गिरिजा नंद झा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली को रैला बता बता कर अघाए जा रहे थे, मगर यह रैला उनकी पार्टी को कितना फायदा दिला पाएगा, इस पर संदेह गहराता जा रहा है।
बिहार के लोगों को विकास चाहिए या विनाश, के सवाल ने मतदाताओं को उलझा दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो टूक शब्दों में दी गई यह जानकारी कि बिहार का विकास भाजपा के बगैर मुमकिन नहीं है, को मतदाता धमकी माने या फिर उनकी सलाह। अगर, मतदाता इस उलझन को मतदान से पहले नहीं सुलझा पाते हैं तो यह दांव भाजपा पर उलटा पड़ जाने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि ‘गलती’ से मतदाता नीतिश कुमार को अपना नेता चुनते हैं तो केंद्र ने सवा लाख करोड़ रुपये देने का जो ऐलान किया था, वह बिहार को नहीं मिलेगा। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक नीतिश कुमार ‘अहंकारी’ हैं और वे केंद्र के ‘अनुदान’ को स्वीकार नहीं करेंगे। जब ‘अनुदान’ को स्वीकार ही नहीं किया जाएगा तो उसे देने का कोई मतलब नहीं रह जाता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के मतदाता को समझने में बड़ी भूल कर रहे हैं। बिहार के मतदाताओं को पटाने के लिए उन्हें ‘धमकी’ देने से परहेज करना चाहिए था। बिहार के लोगों के साथ एक अच्छी बात यह है कि वह ‘जंगल राज’ को भी आसानी से झेल लेते हैं और धमकी मिलने पर ‘रामराज्य’ को ठुकराने में भी देर नहीं लगाते। जो लोग बिहार के लोगों की मानसिकता से परिचित हैं, वे इस बात का दावा कर सकते हैं। रही बात केंद्र के ‘अनुदान’ से बिहार को विकास के पथ पर आगे ले जाने की बात, तो बिहार का पिछड़ापन उसकी पहचान है और वहां पर इससे अलग हट कर सोचने का वक़्त अभी आया नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी बिहार की चुनावी सभा को संबोधित करने से पहले बिहार और बिहार के लोगों के बारे में जान लेते तो अच्छा होता। बिहार के मतदाताओं में सूझ बूझ की कमी है। बिहार में पढ़े लिखे लोगों की संख्या कम है। यहां पर डिग्री हासिल करने का तरीका दुनिया को पता है। बावजूद इसके, राजनैतिक और बौद्धिक स्तर पर वह किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है। और एक बात और जो बिहार के लोगों को ख़ास बनाता है वह यह कि कोई भी बात अगर खटक जाए तो फिर, उस पर कोई भी तर्क काम नहीं करता। बिहार को क्या मिलना चाहिए और कितना मिल रहा है, इस बात को केंद्र की सरकार बहुत अच्छी तरह से जानती है और यह भी कि जानबूझ कर बिहार को उसके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब पहली बार बड़े जोशो खरोश से बिहार को विकास के नाम पर सवा लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया था, तभी लोगों को यह समझ में आ गया था कि यह चुनावी पैकेज है। इसका असर बहुत देर तक नहीं रहने वाला। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन से इसे साफ भी कर दिया।
फ़र्क कितना पड़ेगा वह इस बात से तय होगा कि इस बयान का इस्तेमाल बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतिश कुमार किस तरह से करते हैं? नीतिश कुमार अगर, लोगों को यह समझाने में कामयाब हो गए कि प्रधानमंत्री मोदी की नीयत बिहार के मतदाताओं को डरा धमका कर जीत हासिल करने की है तो नतीजों पर काफी फ़र्क पड़ सकता है। उधर, लालू प्रसाद यादव एकसूत्री योजना पर काम कर रहे हैं और आरक्षण के नाम पर ‘आत्मोसर्ग’ का जो गीत हर मंच से गा कर लोगों को सुना रहे हैं, वह सवर्णों को भी भाजपा से बिमुख करता जा रहा है। कुल मिला कर नीतिश कुमार की खामोशी भाजपा को बुरी तरह से उकसा रही है और जिस तरह से भाजपा नेताओं के बोल बच्चन गड़बड़ा रहे हैं, उससे यह साबित भी हो जाता है।