shabd-logo

जिंदगी एक सर्कस

2 सितम्बर 2022

50 बार देखा गया 50
जिंदगी चलती है एक सर्कस की तरह।
कभी खुशी कभी गम धूप छांव की तरह।
जिंदगी कभी तमाशा बनकर रह जाती है।
लोगों को अनोखे खेल दिखाती है।।

बचपन में जब इससे खेलना चाहते हैं सभी।
बचपन से निकलकर पढ़ाई की राह आ पड़ी।
आती है अवस्था जब बदलाव आता है।
जीवनसाथी आकर जिंदगी में बदलाव लाता है।।

जब हम थे अकेले कोई भी खेल खेलते जिंदगी से।
अब हम दो हो गये बंध गए धागे की तरह जिंदगी से।
जिम्मेदारी का बोझ सिर पर आने लगा है।
हमराही का जिम्मा भी हमारे कंधों पर आने लगा है।

जिंदगी में हर अवस्था में बनते हैं नये मुखौटे।
कभी हंसते हंसते लोटपोट कभी दुख में रोते।
कभी हम बालक बनकर स्वच्छ मन बन जाते हैं।
कभी बनकर लीडर नेतृत्वकर्ता बन जाते हैं।।

जिंदगी की सर्कस की तरह बहुत से किरदार है।
कभी रात अंधकार की कभी चांदनी रात है।
कभी बुझते हुए तारों की तरह छुप जाते हैं।
कभी पुर्णिमा की रजनी में चमक जाते हैं।।


32
रचनाएँ
मेरे शब्दों का संगम
0.0
इस किताब के माध्यम से मानव दैनिक जीवन में होने वाली प्रतियोगिता, घटनाएं,प्राकृतिक घटनाएं और प्राकृतिक प्रकोपों से संबंधित कहानी और कविताएं प्रकाशित की जायेगी।
1

जिंदा हूं मैं

1 सितम्बर 2022
9
1
2

जिंदा हूं मैंजीवन मायूस हो गया है।आज का बच्चा बच्चातकनीक में खो गया है।।जीवन की निराशा बस यही है।साथ है परिवार लेकिन बातचीत नहीं है।।देखते है राह बच्चे,माता पिता के प्यार के लिए।माता-पिता कर

2

जिंदगी एक सर्कस

2 सितम्बर 2022
4
0
0

जिंदगी चलती है एक सर्कस की तरह।कभी खुशी कभी गम धूप छांव की तरह।जिंदगी कभी तमाशा बनकर रह जाती है।लोगों को अनोखे खेल दिखाती है।।बचपन में जब इससे खेलना चाहते हैं सभी।बचपन से निकलकर पढ़ाई की राह आ पड़ी।आत

3

उजड़ते गांव

2 सितम्बर 2022
2
0
0

बढ़ती आबादी छीन रही है,गांवों की सुख सुविधा को।रोक सको रोक लो अभी ,गांवों की इस दुविधा को।।जहां फसल लहलहाती खड़ी रहती,उनको उजाड़ा जा रहा है।जहां शुद्ध अन्न जल मिलता था,उसे दूषित बनाया जा रहा है।।धीरे

4

ग्लोबल वार्मिंग

3 सितम्बर 2022
2
0
0

खतरा बढ़ रहा हर दिन,ताप बढ़ रहा धरती पर।पनप रही नई नई बीमारी,असर पड़ रहा जन जीवन पर।।चिंता है दुनिया को धरा पर,भविष्य कैसा आयेगा।भानु तेज बढ़ेगा भू पर,जनजीवन असंभव हो जाएगा।।ओजोन परत क्षतित हो रही,प्र

5

ग्लोबल वार्मिंग

3 सितम्बर 2022
2
0
0

वर्तमान की स्थिति को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग ने एक भयंकर रूप ले लिया है। इस समय दुनिया के हर कोने में पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। हर मनुष्य इस तरह की परेशानी से जूझ रहा है। ग्लोबल

6

डर लगता है

10 सितम्बर 2022
1
0
0

डर लगता है मुझे जिंदगी की सांसें खोने से।डर लगता है प्रकृति के इस सुंदर रूप को खोने से।धन दौलत असीम है मेरे अंदाज भी अनोखे हैं।एक सांस की कीमत एक हवा सम झौंके है।।नहीं खरीद पाऊंगा सांसों को जिंदगी जीन

7

हां मैं आधा इंसान हूं

10 सितम्बर 2022
5
1
0

हां मैं आधा इंसान हूं।मेरे माता-पिता के बिना।जिनका खून मेरी रगों में उबल रहा।जिनका हर रंग में में रंगा हुआ।मैं छाया हूं उनके सपनों की।यह सबसे उच्च श्रेणी है अपनों की ।मैं उनके बिना अधूरी जी और जान हूं

8

मानसिक स्वास्थ्य

11 सितम्बर 2022
3
0
0

मनुष्य के जीवन में जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है उससे ज्यादा उसे मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है। मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य ही उसकी बुद्धिमत्ता की की वास्तविक परख होता है।एक व्यक

9

बचपन के मित्र

13 सितम्बर 2022
1
0
0

प्रगाढ़ रिश्ता था बचपन का,जो दिल में प्रेम की ज्योति जलाता था।ना खाना लगता अच्छा ना पीना,जब तक मेरा मित्र नजर ना आता था।।कितनी अनुपम थी वह दोस्ती ,कृष्ण और सुदामा की इस दुनिया में।दोनों का साथ सुहाना

10

हिंदी

14 सितम्बर 2022
1
0
0

मै रंग में रंग गया हिन्दी के,मैं शिखर चढ़ गया हिन्दी से।मेरी कलम उगलती हिन्दी है,मेरे हर काम है हिन्दी से।।हिन्दी ने मुझको मान दिया,हिंदी ने मुझे सम्मान दिया।देवनागरी लिपि है इसकी,भारत को अभिमान दिया।

11

मानवीय पूंजी

15 सितम्बर 2022
8
2
0

मानव की पूंजी सद्गुण है,मानव संग सद्व्यवहार करें।बचे काम क्रोध मद लोभ मोह से,मानवता का व्यवहार करें। हर राह मानव के जीवन में,सद्गुण काम सदा आते हैं।बनकर सुमन जीवन उपवन के,खिलते फूल बन महकाते हैं।

12

जिंदगी की अनिश्चितताएं

16 सितम्बर 2022
1
0
0

जिंदगी का सफर अनिश्चित है,एक राह की तरह।हम अनजान हैं इस सफर पर,एक राही की तरह।मिलेंगे कब मोड़ इस राह में,हमें नहीं पता होता है।कहां गिरि और कहां सरिता,यह सफर की अनिश्चितता का दौर होता है।।कहां मिलेंगे

13

मैं अनाथ हूं सहारा चाहिए

16 सितम्बर 2022
1
0
0

मैं भूखा हूं प्यार का ,मुझे सहारा चाहिए।मुझे अनाथ ना कहे कोई,इससे छुटकारा चाहिए।मैंने नही किया कोई पाप,मैं किसी के कर्मों का फल हूं।मैं किसी मां-बाप की ,असमय मृत्यु के का जीवन हूं।मैं चाहता हूं मुझे,&

14

नारीवाद

17 सितम्बर 2022
3
1
1

तेरी ज़रूरत है दुनिया का अस्तित्व रखने को।तेरे हर रूप की महिमा दुनिया की शोभा बढ़ाने को।।तूने संग सदा निभाया है उपवन को सदा सजाया है।तू है फूल एक खिलता तूने मधु सदा लुटाया है।।ममता प्रेम की मूरत तेरी

15

अंधविश्वास

18 सितम्बर 2022
4
3
2

पाखंडी बन संत धरा पर,जनता को यहां लूट रहे।अशिक्षित लोगों को यहां पर,अंधविश्वास में लूट रहे हैं।।जो सत्य राह पर चलते थे,उनकी की अस्मत को रहे हैं।भोले-भाले लोगों से मिलकर,जान के खेल खेल रहे हैं।।धन कमान

16

हमारे संघर्ष की कहानी

19 सितम्बर 2022
3
2
0

मेरा संघर्ष कुछ ऐसा था इस धरा पर, कहने वाले बहुत थे करने वाला कोई नहीं। मैं फंसा था जिंदगी के भंवर में, किनारे पर खड़े बहुत थे बचाने वाला कोई नहीं।। पत्थर की चट्टानों से टकरा गया था मैं, टू

17

संतोष नही जन जीवन में

19 सितम्बर 2022
2
1
0

लालच के घोर अंधेरे में,संतोष का राज नहीं होता।जो धन के मद में अंधे हो, शांति का माहौल नहीं होता।।जो पाकर धन को फूल गए,हर रिश्ते नाते को भूल गए।जीवन के सद्गुण मौन हुए,जो अवगुण के फंदे झूल गए।।जो वक्त क

18

मानव महत्व खोता जा रहा है

20 सितम्बर 2022
1
0
0

हे मानव क्यों स्वार्थी बनता जा रहा है।धन दौलत के मंद में खोता जा रहा है।।ढूंढता जिस ईश्वर को मंदिर मस्जिदों में।वह बसता है हर मनुष्य के दिलों में।।तेरे स्वार्थों का महत्व बढ़ता जा रहा है।मानव तेरे हित

19

नारी शक्ति का दुरूपयोग

20 सितम्बर 2022
8
2
1

नारी का शोषण करने को,जो दानव दुनिया में घूम रहे।जो धन के लालची बनकर के,नारी का खून है चूस रहे हैं।।शिक्षा से वंचित रखने की,जो हीन भावना रखते हैं।लड़की की हत्या करने की ओछी मानसिकता रखते हैं।।वे सजा के

20

जैविक खेती

21 सितम्बर 2022
10
5
3

मनुष्य की ताकत हीन हुई, बीमारी बढ़ने लगी।भूल गए वह वक्त मनुज,जब होती थी जैविक खेती।।मेहनत के बलबूते पर,किसान अन्न उपजाता था।खून-पसीना एक करके, शुद्ध अन्न उपजाता था।।कंपोस्ट खाद डालकर के,खेत उपजाऊ बनात

21

जिंदगी

21 सितम्बर 2022
2
0
0

जिंदगी से परेशान हैं हर आदमी।एक दौड-भाग भरी हो गई जिंदगी।।भूल गये है रिश्ते किस कदर निभाने है।घर में रहकर भी अपने हुए पराए हैं।।मोबाइल की दुनिया में लोग समा गए हैं।रिश्ते की कीमतों को वाट्सएप इंस्टाग्

22

मेरी पहली पढ़ी पुस्तक

22 सितम्बर 2022
3
0
0

हालांकि मुझे इस बात का अच्छे से ध्यान नहीं है लेकिन स्कूली किताबों के अलावा मैं पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक रखता था।पुस्तकें मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई।इन पुस्तकों में मैं धार्मिक पुस्तकें पढ़ने म

23

शर्मसार करती इंसानियत

23 सितम्बर 2022
2
0
0

वक्त बदल गया दुनिया में,बदल गई इंसान की नीयत।हर तरफ एक शोर मचा है,शर्मसार हो रही इंसानियत।।शिक्षा व्यवस्था बदहाल हो गई,व्यापार बना अमीरों का।खंडहर हो गई सरकारी शिक्षा,मोल हो गया जमीरों का।।शिक्ष

24

अंतरिक्ष

24 सितम्बर 2022
7
1
0

असीम आयाम असीमित दूरी ,धरा से अति दूर है।घोर अंधेरा ना मानव जीवन,चांद तारों का नूर है।।जगमगाती रोशनी तारों की, प्रकाश से जगमगा रही।सिर्फ नजर आता आंखों से ,दूर है अस्तित्व कहीं।।ग्रह ,नक्षत्र है ग

25

शक्ति और उपासना

26 सितम्बर 2022
7
2
2

अंतर्मन को निर्मल करके,मानव का रूप पहचान करो।व्रत धारण कर मानव रक्षा का,मानव बनकर अहसान करो।शक्ति तेरे अंदर कितनी ,यह पता नहीं तुझको मानव।तू ईश्वर का रूप निराला,इसे पहचान अंध मानव।।भक्ति और साधना से ,

26

इंटरनेट के बिना एक दिन

27 सितम्बर 2022
2
1
0

लत लगी इस दुनिया कोनशा हुआ अनौखा है।इंटरनेट के बिना एक पल,हर मनुज का सूना है।।खाने-पीना की सुध नहीं,हाथ मोबाइल जब आई है।मनुज की नजर हटती नहीं,जीवन की राह बनाई है।।समय के पाबंद हो गये,समय बचा ना परिवार

27

युवाओं के लिए शारीरिक सकारात्मकता

28 सितम्बर 2022
3
3
1

तुम भविष्य के सपने हो,इस देश के श्रृंगार हो।भारत मां के सच्चे सपूत,मां की ममता के प्यार हो।।शुद्ध और पोषक आहार से,शारीरिक मजबूत बनाओं।बल बुद्धि विकसित करके के,देश प्रगति में हाथ बढ़ाओ।।तुम भविष्य के द

28

प्राकृतिक आपदा

29 सितम्बर 2022
2
1
0

हम मानव खुदगर्ज हो गए,प्रकृति का विनाश कर रहे।मानव जीवन को खतरा बढ़ाकर,चुनौतियां पैदा कर रहें।।बाढ, भूकंप,तूफान आ रहे,भूस्खलन बढ़ रहा धरा पर।बीमारी पनप रही नई -नई,महामारी बढ़ रही धरा पर।।मानव अपने सुख

29

प्राकृतिक आपदा

29 सितम्बर 2022
2
0
1

हम मानव खुदगर्ज हो गए,प्रकृति का विनाश कर रहे।मानव जीवन को खतरा बढ़ाकर,चुनौतियां पैदा कर रहें।।बाढ, भूकंप,तूफान आ रहे,भूस्खलन बढ़ रहा धरा पर।बीमारी पनप रही नई -नई,महामारी बढ़ रही धरा पर।।मानव अपने सुख

30

कुदरत का कहर

29 सितम्बर 2022
0
0
0

कुदरत का कहर उग्र होकर, मानव जीवन छीन रहा है।जल,पवन के रूप प्रचंड में, दरिंदों को लील रहा हैं।।कुदरत की सीरत है ऐसी,संतुलन से संसार चल रहा।मानव स्वभाव बदल रहा है, असंतुलन पैदा कर रहा।।अपने सुख की खाति

31

ऑनलाइन गेमिंग

30 सितम्बर 2022
4
0
0

ऑनलाइन गेमिंग एक छलावा, कमाई कराने का झूठा दावा है।गेम के नाम पर लोगों को लूट रहे हैं, हर मनुष्य के पसीने छूट रहे हैं।।लत है बुरी नशा चढ़ जाता है,आदमी कमाई के लोभ में फंस जाता है।हो जात

32

गांधी जी पर विचार

1 अक्टूबर 2022
4
2
0

मनुष्य की जिंदगी में कोई भी मनुष्य बुरा नहीं होता है। मनुष्य अपने जन्म से मृत्यु तक ठीक होता हैं।उसकी जिंदगी में बुरे होते हैं तो उसके अंदर उपस्थित विकार जो उसकी जिंदगी में पतन की ओर ले जाते हैं।गांधी

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए