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हिंदी कविता

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हम चाहते है अपनी हथेली पर कुछ इस तरह का सच जैसे गुड़ की चाशनी में कण होता है जैसे हुक्के में निकोटिन होती है जैसे मिलन के समय महबूब की होठों पर कोई मलाई जैसी चीज़ होती है

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शरद की प्रथम रात्रि शरद के षोडश कला पूर्ण चन्द्र की चन्द्रिका के अमृत रस में भीगी ये रात वास्तव में बड़ी सुहानी होती है... मान्यता है कि आज की ही रात भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था...

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zindagi-ka-kayda-hindi-kavita  कुछ भी मामूली सा न मिले और ज़िन्दगी मुहाल हो जाये, हो दिल में सवाल गहरे , पूँछ लूँ , तो बवाल हो जाये |  हर रोज़ बे – सिर – पैर  सी नज़र आती है ज़िन्दगी, पता चले

हमारा दिल पत्थर लगता है,  गुनेहगार हमें ठहरा दिया है। ज़िन्दगी में प्यार पहला मेरा,  ऐतबार बिल्कुल भी नहीं है।  उन्होंने सुख सुविधा के लिए,  प्यार का सौदा तलक़ किया।  बेदर्द ज़माने से तो ल

तेरे इश्क़ में पूरी तरह से डूब चुका हूँ मैं,  तेरी ज़रा सी आह परेशान कर देती हमें।  तेरी मोहब्बत की कैद में उम्रकैद चाहते,  तेरे प्यार के बंदीगृह में रहना तमाम उम्र।  तेरे इश्क़ की दीवानगी इस

कैसी - कैसी होती रात दिल मे सपने बोती रात मैं पलकों में नींद लिए हूँओढ़ चद्दरा सोती रातहार बड़ी दिन कहता हैआशा नई जगाती रातरूठा हुआ हूँ खाली मैंसाथ में मेरे होती रात नया सवेरा आएगा बसआशा

*हिन्दी भारत के माथे की बिन्दी* हिन्दी भारत के माथे की बिन्दी। जन जन की भाषा है हिन्दी।। मां संस्कृत की है बड़ी बेटी। सबको सुन्दर ज्ञान है देती।। हिन्दुस्तान की शान है हिन्दी। हम सबकी सम्मान है हिन

नारी तू स्वाभिमान है, प्रेरणा है, सम्मान है,तू आदिशक्ति है, अन्नपूर्णा है, देती जीवनदान है।ख़ामोशी की बंदिशों को तोड़ करउन्मुक्त उड़ान तू भर पंख फैलाए खुले आसमान मेंसारी दुनिया फतेह तू

उदासी भरी है लेकिन , फिर भी ख़ूबसूरत कोई नज्म हैं। तेरी याद में सुनाई है जो अकसर , वों मेरी सबसे बेहतरीन ग़ज़ल हैं। मज़ा तो तब था जब तू सामने था , आजकल जो महफ़िल में गा रहा हूँ मैं , बस वों एक रस्म हैं। ना

नाकाम मोहब्बत की निशानीताज महल ज़रूरी हैजो लोगो को ये बतलाये केमोहब्बत का कीमती होना नहींबल्कि दिलों का वाबस्ता होना ज़रूरी हैदे कर संगमरमर की कब्रगाहकोई दुनिया को ये जतला गयाके मरने के बाद भीमोहब्बत का सांस लेते रहना ज़रूरी हैवो लोग और थे शायद, जोतैरना न आता हो तो भीदरि

काम और उम्र के बोझ से झुकने लगा हूँ मैंअनायास ही चलते-चलते अब रुकने लगा हूँ मैंकितनी भी करू कोशिश खुद को छिपाने कीसच ही तो है, पिता के जैसा दिखने लगा हूँ मैं ||

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ऐ मेरे दिल की दीवारों, रूप अनूप तुम्हारा करूँ!सजनी के हैं रूप अनेकों, कौन सा रूप तुम्हारा करूँ?क्या श्वेत करूँ, करे शीतल मनवा, उथल पुथल चितचोर बड़ा है,करूँ चाँदनी रजत लेपकर, पूनम का जैसे चाँद खड़ा है।करूँ

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स्व-वित्त पोषित संस्थान में जो विराजते हैं ऊपर के पदों पर, उनको होता है हक निचले पदों पर काम करने वालों को ज़लील करने का, क्योंकि वे बाध्य नहीं है अपने किये को जस्टिफाई करने के लिए . स्व-वित्त पोषित संस्थान में आपको नियुक्त किया जाता है, इस शर्त के साथ कि खाली समय में आप सहयोग करेंगे संस्थान के अन्

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