(ख्वाहिशें क्यूँ नहीं होती हैं कम )
सब्र का रास्ता क्यूं हुआ गुम,
ख़्वाहिशों क्यूं नहीं होती हैं कम्।
दर्द से आशिकी जब से की है ,
खुशियाँ जलती,चराग़ों सा हरदम्।
पैसे वालों से सरकारें डरतीं,
मंदिरों में भी है उनका मातम्।
दिल पहाड़ों पे कुर्बां है मेरा,
तू ज़मीनी हक़ीक़त का रख भ्रम्।
चांदनी बेवाफ़ाई की ज़द में,
चांद के घर अंधेरों का सरगम्।
( डा: संजय दानी)