किसान हीरा है।
किसान हीरा है नगीना है। कभी किसी को लूट कर खाया नही।
जमीन जोतकर गाजर मूली शकरकन्द चुकन्दर बोता है।
फिर कही जाकर उन्हें खोद लादकर मंडी सुबह लाता है।
वह जमीन के अंदर बाहर की समझ से फसल उगाता है।
जो बाहर ऊगे उसको काटे चुने जो अंदर उसे उखाड़ते है।
धान गेहूँ जौ बाजरा सरसों। तिल तीली अलसी सूखा कर,
झोर बझोर सुखा भर जूट के बोरो में गोदामो तक पहुंचाता है।
काट बरसीम ढेंचा कर्वी कतर मशीनों से जानवर का पेट पालता है।
निकाल दूध, जमा दही मटकी में डाल मथानी से भा दही को, मठ्ठा घी निकालते है।
खा दाल फ्राई चुपड़ी चपड़ी रोटी से अपनी सेहत बनाते है।
ना मांगते किसान किसी से, खुद कमाते खाते है। इतना ही नही काट पेट अपना मजदूर नौकरी पेशा वालो के साथ सरकार को भी खिलाते है।
इसके बाद भी खरीद किसानों की फसलों को व्यापारी के संग सरकार मौज मनाती है।
किसान हीरा था, हीरा है, हीरा रहेगा। बस निकम्मी सरकार व्यापारियों से बचा रहे।
हर सत्ता ने किसानों को लूटा। मजदूरों को चूसा, तलुआ चाटने वालो को परोसा है।
मुगलई, अंग्रेजी, कांग्रेसी, अब भाजपा भी उनके नक़्शे कदम पर चल पड़ी है।
इसलिए बॉर्डर में लगा बैरिकेट हाइवे में किसानों के सामने फौज खड़ी है।
किसान अड़ा था अड़ गया है, सरकार से अपना हक पाने के लिए।
कल भी किसान के बेटे फाँसी सुले में चढ़े थे, आज भी चढ़ने को खड़े है।
सिपाही पहले भी जुल्म ढाया था, आज भी गोली पानी बरसा रहे है।
भातीय किसान आजाद है आजाद रहेगा जो सरकारी गुलाम है आज है पहले भी थे ये अपने ही थे पहले भी गैर नही थे जिन्होंने नवजवानों की फांसी चढ्या था। हुक्म शासक का था, जुर्म तो फौज करती थी । बस समझने का फर्क है।
किसान हीरा है नगीना है और रहेगा जुल्म के आगे न झुका है न झुकेगा।