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आसान नहीं है मौत

18 अप्रैल 2015

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गिरिजा नंद झा आसान नहीं है मौत। आसान होती तो लोग मर खप गए रहते। कहंा मर रहे हैं? इंतज़ाम तो पुख़्ता है मगर जिंदगी ही इतनी अक्खड़ है कि मौत आती ही नहीं। पानी तो लोहे को भी सड़ा गला देता है। मगर, हाड़ मांस का यह शरीर गलने में इतना समय क्यों ले रहा? एक हफ्ता गुजर चुका है। पानी का असर तो अब तक नहीं दिखा है। मगर, पानी में रहने वाले जोंक आदि जीव जंतुओं ने सत्याग्रहियों को आहार बनाना शुरू कर दिया है। पानी का असर थोड़ा बहुत ही पड़ रहा है। मध्यप्रदेश के खांडवा जिले में लोग नर्मदा नदी के बांधों का जलस्तर बढ़ाए जाने के खिलाफ हैं। आंेकारेश्वर बांध का जलस्तर दो मीटर बढ़ाए जाने के फैसले के खिलाफ दर्जनों लोग सात दिनों से पानी में डेरा जमाए हुए हैं। सत्याग्रही पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। मामला अदालत में अटका पड़ा है। तीन जजों को इस मामले में अपना ी राय देनी थी। मगर, एक जज जरूरी काम में फंस गए? अदालत का मामला है, जजों को अपनी प्राथमिकताएं तय करने का पूरा अधिकार है। लोग पानी में डेरा जमाए हुए हैं। उनकी हालत बिगड़ रही है। शरीर का जितना हिस्सा पानी में डूबा है, वह तो क्षत विक्षत होने ही लगा है। साथ ही, सिरदर्द से ले कर सर्दी बुखार तो ऐसा है कि इससे कोई भी बचा हुआ नहीं है। भैय्या जब मामला अदालत में है तो लोगों को चाहिए कि जब तक घर बचा है, उसमें रहे। बात ही नहीं समझते। बस, जि़द पर अड़े हुए हैं। रहिए अड़े। जज साहब को जब फुर्सत मिलेगी, तभी तो आपकी समस्या पर ग़ौर कर पाएंगे। मौत सबसे बड़ा सच है। मौत सबको आती है। किसी को पहले किसी को बाद में। इस चिरातन सत्य को चूंकि, हम जानते हैं इसीलिए इस बात की परवाह नहीं करते कि कौन, किस तरह की मौत मर रहा है, क्यों मर रहा है? उसके आगे-पीछे का सच जानने की भी भला कोई जरूरत है क्या? बिलकुल नहीं। जो सच है, वह सच है। हर मरने वालों की मौत पर अफसोस करते रहें तो फिर हो गया बाकी का कामकाज। लोग बेघर हो जाएंगे, तो घर से बाहर पानी में डेरा जमा लिया। खेत छिन जाएगा, इस डर से फांसी लगा लिया। कहते हैं कि हम सत्याग्रह कर रहे हैं। क्यों कर रहे हैं। जब पानी में रह कर अपना निवाला जीव जंतुओं को बनने में कोई ऐतराज नहीं है तो फिर इस सत्याग्रह का मतलब क्या है? सत्याग्रह पर सत्याग्रह किए जा रहे हैं। अब, अगर भूखे नंगे लोग यह कहें कि हम तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे जब तक हमारे लिए खाने का इंतज़ाम ना हो जाएं, तो इस मज़ाक को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्या? करोड़ों लोगों के पास घर नहीं है। वे जिंदा हैं कि नहीं? करोड़ों लोगों को दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं होती है। उन्होंने कभी कोई शिकायत की है क्या? हमारा देश भूखे और नंगों का देश है। किस किस का ख़याल रखा जाए और किस तरह से। अगर, हर किसी की मजबूरियों पर ग़ौर किया जाने लगे तो ग़ौर करने वाले का माथा फट जाएगा। इसीलिए, सारे दुःख और संतापों का अंत करने के लिए अलग-अलग तरह की व्यवस्था की गई है। आपको अगर, किसी फैसले से दिक्कत है, अदालत का दरवाजा खटखटाइए। वहां सबको न्याय मिलता है। अब ये मत कहिए कि परिणाम आपके खिलाफ है तो यह अन्याय है। जब भी कोई विवाद होता है तो उस पर फैसला किसी ना किसी के खिलाफ तो जाएगा ही जाएगा। न्यायिक प्रक्रिया को जटिल बनाया ही इसीलिए गया है कि देर चाहे जितनी भी हो जाए, किसी के भी साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। सारी बातें लोग जानते हैं। अदालत की सीमाएं भी। जलस्तर बढ़ाए जाने की मजबूरियांे को भी। सरकार की विवशताओं के बारे में भी। फिर भी सत्याग्रह? क्यों? चलिए अच्छा है। जो काम सारी स्थितियां या फिर व्यवस्थाएं मिल कर नहीं कर पा रही हैं, उस काम को आप खुद ही आसान बना रहे हैं। सत्याग्रहियों को लगता है कि उनकी तकलीफों से भी किसी को फर्क पड़ सकता है। अगर, वे ऐसा सोचते हैं तो गलती किसकी है? सरकार की, अदालत की, हमारी संवदेन शून्य होने की या फिर उस व्यवस्था की जिसके लिए वे जिम्मेदार तो कतई नहीं है। सवालों का जवाब ढ़ूंढना व्यर्थ है। समाधान नहीं निकलने वाला। अब या तो सत्याग्रही अपनी मौत खुद मर जाएंगे और अगर बच गए तो दर-दर की ठोकरें खाएंगे। यही नियति है उनकी। बहुत बड़े अभिशाप हैं हम इस दुनिया के लिए। कोई हक़ नहीं है हमें जीने का। मगर, क्या करें, मौत भी आसानी से आती कहां है?

18 अप्रैल 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

सुन्दर एवं सार्थक लेख...आभार!

18 अप्रैल 2015

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कुछ नया, कुछ बेहतर चाहिए लोगों को

10 फरवरी 2015
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गिरिजा नंद झा दो बातें साफ हो गई है। एक तो यह कि भाजपा को दिल्ली में जगह नहीं मिली और आम आदमी पार्टी को जरूरत से ज़्यादा मिल गई। मगर, इस नतीज़े को इस नजरिए से देखा जाना गलत होगा कि इसका असर दूर तलक पड़ेगा। दरअसल, मतदाताओं का मिज़ाज तेज़ी से बदल रहा है। यह बदलाव नयेपन का है। जो पुराने से कुछ बेहतर न

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बिजली पर बिजली गिरा रहे हैं मोदी

16 फरवरी 2015
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गिरिजा नंद झा बहुत पुरानी बात नहीं है। प्याज की बढ़ी कीमत पर कांग्रेसी कानून मंत्री कपिल सिब्बल कहते थे, प्याज सरकार नहीं बेचती। सिब्बल पहली बार इस जानकारी को लोगों से ‘शेयर’ कर रहे थे, क्योंकि लोगों को तो यही पता था कि प्याज सरकार बेचती है! अब वे कहीं दिखाई नहीं देते। उन्हंे सुने तो महीनों गुजर गए

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पुराने जुमले से ‘जमीन’ पाटने में जुटी भाजपा सरकार

24 फरवरी 2015
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गिरिजा नंद झा आपकी कमीज़ मैली है। नहीं, आपकी मुझसे ज़्यादा मैली है। जमीन अधिग्रहण अध्यादेश पर विपक्ष के आरोप से निपटने में केंद्र की भाजपा सरकार कुछ ऐसे ही जुमलों का इस्तेमाल कर रही है। अध्यादेश पर विपक्ष के आरोप का जवाब भाजपा इस तरह से दे रही है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के

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चटखने की आवाज़ पर ख़ामोशी के मायने

5 मार्च 2015
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गिरिजा नंद झा योगेंद्र यादव बाहर कर दिए गए। प्रशांत भूषण को भी ठिकाने लगा दिया गया। अब मयंक गांधी की बारी होगी। इसी तरह से एक के बाद एक विरोध के स्वर मुखर होंगे और बाद में बचेंगे अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह। एकाध और बच जाएं तो बच जाएं, बहुत ज्यादा नहीं बचेंगे, गिनती के लिहाज़ से। जिस

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‘न्याय’ पर हाशिमपुरा के लोगों की चीत्कार

24 मार्च 2015
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गिरिजा नंद झा 22 मई 1987 की बात है। उस दिन शायद हाशिमपुरा में इतनी उदासी नहीं थी, इतनी खामोशी भी नहीं और इतना गम भी नहीं था। मगर, 27 साल बाद जब अदालत का फैसला आया, तो 42 लोगों की मौत पर लोग चीत्कार उठे। बरसों से खामोश लोगों की जिंदगी में भूचाल आ गया। जिंदगी ठहर सी गई लगने लगी लोगों को। बेबसी और लाच

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ख़बरदार, नहीं गिरने चाहिए आंसू के एक बूंद भी

16 अप्रैल 2015
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गिरिजा नन्द झा बंद कीजिए, संवेदनशील होने का ढ़ोंग। मरने दीजिए, किसानों को अपनी मौत। कोई जरूरत नहीं है, उनकी बेबसी और लाचारी पर या फिर उनकी मौत पर आंसू बहाने की। नहीं जरूरत है, उन्हें आपकी सहानुभूति की। नहीं जरूरत है, आपके ढंाढस की। नहीं चाहिए, उन्हें आपसे कोई मुआवज़ा। जिन आंखों के आंसू सूख चुके हैं

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आसान नहीं है मौत

18 अप्रैल 2015
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गिरिजा नंद झा आसान नहीं है मौत। आसान होती तो लोग मर खप गए रहते। कहंा मर रहे हैं? इंतज़ाम तो पुख़्ता है मगर जिंदगी ही इतनी अक्खड़ है कि मौत आती ही नहीं। पानी तो लोहे को भी सड़ा गला देता है। मगर, हाड़ मांस का यह शरीर गलने में इतना समय क्यों ले रहा? एक हफ्ता गुजर चुका है। पानी का असर तो अब तक नह

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मैगी के सच से सचमुच डर गए क्या?

5 जून 2015
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गिरिजा नंद झा अचानक से हो गया है कि सेहत को ले कर इतने फिक्रमंद हो गए हैं हम? हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले हैं हम? और नहीं तो क्या? क्या हम यह नहीं जानते कि बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और दारु जानलेवा है? जानते हैं। अच्छी तरह से जानते हैं। यह भी कि इन चीजों के सेवन से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होती

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योग के लिए भोजन का अर्थशास्त्र

24 जून 2015
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गिरिजा नंद झा योग एक सामान्य शारीरिक यौगिक क्रिया है और इसे करने से हमारे शरीर की शिथिलता दूर होती है। शरीर चुस्त दुरुस्त और तंदुरूस्त रहता है। इस बात को वे लोग भी स्वीकार करते हैं जिन्हें इसके किए जाने पर ऐतराज है। मगर, योग उनके लिए जरूरी है जो सांसरिक सुखों का ‘भोग’ करते हैं। भोग का संबंध हमारे खा

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राजनैतिक भूचाल पैदा करने में फिसड्डी साबित हुए मोदी

26 जून 2015
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गिरिजा नंद झा ललित मोदी विवादास्पद ‘खेल’ को हास्यास्पद बनाने की मुद्रा में आ गए है। दरअसल, मोदी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे खेल के नतीज़े को आखि़री पल में पलट सकते हैं। उन्हें अपने खेल कौशल से ज़्यादा खु़द पर यकीन है और इसी यकीन ने पहल

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जुमलों की सरकार

25 अगस्त 2015
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गिरिजा नंद झाअभी तक तो लोगों को यही पता था कि देश मंे भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है। मगर, जैसे जैसे दिन, महीने और साल गुजरते जा रहे हैं, यह भ्रम टूटता जा रहा है और जो तस्वीर उभड़ कर सामने आ रही है वह यह कि असल में यह सरकार जुमलों की सरकार है। भाजपा एतद् द्वारा घोषणा करती है कि

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शिक्षित होने का अर्थ, नहीं होने का अनर्थ

16 सितम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाहम नाहक ही इस बात को ले कर हकलान होते रहे हैं कि यह देश निरक्षरों का देश है। अनपढ़ और गंवारों का देश है। देश को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि यहां के ‘उच्चतम’ शिक्षा प्राप्त नौजवानों में किसी काम के छोटे या बड़े होने में भेद नहीं करते। शिक्षा अपनी जगह और काम अपनी जगह। शिक्षा इंसान को समझ

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हर हाल में हारेगा बिहार का मतदाता

1 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाबिहार के मतदाताओं के साथ एक और बड़ा मज़ाक। भारतीय जनता पार्टी अगर सत्ता में आएगी तो गरीबों, यहां पर गरीबों से मतलब दलितों से है, को टीवी और स्कूली बच्चों को लैपटाॅप देगी। नीतिश कुमार नारों से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मगर, लालू प्रसाद यादव आरक्षण पर आक्रामक मुद्रा अपना कर फिलहाल अपनी पीठ

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आरक्षण-राजद के लिए आॅक्सीजन, भाजपा के लिए ‘प्वाॅयजन’

2 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाबिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के दांव ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी रणनीति पर कुठाराघात कर दिया है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा अध्यक्ष जिस तरह से सफाई देने में जुटे हैं उससे सवर्णों के वोट बैंक में सेंघ लग चुका है। भाजपा पर सवर्णों की पार्टी होने का ठप्पा पहले से लगा है

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बिहार के मतदाताओं को नहीं जानते प्रधानमंत्री मोदी?

3 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली को रैला बता बता कर अघाए जा रहे थे, मगर यह रैला उनकी पार्टी को कितना फायदा दिला पाएगा, इस पर संदेह गहराता जा रहा है। बिहार के लोगों को विकास चाहिए या विनाश, के सवाल ने मतदाताओं को उलझा दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो

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मोदी की करिश्माई छवि पर भाजपा को नहीं यकीन!

7 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झादिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को जो शिकस्त मिली, उसके बाद से उसका खुद पर से जो भरोसा उठा, वह अब तक बहाल नहीं हो पाया है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भाजपा की गिनती को इतना कम कर दिया कि गिनती शुरू होने के साथ ही ख़त्म हो जाती है। अरविंद केजरीवाल के सामने ना तो नरें

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‘मुंगेरीलाल’ की तरह रामविलास के हसीन सपने

9 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झारामविलास पासवान गद्गदाए हुए हैं। गद्गद होने की उनके पास वज़हें भी हैं। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए घटक को अगर बिहार में जीत हासिल होती है तो कोई दलित ही वहां का मुख्यमंत्री होगा। ऐसा भाजपा वालों ने ही कह रखा है। रामविलास पासवान बिहार में दलितों के ‘स्वयंभू’ नेता हैं और दलितों के बीच वह अपन

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कुर्सी पर दावा करने वालों के लिए भाजपा में नहीं जगह!

10 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झारामविलास पासवान अपने मियां मिट्ठू बने हुए हैं। गिरिराज सिंह जरूरत से ज़्यादा लोगों का ज्ञान-विज्ञान बढ़ाने में जुटे हैं। दैनिक आधार पर ट्वीट करने में वे जितना शब्द खर्च कर रहे हैं उतने तो उन्होंने शिक्षण काल में प्रश्नों का उत्तर लिखने में शब्दों को खर्च नहीं किया होगा। रविशंकर प्रसाद ख

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क्या दिल्ली की गलती को बिहार में दोहरा रही भाजपा?

13 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाक्या बिहार भाजपा के हाथ से खिसकती जा रही है? क्या नीतिश कुमार के विकास पुरूष की छवि पर पलीता लगाने की भाजपा की रणनीति फ्लाॅप हो गई? क्या बिहार में ‘जंगल राज’ एक बार फिर से कायम हो जाएगा? क्या नीतिश कुमार बिहार में विकास की बयार नहीं बहा पाएंगे? क्या केंद्र और राज्य के बीच का संबंध चरमरा

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भूख से मरने वालों का सच नहीं जानते हम

15 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाहालांकि, इस तथ्य को जानने में अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सामान्य ज्ञान बढ़ाना हो तो इस पर एक नज़र डालने में कोई हजऱ् नहीं है। बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं है और इसीलिए इसे याद रखने के लिए बहुत ज़्यादा माथापच्ची भी नहीं करनी होगी। तथ्य यह है कि मौत अब तक का आखिरी सच है और इस सच क

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बिहार के मतदाताओं के ‘रवैये’ से आहत प्रधानमंत्री मोदी

17 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारी भीड़ से कहा था कि मैं बिहार आऊंगा। जबर्दस्ती आऊंगा। अगर हवा से नहीं आने देंगे तो पैदल चल कर आऊंगा। मगर, आऊंगा जरूर। दिल्ली से बिहार की दूरी ही कितनी है। दूर भी हो तो नरंेद्र मोदी के लिए कोई चिंता की बात नहीं है। बिहार के लोगों के साथ किसी तरह का ‘अन्याय

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भाजपा से ‘शत्रुता’ साध रहे शत्रुघ्न सिन्हा?

20 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाभारतीय जनता पार्टी का आखिरी वार भी निरर्थक साबित होता जा रहा है। भाजपा ने दो चरणों के मतदान के बाद बिहार को बिहार के नेताओं के हवाले तो कर दिया मगर, महंगाई मार गई। पहले संघ परिवार के आरक्षण ने और अब भोजन भात से ‘गायब’ हो रही दाल ने भाजपा गठबंधन की गांठ को ढ़ीली कर दी है। चीज़ों की आसमान

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दलित नाराज, बचे हैं तीन चरण के मतदान

23 अक्टूबर 2015
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गिरिजा नंद झाक्या भारतीय जनता पार्टी में अध्यक्ष अमित शाह का दबदबा खत्म होता जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘अनुशासनप्रियता’ को जिस तरह से तार-तार किया जा रहा है, उससे तो इसी बात की पुष्टि होती है। मंत्रियों और सांसदों की बढ़ रही ‘बदजुबानी’ से भाजपा की साख मटियामेट होती जा रही है। बिहार विध

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हारी हुई पार्टी की तरह बिहार में हारी भाजपा

9 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाबिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की कसौटी नहीं है। यह परिणाम इस बात का भी प्रमाण नहीं है कि मतदाताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के विकास के  विज़न को नकार दिया। यह इस बात की भी पुष्टि नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह में जीत को सुनिश्चित करने की ‘काबिलिय

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चुनावी नतीजों के बहाने राजनीति का अंकशास्त्र

10 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाएक बात नोट कर लीजिए। लोगों की सोच एक दिन में नहीं बदलती। अब लोग दिन, महीने और साल का बही खाता साथ में रखते हैं। कौन क्या कर रहा है और किसे क्या करना चाहिए-इसकी पूरी जानकारी लोगों को है। ऐसे में यह कह देने से कि पिछले हिसाब किताब में गड़बड़ है और मेरा हिसाब किताब पाक-साफ है, बात खत्म नही

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नए अवतार में मैगी-स्वाद के साथ सेहत की गारंटी!

12 नवम्बर 2015
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गिरिजा नंद झाअब ना खाने के दौरान किचकिच होगी और ना ही तैयार करने में आनकानी की जाएगी। आखि़र दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी बाजार में दाखिल हो चुकी है। महीनों का इंतज़ार लोगों को थकाया जरूर लेकिन, लोग खाना पकाते-पकाते पक पाते, उससे पहले मैगी बाजार में आ गई। हालांकि, नेस्ले की मैगी से पहले रामदेव बा

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