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हारे को हरिनाम

19 फरवरी 2022

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 सब शोकों का एक नाम है क्षमा 

ह्रदय, आकुल मत होना। 

  

[१] 

दहक उठे जो अंगारे बन नए 

कुसुम-कोमल सपने थे 

अंतर में जो गाँस मार गए 

अधिक सबसे अपने थे 

अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है 

और कहाँ, किसका आंसू कब थमा? 

ह्रदय, आकुल मत होना 

  

[२] 

आघातों से विषण्ण म्रियमाण 

गान मत छोड़ अभय का 

और न कर अब अधिक मार्ग-संधान 

सिद्धि का, दैहिक जय का 

सुख निद्रा की निशा, विपद जागरण प्रात का 

किरणों पर चढ़ पकड़ प्रकृति उत्तमा 

ह्रदय, आकुल मत होना 

  

[३] 

उषः लोक का पुलकाकुल कल रोर 

मधुर जिसका प्रसाद है 

दुर्दिन की झंझा में वज्र-कठोर 

उसी का शंखनाद है 

जिसका दिवस ललाट, उसी का निशा चिकुर है 

रम उसमें, जो है दिगंत में रमा 

ह्रदय, आकुल मत होना  

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रचनाएँ
हारे को हरिनाम
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केवल कवि ही कविता नहीं रचता, कविता भी बदले में कवि की रचना करती है’ जैसी अनुभूति को आत्मसात् करनेवाले दिनकर की विचारप्रधान कविताओं का संकलन है ‘हारे को हरिनाम’, जिसमें उनके जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं। इसमें परम सत्ता के प्रति छलहीन समर्पण की आकुलता से भरी ऐसी कविताओं की अभिव्यक्ति हुई है जिनमें मनुष्य मन की विराटता है। और संग्रह का नाम ‘हारे को हरिनाम’ से राष्ट्रकवि दिनकर अपने इन शब्दों में व्यक्त करते है।
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हारे को हरिनाम

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 सब शोकों का एक नाम है क्षमा  ह्रदय, आकुल मत होना।     [१]  दहक उठे जो अंगारे बन नए  कुसुम-कोमल सपने थे  अंतर में जो गाँस मार गए  अधिक सबसे अपने थे  अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है  और क

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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं

19 फरवरी 2022
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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं  दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।  हर ज़िन्दगी किसी न किसी  ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।     ज़िन्दगी ज़िन्दगी से  इतनी जगहों पर मिलती है  कि हम कुछ समझ नहीं पाते  और

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राम, तुम्हारा नाम

19 फरवरी 2022
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राम, तुम्हारा नाम कंठ में रहे,  हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे,  दुख से त्राण नहीं माँगूँ।  माँगू केवल शक्ति दुख सहने की,  दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया  अकातर ध्यानमग्न रहने की।  देख तुम्हारे मृत्य

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