अदिति अफम सुन ही रही थी की दरवाज़े पड़ दस्तक हुई ।अदिति ने दरवाज़ा खोला तो सामने अमरेश और आरूही खड़े थे । फिर उनके अंदर ज़ाते ही अदिति ने जैसे ही दरवाज़ा बंद ही की थी ,की दरवाज़े की घंटी एक वार पुनः बज उठती है । ज़ब अदिति दुबारा दरवाज़ा खोलने लगी तब अमरेश। आरूही के कमरे मे उसके साथ चला गया था । अदिति दरवाज़ा खोलने के लिए ज़ाते हुए मन मे ये सोंच रही थी की अब कौन आ गया !फिर ज़ब इस बार दरवाज़ा खुला तो सामने कुरियर वाला आया हुआ था ।उसके हांथ मे एक बहुत बड़ा पैकेट सा था ।ज़ो पैक किया हुआ था ।अदिति उस कुरियर वाले से पूछती है की क्या है ?किसके नाम का कुरियर आया है ?तब वो कुरियर वाला कहता है ,की जी मिशिश अदिति कश्यप आप ही है ।तो वो कहती है ।जी मै ही हुँ ।तोआपके नाम का कुरियर आया है ।अदिति कुरियर लेने से पहले अपने मन मे ही उधेर -बुन कर रही थी ,की आखिड़ उसके नान का कुरियर कौन भेज सकता है ?फिर वो उसी सोंच मे खोई हुई वो पैकेट अपने हांथ मे लेती है ।वो कुरियर बॉय साइन करा कर जा चुका था ।अदिति उस कुरियर को हांथ मे लिए खड़ी ही थी की आरूही अरे अदिति खोलो न क्या है इसमे ज़रा हम सब भी तो देखे !अदिति पैकेट को खोलती है ,तो उसमे एक साड़ी, केक और एक चीठ्ठी थी ।ये सब चीज़े देख कर अदिति ये समझ गई थी ,की ये सारी चीज़े उसी इंसान ने भेजी थी ,जिसने सुबह अफम पड़ उसके लिए ज़न्मदिन विश किया था ।आरूही सामानो पड़ एक नज़रदौड़ा कर ये जान गई थी ।की किसी ने उसका ज़न्मदिन। का उपहार दिया था । वो मुस्कुराते हुए अरे वाह तुम् तो वड़ी छुपी रुस्तम निकली ये कहते हुए वो झट से उसके हांथ की चीठ्ठी लेकर पढ़ने लगती है ।और चीठ्ठी पढ़ने के बाद वो कहती है की ओ ,तो मौडम का आज ज़न्मदिन है ।और हमे इस लायक भी नही समझा की अपने ज़न्मदिन के बारे मे बता सके !खैर कोई बात नहीं !आपने हमे नहीं बताया तो क्या ,आपके इस दोस्त ने तो हमे सब बता दिया ।खैर अब ये सब छोड़िये और अपने दोस्त के उपहार का मान रखते हुए जल्दी से ये साड़ी पहन कर तैयार होकर केक कट मेरे दोस्त और मेरा मुंह मीठा कराइये ।तब -तक मै अमरेश को ये बात बताती हुँ ।इतना कहते हुए आरूही अमरेश को आवाज़ देते हुए उसकी ओर चली गई ।इधर अदिति उस उपहार की ओर देखते हुए ये सोंच रही थी ,की आखिड़ कौन है ,ज़ो उसे इस कदर तक जानने लगा था !और अगर वो मुझे जानता है ,तो वो अपना परिचय मेरे सामने क्यों नहीं लाता !