डायरी दिनांक १६/०८/२०२२
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बाहरी शोरगुल के अतिरिक्त मनुष्य का अंतर्मन की भी एक आवाज होती है। अंतर्मन मनुष्य को हमेशा बुराई के मार्ग पर जाने से रोकता है। मनुष्य को अच्छाई और सच्चाई की राह दिखाता है। उसे मानवीय मूल्यों का अनुसरण करने के लिये प्रेरित करता है। सत्य, अहिंसा, तितिक्षा जैसे गुणों का परिचय कराता है। फिर भी सत्य यह भी है कि अधिकांश मनुष्य अंतर्मन की आवाज को सुन ही नहीं पाते।
श्रीमद्भगवद्गीता में मनुष्य की बुद्धि तीन प्रकार की बतायी है। सात्विकी बुद्धि धर्म और अधर्म का यथार्थ निर्णय लेने में समर्थ होती है। राजसी बुद्धि धर्म और अधर्म का विभेद करने में असमर्थ होती है। तथा तामसी बुद्धि वह बुद्धि है जो कि धर्म को अधर्म तथा अधर्म को धर्म मानती है।
मेरा विचार है कि बुद्धि की तरह अंतर्मन भी तीन प्रकार के होते हैं। सात्विकी अंतर्मन मनुष्य को सही दिशा में सचेत करता है। राजसी अंतर्मन संभवतः सही और गलत का विवेक नहीं कर पाता होगा। इसलिये ज्यादातर उदासीन रहता होगा। वहीं तामसी अंतर्मन मनुष्य को बार बार अधर्म की तरफ प्रेरित करता होगा।
त्रिगुणात्मक सृष्टि में कोई भी जीव तीन गुणों से अतीत नहीं होता है। इसलिये माना जा सकता है कि ये तीनों प्रकार के अंतर्मन प्रत्येक मनुष्य की बुद्धि का भाग होते होंगें। हमेशा उत्कृष्ट को ही मान्यता दी जाती है। इसलिये अंतर्मन का अर्थ केवल सात्विक अंतर्मन ही मानना होगा। इसीलिये माना जाता है कि अंतर्मन मनुष्य को बुराई से रोकता है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।