क्या घृणा की एक झौंसी साँस भी
छू लेगी तुम्हारा गात
प्यार की हवाएँ सोंधी
यों ही बह जाएँगी?
एक सूखे पत्ते की ही खड़-खड़
बाँधेगी तुम्हारा ध्यान
लाख-लाख कोंपलों की मृदुल गुजारें
अनसुनी रह जाएँगी?
चौखटे की दीमक का
उद्यम अनवरत देख तुम
खिड़की से बाहर न झाँकोगे
पक्षियों की बीटों का क्या
उपयोग होगा, इसी चिन्ता में
जमीन को कुरेदते
ऊपर का मुक्त-मुक्त-मुक्त
आकाश नहीं ताकोगे?