की उसका फोन बज उठता है ।वो बाते करते अपने रास्ते जा रही होती है ,की उसकी नज़र एक आपहीज़ बच्चे पर परती है ।उसके कपड़े बहुत गंदे ब जगह -जगह से फट चुके थे ।उस बच्चे पर नज़र परते ही अदिति का दिल भर आया वो उस मासूम बच्चे की हालत से दुखी हो गई वो स्वयंम को रोक न पाई और वो उसके पास गई ।उसके माथे पर हांथ फेरा फिर अपने पास रखी बोतल का पानी उसे पिलाया वो शायद प्यासा भी था ।तब -तक उसका फोन कट नही पाया था ।पर अदिति भूल गई थी ,की उसका फोन अभी भी लाइन पर ही लगा था ।वो उस बच्चे को एक सर्वज़ानिक स्थान पर ले ज़ाती है ।ज़न्हा पानी की व्यवस्था थी ।एक दुकान से वो उसके लिए नये कपड़े और खाना खरीद् कर उसे स्नान करा कर नये कपड़े पहना कर अपने हाँथो से उसे खाना खिलाती है ।उस बच्चे की चेहरे की मुस्कुराहट देख कर अदिति को भी ।आंतरिक सुख का अनुभव हो रहा था ।शायद इतनी खुशी तो उसे तब भी नही मिला था ,ज़ब वो लेखिका पद से सम्मानित हुई थी ।फिर वो उस बच्चे को अकेला छोड़ नही पाई ।वो उसे अपने पास ले आई ।ज़ब वो बच्चा घर आया तो घर वालो ने एक साथ ये प्रश्न पूछा की ये कौन है ।अदिति ने बतया ये सिभू है ।इसका कोई नही इसलिए इसे मै अपने पास ले आई ।तो इसपर घरवालो ने कहा की दुनिया मे कई ऐसे इंसान है ,ज़ो बेसहारा है ।तो तुम कितनो को ऐसे घर लाती रहोगी ? ये बात भी सही थी ये बात अदिति के दिमाग मे कौध गई ।वो रात भर सोंचती रही फिर उसने निर्णय लिया की वो एक आश्रम चलाएगी ,जिसमे हर उम्र के ज़रूरत मंदो को आश्रय दिया ज़ाएगा ?वो अपने निर्णय के निश्चय से उत्साहित थी ।सुबह उसने पंडित जी को बुलबाकर आश्रम की नींव डालने का मुहर्त पूछ कर उसकी तैयारी शुरु कर दी ।आश्रम ससमय बन कर तैयार हो ,गया ।उस आश्रम का नाम हमाश्रम रखा गया ।उस आश्रम का जिस दिन उद्घाटन था ।सारे काम अच्छे से निपट गये थे ।आदिति सब काम निपटाने के बाद अनायास ही ,अमरेश के बारे मे सोंच बैठी ।की अब ज़ो भी उसके जीवन मे सपने थे ,वो सारे पूरे हो गये थे तो क्यों न उन्हे भी उनके हिस्से की खुशी लौटा दिया जाए ।पड़ दूसरे ही पल उसे अपने उस अज़नबी हम की याद आई ,ज़ो उससे प्रेम करता था ।आदिति के लिए निर्णय लेना बहुत कठिन था ।क्योंकि वो तो दोनो मे से किसी को भी प्रेम नही करती थी ।पर वो दोनो ही उससे प्रेम करते थे ।वो चुने तो -चुने किसको एक तरफ उसका पति था ज़ो उससे बहुत प्रेम करता था ।पर कभी भी उन्होंने अपने प्रेम को ज़ाहिर नही किया ,तो दूसरी तरफ उसका वो हमजनबी दोस्त था ,ज़ो उसे उसके सपनो से मिलाया था । बड़ी मुश्किल से उसने कुछ सोंचा फिर दोनो को फोन करके मिलने के लिए गार्डन मे मिलने के लिए बुलाया था । अमरेश समय से गार्डन मे पहुंच गया था ।अदिति भी अमरेश से वंहा मिली ।और उसने उससे कहा की वो अब उसके और अपने रिस्ते की नई शुरुआत करना चाहती है । तो क्या आप मुझे अपना प्यार दे सकते है ?उसके ऐसा कहते ही मानो वो उसे आश्चर्य से देख रहा था ।क्योंकि उसे पता नही था ,की अदिति उसे इस बारे मे बात करने के लिए बुलाई थी ।उस समय की घड़ी ने भी उस पल को खूबसूरत बनाने मे कोई कसर नही छोड़ा था । गार्डन मे खेलते -कूदते मोर नाच उठे थे ।सुन्दर चिड़िया चह -चहा उठी थी ।अमरेश ने अपनी बाँहे फैला दिये थे ।अदिति भी उन बाँहो की ओर अपने कदम बढ़ा दिये थे ।अदिति उसकी बाँहो मे समा कर अपने -आप से ही बाते कर रही थी ।मुझे माफ़ कर दीजिये अमरेश जी अपने सपनो की जलन की अग्नि मे मैने आपको भी जलाया ।अमरेश भी अदिति को पाकर मानो अपने लक्ष्य को पा लिया हो ।वो खुशी से फुले नही समा रहा था की उसका फोन बज उठता है ,की उसे अर्ज़ेंट अपनी ड्यूटी को जाना है ।अमरेश चाह रहा था की वो अब अदिति को अपने उस हम से मिलता पर समय ना होने के कारण वो उस राज़ से पर्दा उठाय बिना ही ।ड्यूटी चला गया ।अदिति उस सच्चाई से अंजान थी ,की अमरेश ही ,उसका हम अज़नबी दोस्त था ।उसने उसे फोन कर उसी पार्क मे मिलने के लिए बुला चुका आवा । पर अमरेश तो जा चुका था ।ज़ब उसका अज़नबी हमदोस्त नही आया तो ,वो अपनी वो बाते स्वंम से ही करने लगी ।की तुम क्यों नही आये मुझसे मिलने ,मुझे माफ़ कर दो मेरे सच्चे हम दोस्त इस बार मै उस हम को पुरा नही कर सकती ।क्योंकि मेरे माथे पर किसी के नाम का सिंदूर सज़ चुका है ।इस जनम मे तो नही पर अगला ज़नम मै तुम्हे अपने पति के रूप मे वरण करुँगी ?तब -तक के लिए तुम मुझे माफ़ कर दो ।उधर अमरेश सीमा पर ज़ंग लड़ रहा था ।वो लड़ाई मे बुरी तरह से घायल हो चुका था ।उसे विश्वाश था ।की वो अब नही बच पाएगा ?तब उसने अपने दोस्त परम को अपने बारे मे बताया की ये रुमाल वो उसकी पत्नी को देना ,जिसमे उसने अपने लहू से लिखा था ,की वो ही उसका हम दोस्त था । उस लड़ाई मे अमरेश तो शहीद हो गया ।उसकी लास के साथ उसका दोस्त भी ,उसकी द्वारा दी गई अमानत लेकर आया ज़ो अदिति के हांथो मे ही देना था ।ज़ब परम ने अदिति को देखा तो वो उसकी खूबसूरती का कायल हो गया ।वो आया तो था ।वो रुमाल उसे देने के लिए पर वो उसे वो रुमाल दिये बिना ही लौट गया ।फिर घर आकर उसने सोंचा अमरेश तो अब इस दुनिया मे रहा नही और अदिति अपने उस हम को प्यार भी करती है ।और मुझे पहली नज़र मे ही अदिति से प्यार हो गया ।और इस प्यार को पाने के लिए मुझे कुछ खास करना भी तो नही है ।क्योंकि अमरेश अपनी कहानी परम को बता चुका था की वो ज़ब अदिति के साथ हम बनकर बाते करता था तब वो परम की ही आवाज़ मे बाते किया करता था ।अमरेश के
अंदर ये गुण था की वो किसी की भी आवाज़् की नकल
कर सकता था । परम सोंच रहा था ,की शायद अदिति उसके लिए ही बनी हो तभी तो वो उससे मिल पाया था ।अमरेश और परम अच्छे दोस्त थे ।दोनो साथ् मे ड्यूटी करते थे ।इसलिए उसे परम की आवाज़ की पहचान थी । समय बीता अदिति अब स्वंम को कही -कही कसुरबार समझती थी ,की जिते जी उसने कभी -भी अमरेश को उसके हिसे का प्यार नही दिया ,वो पश्चताब की आग मे ज़ल रही थी ।ये समय ने उसे दंड दिया था ।कैसे अमरेश उसके प्यार को तरसते थे ।और वो अपने सपनो की उड़ान मे उन्हे भूल गई थी ।अब वही तड़प वही निराशा उसके जीवन मे आ गया था ।वो स्वंम को माफ़ नही कर पा रही थी ।यही सब सोंचते -सोंचते उसकी आँखों की नींद उड़ चुकी थी ।वो अपने बिस्तर पर परि अमरेश की तस्वीर देख आँखों से आँशु छलक पड़े ।वो तस्वीर को निहार ही रही थी ,की उसका फोन बज उठता है ।उसने बे मन से फोन पर नज़र डाली हम ,हम का फोन वो क्यों फिर लौट आया है ?