त्याग न तप केवल यह तूँबी,
अब रह गयी हाथ में मेरे,
आ बैठा हे राम ! आज मैं
लेकर इसे द्वार पर तेरे।
इसमें वह अभिमन्त्रित जल था,
जिसमें अमिषेकों का बल था,
पर मेरे कर्मों का फल था
वह पानी ढल गया हरे रे !
दे तू मुझको दण्ड, विधाता,
पर कोदण्ड-गुणों से दाता,
एक तार भी दे, बन त्राता,
बजे वेदना साँझ-सवेरे !