पड़ इस बार अमरेश भी अपने मन मे ठान् कर आया था ,की वो इस बार ये वजह जान कर हीं रहेगा ?की आखिर अदिति ऐसी क्यों है ?वो पूरे घर वालो के साथ -साथ अदिति के लिए भी उपहार मे उसकी पसंद की रंग की साड़ी लाया था ।अमरेश अरूही के साथ दीवाली के पटाखे जला रहा था ।की अदिति एक थाली मे मिठाइन्या और खाने की समाग्री लेकर अरूही के पास ऊपर छत पड़ आई ।अदिति ज़ब ऊपर आई थी तो इस बार वो नई साड़ी मे थी ।उसे छत पड़ देखते हीं अमरेश मन हीं मन मुस्कुरा पड़ता है ।गज़ब की खूबसूरत लग रही थी उस लाल साड़ी मे अदिति ।अमरेश जानता था ,की अदिति उसके हांथो से तो उपहार नहीं लेगी ?इसलिए तो उसने माँ के हांथो वो साड़ी अदिति को दिया था ।अमरेश को ये पता था ,की अदिति घर वालो के सामने अपने और अमरेश की रिस्ते की सच्चाई को छिपाने के लिए वो साड़ी ज़रूर पहन लेगी ?और ज़ब अदिति ऊपर छत पड़ आई तो ,अमरेश उस मौके का पुरा -पुरा फायदा उठाते हुए अरूही के सामने अदिति से कहता है ,की ऐसे -कैसे अरूही मेरी खाश दोस्त है ।और वो इस बार आखड़ी बार हमारे साथ दिवाली मना रही है ।क्योंकि फिर तो ये अगली दीवाली अपने पति के साथ मनाएगी इसलिए अपनी हांथो से इसका मुंह मीठा कराओ । अमरेश की बात सुनकर अदिति ये समझती है ,की अरूही के सामने अमरेश जी भी अपने और उसके रिस्ते की सच्चाई को छिपाने के लिए ये बाते उससे कर रहे हैँ ।इसलिए अदिति मिठाई उठाकर अरूही का मुहं अपनी हांथो से मीठा कराती है ।फिर जैसे ही अदिति की हांथ अरूही को मिठाई का एक टुकड़ा ही खिलाई थी ,की अमरेश अदिति का हांथ पकड़ कर वही मिठाई उसके हांथो से अपने मुंह मे खाता है ।और कहता है ,की बस -बस हो गया अरूही का मुंह मीठा मैने उसका मुंह मीठा कराने को कहा था ।ना की उसे इतना मीठा खिला दो ,की वो मोटी हो जाए ।और अगर वो मोटी हो गई तो उससे शादी कौन करेगा ?ये कहकर अमरेश मिठाई का एक टुकड़ा उठाकर अदिति का भी मीठा कराता है । फिर आरूही अमरेश से कहती है ,की अरे अमरेश वो देखो हवा के तेज़ झोंको से कुछ दिये बुझ गये चलो उन्हे फिर से जलाये । आरूही की ये बाते मानो अदिति के ऊपर सही बैठ रहे थे अमरेश ये अपने आप से मन मे ये विचार करता है ,की हाँ आरूही तुम बिल्कुल सही कह रही हो ।की हवा के तेज़ झोंको की वजह से कुछ दिये बुझ गये है ।चलो उन्हे फिर से जलाते है ।ये बाते सोंचते हुए अमरेश् अदिति के लिए ये कहता है ,की कुछ तो हुआ होगा जो आदिति भी बुझ सी गई थी ।पड़ अब वो समय आ गया है ,की तुन्हे भी तुमसे मिलाकर ही रहूँग ?ये सोंचते हुए अमरेश आरूही से ये कहता है ,की तुम पटाखे जलाओ दिये मै और अदिति जाला लेंगे ? फिर अदिति और अमरेश दिये जालाने लगते है ।एक ज़लते दिये से दोनो बाकी के बुझे दिये को जलाकर छत को एक बार फिर से ज़गमगा देते है। बस एक अखाड़ी दिया बचा था जलाने के लिए अदिति उस अखाड़ी दिये को भी जलाकर छत पड़ रख चुकी थी । पड़ जैसे ही वो दिये को रखने लगी ही थी ,की हवा के तेज़ झोंके उस दिये की लव को डगमगा देता है ।तब इससे पहले की वो दिया बुझ पाता उससे पहले अमरेश झटके से उसे अदिति के पीछे से अपने हांथ आगे कर उस दिये की लॉ को हवा के झोंको से बुझने से बचा लेता है ।फिर उस बचाव के बाद तो मानो उस दिये को नया जीवन दान सा मिल गया हो ?उस जीवन दान के बाद उसकी चमक तो अल्लौकिक लग रही थी ।मानो ऐसा लग रहा था ।दूसरे दिये के मुकाबले उसकी रौशनी भी दुगनी सी हो गई थी ।छत की दिवार पड़ दिया अपनी रौशनी बिखेर रही थी ।अमरेश का हांथ अदिति के पीछे से आगे दिये को घेरे खड़ा था ।अदिति भी इस वजह से उसके हांथो के घेरे के बीच खड़ी थी ।अदिति के बाल खुले थे ,ज़ो तेज़ हवा के झोंको से उड़ कर बार -बार अमरेश की आँखों को छूती थी ।अमरेश तो उन लहराती जुल्फों की माधीशियों मे खो जाना चाहता था ।पड़ दूसरे ही पल अदिति की आवाज उसके कानो मे गूंज़ती है ,की हवाएं थम गई है ।अमरेशजी अब आप अपना हांथ हटा लीजिये ।अमरेश झेप कर अपना हांथ अलग कर लेता है ।और अपने आप से ही बाते करता है ।की ये हवाएं तो थम गई अदिति पड़ मेरे मन मे जो सवालों का हलचल चल रहा है वो कब थमेगा ?की तुम ऐसी क्यों हो ? इसके बाद अमरेश एक लम्बी सांस लेता है ।मानो वो स्वंम को ये विश्वास दिला चुका था ,की वो इस बार इस हलचल को ज़रूर शांत करके ही रहेगा ?और इसे शांत करने के लिए मुझे ज्यादा - से ज्यादा तुम्हारे करीब रहने की ज़रूरत है ।तुम्हारे पास रहकर ही शायद मै इन सवालों को सुलझा पाऊ ?