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हमसफ़र

30 अक्टूबर 2023

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फिर वो ट्रे में चाय लेकर कमरे में जाती है ।वो चाय लेकर अमरेश की ओर जैसे हीं दो -चार कदम बढ़ाई हीं थी ,की अमरेश भी अपनी धीमी कदमो के साथ अदिति की ओर बढ़ने लगा अदिति चाय का ट्रे लिए अमरेश की कदमो की ओर देख रही थी । की एक कदम अदिति चलती तो दूसरा कदम अमरेश चलता ऐसा     करते -करते            अदिति और  अमरेश के बीच सिर्फ दो चार कदम हीं बचे थे की ,अदिति अपनी जगह पड़ हीं रुक गई ।और अमरेश भी उस दूरी पड़ बिराम लगाते हुए वो भी रुक चुका था ।अदिति ये सोंचती है ,की अमरेश आगे बढ़ कर चाय ले लेंगे ?और अमरेश ये सोंचता है ,की अदिति आगे बढ़ कर चाय पकड़ायेगी ?फिर काफी देर बाद भी जब अदिति वही खड़ी रही तो अमरेश अपनी जगह से दो -चाम्र कदम पीछे  चलकर अपने सिरहाने से एक चादर निकलता है ,और वो चादर अदिति को कंधे से ओढ़ा देता है ।शायद वो अदिति को उससे बिना बोले ये समझाना चाहता था ।की वो कमरे में उसे गलत नियत से नहीं बुलाया था ।जब अदिति उससे बात नहीं करती थी ।तब अमरेश भी ,उससे बात नहीं करता था ।वो चादर अदिति के कंधो पड़ डाल कर तेज कदमो से कमरे से नीचे जा चुका था ।और फिर वो चला जाता है ।अदिति की आँखों में आँशु भर आये थे उसे ये अब शायद एहसास हो रहा था ,की उसने जाने -अनजाने में हीं सही पड़ उसने अमरेश जी के साथ गलत किया है ।पड़ वो  दूसरे हीं पल ये सोंचती है ,की वो अब वो अदिति रही हीं नही ,जो कभी हुया करती थी ।उसने तो उस अदिति को उसी दिन मार दिया था ।जिस दिन उसके बाबा ने उसके आँखों का सपना छिनकर उसके माथे पड़ सिंदूर       सजबा  दिया था ।  उस सपने के दम तोड़ते हीं उस सपने के साथ वो अदिति भी दम तोड़ चुकी थी ।अब तो बस वो अदिति जिंदा थी ,जिसे जिंदगी मिली तो ,बस उसे कैसे भी करके सिर्फ अ सिर्फ उसे काट रही थी ।अदिति चाय की ट्रे लिए अपने कमरे में हीं खड़ी थी ,की अमरेश की माँ कमरे में आती है ।और वो आते हीं ठंढी चाय देखकर कहती है ,की अरे देख मैने कहा था ,न की चाय तो एक बहाना है वो ,तो तेरे साथ अकेले में कुछ वक्त बिताना चाहता था ।इतना कहते हुए अमरेश की मां मुस्कुराते हुए कमरे से चली गई ।माँ का दिल तो अमरेश के जाने के बाद रो रहा था ।पड़ वो अपनी होटो पड़ मुस्कुराहट सजा चुकी थी ,ताकि अदिति उदास ना हो जाय अमरेश के बिना ।माँ के जाने के बाद भी अदिति अपने हीं ख्यालो में खोई रही ।उसे ये एहसास हुआ था ,की उसे कोई हक नहीं था ,की वो किसी के सपने को ठेस पहुंचाए ,पड़ जाने -अनजाने हीं सही उसने कही न -कही अमरेश जी के सपनो और अरमानो का गला तो घोटा था न!अपने सपनो की।  रुषवाइयों
 में उसने एक हमसफ़र के आँखों का सपना भी तो तोड़ दिया था ।क्या होता ?अगर वो सिर्फ हमसफ़र के उस वजुद को निभाती जो एक हमसफ़र को चाहिए होता है ? यही सब बाते सोंच कर एक बार फिर उसकी आँखे भर आई थी ।और वो स्वंम से हीं कह उठती है की शायद अब उसने देर कर दी है । क्योंकि उसका हमसफ़र उसका हमसफ़र बनता उससे पहले      
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने 👍🙏 कृपया कचोटती तन्हाइयां के बाकी भाग पर भी लाइक 👍 और व्यू दे दें 😊🙏

31 अक्टूबर 2023

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रचनाएँ
हमसफ़र
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आदिती ने ये तय कर लिया था ,की वो अब खामोशी की चादर के साये मे ही अपनीपूरी बिता देगी ? वो स्वयं खामोश हो गई थी या फिर हालात ने।उसे खामोश कर दिया था ।ये हम उसकी जीवन की गहराइयों मे जाकर देखेंगे ?क्या गुनाह कर बैठी थी भुमी जो। उसकी आँखो मे लेखिका बनने का सपना।सज़ने लगा था । वो उन सपनो की ओर पहला कदम ही बढाई ही थी ,की उसे उस सपने से काफी दूर कर दिया गया था ।जैसे ही उसे ये एहसास हुआ की वो अपने सपने से दूर हो गई है ,वो धीरे -धीरे खामोशियों की आगाश मे समाती सी चली गई ।दरासल आदिती ने बचपन से एक ही सपना देखा था ,की वो लेखिका बनेगी? और वो अपने सपने को पाने के लिए मेहनत भी किया करती थी ।पड़ शायद या पूर्णतः उसके बाबा को उसके सपनो पड़ भरोसा नही था ।इसलिए उसके बाबा उसके सपने की परवाह किये बगैर उसकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से कर देते है ।आदिती पहले तो शादी करने से इंकार कर देती है ।पड़ जब उसके बाबा उसके मना करने के बाद भी ,उसकी एक नही। सुनते है । तब आदिती बेज़न मूरत बन कर शादी कर लेती है । जिस दीन आदिती की बिदाई थी आदिती की बाबा की आँखों से आँशु रुकाते नही रुक रही थी ।पड़ आदिती की आँखों मे आँशु का नामो -निशान भी नही था ।शायद वो अपने बाबा को ये एहसास करना चाहती थी ,की वो उनके इस फैसले से इस कदर टूट सी गई थी ,की वो शायद अब उनसे वो रिस्ता भी नही नीभा पाएगी ?वो समझती थी ,की उसके ऐसा करने से शायद कभी न -कभी उसके बाबा को ये ज़रूर एहसास होगा ?की उनके इस फैसले से उनकीबेटी कभी भी खुश नही रहेगी ?और ये एहसास की उनकी बेटी खुश नही है ,तो वो भी ऐसे ही तड़पेंगे जैसे आदिती अपने सपने के टूटने से तड़पती है ।इसलिए तो अपनी बिदाई के बक्त अपने घर बालो के सामने वो अपनी आँखों मे आँशु की एक बुंद तक नही आने दिया था ।उसने ! पड़ जैसे ही वो अपने पती अमरेश के साथ गाड़ी मे बैठी बाबा के साथ घर बालो के ओझल होते ही ,उसकी आँखों से जो आँशु बहने लगी वो पूरे सफर तक ज़ारी रहा ।अमरेश ये समझ रहा था ,की ये आजकल की लड़कियां भी न अपने मायके वालो का कितना ख्याल रखती है ,उनके सामने अपनी आँशु नही बहाय ,की उनके मायके वाले दुःखी न हो जाए इसलिए सारे आँशु उनके पीठ पीझे बहा रही हैं ।ये सोंच कर अमरेश मुस्कुरा उठा । फिर आदिती अमरेश के साथ उसके घर आ गई ,और ज़ब रात को अमरेश कमरे मे आया तो दरबाज़ा खुला था ।आदिती पलंग ोाद बैठी
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हमसफ़र

22 अक्टूबर 2023
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अदिति पलंग पड़ बैठी नहीं थी ।वो पलंग पड़ लेटी थी ।शायद वो सो गई थी ।ये देखकर अमरेश कमरे मे दाखिल हुआ ।वो अदिति से बात तो करना चाहता था ।पड़ वो चुप -चाप सो गया ,की शायद शादी की थकान की वज़ह से वो सो गई है

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हमसफ़र

23 अक्टूबर 2023
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और वो स्वंम ही उससे कटा -कटा सा रहने लगा था ।पड़ अमरेश चाहे जितना कोशिश करता की उसे अदिति के इस व्यवहार से कोई फर्क नहीं पड़ता हो ।पड़ सच तो ये था की उसे फर्क पड़ता था ।तभी तो वो रोज़ अपने दोस्तों के साथ क

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हमसफ़र

30 अक्टूबर 2023
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फिर वो ट्रे में चाय लेकर कमरे में जाती है ।वो चाय लेकर अमरेश की ओर जैसे हीं दो -चार कदम बढ़ाई हीं थी ,की अमरेश भी अपनी धीमी कदमो के साथ अदिति की ओर बढ़ने लगा अदिति चाय का ट्रे लिए अमरेश की कदमो की ओर दे

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हमसफ़र

4 नवम्बर 2023
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शायद वो अपने हम सफर से दूर हो चुकी थी ।इधर अमरेश अपने काम पड़ वापस आकर देश की सीमा की रखवाली करता था ।और जब इस बीच जब कभी भी उसे घर बालो की याद आती तो ,वो उनसे फोन पड़ बाते कर लिया करता था ।याद तो उसे आ

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हमसफ़र

25 नवम्बर 2023
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पड़ इस बार अमरेश भी अपने मन मे ठान् कर आया था ,की वो इस बार ये वजह जान कर हीं रहेगा ?की आखिर अदिति ऐसी क्यों है ?वो पूरे घर वालो के साथ -साथ अदिति के लिए भी उपहार मे उसकी पसंद की रंग की साड़

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हमसफ़र

27 नवम्बर 2023
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इसलिए वो अदिति के ज्यादा करीब रहने के लिए मौका देख कर आरोही जब सुबह अपने घर जा रही होती है ,तब अमरेश उससे कहता है ,की इस बार मै मौके पड़ घर आया हुँ ।और तुम भी फ्री हो तुम हमेशा मुझसे कहती रहती थी न की

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हमसफ़र

10 दिसम्बर 2023
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फिर रात् गहराती गई और अमरेश नींद की आगोश मे समाता चला गया ।अफम पड़ संगीत सारी रात बज़ती रही ।और अदिति रात की खामोशी मे अपने आंशुओ को आज़ाद छोड़कर रात के अंधेरो से सुबह की पहली किरण तक का सफर पुरा कर चुकी

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हमसफ़र

15 दिसम्बर 2023
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फिर आरजे डिलीकेटर से बात -चीत शुरु करता है ।हाँ, तो यूँ ,तो हर पिता अपनी संतान को प्रेम करता है ,और संतान भी अपनी माता -पिता को प्रेम करते है ।पड़ ऐसा क्या हुआ की आपकी बेटी आप से इस हद तक न

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हमसफ़र

21 दिसम्बर 2023
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अदिति अफम सुन ही रही थी की दरवाज़े पड़ दस्तक हुई ।अदिति ने दरवाज़ा खोला तो सामने अमरेश और आरूही खड़े थे । फिर उनके अंदर ज़ाते ही अदिति ने जैसे ही दरवाज़ा बंद ही की थी ,की दरवाज़े की घंटी एक वार प

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हमसफ़र

3 अप्रैल 2024
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क्या वो पापा हो ,सकते है ?पड़ ,अगर वो पापा होते तो ,वो अपने आपको उस हम नाम नही देता !और तो और उसने साफ -साफ लब्ज़ो मे अफम पड़ ये भी तो कहा है न ! की वो उन खास रिस्तो मे से है ,ज़ो एक पि

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हमसफ़र

11 अक्टूबर 2024
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की उसका फोन बज उठता है ।वो बाते करते अपने रास्ते जा रही होती है ,की उसकी नज़र एक आपहीज़ बच्चे पर परती है ।उसके कपड़े बहुत गंदे ब जगह -जगह से फट चुके थे ।उस बच्चे पर नज़र परते ही अदिति का दिल भर आया वो उस

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हमसफ़र

12 अक्टूबर 2024
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वो फोन उठाया हेलो 'तो परम ने कहा कैसी हो?क्या तुम्हे पता नही कैसी हूंगी? तुम क्या कल मिलने आओगी ?मै अपना सतित्व तुम्हारे सामने लाना चाहता हूं! क्यू ऐसी क्या बात है ,जो तुम आज अचानक से मेरे सामने आना च

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