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बाल-बोध

14 अप्रैल 2022

26 बार देखा गया 26

वह बाल बोध था मेरा

निराकार निर्लेप भाव में

भान हुआ जब तेरा।

तेरी मधुर मूर्ति, मृदु ममता,

रहती नहीं कहीं निज समता,

करुण कटाक्षों की वह क्षमता,

फिर जिधर भव फेरा;

अरे सूक्ष्म, तुझमें विराट ने

डाल दिया है डेरा।

वह बाल-बोध था मेरा ।।

पहले एक अजन्मा जाना,

फिर बहु रूपों में पहचाना,

वे अवतार चरित नव नाना,

चित्त हुआ चिर चेरा;

निर्गुण, तू तो निखिल गुणों का

निकला वास-बसेरा।

वह बाल-बोध था मेरा।

डरता था मैं तुझसे स्वामी,

किन्तु सखा था तू सहगामी,

मैं भी हूँ अब क्रीड़ा-कामी,

मिटने लगा अँधेरा;

दूर समझता था मैं तुझको

तू समीप हँस-हेरा।

वह बाल-बोध था मेरा।

अब भी एक प्रश्न था--कोऽहं ?

कहूँ कहूँ जब तक दासोऽहं

तन्मयता बोल उठी सोऽहं !

बस हो गया सवेरा;

दिनमणि के ऊपर उसकी ही

किरणों का है घेरा

वह बाल-बोध था मेरा।।

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रचनाएँ
मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख कविताएँ
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गुप्त जी कवि की यह भी अधिमान्यता है कि उसकी मातृभूमि की धूल परम पवित्र है। यह धूल शोकदार में दहते हुए प्राणी को दुःख सहने की क्षमता देती है। पाखण्डी-ढोंगी व्यक्ति भी इस धूली को तन-माथे लगाकर साधु-सज्जन बन जाता है। इस मिट्टी में वह शक्ति है जो क्रूर हिंस्र में भी भक्तिभाव पैदा कर सकती है।
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जीवन की ही जय हो

14 अप्रैल 2022
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मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है । जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा रहा है यह आत्मा अक्षय है जीवन की ही जय है। नया जन्म ही जग पाता है मरण मूढ़-सा रह जाता है एक बीज सौ उपजाता है

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नहुष का पतन

14 अप्रैल 2022
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मत्त-सा नहुष चला बैठ ऋषियान में व्याकुल से देव चले साथ में, विमान में पिछड़े तो वाहक विशेषता से भार की अरोही अधीर हुआ प्रेरणा से मार की दिखता है मुझे तो कठिन मार्ग कटना अगर ये बढ़ना है तो कहूँ मै

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चारु चंद्र की चंचल किरणें

14 अप्रैल 2022
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चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से, मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

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सखि वे मुझसे कह कर जाते

14 अप्रैल 2022
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सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते? मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना? मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते। सखि, वे मुझसे कहकर जाते। स्व

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आर्य

14 अप्रैल 2022
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हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां संपूर्ण देशों से अधिक, कि

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किसान

14 अप्रैल 2022
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हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ आता महाजन के यहाँ वह

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नर हो, न निराश करो मन को

14 अप्रैल 2022
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नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को। संभलो कि सु

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कुशलगीत

14 अप्रैल 2022
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हाँ, निशान्त आया, तूने जब टेर प्रिये, कान्त, कान्त, उठो, गाया चौँक शकुन-कुम्भ लिये हाँ, निशान्त गाया ।           आहा! यह अभिव्यक्ति,           द्रवित सार-धार-शक्ति ।           तृण तृण की मसृण भक्

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अर्जुन की प्रतिज्ञा

14 अप्रैल 2022
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उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा । मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? युग-नेत्र उनके जो अ

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दोनों ओर प्रेम पलता है

14 अप्रैल 2022
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दोनों ओर प्रेम पलता है। सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है! सीस हिलाकर दीपक कहता ’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’ पर पतंग पड़ कर ही रहता कितनी विह्वलता है! दोनों ओर प्रेम पलता है। बचकर हा

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मनुष्यता

14 अप्रैल 2022
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विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸ मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही च

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प्रतिशोध

14 अप्रैल 2022
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किसी जन ने किसी से क्लेश पाया नबी के पास वह अभियोग लाया। मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं। नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं। उन्होंने शांत कर उसको कहा यों स्वजन मेरे न आतुर हो अहा यों। चले भी तो क

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मुझे फूल मत मारो

14 अप्रैल 2022
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मुझे फूल मत मारो, मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो। होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो, मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो। नही भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,

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शिशिर न फिर गिरि वन में

14 अप्रैल 2022
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शिशिर न फिर गिरि वन में जितना माँगे पतझड़ दूँगी मैं इस निज नंदन में कितना कंपन तुझे चाहिए ले मेरे इस तन में सखी कह रही पांडुरता का क्या अभाव आनन में वीर जमा दे नयन नीर यदि तू मानस भाजन में तो मोत

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निरख सखी ये खंजन आए

14 अप्रैल 2022
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निरख सखी ये खंजन आए फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए फैला उनके तन का आतप मन से सर सरसाए घूमे वे इस ओर वहाँ ये हंस यहाँ उड़ छाए करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुसकाए फूल उठे हैं कमल अधर से यह

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मातृभूमि

14 अप्रैल 2022
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नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥ करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।

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भारत माता का मंदिर यह

14 अप्रैल 2022
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भारत माता का मंदिर यह समता का संवाद जहाँ, सबका शिव कल्याण यहाँ है पावें सभी प्रसाद यहाँ । जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ, सबका स्वागत, सबका आदर सबका सम सम्मान यहाँ । राम, रह

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गुणगान

14 अप्रैल 2022
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तेरे घर के द्वार बहुत हैं, किसमें हो कर आऊं मैं? सब द्वारों पर भीड़ मची है, कैसे भीतर जाऊं मैं? द्बारपाल भय दिखलाते हैं, कुछ ही जन जाने पाते हैं, शेष सभी धक्के खाते हैं, क्यों कर घुसने पाऊं म

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एकांत में यशोधरा

14 अप्रैल 2022
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आओ हो वनवासी! अब गृह भार नहीं सह सकती देव तुम्हारी दासी!! राहुल पल कर जैसे तैसे, करने लगा प्रश्न कुछ ऐसे, मैं अबोध उत्तर दूँ कैसे? वह मेरा विश्वासी, आओ हो वनवासी! उसे बताऊँ क्या तुम आओ,

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भजो भारत को तन-मन से

14 अप्रैल 2022
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भजो भारत को तन-मन से। बनो जड़ हाय! न चेतन से॥ करते हो किस इष्ट देव का आँख मूँद का ध्यान? तीस कोटि लोगों में देखो तीस कोटि भगवान। मुक्ति होगी इस साधन से। भजो भारत को तन-मन से॥ जिसके लिए सदैव

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भारत का झण्डा

14 अप्रैल 2022
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भारत का झण्डा फहरै। छोर मुक्ति-पट का क्षोणी पर, छाया काके छहरै॥ मुक्त गगन में, मुक्त पवन में, इसको ऊँचा उड़ने दो। पुण्य-भूमि के गत गौरव का, जुड़ने दो, जी जुड़ने दो। मान-मानसर का शतदल यह, लहर

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मातृ-मूर्ति

14 अप्रैल 2022
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जय भारत-भूमि-भवानी! अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी। तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है; मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है। हदय हरा कर देता है यह अंचल तेरा धानी; जय जय भ

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भारतवर्ष

14 अप्रैल 2022
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मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य हिमालय का उत्कर्ष। हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥ हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया, पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया।

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चेतना

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अरे भारत! उठ, आँखें खोल, उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल! अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है, पल पल है अनमोल। अरे भारत! उठ, आँखें खोल॥ बहुत ह

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जगौनी

14 अप्रैल 2022
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उठो, हे भारत, हुआ प्रभात। तजो यह तन्द्रा; जागो तात! मिटी है कालनिशा इस वार, हुआ है नवयुग का संचार। उठो; खोलो अब अपना द्वार, प्रतीक्षा करता है संसार। हदय में कुछ तो करो विचार, पड़े हो कब से पै

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होली

14 अप्रैल 2022
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जो कुछ होनी थी, सब होली! धूल उड़ी या रंग उड़ा है, हाथ रही अब कोरी झोली। आँखों में सरसों फूली है, सजी टेसुओं की है टोली। पीली पड़ी अपत, भारत-भू, फिर भी नहीं तनिक तू डोली!

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सरकस

14 अप्रैल 2022
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होकर कौतूहल के बस में, गया एक दिन मैं सरकस में। भय-विस्मय के खेल अनोखे, देखे बहु व्यायाम अनोखे। एक बड़ा-सा बंदर आया, उसने झटपट लैम्प जलाया। डट कुर्सी पर पुस्तक खोली, आ तब तक मैना यौं बोली। ‘‘ह

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ओला

14 अप्रैल 2022
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एक सफेद बड़ा-सा ओला, था मानो हीरे का गोला! हरी घास पर पड़ा हुआ था, वहीं पास मैं खड़ा हुआ था! मैंने पूछा क्या है भाई, तब उसने यों कथा सुनाई! जो मैं अपना हाल बताऊँ, कहने में भी लज्जा पाऊँ! पर मै

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दीपदान

14 अप्रैल 2022
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जल, रे दीपक, जल तू जिनके आगे अँधियारा है, उनके लिए उजल तू जोता, बोया, लुना जिन्होंने श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने बत्ती बँटकर तुझे संजोया, उनके तप का फल तू जल, रे दीपक, जल तू अपना तिल-तिल प

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कुशलगीत

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हाँ, निशान्त आया, तूने जब टेर प्रिये, कान्त, कान्त, उठो, गाया चौँक शकुन-कुम्भ लिये हाँ, निशान्त गाया । आहा! यह अभिव्यक्ति, द्रवित सार-धार-शक्ति । तृण तृण की मसृण भक्ति भाव खींच लाया । तूने जब

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रमा है सबमें राम

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रमा है सबमें राम, वही सलोना श्याम। जितने अधिक रहें अच्छा है अपने छोटे छन्द, अतुलित जो है उधर अलौकिक उसका वह आनन्द लूट लो, न लो विराम; रमा है सबमें राम। अपनी स्वर-विभिन्नता का है क्या ही र

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अर्थ

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कुछ न पूछ, मैंने क्या गाया बतला कि क्या गवाया ? जो तेरा अनुशासन पाया मैंने शीश नवाया। क्या क्या कहा, स्वयं भी उसका आशय समझ न पाया, मैं इतना ही कह सकता हूँ जो कुछ जी में आया। जैसा वायु बहा

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माँ कह एक कहानी

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"माँ कह एक कहानी।" बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?" "कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी? माँ कह एक कहानी।" "तू है हठी, मानधन मेरे, सुन

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बाल-बोध

14 अप्रैल 2022
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वह बाल बोध था मेरा निराकार निर्लेप भाव में भान हुआ जब तेरा। तेरी मधुर मूर्ति, मृदु ममता, रहती नहीं कहीं निज समता, करुण कटाक्षों की वह क्षमता, फिर जिधर भव फेरा; अरे सूक्ष्म, तुझमें विराट ने ड

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प्रभु की प्राप्ति

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प्रभो, तुम्हें हम कब पाते हैं? जब इस जनाकीर्ण जगती में एकाकी रह जाते हैं । जब तक स्वजन संग देते हैं, हम अपनी नैया खेते हैं, तब तक हम तुम उभय परस्पर नहीं कभी सुध लेते हैं। पर ज्यों ही नौका

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इकतारा

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त्याग न तप केवल यह तूँबी, अब रह गयी हाथ में मेरे, आ बैठा हे राम ! आज मैं लेकर इसे द्वार पर तेरे। इसमें वह अभिमन्त्रित जल था, जिसमें अमिषेकों का बल था, पर मेरे कर्मों का फल था वह पानी ढल गया ह

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आश्वासन

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अरे, डराते हो क्यों मुझको, कहकर उसका अटल विधान ? "कर्तुमकर्त्तमन्यथाकर्तुम्" है स्वतन्त्र मेरा भगवान । उत्तर उसे आप लेना है, नहीं दूसरे को देना है, मेरी नाव किसे खेना है? जो है वैसा दया-निधान

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बाँसुरी

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या बाँसुरी ही बाँस की, है साक्षिणी तेरी सरस संजीवनी-सी साँस की । क्या मन्त्र फूंका कान में, बस, बज उठी यह आन में! उस गान में, उस तान में, गहरी गमक थी गाँस की। यह बाँसुरी ही बाँस की। कैसी क

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निर्बल का बल

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निर्बल का बल राम है। हृदय ! भय का क्या काम है।। राम वही कि पतित-पावन जो परम दया का धाम है, इस भव-सागर से उद्धारक तारक जिसका नाम है। हृदय, भय का क्या काम है।। तन-बल, मन-बल और किसी को धन-बल

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विराट-वीणा

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तुम्हारी वीणा है अनमोल।। हे विराट ! जिसके दो तूँबे हैं भूगोल-खगोल। दया-दण्ड पर न्यारे न्यारे, चमक रहे हैं प्यारे प्यारे, कोटि गुणों के तार तुम्हारे, खुली प्रलय की खोल। तुम्हारी वीणा है अनमोल।

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