क्या वो पापा हो ,सकते है ?पड़ ,अगर वो पापा होते तो ,वो अपने आपको उस हम नाम नही देता !और तो और उसने साफ -साफ लब्ज़ो मे अफम पड़ ये भी तो कहा है न ! की वो उन खास रिस्तो मे से है ,ज़ो एक पिता की ज़िम्मेदारियों के बाद तो आता हि है ।और अगर देखा जाए तो वो ,उ न ज़िम्मेदारियों को परिपूर्ण करता है ,ज़ो एक पिता से शुरु होकर उसपर ख़त्म हो जाती है ।ये बाते सोंचते -सोंचते वो आकुल सी हो उठी की आख़िर ये कौन अज़नबी है ज़ो अपने अज़नबी रिस्ते को इतना महत्वपूर्ण बता रहा है ।खैर अब तुम ज़ो कोई भी हो मिस्टर अज़नबी ,मै नहीं जानती की मेरा और तुम्हारा क्या रिस्ता है ?पड़ तुम्हारे और मेरे रिस्ते को एक नाम दे देती हुँ! दोस्ती का और एक दोस्त ने इतने अरमान से उसे ज़न्मदिन विश किया ।तो क्या उसकी दोस्ती को सहर्ष स्वीकार कर क्यों न ! उसे सम्मान का पात्र बना सकूं ! और फिर अदिति उसदिन वो नई साड़ी पहन कर अपने ज़न्मदिन को पूरे तीन साल बाद मना रही थी ।जिस बक्त अदिति केक काट रही थी ,उस बक्त अमरेश और अरूही भी उसके साथ थे ।और ज़ब केक काटने के बाद अदिति केक का पहला टुकड़ा उठाने ही वाली थी ,की अमरेश वो टुकड़ा उठा कर अदिति का मुंह मीठा करता है ।और दूसरी बार केक काट कर स्वंम भी मुंह मीठा कर लेता है ।और अदिति को ज़न्मदिन के उपहार स्वरूप मे एक चांदी की कलम और एक डायरी देता है ।अदिति उस उपहार को देख कर पहले तो एक पल के लिए वो उदास हो ज़ाती है ।की वो उस डायरी और कलम का क्या करेगी ?पड़ दूसरे हीं पल वो झट से अपने हांथो मे डायरी और कलम को उठा ली की ,वो इस डायरी मे अपने उस अज़नबी दोस्त से बाते करेगी ?जो वो उससे कर नही सकती ,वो चाहे भी तो अपने उस दोस्त को मिल ही नही पाएगी क्योंकि ना तो वो अपना नाम बताता है और नहीं वो कभी सामने आता है ।वो मुझसे मिलना तो चाहता है ,पर वो कहता है की वो मेरे आस -पास है ।और अगर वो मेरा सच्चा दोस्त है तो उसे विश्वास है ,की मै उसे एक दिन ढूंढ निकालूंगी ?खैर ज़ब ढूँढूंगी तब की तब देखी जाएगी ,तब तक मै इस डायरी से ही काम चला लुंगी !समझे मिस्टर हम ।और आदिति उस डायरी पर भी हम लिख देती है ।ताकी जिस दिन उसे उस हम का पुरा पता चल ज़ाएगा उस दिन वो उस हम को पुरा नाम दे देगी ।और उस डायरी को ज़ब -ज़ब देखेगी तब -तब वो डायरी उसे हमेसा ये याद दिलाती रहेगी की उसे उस हम को पुरा करना है ।फिर आदिती कश्मीर घूम कर घर वापस चली आती है ।पर वो और उसके हम का रिश्ता सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं रहा ,वो रिश्ता तो अब उसके ज़िवन का एक हिस्सा बन चुका था ।और अगर देखा जाए तो अब आदिती को उस रिश्ते से ज़ूरे रहना अच्छा लगने लगा था ।आदिती अब उस हम के साथ स्वंम को एक नए सिरे से जानने लगी थी ।तभी तो वो अब अक्सर उस हम से बाते करने लगी थी ।कुरयर के ज़रिये वो हम सही मायनो मे आदिती का सच्चा दोस्त था ।वो जानता था ,की आदिती का सपना एक लेखिका बनने का था ।पर कुछ परिस्थितियों के कारन् वो अपने सपने से दूर हो गई ।पर अब आदिती का सपना पुरा करना ही ,उस हम के जीवन का लक्ष्य बन चुका था ।तभी तो वो आदिती से बात भी कर चुका था ,की वो लिखना शुरु कर दे आदिती ज़ब उसके मुंह से ये लब्ज़ सुनी तो वो खुशी के मारे आवाक़ रह गई ।उसे एक पल के लिए विश्वास नही हुआ की कोई है ज़ो चाहता है ,की वो लिखे बस फिर क्या था ?आदिती ने भी उस हम के सहारे लिखना शुरु कर दिया वर्षो बाद अपने आप से मिलकर आदिति फुले नही समा रही थी । कहानी लेखन मे उसकी जान बसती थी ।एक बार फिर से कलम उठाने के बाद मानो वो स्वंम को कलम की स्वामनी ही समझ बैठी थी ।तभी तो केवल कुछ ही समय मे उसने एक अच्छी कहानी के रचना कर चुकी थी ।उस कहानी को भाग्य बस एक प्लेटफर्म भी मिल चुका था ।और तो और उसकी कहानी को प्रतियोगीता के लिए भी चुना गया ।अब तो आदिती यही रुकी नही ।उसके द्वारा लिखी कहानी पर एक फिल्म मेकर ने उसकी कहानी को खरीदा ।अब तो वो फिल्म भी चल परी थी ।अब आदिती कहानियाँ लिखने मे ब्यस्त हो चुकी थी ।एक के बाद एक उसकी कहानियों को सराहा जाने लगा था ।इस बीच वो अपने उस हम अज़नबी दोस्त से भी बाते साझा किया करती । इस तरह से आदिती को एक नई पहचान मिली ।ये पहचान सिर्फ पहचान तक ही सीमित नही रही वो तो अब एक प्रसिद्ध लेखिका का रूप ले चुकी थी । अब ज़ब वो एक प्रसिद्ध लेखिका बन ही चुकी थी ।तब अब उसके अज़नबी दोस्त का लक्ष्य भी पुरा हो चुका था ।इसलिए उसने एक आखड़ बात आदिती के सामने रखा की वो अब उसके जीवन से दूर चला ज़ाएगा ?पर उसकी इच्छा थी ,की एक बार वो अपने पापा से मिल लेती ।आदिती उसके कहे अनुसार अपने पापा से मिल कर उन्हे माफ़ कर गले से लगा लेती है ।वो अपने पापा से मिलने के बाद अपने घर के लिए निकल ही रही थी ,की