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हर हाल में हारेगा बिहार का मतदाता

1 अक्टूबर 2015

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गिरिजा नंद झा

बिहार के मतदाताओं के साथ एक और बड़ा मज़ाक। भारतीय जनता पार्टी अगर सत्ता में आएगी तो गरीबों, यहां पर गरीबों से मतलब दलितों से है, को टीवी और स्कूली बच्चों को लैपटाॅप देगी। नीतिश कुमार नारों से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मगर, लालू प्रसाद यादव आरक्षण पर आक्रामक मुद्रा अपना कर फिलहाल अपनी पीठ थपथपाने में लगे हैं। जीतन राम मांझी, रामविलास पासवान, मुलायम सिंह यादव, पप्पू यादव सरीखे कई नेता हैं जिनकी पार्टियां अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ले, वही बड़ी बात होगी। इनके जितने विधायक जीत जाएं, वही इन सभी के लिए गर्व से सीना तान कर खड़े होने की वजहें होंगी। जिस तरह की गड़बड़ स्थितियां पैदा कर राजनैतिक पार्टियां जीत की आस लगाए बैठी है, उससे इतना तो तय है कि  सभी राजनैतिक पार्टियां अब भी ‘प्रागैतिहासिक काल’ के राजनीतिक ढर्रे से आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं है। वह भी तब, जब बिहार में भी नारों, जुमलों और वायदों से चुनाव जीतने का दौर तो कब का खत्म हो चुका है। 


दिल्ली की तरह ही बिहार में भी भाजपा अपनी गलती को दोहरा रही है। भाजपा जरूरतों की बातें करने के बजाय सुविधाओं की बात कर रही है। बिहार में लोगों को सड़क चाहिए। बिजली चाहिए। शिक्षा चाहिए। रोजगार चाहिए और सबसे बढ़ कर एक ऐसा माहौल चाहिए, जो जीने के लायक हो। बिहार के मतदाताओं के लिए इस मामले में नीतिश कुमार दूसरी पार्टियों से थोड़े आगे हैं। मगर, नीतिश कुमार ने जो गलतियां की हैं उसका खामियाजा तो उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार कर पहली गलती की। लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन कर उन्होंने अपनी राजनैतिक कब्र खोद ली। उनसे किसी समझदारी वाली कदम उठाने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती मगर, जिस तरह से भाजपा में अफरातफरी मची है, उससे बाजी पलट जाए, इसकी संभावना जरूर बन रही है। 


बिहार पिछड़ा है। बिहार के लोगों में गंवईपन है मगर, उतने मूरख नहीं कि चुनावी नारों से उन्हें बेवकूफ बनाया जा सके। पार्टियां अभी भी बिहार के मतदाताओं को समझने की भूल कर रही है, इसलिए नतीजे उन्हें चैंकाएगी। दरअसल, 2005 और फिर 2010 के चुनाव में जिस तरह के परिणाम सामने आए, उसे देखते हुए इतना तो दावे के साथ कहा ही जा सकता है। जिस तरह के रूझान फिलहाल आ रहे हैं, उसके मुताबिक नीतिश कुमार को जो झटका लगने वाला है, वह लालू प्रसाद यादव की वज़ह से लगने वाला है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि नीतिश कुमार की राजनैतिक जमीन दलदली हो गई है और भाजपा सूखी और मोटी जमीन पर खड़ी है। 2005 में नीतिश कुमार ने भाजपा के साथ मिल कर जिस तरह से राजपाट चलाया, लोगों को पसंद आया और 2010 में इस गठबंधन को फिर से राजपाट चलाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। मतलब यह कि बिहार के मतदाताओं ने साफ कर दिया कि पिछड़ेपन का मतलब गंवारापन नहीं होता। यह भी कि बिहार 16वीं सदी से बाहर निकल चुका है। विकास पार्टियों का एजेंडा हो या ना हो, मतदाताओं के एजेंडे में यह जरूर शामिल है। 


जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव का क्या हश्र हुआ? रामविलास पासवान दलितों के नाम पर कितनी बड़ी सामथ्र्य को हासिल कर सके? जीतन राम मांझी का तो लोग नाम ही अब जानने लगे हैं। पप्पू यादव अपने दम पर, बाहुबल के आधार एक आध सीट जीत लें, यही बड़ी बात होगी। उनकी पार्टी का नाम लेने वाला भी कोई नहीं रह जाएगा। कांग्रेस के पतन को ले कर शब्दों को खर्च करने की जरूरत अब शायद रह नहीं गई है। 2005 में भी बिहार में एमवाई का समीकरण था और 2010 में भी। 15 सालों तक लालू प्रसाद एंड फैमिली को लोगों ने मौका दिया। लालू यादव के ‘जंगल राज’ ने लोगों के नाक में दम कर दिया और उनके पतन की पटकथा लिख दी गई। लालू प्रसाद यादव अपने परिवार को भी राजनैतिक स्तर पर जोड़ कर नहीं रख पाए तो बिहार के यादव और मुसलमान उनके साथ अब भी जुड़े रहेंगे, इस बात का भरोसा तो वे खुद भी नहीं कर पा रहे। 


रही बात आरक्षण पर आक्रामक रूख अख्तियार कर सीटें बढ़ाने की तो अब शायद उनके लिए बहुत देर हो चुकी है। बावजूद इसके, भाजपा को उनकी आक्रामता ने डरा जरूर दिया है। टिकट बंटवारे के बाद से भाजपा में जो कलह है, वह ठीक वैसी ही है जैसी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय थी। कुल मिला कर भाजपा की जमीन को गीली भाजपा वाले करेंगे और भाजपा की कमजोरी का फायदा नीतिश कुमार को मिल जाएगा। यकीन करना थोड़ा मुश्किल जरूर है मगर, परिणाम भाजपा के लिए संतोषजनक नहीं आने वाला है। विकल्पहीनता के स्थिति में नीतिश कुमार बाजी मार लेंगे। देखिएगा। परिणाम चाहे जो भी मगर हर हाल में हारना बिहार के मतदाता को है। 


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कुछ नया, कुछ बेहतर चाहिए लोगों को

10 फरवरी 2015
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बिजली पर बिजली गिरा रहे हैं मोदी

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गिरिजा नंद झा बहुत पुरानी बात नहीं है। प्याज की बढ़ी कीमत पर कांग्रेसी कानून मंत्री कपिल सिब्बल कहते थे, प्याज सरकार नहीं बेचती। सिब्बल पहली बार इस जानकारी को लोगों से ‘शेयर’ कर रहे थे, क्योंकि लोगों को तो यही पता था कि प्याज सरकार बेचती है! अब वे कहीं दिखाई नहीं देते। उन्हंे सुने तो महीनों गुजर गए

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पुराने जुमले से ‘जमीन’ पाटने में जुटी भाजपा सरकार

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चटखने की आवाज़ पर ख़ामोशी के मायने

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गिरिजा नंद झा योगेंद्र यादव बाहर कर दिए गए। प्रशांत भूषण को भी ठिकाने लगा दिया गया। अब मयंक गांधी की बारी होगी। इसी तरह से एक के बाद एक विरोध के स्वर मुखर होंगे और बाद में बचेंगे अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह। एकाध और बच जाएं तो बच जाएं, बहुत ज्यादा नहीं बचेंगे, गिनती के लिहाज़ से। जिस

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‘न्याय’ पर हाशिमपुरा के लोगों की चीत्कार

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गिरिजा नंद झा 22 मई 1987 की बात है। उस दिन शायद हाशिमपुरा में इतनी उदासी नहीं थी, इतनी खामोशी भी नहीं और इतना गम भी नहीं था। मगर, 27 साल बाद जब अदालत का फैसला आया, तो 42 लोगों की मौत पर लोग चीत्कार उठे। बरसों से खामोश लोगों की जिंदगी में भूचाल आ गया। जिंदगी ठहर सी गई लगने लगी लोगों को। बेबसी और लाच

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ख़बरदार, नहीं गिरने चाहिए आंसू के एक बूंद भी

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गिरिजा नन्द झा बंद कीजिए, संवेदनशील होने का ढ़ोंग। मरने दीजिए, किसानों को अपनी मौत। कोई जरूरत नहीं है, उनकी बेबसी और लाचारी पर या फिर उनकी मौत पर आंसू बहाने की। नहीं जरूरत है, उन्हें आपकी सहानुभूति की। नहीं जरूरत है, आपके ढंाढस की। नहीं चाहिए, उन्हें आपसे कोई मुआवज़ा। जिन आंखों के आंसू सूख चुके हैं

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आसान नहीं है मौत

18 अप्रैल 2015
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मैगी के सच से सचमुच डर गए क्या?

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जुमलों की सरकार

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शिक्षित होने का अर्थ, नहीं होने का अनर्थ

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हर हाल में हारेगा बिहार का मतदाता

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गिरिजा नंद झाबिहार के मतदाताओं के साथ एक और बड़ा मज़ाक। भारतीय जनता पार्टी अगर सत्ता में आएगी तो गरीबों, यहां पर गरीबों से मतलब दलितों से है, को टीवी और स्कूली बच्चों को लैपटाॅप देगी। नीतिश कुमार नारों से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मगर, लालू प्रसाद यादव आरक्षण पर आक्रामक मुद्रा अपना कर फिलहाल अपनी पीठ

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आरक्षण-राजद के लिए आॅक्सीजन, भाजपा के लिए ‘प्वाॅयजन’

2 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाबिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के दांव ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रणनीति पर कुठाराघात कर दिया है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा अध्यक्ष जिस तरह से सफाई देने में जुटे हैं उससे सवर्णों के वोट बैंक में सेंघ लग चुका है। भाजपा पर सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा पहले से लगा है

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बिहार के मतदाताओं को नहीं जानते प्रधानमंत्री मोदी?

3 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली को रैला बता बता कर अघाए जा रहे थे, मगर यह रैला उनकी पार्टी को कितना फायदा दिला पाएगा, इस पर संदेह गहराता जा रहा है। बिहार के लोगों को विकास चाहिए या विनाश, के सवाल ने मतदाताओं को उलझा दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो

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7 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झादिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को जो शिकस्त मिली, उसके बाद से उसका खुद पर से जो भरोसा उठा, वह अब तक बहाल नहीं हो पाया है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भाजपा की गिनती को इतना कम कर दिया कि गिनती शुरू होने के साथ ही ख़त्म हो जाती है। अरविंद केजरीवाल के सामने ना तो नरें

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‘मुंगेरीलाल’ की तरह रामविलास के हसीन सपने

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गिरिजा नंद झारामविलास पासवान गद्गदाए हुए हैं। गद्गद होने की उनके पास वज़हें भी हैं। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए घटक को अगर बिहार में जीत हासिल होती है तो कोई दलित ही वहां का मुख्यमंत्री होगा। ऐसा भाजपा वालों ने ही कह रखा है। रामविलास पासवान बिहार में दलितों के ‘स्वयंभू’ नेता हैं और दलितों के बीच वह अपन

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कुर्सी पर दावा करने वालों के लिए भाजपा में नहीं जगह!

10 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झारामविलास पासवान अपने मियां मिट्ठू बने हुए हैं। गिरिराज सिंह जरूरत से ज़्यादा लोगों का ज्ञान-विज्ञान बढ़ाने में जुटे हैं। दैनिक आधार पर ट्वीट करने में वे जितना शब्द खर्च कर रहे हैं उतने तो उन्होंने शिक्षण काल में प्रश्नों का उत्तर लिखने में शब्दों को खर्च नहीं किया होगा। रविशंकर प्रसाद ख

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क्या दिल्ली की गलती को बिहार में दोहरा रही भाजपा?

13 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाक्या बिहार भाजपा के हाथ से खिसकती जा रही है? क्या नीतिश कुमार के विकास पुरूष की छवि पर पलीता लगाने की भाजपा की रणनीति फ्लाॅप हो गई? क्या बिहार में ‘जंगल राज’ एक बार फिर से कायम हो जाएगा? क्या नीतिश कुमार बिहार में विकास की बयार नहीं बहा पाएंगे? क्या केंद्र और राज्य के बीच का संबंध चरमरा

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भूख से मरने वालों का सच नहीं जानते हम

15 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क

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बिहार के मतदाताओं के ‘रवैये’ से आहत प्रधानमंत्री मोदी

17 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारी भीड़ से कहा था कि मैं बिहार आऊंगा। जबर्दस्ती आऊंगा। अगर हवा से नहीं आने देंगे तो पैदल चल कर आऊंगा। मगर, आऊंगा जरूर। दिल्ली से बिहार की दूरी ही कितनी है। दूर भी हो तो नरंेद्र मोदी के लिए कोई चिंता की बात नहीं है। बिहार के लोगों के साथ किसी तरह का ‘अन्याय

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भाजपा से ‘शत्रुता’ साध रहे शत्रुघ्न सिन्हा?

20 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाभारतीय जनता पार्टी का आखिरी वार भी निरर्थक साबित होता जा रहा है। भाजपा ने दो चरणों के मतदान के बाद बिहार को बिहार के नेताओं के हवाले तो कर दिया मगर, महंगाई मार गई। पहले संघ परिवार के आरक्षण ने और अब भोजन भात से ‘गायब’ हो रही दाल ने भाजपा गठबंधन की गांठ को ढ़ीली कर दी है। चीज़ों की आसमान

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दलित नाराज, बचे हैं तीन चरण के मतदान

23 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाक्या भारतीय जनता पार्टी में अध्यक्ष अमित शाह का दबदबा खत्म होता जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘अनुशासनप्रियता’ को जिस तरह से तार-तार किया जा रहा है, उससे तो इसी बात की पुष्टि होती है। मंत्रियों और सांसदों की बढ़ रही ‘बदजुबानी’ से भाजपा की साख मटियामेट होती जा रही है। बिहार विध

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हारी हुई पार्टी की तरह बिहार में हारी भाजपा

9 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाबिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की कसौटी नहीं है। यह परिणाम इस बात का भी प्रमाण नहीं है कि मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के विकास के  विज़न को नकार दिया। यह इस बात की भी पुष्टि नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह में जीत को सुनिश्चित करने की ‘काबिलिय

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चुनावी नतीजों के बहाने राजनीति का अंकशास्त्र

10 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाएक बात नोट कर लीजिए। लोगों की सोच एक दिन में नहीं बदलती। अब लोग दिन, महीने और साल का बही खाता साथ में रखते हैं। कौन क्या कर रहा है और किसे क्या करना चाहिए-इसकी पूरी जानकारी लोगों को है। ऐसे में यह कह देने से कि पिछले हिसाब किताब में गड़बड़ है और मेरा हिसाब किताब पाक-साफ है, बात खत्म नही

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नए अवतार में मैगी-स्वाद के साथ सेहत की गारंटी!

12 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाअब ना खाने के दौरान किचकिच होगी और ना ही तैयार करने में आनकानी की जाएगी। आखि़र दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी बाजार में दाखिल हो चुकी है। महीनों का इंतज़ार लोगों को थकाया जरूर लेकिन, लोग खाना पकाते-पकाते पक पाते, उससे पहले मैगी बाजार में आ गई। हालांकि, नेस्ले की मैगी से पहले रामदेव बा

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