह हुआ कि लगभग हरेक मुगल बादशाह की बेटियां या तो दुःखद युवा मौत मरी या फिर किसी के साथ भाग गई।अधिकांश मुगल राजकुमारियां किसी ना किसी हिंदू युवा के साथ भाग गई।पकड़े गए तो सारे परिवारी जनों के साथ मारे गए।वे दूर-दराज की पहाड़ियों में अज्ञात/अनाम रहकर मरे।कई मुगल युवतियां बाकी के जीवन में हिंदू दुल्हन बन कर रही।हां यह अलग बात है कि मुगल प्रशासन/इतिहासकार यह बात दबा गये।आज भी उनके वंशज देश में मौजूद है।गढ़वाल और कुमायूं की पहाड़ियों में आज भी कई दुल्हिनो को सम्मान से मुगली(शाहजादी) कहा जाता है।मजे की बात यह है उन पहाड़ियों में बसे ये ब्राम्हण परिवार आगरा से दिल्ली के तिवारी/वाजपेयी है।कब आये किसी को पता नही बस केवल गोत्र पता है।यह मराठी ब्राम्हणों से अलग है।उस रक्त से ही शायद कोई जीवित हो।बाकी तो पुरुषों के ससुराली पक्ष में कुछ लोग बचे हैं।उनमे से कुछ हिन्दू ही थे।वर्तमान सेकुलर उन्ही कुलो से है।लगभग सारे मुगल बड़ी दर्दनाक मौत मरे।काल-चेतना,मंदिरों से निकली कृत्याओ ने किसी को भी नही बख्शा।
1857 में आधिकारिक रूप से भारत से मुगलिया और इस्लामिक शासन समाप्त करके अंग्रेजो ने भारत की स्वततंत्रा की नींव डाली।सनातन समाज में दुख उत्पन्न करने वालों को पता नहीं था कि मंदिरों का तोड़ा जाना,स्त्रियो-बच्चों का विलाप,संतों,सन्यासियों,पुजारियों का मारा जाना,हजारों साल की पुरानी इमारतों से निकली हुई देव-तन्त्र-कृत्या इसी लोक में व्याप्त रहती थी।वह स्वयं में भी तंत्र कृत्या के रूप में खड़ी रहती थी।उसने वैसे का वैसा रूप लौटाया जिस वंश ने जितना नाश, जितना अत्याचार, जितना पाप कर्म भारतवर्ष में जैसे किया उसी रुप में, उसी तरह उसके वंशजों को जड़ मूल सहित लौटाया गया।उसके वंश-रक्त-जीन्स का पूर्ण नाश हो गया।जिसने भी भारत में दुःख उत्पन्न किया,कृत्या ने खोज-खोज करके उस जेनेटिक कोड के व्यक्तियों को मार दिया।उसके हिसाब-किताब मे कोई गड़बड़ी कभी नही होती।आज उनका कोई नामलेवा नहीं बचा है।उन्हें लगता था जेहाद या मजहब के नाम पर दुख फैला कर वह जन्नत पाने का काम कर रहे हैं लेकिन उनके ठीक सामने उनके वंश के लोग, उनके रक्त संबंधी,उनके रिश्तेदार सब मारे जा रहे थे।बिल्कुल उसी तरीके से जिस नियम से उन्होंने दूसरों के लिए बनाया था।वह चित्त मे मोह उत्पन्न करती है वही मोह जो उन्होने दुसरो के लिए बनाए थे।या उन जैसा ही कोई एक शत्रु पैदा कर देती है।उन बुद्धिहीन जाहिलों ने ईश्वरीय संदेशो को भी समझने की कोशिश भी नहीं की सनातन समाज में दुख पैदा करने वालों को खुद दंड देती है।क्योंकि यह पुण्य भूमि भारत है।
सारे गवर्नर जनरलों और वायसराय के बारे में पता करें,शोध करने पर कुछ इस तरह की ही परिणति पता चलती हैं।महाकाली की कृत्या शक्ति ने किसी को भी नहीं बख्शा।अगर किसी गवर्नर जनरल ने मानवीय पहलू और सभी कोड़ो के साथ भारत के शासन में एक्सेस किया था तो ही वह बच सके।वरना कृत्याओ ने उनके जीन्स को खोज-खोज कर मार दिया।क्लाइव,वारेन हेस्टिंग्ज,वेलेजली के तो पागल होने की खबर है।बाद के अन्य गवर्नरों पर शोध-काम की जरूरत है।आजादी के बाद के भी भारतीय शासकों के बारे में पता करें जिस किसी ने उन कोडो के साथ संतुलन नहीं बैठाया,उसका क्या हश्र हुआ? मैं केवल इंदिरा जी,राजीव गांधी की ही बात नहीं कर रहा अन्य की भी बात कर रहा हूं।इशारों को अगर समझो।
आप जरा अफगानिस्तान की स्थिति देखिए।अफगानिस्तान की वह भूमि पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस पाप को भुगतती रही,पिछले हजार साल में कोई महीना ऐसा गया होगा जब वहा कत्ले आम न हुआ हो।कहते हैं पाप का कीड़ा कुलबुलाता रहता है|उसका अंत २००१ में अमेरिका के ट्विन्स-टावर पर हुए हमले के बाद हुआ।२८ देशो की सेनाओ ने अमेरिका के साथ मिलकर।जन-संख्या आधी कर दी,इमारते नेस्तनाबूट हो गयी,लोग कभी सुखी नहीं रहे,ईराक,सीरिया,मिश्र,सूडान,बमो की गड़गडाहत.,गिरते ऊंची भव्य मस्जिदे,मरते लोग,पूरा अरब जगत सेम वही दर्द भुगत रहा जो उसने भारत भूमि मे पैदा किया था।कभी नहीं सोचता।पर सच्चाई यही है।यही हाल हर उस सख्श का हुआ जिसने सनातन मंदिर तोड़े और पुजारियों की हत्याएं की,जनेऊँ जलाए।जबरदस्ती धर्मंतारित किये।दुःख पैदा किये हैं तो सुख नही लौटेगा।इन्तजार करो यह व्यक्तियों की बारी थी अब सिद्द्धान्तो की बारी है।
“”धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो,,.कहने वाले सिद्धांतो को मानने वाले कभी नहीं हारते,मंदिर और इमारतें तो वैसे नष्ट-प्राय है।महान शौर्य-वान,योद्धा क्षत्रिय राजाओ,वीर सैनिको,पवित्र साधुओ,पुजारियों का क्या जो दैहिक मृत्यु को प्राप्त हुए।वे तो वैसे भी अजर-अमर आत्मा है।फिर जन्म लेंगे सनातन चेंतना में प्राण फूंकने और असुरो का नाश करने, धर्म कार्य करने,समस्या तो उन्हें है जो गड़े इन्तजार करेंगे और कायर?
वह् तो कायरता प्रदर्शन के समय ही।यह है सनातन की अबाध,सनातन-काल-यात्रा,जिसे न कोई मिटा सकता है,न जला सकता है,न ही कोई उड़ा सकता है,न ही जमींदोज कर सकता है,अजर-अमर-और कालवाह्य।
कभी वंश के वंश,कुल के कुल इलाके के इलाके,पूरा का पूरा समुदाय,देश ही वह गजनवी-लुट की चेतना खा जाती है।उस चेतना ने खून बहाने,कत्ल करने,मिटाने की अकूत क्षमता है।कोई नामलेवा नहीं छोड़ती।उस जाति,नस्ल,कुल,को लोग ठीक वही और उससे पालिसी की ‘’मौत और दंड,, गत १४सौ सालों से पा रहे जो वह दूसरों के लिए निर्धारित करते रहे हैं।सबसे मजे की बात वह दशक,शतक,या सहस्रक भी नही पूरी कर पाते।सम्पूर्ण जींस ही मिट जाया करती है।लेकिन उससे सबक नहीं लिया जाता।वरना आप एक भी खुशहाल वंशज खोज कर निकाल दीजिये।पुजारी आज भी वही कुल,गोत्र और बाप-दादों के नाम के साथ उन्ही परम-प्रभु की उन्ही मन्त्रो से सेवा-उपासना कर रहे हैं उन्ही मन्त्रो से,जिनसे उनके पूर्वज उस विशाल-भव्य मन्दिर तोड़े जाने से पहले से कर रहे थे|ईरान या सभी अरब देशों को देखे किस हाल में है। वहां मत के सन्नाटे पसरे हुए हैं।महाकाली का मृत्यु-नाच रोज होता है।पाकिस्तान की स्थिति देखी और ईरान की देखिए जिया-उल-हक,बेनजीर भुट्टो, जुल्फिकार अली भुट्टो,जिन्नाह,अयूब खान और बाकी के पाकिस्तानी शासको का क्या हश्र हुआ।वह जमीन भुगत रही है,आसमान भुगत रहा है,लोग भुगत रहे हैं।उसकी कोप दृष्टि ही है यह।महाकाली किसी को बख्शती नहीं।बस देखने की दृष्टि चाहिए।
चं-चं-चं चन्द्र-हासा चचम चम-चमा चातुरी चित्त-केशी।
यं-यं-यं योग-माया जननि जग-हिता योगिनी योग-रुपा।।
डं-डं-डं डाकिनीनां डमरुक-सहिता डोल हिण्डोल-डिम्भा।
रं-रं-रं रक्त-वस्त्रा सरसिज-नयना पातु मां देवि-दुर्गा।।
Pawan Tripathi, राजेंद्र सिंह राठौर बालबा जी