और वो स्वंम ही उससे कटा -कटा सा रहने लगा था ।पड़ अमरेश चाहे जितना कोशिश करता की उसे अदिति के इस व्यवहार से कोई फर्क नहीं पड़ता हो ।पड़ सच तो ये था की उसे फर्क पड़ता था ।तभी तो वो रोज़ अपने दोस्तों के साथ का सहारा लेने लगा था खुश रहने के लिए यूं तो उसके ढेर सारे दोस्त नहीं थे ।पड़ दो -चार खास दोस्त थे ,उसके जिसके साथ अमरेश अपना ज्यादा -तर समय बिताता था ।उन्ही दोस्तों मे से एक थी ।रश्मि ।जो अमरेश की बचपन की दोस्त थी ।अमरेश उसके बहुत करीब था ।और वो भी ,जैसे अमरेश को एक अच्छे दोस्त के सहारे की जरूरत थी ।तो,वो उस सहारे की कसौटी पड़ बिल्कुल खड़ी उतरती थी ।और वैसे भी तो अमरेश ज्यादा -तर घर पड़ रहता ही कहाँ था ?वो तो इस बार शादी के लिए वो लम्बी छुट्टी लेकर आया हुआ था ।फिर एक शाम घर के सारे लोग रात का खाना खाने के बाद अपने -अपने कमरे मे आराम करने चले गये थे ।और अदिति भी काम निपटाने के बाद अपने कमरे मे सोने चली गई थी ।पड़ उसे नींद नहीं आ रही थी । शायद या यक़ीनन उसे बार -बार अमरेश् का ख्याल आ रहा था ।की शायद अमरेश उसकी वजह से परेशान है ।तभी तो वो इतनी रात गये घर नहीं आये हैं । अदिति की आंखे यही सब सोंचते -सोंचते देखत ही -देखते वो नींद की आगोश मे समाती चली गई ।और जैसे ही अदिति नींद की गोद मे अपना सिर धरी ही ,थी की ,अमरेश आ जाता है ।वो आधी रात को घर वापस आया था ।और वो भी नसे की हालत मे ,और जब वो कमरे मे पहुंचा तो ,अदिति को गहरी नींद मे सोया हुआ पाकर पहले तो नज़र भर उसे देखकर ज़ब उसे आदिति के चेहरे पड़ वो चिंताओ की लकीरें ढूंढ रहा था की,जो एक पति के देर रात गये घर वापस नहीं आने पड़ होता है ।पड़ गहरी नींद मे सोई अदिति इन लकीरो से पड़े दिखी । और तब अमरेश उम्मीद की वो किरण का दमन भी छोड़ देता है ।की शायद अब सब कुछ उसके और अदिति के बीच ठीक हो पायेगा ? वो नशे मे था इसलिए वो बिना अपने कपड़े और जूते उतारे ही बिस्तर पड़ सो गया था ।और एक बार फिर जब सुबह उसकी आँख खुली तो अदिति कमरे मे नहीं थी ।वो रोज़ की तरह घर के कामो मे ब्यस्त हो चुकी थी ।हर सुबह की तरह ही इस सुबह भी अदिति पूरे घर के काम के साथ -साथ घर के हरेक सदस्य के ज़रूरतों और शहूलियतो के ताल -मेल मे जुट गई थी ।बस वो अमरेश से ज़ुडा कोई काम नही करती थी ।वो तो उसके सामने भी नही आना चाहती थी ।अगर कभी गलती से उसका और अमरेश का सामना हो भी जाता तो ,अमरेश तो ,उससे अपनी नज़रे हटा नही पाता था !पड़ अदिति ऐसे बर्ताव् करती जैसे उससे कोई गलती हो गया हो ?अदिति चाहे जितना घर वालो का ख्याल रखती थी ।पड़ वो बाते बहुत हीं कम करती थी । घर मे मनोरंजन के लिए टेलिवीजन था ।वो भी नही देखती थी । बस घर मे एक पुराना रेडिओ था ,जिसे वो अक्सर सुना करती थी । अमरेश की छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी थी वो वापस अपने काम पड़ जाने वाला था ।सब लोग उसके जाने की तैयारी मे लगे हुए थे ।और वो जाने के लिए घर से निकलने ही वाला था ।अमरेश जाने के लिए जैसे ही दरवाजे पड़ जा रहा था वो अपनी नज़र अदिति की ओर करता है । अदिति किचन मे घर के कामो मे डूबी वो गैस पड़ चाय चढ़ा कर माथे पड़ जुड़ा बनाये हुए अपनी साड़ी की पल्लू कमर मे खोसे हुए आंटा गुंथने मे लगी थी।गैस पड़ शायद चाय हो चुकी थी ,पड़ अदिति का आंटा अभी नहीं गुंथ पाया था ।वो जल्दी -जल्दी आंटा गुंथते -गुन्थते उबलते चाय की ओर बार -बार देख रही थी ।जब वो आंटा गुंथ रही थी ,तब उसके बाल की लट बार -बार उसके चेहरे पड़ लटक जा रहा था ।जिसे वो अपने कानो मे खोंसना तो चाहती थी ,पड़ दोनो हांथ फंसे रहने के कारण वो लट को बार -बार अपनी सिर से हीं झटक रही थी ।अमरेश एक पल के लिए अपने दरबाजे पड़ हीं रुक जाता है ।और अपनी माँ से कहता है ,माँ मै ऊपर अपने कमरे मे जा रहा हुँ।तुम अदिति से एक कप चाय ऊपर भिजवाना ,ये कहकर अमरेश ऊपर अपने कमरे मे चला जाता है ।तब अमरेश की माँ अदिति से कहती है ।बहु ऊपर अपने कमरे मे जा अमरेश के लिए एक चाय लेकर ।तब अदिति कहती है ,की माजी ,मुझे किचन मे ढेर सारे काम निबटाने है ,चाय आप हीं दे आइये न !तब अमरेश की माँ कहती है ,की तु पागल है क्या ?तेरा पति जा रहा है ,और मै जानती हुँ की उसने बहाने से तुम्हे चाय लेकर बुलाया न की शायद वो जाते -जाते भी तुम्हारे साथ कुछ बक्त बिता सके ,और एक तुम हो जिसे इन कामो की पड़ी है ।जा नहीं तो ,पागल ।अमरेश की माँ के साथ -साथ पूरे घर वाले ये हीं मानते थे ,की अदिति और अमरेश के बीच वही रिस्ता है ।जो एक आम पति -पत्नी का होता है । माँ ये बाते उससे कहती है ,तब अदिति के पास कमरे मे नही जाने का कोई बहाना नहीं था ।