शायद वो अपने हम सफर से दूर हो चुकी थी ।इधर अमरेश अपने काम पड़ वापस आकर देश की सीमा की रखवाली करता था ।और जब इस बीच जब कभी भी उसे घर बालो की याद आती तो ,वो उनसे फोन पड़ बाते कर लिया करता था ।याद तो उसे आदिति की भी आया करता था ।और चाह कर भी वो उसकी यादो से स्वंम को दूर नहीं रख पाता था । इसलिए वो अदिति से जुड़े रहने के लिए अपने मोबाईल पड़ अक्सर एफम सुना करता था।वो अदिति के बारे मे कभी -कभी सोंचता था ,की वो ऐसी क्यों थी ?क्यों वो बाकियो से बिल्कुल हट कर थी ।क्यों वो उन तमाम लड़कियों की तरह खुश नज़र नही आती थी जैसा की शादी के बाद हर लड़की रहती है ।पड़ इन सवालों का अमरेश के पास कोई जबाब नहीं था ।इस तरह समय कब एक वर्ष का समय पुरा कर लेता है ।ये पता भी नही चल पाता !इस बार अमरेश छुट्टी लेकर दीवाली पड़ घर वापस जा रहा था ।वो घर आना तो नही चाहता था ।पड़ उसे घर जाना भी तो ज़रूरी था ।क्योंकि उसकी दोस्त अरूही शादी कर रही थी ।अरूही ने खास उसे बुलाया था ।इसलिए लम्बे अंतराल के बाद वो घर वापस आ रहा था ।वो जैसे ही घर आता है ।अरुही उसे उसके घर पड़ हीं मिल जाती है ।वो जान रही थी की अमरेश घर आ रहा है ।तो वो दीवाली मानने उसके घर पड़ हीं चली आई थी ।अमरेश जब घर आया तो पुरा घर दीपो से जगमग कर रहा था ।घर के सारे लोग नये कपड़े पहन कर घर की छत पड़ पटाखे जला कर दीवाली का आनंद उठा रहे थे ।अमरेश की नज़र बार -बार अदिति को ढूंढ रहा था ।फिर काफी देर बाद उसकी नज़र अदिति पड़ पड़ी वो इन एक सालो मे बिल्कुल नही बदली थी ।वो आज भी घर के कामो मे हीं उलझी हुई थी ।उसे देख कर् लग रहा था ,की इन कामो के सीवा उसे किसी चीज की सुध हीं कहा थी ?इसलिए तो दीवाली जैसे त्योहार पड़ भी ,वो पुराने कपड़े हीं पहने हुए थी ।
मै आपको फौलो करना चाहती हुँ।पड़ नये होने के करण मुझे समझ नहीं आ रहा है ।कैसे करे । आपकी कहानी कचौटती तन्हाइयाँ को ज़ी मंशा से आपने लिखी है ।ईश्वर आपकी वो मंशा पुरी करें ।
आदिती ने ये तय कर लिया था ,की वो अब खामोशी की चादर के साये मे ही अपनीपूरी बिता देगी ? वो स्वयं खामोश हो गई थी या फिर हालात ने।उसे खामोश कर दिया था ।ये हम उसकी जीवन की गहराइयों मे जाकर देखेंगे ?क्या गुनाह कर बैठी थी भुमी जो। उसकी आँखो मे लेखिका बनने का सपना।सज़ने लगा था । वो उन सपनो की ओर पहला कदम ही बढाई ही थी ,की उसे उस सपने से काफी दूर कर दिया गया था ।जैसे ही उसे ये एहसास हुआ की वो अपने सपने से दूर हो गई है ,वो धीरे -धीरे खामोशियों की आगाश मे समाती सी चली गई ।दरासल आदिती ने बचपन से एक ही सपना देखा था ,की वो लेखिका बनेगी? और वो अपने सपने को पाने के लिए मेहनत भी किया करती थी ।पड़ शायद या पूर्णतः उसके बाबा को उसके सपनो पड़ भरोसा नही था ।इसलिए उसके बाबा उसके सपने की परवाह किये बगैर उसकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से कर देते है ।आदिती पहले तो शादी करने से इंकार कर देती है ।पड़ जब उसके बाबा उसके मना करने के बाद भी ,उसकी एक नही। सुनते है । तब आदिती बेज़न मूरत बन कर शादी कर लेती है । जिस दीन आदिती की बिदाई थी आदिती की बाबा की आँखों से आँशु रुकाते नही रुक रही थी ।पड़ आदिती की आँखों मे आँशु का नामो -निशान भी नही था ।शायद वो अपने बाबा को ये एहसास करना चाहती थी ,की वो उनके इस फैसले से इस कदर टूट सी गई थी ,की वो शायद अब उनसे वो रिस्ता भी नही नीभा पाएगी ?वो समझती थी ,की उसके ऐसा करने से शायद कभी न -कभी उसके बाबा को ये ज़रूर एहसास होगा ?की उनके इस फैसले से उनकीबेटी कभी भी खुश नही रहेगी ?और ये एहसास की उनकी बेटी खुश नही है ,तो वो भी ऐसे ही तड़पेंगे जैसे आदिती अपने सपने के टूटने से तड़पती है ।इसलिए तो अपनी बिदाई के बक्त अपने घर बालो के सामने वो अपनी आँखों मे आँशु की एक बुंद तक नही आने दिया था ।उसने ! पड़ जैसे ही वो अपने पती अमरेश के साथ गाड़ी मे बैठी बाबा के साथ घर बालो के ओझल होते ही ,उसकी आँखों से जो आँशु बहने लगी वो पूरे सफर तक ज़ारी रहा ।अमरेश ये समझ रहा था ,की ये आजकल की लड़कियां भी न अपने मायके वालो का कितना ख्याल रखती है ,उनके सामने अपनी आँशु नही बहाय ,की उनके मायके वाले दुःखी न हो जाए इसलिए सारे आँशु उनके पीठ पीझे बहा रही हैं ।ये सोंच कर अमरेश मुस्कुरा उठा । फिर आदिती अमरेश के साथ उसके घर आ गई ,और ज़ब रात को अमरेश कमरे मे आया तो दरबाज़ा खुला था ।आदिती पलंग ोाद बैठी