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गज़ल(ख्वाहिशें क्यूँ नहीं होती हैं कम ) सब्र का रास्ता क्यूं हुआ गुम, ख़्वाहिशों क्यूं नहीं होती हैं कम्। दर्द से आशिकी जब से की है , खुशियाँ जलती,चराग़ों सा हरदम्। पैसे वालों से सरकारें डरतीं, मंदिरों में भी है उनका मातम्। दिल पहाड़ों पे कुर्बां है मेरा, तू ज़मीनी हक़ीक़त का रख भ्रम्। चांदनी बेवाफ़ाई की ज़द में, चांद के घर अंधेरों का सरगम्। ( डा: संजय दानी)

6 जनवरी 2022

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(ख्वाहिशें  क्यूँ  नहीं  होती  हैं  कम )

सब्र का रास्ता क्यूं हुआ गुम,
ख़्वाहिशों क्यूं नहीं होती हैं कम्।

दर्द से आशिकी जब से की है ,
खुशियाँ जलती,चराग़ों सा हरदम्।

पैसे वालों से सरकारें डरतीं,
मंदिरों में भी है उनका मातम्।

दिल पहाड़ों पे कुर्बां है मेरा,
तू ज़मीनी हक़ीक़त का रख भ्रम्।

चांदनी बेवाफ़ाई की ज़द में,
चांद के घर अंधेरों का सरगम्।

( डा: संजय दानी)
Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा

20 जनवरी 2022

6 जनवरी 2022

6 जनवरी 2022

1
रचनाएँ
( उपन्यास ] आरक्ष्ण
0.0
ये एक प्रेम कहानी है । एक लड़की जिसका नाम दीव्या है और एक लड़का रौशन पड़ोस में रहते हैं । एक स्कूल में पढते हैं : रौशन बेहद ब्रिलिएंट विद्ध्यार्थी है , वहीं दीव्या होशियार है । दिव्या को गणित के कठिन सवालों को हल करने के लिए रौशन का सहारा लेना पड़ता था । रौशन की इस खासियत से दीव्या उस लड़के से प्रम करने लगती है । दीव्या आदिवासी परिवार की बच्ची है ,दिखने में ख़ूबसूरत । वहीं रौशन ब्राह्मण परिवार का लड़का है । रौशन एक लंबे समय तक दीव्या को सिर्फ़ अपना शिष्या ही मानता रहा । फिर 10 वषों तक दोनो जुदा हो जाते हैं : उसके बाद उनकी पहचान कुछ खास कारणों से बदल जाती है । रौशन मेहनत के बावजुद आइएस क्रेक नही कर पता वहीं दीव्या कलेक्टर बन जाती है । रौशन स्पटेट पीएससी पास करके डिप्टी कलेक्टर बन जाता है > दोनों की पोस्टिंग एक ही जगह हो जाती है । दोनों एक दूसर को पहचान नहीं पाते । कुछ अंतराल के बाद दोनों को एक दूजे के बार में पता चलता है । दोनों के बीच एक दूजे के प्रति शाफ़्ट कार्नर डेवलप हो जाता है । उधर रौशन इस बात से परेशान रहता है कि वह ब्रिलिएंट होने के बाद आइएएस नहीं बन पाया वहीं दीव्या मुझसे कम बुद्धिमान होने के बावजूद आइएस बन गई> उसके मन में आरक्षण के विरुद्ध गांठ बनने लगती है और वह पद त्याग कर आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करने लगता है । दीव्या अपने प्रेमी को पाने अपने पद का त्याग करके खुद भी आरक्षण के विरोध होने वाले आंदोलन में रौशन के साथ खड़ी हो जाती है । यहां पर फिर प्रेम की जीत होती है। दोनों का मिलन हो जाता है ।अंदोलन की सफ़लता पर अभी भी प्र्श्नवाचक चिन्ह लगा है । लेकिन दोनों आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन में सतत लगे रहते हैं > धीरे धूरे उनके साथ हज़ारों लोग जुड़ने लग जाते हैं > अब इनका संगठन इतना बड़ा हो जाता है कि सरकार भी उनकी बातों को सुनने उन्हें आमंत्रित करने लगती है ।

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