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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं

19 फरवरी 2022

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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं 

दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। 

हर ज़िन्दगी किसी न किसी 

ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है । 

  

ज़िन्दगी ज़िन्दगी से 

इतनी जगहों पर मिलती है 

कि हम कुछ समझ नहीं पाते 

और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है। 

संसार संसार नहीं, 

बेवकूफ़ियों का मेला है। 

  

हर ज़िन्दगी एक सूत है 

और दुनिया उलझे सूतों का जाल है। 

इस उलझन का सुलझाना 

हमारे लिये मुहाल है । 

  

मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है, 

वह हर सूत की किस्मत को 

पहचानता है। 

सूत के टेढ़े या सीधे चलने का 

क्या रहस्य है, 

बुनकर इसे खूब जानता है।  

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रचनाएँ
हारे को हरिनाम
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केवल कवि ही कविता नहीं रचता, कविता भी बदले में कवि की रचना करती है’ जैसी अनुभूति को आत्मसात् करनेवाले दिनकर की विचारप्रधान कविताओं का संकलन है ‘हारे को हरिनाम’, जिसमें उनके जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं। इसमें परम सत्ता के प्रति छलहीन समर्पण की आकुलता से भरी ऐसी कविताओं की अभिव्यक्ति हुई है जिनमें मनुष्य मन की विराटता है। और संग्रह का नाम ‘हारे को हरिनाम’ से राष्ट्रकवि दिनकर अपने इन शब्दों में व्यक्त करते है।
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हारे को हरिनाम

19 फरवरी 2022
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 सब शोकों का एक नाम है क्षमा  ह्रदय, आकुल मत होना।     [१]  दहक उठे जो अंगारे बन नए  कुसुम-कोमल सपने थे  अंतर में जो गाँस मार गए  अधिक सबसे अपने थे  अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है  और क

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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं

19 फरवरी 2022
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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं  दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।  हर ज़िन्दगी किसी न किसी  ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।     ज़िन्दगी ज़िन्दगी से  इतनी जगहों पर मिलती है  कि हम कुछ समझ नहीं पाते  और

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राम, तुम्हारा नाम

19 फरवरी 2022
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राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,  हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,  दुख से त्राण नहीं माँगूँ।  माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,  दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया  अकातर ध्यानमग्न रहने की।  देख तुम्हारे मृत्य

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