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मजदूर

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हालात बदले हुए है। शाम दिल्ली में हवाएं रूप, बदल बदल कर आ रही थी। हवाओं ने नीम और जामुन के पत्ते फूल गिरा दिए।चौक-चौराहे में लहराते, तिरंगों को फाड़ कर रख दिए।बादलों की गर्जन से, आसमानी बिजली भी चमक गई।काली खाली सड़को में, सायरन एम्बुलेंस के बज रहे।किसी मे कराहती सासे, या कफ़

किसान हीरा है।किसान हीरा है नगीना है। कभी किसी को लूट कर खाया नही।जमीन जोतकर गाजर मूली शकरकन्द चुकन्दर बोता है।फिर कही जाकर उन्हें खोद लादकर मंडी सुबह लाता है।वह जमीन के अंदर बाहर की समझ से फसल उगाता है।जो बाहर ऊगे उसको काटे चुने जो अंदर उसे उखाड़ते है।धान गेहूँ जौ बाजरा सरसों। तिल तीली अलसी सूखा कर,

कलयुगपैदल चल, हल जोत किसान, साइकिल से रफ्तार बढ़ाई।गुरुकुल पढ़, संस्थान बनाई, डिजिटल से रफ्तार बढ़ाई।घोड़ा गाड़ी, बैलगाड़ी, रथ छोड़ ऑटोमेटिक रेल बनाई।रह कच्ची झोपड़ी, तजि माटी, ईट पत्थर से महल बनायो।गोधूलि बिसरायो, खेत ठुकरायो, कम्पनी में काम ब

छोटे छोटे अरमानों के पुरा होते देख,मैं खुशी ढूंढ़ता हूं।किसी गरीब की थाली में पकवान देख,किसी मजदूर को काम के

सब कुछ एक पल के लिए।मरना जीना सब हरि विधाता के हाथ मे।यस अपयश कर्म सब मानव के हाथ मे।हवा पानी मिट्टी आँग आसमान सब बिधाता ने अपने मन से बनाया।रेल बस जहाज ट्रक मोटर साइकिल कार मानव अपने कर से बनाया।इन सब की अधिकता विनाश का कारण है पर जननी सबकी घरती है।बीमारी महामारी ज्वाला भूकम्प जलजला तूफ़ान सब से साम

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Covid-19 coronavirus Disease-2019 कोरोना वायरस के कहर से हम भलीभाँति अवगत हैं देश का मीडिया पल पल की खबर आप तक पहुँच

चारों ओर कोरोना का शोर है। घर में ही रहों,पाबंदियों का दौर हैं। यहां अन्नदाता कमजोर है। नई नई दलीलों पर जोर है। घर में ही रहों,पाबंदियों का शोर है। यहां मजदूर कमजोर है। मजदूरों के बल पर बने बैठे, मालिकों का शोर है। घर में ही रहों, पाबंदियों का दौर हैं। कोरोनावायरस की चपेट में आ रहे लोग हैं। एक से हज

कैसे कहाँ से आया कोरोना..? अपने भी अपनो से दूर रहने लगे। ये जो कड़ी है, मुश्किल की घड़ी है। सामाजिक दूरी सहनी पड़ी है, बंद है हर कोई, अपने घरों में। कैसे कहाँ से आया कोरोना..? बहती जहरीली हवाओ के डर से, सभी के मुँह में मास्क लगने लगे। एक दूजे को हक़ करने से डरने लगे, कैसे कहाँ से आया कोरोना..? ख़ोज करने

काटे नहीं कटते ये दिन ये रातकह दी है जो घर मे रहने की बातलो आज मैं कहता हूँकोरोना नही यह तो महामारी है।कोई नहीं है बस कोरोना कोरोना कहनी थी तुमसे जो दिल की बातजब तक रहे कोरोना घर मे ही रहना है,कोरोना एक महामारी बन गई है।कैसी हवा है, जहरीली जहरीलीआज सारे जहाँ, में कोरोना कोरोनासारा नज़ारा, नया नयादिल

गरीबी के आलम में,सेवा में,सौ बीगा जमीन के बाद हम गरीब थे| आज सौ गज जमीनमें बनी कोठी, अमीर होने का न्यौता देती हैं|जब पैसो की तंगी थी तब गहनों मालाओ से औरत सजी थी, आज रोल गोल्ड कोअमीरी कहते हैं| जब पीतल की थाली में खाना खाते थे तो गरीब कहे जाते थे| आजप्लास्टिक के बर्तन में खाकर अपने आप को धनी समझ रह

ओला बौछार काले घने बादल जब अपनी जवानी मे आते हैं आसमान मे।जमीन मे मोर पपीहा खूब इतराते हैं, नृत्य करते हैं आसमान को निहार कर, कल वह भी बौरा गए ओला वृष्टि को देख कर। कल शहरी लोग पहले खूब इतराए ओलो को देख कर फिर पछते सड़क मे जब निकले ऑफिस से कार पर। किसान खुश था पानी की धार को देखकर वह भी पछताया गेंहू

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...चर्चास्पद यौन उत्पीडनऔर बलात्कार मामले की पैरवी के लिए आसाराम के पक्ष में देश के 14 बड़े वकीलों कापैनल खड़ा था और उस बच्ची के पक्ष में सिर्फ़ एक सरकारी वक़ील और एक सरकारी जाँचअधिकारी । ....लेकिन एक सरकारी वक़ील नेसरकारी जाँच अधिकारी

मै हुक्म पर हुक्म दिए जा रहा थावह श्रम पर श्रम किये जा रहा थाबिना थके बिना रुकेतन्मयता से तल्लीनअदभुत प्रवीनपसीने में डूबासामने रखेजल से भरे घड़े की ओर देखता हैफिर उंगलिया सेमाथे को पोछता हैमाथे से टूटतीपसीने की बूंदेधरा पर गिरती,बनाती,सूक्ष्म जलाशय क्षण भर कोफिर उतर जातीधरा की सतहसे धरा के हृदय मेंव

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