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हमसफ़र

25 नवम्बर 2023

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 पड़ इस बार अमरेश भी अपने मन मे ठान् कर आया था ,की वो इस बार ये वजह जान कर हीं रहेगा ?की आखिर अदिति ऐसी क्यों है ?वो पूरे घर वालो के साथ -साथ अदिति के लिए भी उपहार मे उसकी पसंद की रंग की  साड़ी लाया       था ।अमरेश अरूही के साथ दीवाली के पटाखे जला रहा था ।की अदिति एक थाली मे मिठाइन्या और खाने की समाग्री लेकर अरूही के पास ऊपर छत पड़ आई ।अदिति ज़ब ऊपर आई थी तो इस बार वो नई  साड़ी मे थी ।उसे छत पड़ देखते हीं अमरेश मन हीं मन मुस्कुरा पड़ता है ।गज़ब की खूबसूरत लग रही थी उस लाल साड़ी मे अदिति ।अमरेश जानता था ,की अदिति उसके हांथो से तो उपहार नहीं लेगी ?इसलिए तो उसने  माँ के हांथो वो साड़ी अदिति को दिया था ।अमरेश को ये पता था ,की अदिति घर वालो के सामने अपने और अमरेश की रिस्ते की सच्चाई को छिपाने के लिए वो साड़ी ज़रूर पहन लेगी ?और ज़ब अदिति ऊपर छत पड़ आई तो ,अमरेश उस मौके का पुरा -पुरा फायदा उठाते हुए अरूही के सामने अदिति से कहता है ,की ऐसे -कैसे अरूही मेरी खाश दोस्त है ।और वो इस बार आखड़ी बार हमारे साथ दिवाली मना रही है ।क्योंकि फिर तो ये अगली दीवाली अपने पति के साथ मनाएगी इसलिए अपनी हांथो से इसका मुंह मीठा कराओ । अमरेश की बात सुनकर अदिति ये समझती है ,की अरूही के सामने अमरेश जी भी अपने और उसके रिस्ते की सच्चाई को छिपाने के लिए ये बाते उससे कर रहे हैँ ।इसलिए अदिति  मिठाई उठाकर अरूही का मुहं अपनी हांथो से मीठा कराती है ।फिर जैसे ही अदिति की हांथ अरूही को मिठाई का एक टुकड़ा ही खिलाई थी ,की अमरेश अदिति का हांथ पकड़ कर वही मिठाई उसके हांथो से अपने मुंह मे खाता है ।और कहता है ,की बस -बस हो गया अरूही का मुंह मीठा मैने उसका मुंह मीठा कराने को कहा था ।ना की उसे इतना मीठा खिला दो ,की वो मोटी हो जाए ।और अगर वो मोटी हो गई तो उससे शादी कौन करेगा ?ये कहकर अमरेश मिठाई का एक टुकड़ा उठाकर अदिति का भी मीठा कराता है । फिर आरूही अमरेश से कहती है ,की अरे अमरेश वो देखो हवा के तेज़ झोंको से कुछ दिये बुझ गये चलो उन्हे फिर से जलाये । आरूही की ये बाते मानो अदिति के ऊपर सही बैठ रहे थे अमरेश ये अपने आप से मन मे ये विचार करता है ,की हाँ आरूही तुम बिल्कुल सही कह रही हो ।की हवा के तेज़ झोंको की वजह से कुछ दिये बुझ गये है ।चलो उन्हे फिर से जलाते है ।ये बाते सोंचते हुए अमरेश् अदिति के लिए ये कहता है ,की कुछ तो हुआ होगा जो आदिति भी बुझ सी गई थी ।पड़ अब वो समय आ गया है ,की तुन्हे भी तुमसे मिलाकर ही रहूँग ?ये सोंचते हुए अमरेश आरूही से ये कहता है ,की तुम पटाखे जलाओ दिये मै और अदिति जाला लेंगे ?   फिर अदिति और अमरेश दिये जालाने लगते है ।एक ज़लते दिये से दोनो बाकी के बुझे दिये को जलाकर छत को एक बार   फिर  से ज़गमगा देते है। बस एक अखाड़ी दिया बचा था जलाने  के लिए  अदिति उस अखाड़ी दिये को भी जलाकर छत पड़ रख चुकी थी । पड़ जैसे ही वो दिये को रखने लगी ही थी ,की हवा के तेज़ झोंके उस दिये की लव को डगमगा देता है ।तब इससे पहले की वो दिया बुझ पाता उससे पहले अमरेश झटके से उसे अदिति के पीछे से अपने हांथ आगे कर उस दिये की लॉ को हवा के झोंको से बुझने से बचा लेता है ।फिर उस बचाव के बाद तो मानो उस दिये को नया जीवन दान सा मिल गया हो ?उस जीवन दान के बाद उसकी चमक तो अल्लौकिक लग रही थी ।मानो ऐसा लग रहा था ।दूसरे दिये के मुकाबले उसकी रौशनी भी दुगनी सी हो गई थी ।छत की दिवार  पड़ दिया अपनी  रौशनी बिखेर रही थी ।अमरेश का हांथ अदिति के पीछे से आगे दिये को घेरे खड़ा था ।अदिति भी इस वजह से उसके हांथो के घेरे के बीच खड़ी थी ।अदिति के बाल खुले थे ,ज़ो तेज़ हवा के झोंको से उड़ कर बार -बार अमरेश की आँखों को छूती थी ।अमरेश तो उन लहराती जुल्फों की माधीशियों मे खो जाना चाहता था ।पड़ दूसरे ही पल अदिति की आवाज उसके कानो मे गूंज़ती है ,की हवाएं थम गई है ।अमरेशजी अब आप अपना हांथ हटा लीजिये ।अमरेश झेप कर अपना हांथ अलग कर लेता है ।और अपने आप से ही बाते करता है ।की ये हवाएं तो थम गई अदिति पड़ मेरे मन मे जो सवालों का हलचल चल रहा है वो कब थमेगा ?की तुम ऐसी क्यों हो ? इसके बाद अमरेश एक लम्बी सांस लेता है ।मानो वो स्वंम को ये विश्वास दिला चुका था ,की वो इस बार इस हलचल को ज़रूर शांत करके ही रहेगा ?और इसे शांत करने के लिए मुझे ज्यादा -  से ज्यादा तुम्हारे करीब रहने की ज़रूरत है ।तुम्हारे पास रहकर ही शायद मै इन  सवालों को सुलझा पाऊ ?
मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत ही सजीव लिखा है आपने 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

25 नवम्बर 2023

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रचनाएँ
हमसफ़र
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आदिती ने ये तय कर लिया था ,की वो अब खामोशी की चादर के साये मे ही अपनीपूरी बिता देगी ? वो स्वयं खामोश हो गई थी या फिर हालात ने।उसे खामोश कर दिया था ।ये हम उसकी जीवन की गहराइयों मे जाकर देखेंगे ?क्या गुनाह कर बैठी थी भुमी जो। उसकी आँखो मे लेखिका बनने का सपना।सज़ने लगा था । वो उन सपनो की ओर पहला कदम ही बढाई ही थी ,की उसे उस सपने से काफी दूर कर दिया गया था ।जैसे ही उसे ये एहसास हुआ की वो अपने सपने से दूर हो गई है ,वो धीरे -धीरे खामोशियों की आगाश मे समाती सी चली गई ।दरासल आदिती ने बचपन से एक ही सपना देखा था ,की वो लेखिका बनेगी? और वो अपने सपने को पाने के लिए मेहनत भी किया करती थी ।पड़ शायद या पूर्णतः उसके बाबा को उसके सपनो पड़ भरोसा नही था ।इसलिए उसके बाबा उसके सपने की परवाह किये बगैर उसकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से कर देते है ।आदिती पहले तो शादी करने से इंकार कर देती है ।पड़ जब उसके बाबा उसके मना करने के बाद भी ,उसकी एक नही। सुनते है । तब आदिती बेज़न मूरत बन कर शादी कर लेती है । जिस दीन आदिती की बिदाई थी आदिती की बाबा की आँखों से आँशु रुकाते नही रुक रही थी ।पड़ आदिती की आँखों मे आँशु का नामो -निशान भी नही था ।शायद वो अपने बाबा को ये एहसास करना चाहती थी ,की वो उनके इस फैसले से इस कदर टूट सी गई थी ,की वो शायद अब उनसे वो रिस्ता भी नही नीभा पाएगी ?वो समझती थी ,की उसके ऐसा करने से शायद कभी न -कभी उसके बाबा को ये ज़रूर एहसास होगा ?की उनके इस फैसले से उनकीबेटी कभी भी खुश नही रहेगी ?और ये एहसास की उनकी बेटी खुश नही है ,तो वो भी ऐसे ही तड़पेंगे जैसे आदिती अपने सपने के टूटने से तड़पती है ।इसलिए तो अपनी बिदाई के बक्त अपने घर बालो के सामने वो अपनी आँखों मे आँशु की एक बुंद तक नही आने दिया था ।उसने ! पड़ जैसे ही वो अपने पती अमरेश के साथ गाड़ी मे बैठी बाबा के साथ घर बालो के ओझल होते ही ,उसकी आँखों से जो आँशु बहने लगी वो पूरे सफर तक ज़ारी रहा ।अमरेश ये समझ रहा था ,की ये आजकल की लड़कियां भी न अपने मायके वालो का कितना ख्याल रखती है ,उनके सामने अपनी आँशु नही बहाय ,की उनके मायके वाले दुःखी न हो जाए इसलिए सारे आँशु उनके पीठ पीझे बहा रही हैं ।ये सोंच कर अमरेश मुस्कुरा उठा । फिर आदिती अमरेश के साथ उसके घर आ गई ,और ज़ब रात को अमरेश कमरे मे आया तो दरबाज़ा खुला था ।आदिती पलंग ोाद बैठी
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हमसफ़र

22 अक्टूबर 2023
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अदिति पलंग पड़ बैठी नहीं थी ।वो पलंग पड़ लेटी थी ।शायद वो सो गई थी ।ये देखकर अमरेश कमरे मे दाखिल हुआ ।वो अदिति से बात तो करना चाहता था ।पड़ वो चुप -चाप सो गया ,की शायद शादी की थकान की वज़ह से वो सो गई है

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हमसफ़र

23 अक्टूबर 2023
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और वो स्वंम ही उससे कटा -कटा सा रहने लगा था ।पड़ अमरेश चाहे जितना कोशिश करता की उसे अदिति के इस व्यवहार से कोई फर्क नहीं पड़ता हो ।पड़ सच तो ये था की उसे फर्क पड़ता था ।तभी तो वो रोज़ अपने दोस्तों के साथ क

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हमसफ़र

30 अक्टूबर 2023
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फिर वो ट्रे में चाय लेकर कमरे में जाती है ।वो चाय लेकर अमरेश की ओर जैसे हीं दो -चार कदम बढ़ाई हीं थी ,की अमरेश भी अपनी धीमी कदमो के साथ अदिति की ओर बढ़ने लगा अदिति चाय का ट्रे लिए अमरेश की कदमो की ओर दे

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हमसफ़र

4 नवम्बर 2023
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शायद वो अपने हम सफर से दूर हो चुकी थी ।इधर अमरेश अपने काम पड़ वापस आकर देश की सीमा की रखवाली करता था ।और जब इस बीच जब कभी भी उसे घर बालो की याद आती तो ,वो उनसे फोन पड़ बाते कर लिया करता था ।याद तो उसे आ

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हमसफ़र

25 नवम्बर 2023
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पड़ इस बार अमरेश भी अपने मन मे ठान् कर आया था ,की वो इस बार ये वजह जान कर हीं रहेगा ?की आखिर अदिति ऐसी क्यों है ?वो पूरे घर वालो के साथ -साथ अदिति के लिए भी उपहार मे उसकी पसंद की रंग की साड़

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हमसफ़र

27 नवम्बर 2023
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इसलिए वो अदिति के ज्यादा करीब रहने के लिए मौका देख कर आरोही जब सुबह अपने घर जा रही होती है ,तब अमरेश उससे कहता है ,की इस बार मै मौके पड़ घर आया हुँ ।और तुम भी फ्री हो तुम हमेशा मुझसे कहती रहती थी न की

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हमसफ़र

10 दिसम्बर 2023
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फिर रात् गहराती गई और अमरेश नींद की आगोश मे समाता चला गया ।अफम पड़ संगीत सारी रात बज़ती रही ।और अदिति रात की खामोशी मे अपने आंशुओ को आज़ाद छोड़कर रात के अंधेरो से सुबह की पहली किरण तक का सफर पुरा कर चुकी

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हमसफ़र

15 दिसम्बर 2023
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फिर आरजे डिलीकेटर से बात -चीत शुरु करता है ।हाँ, तो यूँ ,तो हर पिता अपनी संतान को प्रेम करता है ,और संतान भी अपनी माता -पिता को प्रेम करते है ।पड़ ऐसा क्या हुआ की आपकी बेटी आप से इस हद तक न

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हमसफ़र

21 दिसम्बर 2023
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अदिति अफम सुन ही रही थी की दरवाज़े पड़ दस्तक हुई ।अदिति ने दरवाज़ा खोला तो सामने अमरेश और आरूही खड़े थे । फिर उनके अंदर ज़ाते ही अदिति ने जैसे ही दरवाज़ा बंद ही की थी ,की दरवाज़े की घंटी एक वार प

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हमसफ़र

3 अप्रैल 2024
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क्या वो पापा हो ,सकते है ?पड़ ,अगर वो पापा होते तो ,वो अपने आपको उस हम नाम नही देता !और तो और उसने साफ -साफ लब्ज़ो मे अफम पड़ ये भी तो कहा है न ! की वो उन खास रिस्तो मे से है ,ज़ो एक पि

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