गरीबी के आलम में,
सेवा में,
सौ बीगा जमीन के बाद हम गरीब थे| आज सौ गज जमीन
में बनी कोठी, अमीर होने का न्यौता देती हैं|जब पैसो की तंगी थी तब गहनों मालाओ से औरत सजी थी, आज रोल गोल्ड को
अमीरी कहते हैं| जब पीतल की थाली में खाना खाते थे तो गरीब कहे जाते थे| आज
प्लास्टिक के बर्तन में खाकर अपने आप को धनी समझ रहे हैं| पांच मीटर की सूती धोती
पहनने वाले को नंगा कहा जाता रहा| आज सवा दो मीटर की पेंट पहनकर अपने आप को बाबू
समझ रहे हैं | पांच मीटर की पगड़ी बाँधने वाले को किसान बोला जाता रहा| आज १२ इंच
कपडे से बनी टोपी को पहनकर अंग्रेज बन गए| पहले हाथी बैलगाड़ी में सवार होने के बाद
अपने आप को कमजोर और लाचार समझते थे| आज दो पहिए की बाईक क्या लिया? अपने को
थानेदार समझने लगे|
पहले थैला भर कर सब्जी घर
आती थी तो गरीब थे आज एक किलो की पालीथीन में सब्जी लाकर अपने आप को पढा लिखा कहने
लगे| घर बने तिलहन, अन्न भंसार को कंगाल कहते थे| आज पांच किलो राशन लाकर अपने आप
को खुशनसीब समझने लगे| खेती करके बहन बेटी को अपने घर आँगन से विदा करते थे| आज
पैसा होने के बाद भी लोग बहन बेटी को किराए के बैंकेट हाल से विदा करते हैं| जमीन
में बैठाकर मान के साथ खिलाने को अपमान समझते, आज खड़े गधे घोड़ो की तरह खाने वाले
को जनाब कहने लगे| गरीबी के आलम को छुपा कर अमीरी का चाटा जड़ने लगे| गाँव का खुशहाल जीवन शहरो में आकर तड़पने लगा| गाँव
के खेत में काम करने वाला किसान, वही किसान शहर की फैक्ट्री में काम करके मजदूर बन
गया| बाग़ बगीचा सजाकर गाँव का लड़का जवान बन गया| किया नौकरी अगर वही जवान तो गुलाम
बन गया| वाह रे ज़माने तुझे क्या हो गया? जब पढ़े नहीं थे कालेज बना दिए, आज पढ़लिख
कर अपने आपको बेरोजगार बना दिया|
धरती माता की जय