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हमसफ़र

11 अक्टूबर 2024

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की उसका फोन बज उठता है ।वो बाते करते अपने रास्ते जा रही होती है ,की उसकी नज़र एक आपहीज़ बच्चे पर परती है ।उसके कपड़े बहुत गंदे ब जगह -जगह से फट चुके थे ।उस बच्चे पर नज़र परते ही अदिति का दिल भर आया वो उस मासूम बच्चे की हालत से दुखी हो गई वो स्वयंम को रोक न पाई और वो उसके पास गई ।उसके माथे पर हांथ फेरा फिर अपने पास रखी बोतल का पानी उसे पिलाया वो शायद प्यासा भी था ।तब -तक उसका फोन कट नही पाया था ।पर अदिति भूल गई थी ,की उसका फोन अभी भी लाइन पर ही लगा था ।वो उस बच्चे को एक सर्वज़ानिक स्थान पर ले ज़ाती है ।ज़न्हा पानी की व्यवस्था थी ।एक दुकान से वो उसके लिए नये कपड़े और खाना खरीद् कर उसे स्नान करा कर नये कपड़े पहना कर अपने हाँथो से उसे खाना खिलाती है ।उस बच्चे की चेहरे की मुस्कुराहट देख कर अदिति को भी ।आंतरिक सुख का अनुभव हो रहा था ।शायद इतनी खुशी तो उसे तब भी नही मिला था ,ज़ब वो लेखिका पद से सम्मानित हुई थी ।फिर वो उस बच्चे को अकेला छोड़ नही पाई ।वो उसे अपने पास ले आई ।ज़ब वो बच्चा घर आया तो घर वालो ने एक साथ ये प्रश्न पूछा की ये कौन है ।अदिति ने बतया ये सिभू है ।इसका कोई नही इसलिए इसे मै अपने पास ले आई ।तो इसपर घरवालो ने कहा की दुनिया मे कई ऐसे इंसान है ,ज़ो बेसहारा है ।तो तुम कितनो को ऐसे घर लाती रहोगी ? ये बात भी सही थी ये बात अदिति के दिमाग मे कौध गई ।वो रात भर सोंचती रही फिर उसने निर्णय लिया की वो एक आश्रम चलाएगी ,जिसमे हर उम्र के ज़रूरत मंदो को आश्रय दिया ज़ाएगा ?वो अपने निर्णय के निश्चय से उत्साहित थी ।सुबह उसने पंडित जी को बुलबाकर आश्रम की नींव डालने का मुहर्त पूछ कर उसकी तैयारी शुरु कर दी ।आश्रम ससमय बन कर तैयार हो ,गया ।उस आश्रम का नाम हमाश्रम रखा गया ।उस आश्रम का जिस दिन उद्घाटन था ।सारे काम अच्छे से निपट गये थे ।आदिति सब काम निपटाने के बाद अनायास ही ,अमरेश के बारे मे सोंच बैठी ।की अब ज़ो भी उसके जीवन मे सपने थे ,वो सारे पूरे हो गये थे तो क्यों न उन्हे भी उनके हिस्से की खुशी लौटा दिया जाए ।पड़ दूसरे ही पल उसे अपने उस अज़नबी हम की याद आई ,ज़ो उससे प्रेम करता था ।आदिति के लिए निर्णय लेना बहुत कठिन था ।क्योंकि वो तो दोनो मे से किसी को भी प्रेम नही करती थी ।पर वो दोनो ही उससे प्रेम करते थे ।वो चुने तो -चुने किसको एक तरफ उसका पति था ज़ो उससे बहुत प्रेम करता था ।पर कभी भी उन्होंने अपने प्रेम को ज़ाहिर नही किया ,तो दूसरी तरफ उसका वो हमजनबी दोस्त था ,ज़ो उसे उसके सपनो से मिलाया था ।  बड़ी मुश्किल से उसने  कुछ सोंचा  फिर दोनो को फोन करके मिलने के लिए गार्डन मे मिलने के लिए बुलाया था । अमरेश समय से गार्डन मे पहुंच गया था ।अदिति भी अमरेश से वंहा मिली ।और उसने उससे कहा की वो अब उसके और अपने रिस्ते की नई शुरुआत करना चाहती है । तो क्या आप मुझे अपना प्यार दे सकते है ?उसके ऐसा कहते ही मानो वो उसे आश्चर्य से देख रहा था ।क्योंकि उसे पता नही था ,की अदिति उसे इस बारे मे बात करने के लिए बुलाई थी ।उस समय की घड़ी ने भी उस पल को खूबसूरत बनाने मे कोई कसर नही छोड़ा था ।  गार्डन मे खेलते -कूदते मोर नाच उठे थे ।सुन्दर चिड़िया चह -चहा  उठी थी ।अमरेश ने अपनी बाँहे फैला दिये थे ।अदिति भी उन बाँहो की ओर अपने कदम  बढ़ा दिये थे ।अदिति उसकी बाँहो मे समा कर अपने -आप से ही बाते कर रही थी ।मुझे माफ़ कर दीजिये अमरेश जी अपने सपनो की जलन  की अग्नि मे मैने आपको भी जलाया ।अमरेश भी अदिति को पाकर मानो अपने लक्ष्य को पा लिया हो ।वो खुशी से फुले नही समा रहा था की उसका फोन बज उठता है ,की उसे अर्ज़ेंट अपनी ड्यूटी को जाना है ।अमरेश चाह रहा था की वो अब अदिति को अपने उस हम से मिलता पर समय ना होने के कारण  वो उस राज़ से पर्दा उठाय बिना ही ।ड्यूटी चला गया ।अदिति उस सच्चाई से अंजान थी ,की अमरेश ही ,उसका हम अज़नबी दोस्त था ।उसने उसे फोन कर उसी पार्क मे मिलने के लिए बुला चुका आवा  । पर अमरेश तो जा चुका था ।ज़ब उसका अज़नबी हमदोस्त नही आया तो ,वो अपनी वो बाते स्वंम से ही करने लगी ।की तुम क्यों नही आये मुझसे मिलने ,मुझे माफ़ कर दो मेरे सच्चे हम दोस्त इस  बार मै उस हम को पुरा नही कर सकती ।क्योंकि मेरे माथे पर किसी के नाम का सिंदूर सज़ चुका है ।इस जनम      मे तो नही पर अगला ज़नम मै तुम्हे अपने पति के रूप मे वरण करुँगी ?तब -तक के लिए तुम मुझे माफ़ कर दो ।उधर अमरेश सीमा पर ज़ंग लड़ रहा था ।वो लड़ाई मे बुरी तरह से घायल हो चुका था ।उसे विश्वाश था ।की वो अब नही बच पाएगा ?तब उसने अपने दोस्त परम को अपने बारे मे बताया की ये रुमाल वो उसकी पत्नी को देना ,जिसमे उसने अपने लहू से लिखा था ,की वो ही उसका हम दोस्त था । उस लड़ाई मे अमरेश तो शहीद हो गया ।उसकी लास के साथ उसका दोस्त भी ,उसकी द्वारा दी गई अमानत लेकर आया ज़ो अदिति के हांथो मे ही देना था ।ज़ब परम ने अदिति को देखा तो वो उसकी खूबसूरती का कायल हो गया ।वो आया तो था ।वो रुमाल उसे देने के लिए पर वो उसे वो रुमाल दिये बिना ही लौट गया ।फिर घर आकर उसने सोंचा अमरेश तो अब इस दुनिया मे रहा नही और अदिति अपने उस हम को प्यार भी करती है ।और मुझे पहली नज़र मे ही अदिति से प्यार हो गया ।और इस प्यार को पाने के लिए मुझे कुछ खास करना भी तो नही है ।क्योंकि अमरेश अपनी कहानी परम को बता चुका था की वो ज़ब अदिति के साथ हम बनकर बाते करता था तब वो परम की ही आवाज़ मे बाते किया करता था ।अमरेश के 

 अंदर ये गुण था की वो किसी की भी आवाज़् की नकल 

  कर सकता था ।   परम सोंच रहा था ,की शायद अदिति उसके लिए ही बनी हो तभी तो वो उससे मिल पाया था ।अमरेश और परम अच्छे दोस्त थे ।दोनो साथ् मे ड्यूटी करते थे ।इसलिए उसे परम की आवाज़ की पहचान थी । समय बीता अदिति अब स्वंम को कही -कही कसुरबार समझती थी ,की जिते जी उसने कभी -भी अमरेश को उसके हिसे का प्यार नही दिया ,वो पश्चताब की आग मे ज़ल रही थी ।ये समय ने उसे दंड दिया था ।कैसे अमरेश उसके प्यार को तरसते थे ।और वो अपने सपनो की उड़ान मे उन्हे भूल गई थी ।अब वही तड़प वही निराशा उसके जीवन मे आ गया था ।वो स्वंम को माफ़ नही कर पा रही थी ।यही सब सोंचते -सोंचते उसकी आँखों की नींद उड़ चुकी थी ।वो अपने बिस्तर पर परि  अमरेश की तस्वीर देख  आँखों से आँशु छलक पड़े ।वो तस्वीर को निहार ही रही थी ,की उसका फोन बज उठता है ।उसने बे मन से फोन पर नज़र डाली हम ,हम का फोन वो क्यों फिर लौट आया है ?

 



 
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रचनाएँ
हमसफ़र
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आदिती ने ये तय कर लिया था ,की वो अब खामोशी की चादर के साये मे ही अपनीपूरी बिता देगी ? वो स्वयं खामोश हो गई थी या फिर हालात ने।उसे खामोश कर दिया था ।ये हम उसकी जीवन की गहराइयों मे जाकर देखेंगे ?क्या गुनाह कर बैठी थी भुमी जो। उसकी आँखो मे लेखिका बनने का सपना।सज़ने लगा था । वो उन सपनो की ओर पहला कदम ही बढाई ही थी ,की उसे उस सपने से काफी दूर कर दिया गया था ।जैसे ही उसे ये एहसास हुआ की वो अपने सपने से दूर हो गई है ,वो धीरे -धीरे खामोशियों की आगाश मे समाती सी चली गई ।दरासल आदिती ने बचपन से एक ही सपना देखा था ,की वो लेखिका बनेगी? और वो अपने सपने को पाने के लिए मेहनत भी किया करती थी ।पड़ शायद या पूर्णतः उसके बाबा को उसके सपनो पड़ भरोसा नही था ।इसलिए उसके बाबा उसके सपने की परवाह किये बगैर उसकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से कर देते है ।आदिती पहले तो शादी करने से इंकार कर देती है ।पड़ जब उसके बाबा उसके मना करने के बाद भी ,उसकी एक नही। सुनते है । तब आदिती बेज़न मूरत बन कर शादी कर लेती है । जिस दीन आदिती की बिदाई थी आदिती की बाबा की आँखों से आँशु रुकाते नही रुक रही थी ।पड़ आदिती की आँखों मे आँशु का नामो -निशान भी नही था ।शायद वो अपने बाबा को ये एहसास करना चाहती थी ,की वो उनके इस फैसले से इस कदर टूट सी गई थी ,की वो शायद अब उनसे वो रिस्ता भी नही नीभा पाएगी ?वो समझती थी ,की उसके ऐसा करने से शायद कभी न -कभी उसके बाबा को ये ज़रूर एहसास होगा ?की उनके इस फैसले से उनकीबेटी कभी भी खुश नही रहेगी ?और ये एहसास की उनकी बेटी खुश नही है ,तो वो भी ऐसे ही तड़पेंगे जैसे आदिती अपने सपने के टूटने से तड़पती है ।इसलिए तो अपनी बिदाई के बक्त अपने घर बालो के सामने वो अपनी आँखों मे आँशु की एक बुंद तक नही आने दिया था ।उसने ! पड़ जैसे ही वो अपने पती अमरेश के साथ गाड़ी मे बैठी बाबा के साथ घर बालो के ओझल होते ही ,उसकी आँखों से जो आँशु बहने लगी वो पूरे सफर तक ज़ारी रहा ।अमरेश ये समझ रहा था ,की ये आजकल की लड़कियां भी न अपने मायके वालो का कितना ख्याल रखती है ,उनके सामने अपनी आँशु नही बहाय ,की उनके मायके वाले दुःखी न हो जाए इसलिए सारे आँशु उनके पीठ पीझे बहा रही हैं ।ये सोंच कर अमरेश मुस्कुरा उठा । फिर आदिती अमरेश के साथ उसके घर आ गई ,और ज़ब रात को अमरेश कमरे मे आया तो दरबाज़ा खुला था ।आदिती पलंग ोाद बैठी
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हमसफ़र

22 अक्टूबर 2023
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अदिति पलंग पड़ बैठी नहीं थी ।वो पलंग पड़ लेटी थी ।शायद वो सो गई थी ।ये देखकर अमरेश कमरे मे दाखिल हुआ ।वो अदिति से बात तो करना चाहता था ।पड़ वो चुप -चाप सो गया ,की शायद शादी की थकान की वज़ह से वो सो गई है

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हमसफ़र

23 अक्टूबर 2023
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और वो स्वंम ही उससे कटा -कटा सा रहने लगा था ।पड़ अमरेश चाहे जितना कोशिश करता की उसे अदिति के इस व्यवहार से कोई फर्क नहीं पड़ता हो ।पड़ सच तो ये था की उसे फर्क पड़ता था ।तभी तो वो रोज़ अपने दोस्तों के साथ क

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हमसफ़र

30 अक्टूबर 2023
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फिर वो ट्रे में चाय लेकर कमरे में जाती है ।वो चाय लेकर अमरेश की ओर जैसे हीं दो -चार कदम बढ़ाई हीं थी ,की अमरेश भी अपनी धीमी कदमो के साथ अदिति की ओर बढ़ने लगा अदिति चाय का ट्रे लिए अमरेश की कदमो की ओर दे

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हमसफ़र

4 नवम्बर 2023
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शायद वो अपने हम सफर से दूर हो चुकी थी ।इधर अमरेश अपने काम पड़ वापस आकर देश की सीमा की रखवाली करता था ।और जब इस बीच जब कभी भी उसे घर बालो की याद आती तो ,वो उनसे फोन पड़ बाते कर लिया करता था ।याद तो उसे आ

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हमसफ़र

25 नवम्बर 2023
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पड़ इस बार अमरेश भी अपने मन मे ठान् कर आया था ,की वो इस बार ये वजह जान कर हीं रहेगा ?की आखिर अदिति ऐसी क्यों है ?वो पूरे घर वालो के साथ -साथ अदिति के लिए भी उपहार मे उसकी पसंद की रंग की साड़

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हमसफ़र

27 नवम्बर 2023
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इसलिए वो अदिति के ज्यादा करीब रहने के लिए मौका देख कर आरोही जब सुबह अपने घर जा रही होती है ,तब अमरेश उससे कहता है ,की इस बार मै मौके पड़ घर आया हुँ ।और तुम भी फ्री हो तुम हमेशा मुझसे कहती रहती थी न की

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हमसफ़र

10 दिसम्बर 2023
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फिर रात् गहराती गई और अमरेश नींद की आगोश मे समाता चला गया ।अफम पड़ संगीत सारी रात बज़ती रही ।और अदिति रात की खामोशी मे अपने आंशुओ को आज़ाद छोड़कर रात के अंधेरो से सुबह की पहली किरण तक का सफर पुरा कर चुकी

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हमसफ़र

15 दिसम्बर 2023
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फिर आरजे डिलीकेटर से बात -चीत शुरु करता है ।हाँ, तो यूँ ,तो हर पिता अपनी संतान को प्रेम करता है ,और संतान भी अपनी माता -पिता को प्रेम करते है ।पड़ ऐसा क्या हुआ की आपकी बेटी आप से इस हद तक न

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हमसफ़र

21 दिसम्बर 2023
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अदिति अफम सुन ही रही थी की दरवाज़े पड़ दस्तक हुई ।अदिति ने दरवाज़ा खोला तो सामने अमरेश और आरूही खड़े थे । फिर उनके अंदर ज़ाते ही अदिति ने जैसे ही दरवाज़ा बंद ही की थी ,की दरवाज़े की घंटी एक वार प

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हमसफ़र

3 अप्रैल 2024
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क्या वो पापा हो ,सकते है ?पड़ ,अगर वो पापा होते तो ,वो अपने आपको उस हम नाम नही देता !और तो और उसने साफ -साफ लब्ज़ो मे अफम पड़ ये भी तो कहा है न ! की वो उन खास रिस्तो मे से है ,ज़ो एक पि

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हमसफ़र

11 अक्टूबर 2024
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की उसका फोन बज उठता है ।वो बाते करते अपने रास्ते जा रही होती है ,की उसकी नज़र एक आपहीज़ बच्चे पर परती है ।उसके कपड़े बहुत गंदे ब जगह -जगह से फट चुके थे ।उस बच्चे पर नज़र परते ही अदिति का दिल भर आया वो उस

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हमसफ़र

12 अक्टूबर 2024
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वो फोन उठाया हेलो 'तो परम ने कहा कैसी हो?क्या तुम्हे पता नही कैसी हूंगी? तुम क्या कल मिलने आओगी ?मै अपना सतित्व तुम्हारे सामने लाना चाहता हूं! क्यू ऐसी क्या बात है ,जो तुम आज अचानक से मेरे सामने आना च

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