वो फोन उठाया हेलो 'तो परम ने कहा कैसी हो?क्या तुम्हे पता नही कैसी हूंगी? तुम क्या कल मिलने आओगी ?मै अपना सतित्व तुम्हारे सामने लाना चाहता हूं! क्यू ऐसी क्या बात है ,जो तुम आज अचानक से मेरे सामने आना चाहते हो ?उस दिन पार्क मे मिलने के लिए बुलाया था ,तब आये क्यों नही थे ?परम को तो इसके बारे मे पता ही नही था ।पर उसने बात को काटते हुए कहा की मिलकर बात करते है ।आदिति ठीक है ।फिर सुबह अदिति परम के बुलाये गये स्थान पर मिलने आती है ।परम वंहा पहले ही पहुंच चुका था ।वो आर्मी के कपड़ो मे ही मिलने आया था ।ज़ब अदिति ने उसे पीछे से देखा तो वो उसे देख कर दौर कर उसके पास गई की उसे लगा अमरेश लौट आया है ।पड़ ज़ब उसकी सकल देखी तो वो वंही रुक गई ;और उसकी आँखों मे ये सवाल था की क्या तुम ही हम हो ? तब परम ने भी अपने कदम उसकी ओर बढ़ा कर ,ये स्वीकार कर चुका था ,की वो ही हम है ।अदिति अमरेश को याद करते हुए भावुक हो गई ।परम को उस कपड़ो मे देख कर उसे अमरेश की याद आ गई थी ।परम ने कहा की वो एक बार फिर से लौट आया है ।तब अदिति ने कहा की जब मै अपने सपनो के लिए संघर्स कर रही थी ,तब तुमने ही उन सपनो मे उड़ान भरे थे ।पर आज मुझे ऐसा लग रहा है ।जैसे उन सपनो के पीछे भागते -भागते मैने अपना सबसे कीमती रिश्ते को खो दिया है ।मै स्वंम को माफ़ नही ,कर पा रही हु ।परम मुझे मेरी अंतर आत्मा झकझोरती है ,की जिते -जी मैने कभी भी अमरेशजी को एक पत्नी का प्यार नही दिया ।मै बहुत बुरी हमसफऱ हु ।ज़ो अपने हमसफऱ को उसके हिसे की खुशियाँ तक भी न दे पाई ,इतना कह कर वो आकुल सी हो कर रो पड़ी !मुझे माफ़ कर दीजिये अमरेश जी ।मै आपके लायक ही नही थी ।वो रोते -रोते वंही ज़मीन पर बैठ गई ।परम उसे उठाना तो चाह रहा था ,पड़ उसके कदम अनायास् ही रुक गये ।अदिति के दिल के साथ -साथ आसमान भी मानो बरस कर रो पड़े थे ।वारिश की बुंदे झमा -झम बरसने लगी थी । अदिति के आंशुओ को मानो उन बरसती बूंदो का साथ् मिल गया था ।दोनो ही तो बह चुके थे ।ज़ब उसकी हालत परम से देखी नही गई तो , वो उसे उठा कर चुप करता है । और उसे पार्क के पास हमाश्रम मे वारिश से बचने के लिए ले जाता है ।आश्रम आकर आदिति कपड़े बदल कर बालकनी से बरसती बूंदो को देखे जा रही थी ।तब -तक परम उसके लिए चाय बनाकर उसे पीने को देता है ।अदिति चाय लेते हुए परम से कहती है ,की तुमने मेरे सपनो को पाने मे मेरी मदद कीये थे ।एक मदद और कर दो मै अपने और अमरेश के रिस्ते को अमर करना चाहती हूं ।मैं एक अच्छी हमसफ़र बनना चाहती हूं !मै ऐसा क्या करु की मै अपने आपको माफ़ कर पाऊं ?तब परम कहता है ,इसके लिए ज्यादा कुछ करने की ज़रूरत नही । तुम अपनी रचनाओ मे फिर से स्वंम को गुमा दो फिर ईश्वर चाहेंगे तो तुम्हारे और मेरे दोस्त के रिश्ते को ज़ो पहचान मिलना होगा वो मिल ही ज़ाएगा ? तब अदिति भी स्वंम को संभालते हुए एक बार फिर से कलम उठा कर जाने -अंजाने ऐसी कहानी रच डालती है ,ज़ो अदिति और अमरेश के रिश्ते को परिपूर्ण करता था ।अदिति तो अपने पति के साथ से पूर्ण अंजान थी।की उसका पति ही उसका हम था ज़ो की हमसफ़र शब्द की पूर्ति करता था ।पर अंजाने मे ही सही उसने हु ब -हु वही कहानी को रच दिया ज़ो उसके और अमरेश के थे ।परम तो अदिति को पहली ही नज़र मे प्यार कर बैठा था ।पर अदिति तो उसे सिर्फ अपना दोस्त समझती थी ।परम को स्वंम से ही ये ग्लानी होने लगी थी। की वो अपने प्यारे दोस्त के सहारे अपना प्यार पाना चाहता था।और आदिती एक सच्ची हमसफ़र तो थी ही ।साथ मे एक सच्ची लेखाकर भी ,थी ,तभी तो ,सच को न जानते हुए भी ।उसने अपने सच्चे हमसफर् को ढूंढ लिया था । फिर परम का आत्मा सम्मान जाग उठा था ।उसने हिम्मत करके अदिति को अपना सारा सच बता दिया की वो उसका हम नही बल्कि उसका हम उसका हमसफर् अमरेश ही था । जिसने उसके सपनो को सतित्व दिया था ।अदिति अमरेश की सच्चाई जानकर एकबार फिर से अमरेश को अपने हमसफ़र के रूप मे पाकर स्वंम को सौभाग्यसली मानकर उसकी तस्वीर की ओर निहारते हुए उसकी आँखों मे एक लक्ष्य था ।की अबकी उसकी रचना मे वो अपने पति को फिर से ज़नम मिलने पर उसी को हमसफ़र रूप मे वरण करना चाहेगी ?सायद ये रचना भी ।सत्य हो जाए यही सोंच कर अदिति की आँखे छलक आई थी ।