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बिहार के मतदाताओं को नहीं जानते प्रधानमंत्री मोदी?

3 अक्टूबर 2015

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गिरिजा नंद झा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली को रैला बता बता कर अघाए जा रहे थे, मगर यह रैला उनकी पार्टी को कितना फायदा दिला पाएगा, इस पर संदेह गहराता जा रहा है। 

बिहार के लोगों को विकास चाहिए या विनाश, के सवाल ने मतदाताओं को उलझा दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो टूक शब्दों में दी गई यह जानकारी कि बिहार का विकास भाजपा के बगैर मुमकिन नहीं है, को मतदाता धमकी माने या फिर उनकी सलाह। अगर, मतदाता इस उलझन को मतदान से पहले नहीं सुलझा पाते हैं तो यह दांव भाजपा पर उलटा पड़ जाने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि ‘गलती’ से मतदाता नीतिश कुमार को अपना नेता चुनते हैं तो केंद्र ने सवा लाख करोड़ रुपये देने का जो ऐलान किया था, वह बिहार को नहीं मिलेगा। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक नीतिश कुमार ‘अहंकारी’ हैं और वे केंद्र के ‘अनुदान’ को स्वीकार नहीं करेंगे। जब ‘अनुदान’ को स्वीकार ही नहीं किया जाएगा तो उसे देने का कोई मतलब नहीं रह जाता। 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के मतदाता को समझने में बड़ी भूल कर रहे हैं। बिहार के मतदाताओं को पटाने के लिए उन्हें ‘धमकी’ देने से परहेज करना चाहिए था। बिहार के लोगों के साथ एक अच्छी बात यह है कि वह ‘जंगल राज’ को भी आसानी से झेल लेते हैं और धमकी मिलने पर ‘रामराज्य’ को ठुकराने में भी देर नहीं लगाते। जो लोग बिहार के लोगों की मानसिकता से परिचित हैं, वे इस बात का दावा कर सकते हैं। रही बात केंद्र के ‘अनुदान’ से बिहार को विकास के पथ पर आगे ले जाने की बात, तो बिहार का पिछड़ापन उसकी पहचान है और वहां पर इससे अलग हट कर सोचने का वक़्त अभी आया नहीं है। 


प्रधानमंत्री मोदी बिहार की चुनावी सभा को संबोधित करने से पहले बिहार और बिहार के लोगों के बारे में जान लेते तो अच्छा होता। बिहार के मतदाताओं में सूझ बूझ की कमी है। बिहार में पढ़े लिखे लोगों की संख्या कम है। यहां पर डिग्री हासिल करने का तरीका दुनिया को पता है। बावजूद इसके, राजनैतिक और बौद्धिक स्तर पर वह किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है। और एक बात और जो बिहार के लोगों को ख़ास बनाता है वह यह कि कोई भी बात अगर खटक जाए तो फिर, उस पर कोई भी तर्क काम नहीं करता। बिहार को क्या मिलना चाहिए और कितना मिल रहा है, इस बात को केंद्र की सरकार बहुत अच्छी तरह से जानती है और यह भी कि जानबूझ कर बिहार को उसके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहली बार बड़े जोशो खरोश से बिहार को विकास के नाम पर सवा लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया था, तभी लोगों को यह समझ में आ गया था कि यह चुनावी पैकेज है। इसका असर बहुत देर तक नहीं रहने वाला। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन से इसे साफ भी कर दिया। 


फ़र्क कितना पड़ेगा वह इस बात से तय होगा कि इस बयान का इस्तेमाल बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतिश कुमार किस तरह से करते हैं? नीतिश कुमार अगर, लोगों को यह समझाने में कामयाब हो गए कि प्रधानमंत्री मोदी की नीयत बिहार के मतदाताओं को डरा धमका कर जीत हासिल करने की है तो नतीजों पर काफी फ़र्क पड़ सकता है। उधर, लालू प्रसाद यादव एकसूत्री योजना पर काम कर रहे हैं और आरक्षण के नाम पर ‘आत्मोसर्ग’ का जो गीत हर मंच से गा कर लोगों को सुना रहे हैं, वह सवर्णों को भी भाजपा से बिमुख करता जा रहा है। कुल मिला कर नीतिश कुमार की खामोशी भाजपा को बुरी तरह से उकसा रही है और जिस तरह से भाजपा नेताओं के बोल बच्चन गड़बड़ा रहे हैं, उससे यह साबित भी हो जाता है।


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पुराने जुमले से ‘जमीन’ पाटने में जुटी भाजपा सरकार

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7 अक्टूबर 2015
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‘मुंगेरीलाल’ की तरह रामविलास के हसीन सपने

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गिरिजा नंद झारामविलास पासवान गद्गदाए हुए हैं। गद्गद होने की उनके पास वज़हें भी हैं। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए घटक को अगर बिहार में जीत हासिल होती है तो कोई दलित ही वहां का मुख्यमंत्री होगा। ऐसा भाजपा वालों ने ही कह रखा है। रामविलास पासवान बिहार में दलितों के ‘स्वयंभू’ नेता हैं और दलितों के बीच वह अपन

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कुर्सी पर दावा करने वालों के लिए भाजपा में नहीं जगह!

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भूख से मरने वालों का सच नहीं जानते हम

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गिरिजा नंद झाभारतीय जनता पार्टी का आखिरी वार भी निरर्थक साबित होता जा रहा है। भाजपा ने दो चरणों के मतदान के बाद बिहार को बिहार के नेताओं के हवाले तो कर दिया मगर, महंगाई मार गई। पहले संघ परिवार के आरक्षण ने और अब भोजन भात से ‘गायब’ हो रही दाल ने भाजपा गठबंधन की गांठ को ढ़ीली कर दी है। चीज़ों की आसमान

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दलित नाराज, बचे हैं तीन चरण के मतदान

23 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाक्या भारतीय जनता पार्टी में अध्यक्ष अमित शाह का दबदबा खत्म होता जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘अनुशासनप्रियता’ को जिस तरह से तार-तार किया जा रहा है, उससे तो इसी बात की पुष्टि होती है। मंत्रियों और सांसदों की बढ़ रही ‘बदजुबानी’ से भाजपा की साख मटियामेट होती जा रही है। बिहार विध

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हारी हुई पार्टी की तरह बिहार में हारी भाजपा

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गिरिजा नंद झाबिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की कसौटी नहीं है। यह परिणाम इस बात का भी प्रमाण नहीं है कि मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के विकास के  विज़न को नकार दिया। यह इस बात की भी पुष्टि नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह में जीत को सुनिश्चित करने की ‘काबिलिय

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चुनावी नतीजों के बहाने राजनीति का अंकशास्त्र

10 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाएक बात नोट कर लीजिए। लोगों की सोच एक दिन में नहीं बदलती। अब लोग दिन, महीने और साल का बही खाता साथ में रखते हैं। कौन क्या कर रहा है और किसे क्या करना चाहिए-इसकी पूरी जानकारी लोगों को है। ऐसे में यह कह देने से कि पिछले हिसाब किताब में गड़बड़ है और मेरा हिसाब किताब पाक-साफ है, बात खत्म नही

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नए अवतार में मैगी-स्वाद के साथ सेहत की गारंटी!

12 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाअब ना खाने के दौरान किचकिच होगी और ना ही तैयार करने में आनकानी की जाएगी। आखि़र दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी बाजार में दाखिल हो चुकी है। महीनों का इंतज़ार लोगों को थकाया जरूर लेकिन, लोग खाना पकाते-पकाते पक पाते, उससे पहले मैगी बाजार में आ गई। हालांकि, नेस्ले की मैगी से पहले रामदेव बा

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